मित्रों,जब भी किसी प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होते हैं तो वहाँ की जनता इस उम्मीद में सत्ता-परिवर्तन करती है कि आनेवाली सरकार निवर्तमान सरकार की तरह भ्रष्ट नहीं होगी और कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार लाएगी। परंतु मेरी समझ में यह नहीं आता कि उत्तर प्रदेश की जनता ने किस उम्मीद पर 17 महीने पहले समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत देकर जिताया। पुराने रिकार्ड तो यही बता रहे थे कि जब भी समाजबाँटी पार्टी यूपी में सत्ता में आती है भ्रष्टाचार बढ़ता है और पूरी तरह से गुंडा-राज कायम हो जाता है। बात यहीं तक रहती तो फिर भी गनीमत थी इस बार तो जबसे सपा की सरकार बनी है राज्य में हर हफ्ते कहीं-न-कहीं जेहादी दंगे हो रहे हैं। 17 महीने में 104 से भी ज्यादा सांप्रदायिक दंगे वो राज्य के 30 विभिन्न जिलों में। आखिर उत्तर प्रदेश को इन 17 महीनों में हो क्या गया है? क्या उसका नाम बदलकर अब दंगा प्रदेश रखना पड़ेगा?
मित्रों,जब भी दंगों की बात चलती है तो मीडिया और छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी दलों की जुबान पर सिर्फ एक ही नाम होता है-2002 के गुजरात के दंगे। मानो न तो उसके पहले भारत ने कभी सांप्रदायिक दंगा देखा था और न तो उसके बाद ही दंगे हुए। पिछले आठ दिनों से मुसलमान मुजफ्फरनगर में जो कुछ भी कर रहे हैं क्या वो सांप्रदायिकता नहीं है या उन्हें दंगों की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए? जब 21 में से 16 मरनेवाले हिन्दू हों तो सिर्फ हिंसक झड़प या हिंसा और जब 12 में से 7 मुसलमान हों तब सांप्रदायिक दंगा,फासिज्म वगैरह।
मित्रों,मैं यहाँ यह कामना नहीं कर रहा हूँ कि जब भी दंगे हों तो ज्यादा संख्या में मुस्लिम मारे जाएँ परंतु मैं यह भी नहीं चाहता हूँ कि हम इस तथ्य से मुँह चुराने लगें कि पिछले 100 सालों में भारत में क्यों दंगे होते रहे हैं। इतिहास गवाह है कि ये मुसलमान ही थे जिन्होंने 16 अगस्त,1946 की तिथि निर्धारित करके बाजाप्ता दंगों की शुरुआत की थी और उसके बाद तो 40 लाख लोग उन दंगों में मारे गए। मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह दावा करता हूँ कि दंगे चाहे मुजफ्फरनगर में हों या आजाद मैदान में या फिर गुजरात या भागलपुर में हों दंगों की शुरुआत हमेशा मुसलमान करते हैं क्योंकि उनका धर्म सिर्फ नाम से ही शांतिवादी है व्यवहार में तो घनघोर असहिष्णुतावादी और असहअस्तित्ववादी है। मुगल सल्तनत के कुछेक सालों और बाद के टीपू सुल्तान सरीखे गिनती के शासकों को छोड़कर उसके दोनों हाथों में कभी कुरान नहीं रहा बल्कि उसके एक हाथ में हमेशा कुरान रहा तो दूसरे हाथ में तलवार। आज जो लोग पानी पी-पीकर मोदी को गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं उनको भी यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि अगर 27 फरवरी,2002 को गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के 59 रामसेवकों जिनमें से अधिकतर महिलाएँ और बच्चे थे को स्थानीय मुसलमानों द्वारा जिंदा जलाया नहीं गया होता तो कदापि गुजरात में 28 फरवरी से 2 मार्च तक दंगे नहीं हुए होते। उनको यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसके बाद गुजरात में फिर कभी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए जबकि घनघोर अल्पसंख्यकवादी समाजबाँटी पार्टी की सरकार में यह रोजाना की बात हो गई है।
मित्रों,अभी कुछ दिनों पहले समाजबाँटी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा था कि उनकी पार्टी यूपी को गुजरात नहीं बनने देगी। मैं उनसे बिल्कुल सहमत हूँ कि वे लोग यूपी को कभी गुजरात बना ही नहीं सकते बल्कि उनकी पार्टी की सत्तालोलुप नीतियाँ उत्तर प्रदेश को अफगानिस्तान जरूर बना देगी। वो दिन दूर नहीं जब हिन्दू यूपी में न तो पूजा-पाठ ही कर पाएंगे और न ही श्मशानों में अंतयेष्टि ही संपन्न कर सकेंगे। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तरह हिन्दुओं की बहू-बेटियों को जबर्दस्ती घरों से उठा लिया जाएगा। ज्ञातव्य हो कि मुजफ्फरनगर के दंगों की शुरुआत भी मुस्लिम शोहदों द्वारा हिन्दू दलित लड़कियों से छेड़खानी के कारण हुई। इस सिलसिले में हुई हिंसा में 27 अगस्त को कावल गाँव में दो लोग मारे गए। कई दिनों तक लगातार परेशान किए जाने के बाद जब हिन्दुओं ने महापंचायत का आयोजन किया तो पहले तो यूपी पुलिस ने उनके हथियार जब्त कर लिए और बाद में मुसलमानों ने आग्नेयास्त्रों से उन पर हमला कर दिया जिससे कम-से-कम आधा दर्जन हिन्दू घटनास्थल पर ही मारे गए। बाद में जब हिन्दू भड़क उठे तब मुसलमानों की रक्षा के लिए तुरंत सेना बुला ली गई।
मित्रों,क्या इस घृणित कृत्य के बाद भी मुल्ला यम सिंह यादव परिवार को हिन्दू बिरादरी का सदस्य मानते हैं और अगर मानते हैं तो क्या मानना चाहिए? यह परिवार जबसे 15 मार्च,2012 से सत्ता में आया है इसने जेहादियों को अपने धर्मभाइयों को निबटाने का ठेका दे दिया है। पहले इसने गोवधशालाओं में गायों को काटने का लाइसेंस दिया और अब जैसे अपने धर्मभाइयों के संहार का परमिट दे दिया है। मैं उत्तर प्रदेश में रहनेवाले उन हिन्दुओं से पूछना चाहता हूँ जो अभी भी सपा,बसपा और कांग्रेस के समर्थक हैं कि मुजफ्फरनगर क्या गुजरात में स्थित है? क्या उन्होंने तब तक होश में नहीं आने की कसम ले रखी है जब तक कि जेहादी हिंसा की लपटें उनके परिवार को झुलसाने न लगे? आँखे खोलिए और न सिर्फ यूपी बल्कि पूरे भारत को गुजरात बनाईए और नरेन्द्र मोदी को उसका पीएम तभी सांप्रदायिक दंगों से स्थायी रूप से मुक्ति मिल पाएगी। अभी तो यूपी में 20% ही मुस्लिम जनसंख्या है जब यह 45-50% हो जाएगी तब आपकी बहन-बेटियों का क्या होगा आपलोग खुद ही समझ सकते हैं। आपने मुंबई के शक्ति मिल गैंग रेप के बारे में वो खबर तो जरूर पढ़ी होगी कि इन बलात्कारियों (जिनमें से कम-से-कम 4 बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठिए हैं) ने बलात्कारों की एक स्वर्णिम शृंखला कायम की है और हमारी अतिथि देवो भव के महान विश्वास की पूरी तरह से गलत ठहराते हुए अब तक हमारी कम-से-कम 10 बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार जैसे नृशंस अपराध को अंजाम दे चुके हैं।
मित्रों,जब भी दंगों की बात चलती है तो मीडिया और छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी दलों की जुबान पर सिर्फ एक ही नाम होता है-2002 के गुजरात के दंगे। मानो न तो उसके पहले भारत ने कभी सांप्रदायिक दंगा देखा था और न तो उसके बाद ही दंगे हुए। पिछले आठ दिनों से मुसलमान मुजफ्फरनगर में जो कुछ भी कर रहे हैं क्या वो सांप्रदायिकता नहीं है या उन्हें दंगों की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए? जब 21 में से 16 मरनेवाले हिन्दू हों तो सिर्फ हिंसक झड़प या हिंसा और जब 12 में से 7 मुसलमान हों तब सांप्रदायिक दंगा,फासिज्म वगैरह।
मित्रों,मैं यहाँ यह कामना नहीं कर रहा हूँ कि जब भी दंगे हों तो ज्यादा संख्या में मुस्लिम मारे जाएँ परंतु मैं यह भी नहीं चाहता हूँ कि हम इस तथ्य से मुँह चुराने लगें कि पिछले 100 सालों में भारत में क्यों दंगे होते रहे हैं। इतिहास गवाह है कि ये मुसलमान ही थे जिन्होंने 16 अगस्त,1946 की तिथि निर्धारित करके बाजाप्ता दंगों की शुरुआत की थी और उसके बाद तो 40 लाख लोग उन दंगों में मारे गए। मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह दावा करता हूँ कि दंगे चाहे मुजफ्फरनगर में हों या आजाद मैदान में या फिर गुजरात या भागलपुर में हों दंगों की शुरुआत हमेशा मुसलमान करते हैं क्योंकि उनका धर्म सिर्फ नाम से ही शांतिवादी है व्यवहार में तो घनघोर असहिष्णुतावादी और असहअस्तित्ववादी है। मुगल सल्तनत के कुछेक सालों और बाद के टीपू सुल्तान सरीखे गिनती के शासकों को छोड़कर उसके दोनों हाथों में कभी कुरान नहीं रहा बल्कि उसके एक हाथ में हमेशा कुरान रहा तो दूसरे हाथ में तलवार। आज जो लोग पानी पी-पीकर मोदी को गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं उनको भी यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि अगर 27 फरवरी,2002 को गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के 59 रामसेवकों जिनमें से अधिकतर महिलाएँ और बच्चे थे को स्थानीय मुसलमानों द्वारा जिंदा जलाया नहीं गया होता तो कदापि गुजरात में 28 फरवरी से 2 मार्च तक दंगे नहीं हुए होते। उनको यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसके बाद गुजरात में फिर कभी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए जबकि घनघोर अल्पसंख्यकवादी समाजबाँटी पार्टी की सरकार में यह रोजाना की बात हो गई है।
मित्रों,अभी कुछ दिनों पहले समाजबाँटी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा था कि उनकी पार्टी यूपी को गुजरात नहीं बनने देगी। मैं उनसे बिल्कुल सहमत हूँ कि वे लोग यूपी को कभी गुजरात बना ही नहीं सकते बल्कि उनकी पार्टी की सत्तालोलुप नीतियाँ उत्तर प्रदेश को अफगानिस्तान जरूर बना देगी। वो दिन दूर नहीं जब हिन्दू यूपी में न तो पूजा-पाठ ही कर पाएंगे और न ही श्मशानों में अंतयेष्टि ही संपन्न कर सकेंगे। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तरह हिन्दुओं की बहू-बेटियों को जबर्दस्ती घरों से उठा लिया जाएगा। ज्ञातव्य हो कि मुजफ्फरनगर के दंगों की शुरुआत भी मुस्लिम शोहदों द्वारा हिन्दू दलित लड़कियों से छेड़खानी के कारण हुई। इस सिलसिले में हुई हिंसा में 27 अगस्त को कावल गाँव में दो लोग मारे गए। कई दिनों तक लगातार परेशान किए जाने के बाद जब हिन्दुओं ने महापंचायत का आयोजन किया तो पहले तो यूपी पुलिस ने उनके हथियार जब्त कर लिए और बाद में मुसलमानों ने आग्नेयास्त्रों से उन पर हमला कर दिया जिससे कम-से-कम आधा दर्जन हिन्दू घटनास्थल पर ही मारे गए। बाद में जब हिन्दू भड़क उठे तब मुसलमानों की रक्षा के लिए तुरंत सेना बुला ली गई।
मित्रों,क्या इस घृणित कृत्य के बाद भी मुल्ला यम सिंह यादव परिवार को हिन्दू बिरादरी का सदस्य मानते हैं और अगर मानते हैं तो क्या मानना चाहिए? यह परिवार जबसे 15 मार्च,2012 से सत्ता में आया है इसने जेहादियों को अपने धर्मभाइयों को निबटाने का ठेका दे दिया है। पहले इसने गोवधशालाओं में गायों को काटने का लाइसेंस दिया और अब जैसे अपने धर्मभाइयों के संहार का परमिट दे दिया है। मैं उत्तर प्रदेश में रहनेवाले उन हिन्दुओं से पूछना चाहता हूँ जो अभी भी सपा,बसपा और कांग्रेस के समर्थक हैं कि मुजफ्फरनगर क्या गुजरात में स्थित है? क्या उन्होंने तब तक होश में नहीं आने की कसम ले रखी है जब तक कि जेहादी हिंसा की लपटें उनके परिवार को झुलसाने न लगे? आँखे खोलिए और न सिर्फ यूपी बल्कि पूरे भारत को गुजरात बनाईए और नरेन्द्र मोदी को उसका पीएम तभी सांप्रदायिक दंगों से स्थायी रूप से मुक्ति मिल पाएगी। अभी तो यूपी में 20% ही मुस्लिम जनसंख्या है जब यह 45-50% हो जाएगी तब आपकी बहन-बेटियों का क्या होगा आपलोग खुद ही समझ सकते हैं। आपने मुंबई के शक्ति मिल गैंग रेप के बारे में वो खबर तो जरूर पढ़ी होगी कि इन बलात्कारियों (जिनमें से कम-से-कम 4 बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठिए हैं) ने बलात्कारों की एक स्वर्णिम शृंखला कायम की है और हमारी अतिथि देवो भव के महान विश्वास की पूरी तरह से गलत ठहराते हुए अब तक हमारी कम-से-कम 10 बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार जैसे नृशंस अपराध को अंजाम दे चुके हैं।
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