मंगलवार, 12 नवंबर 2013

क्या खुर्शीद पाकिस्तान के विदेश मंत्री हैं?

मित्रों,काफी दिन हुए। हमारे गाँव में क्रिकेट का मैच हो रहा था। प्रतिद्वन्द्वी टीम बगल के गाँव की थी। गाँव की ईज्जत दाँव पर लगी थी। मैच अपने पूरे शबाब पर था और अंतिम ओवर प्रगति पर था कि हुआ यह कि गेंदबाज का मौसेरा भाई जो बगल के उसी गाँव का था अंतिम बल्लेबाज के रूप में पिच पर आया। गेंदबाज ने गेंद फेंकी। पहली ही गेंद पर बोल्ड। अंपायर ने भी ऊंगली उठा दी लेकिन गेंदबाज भाईचारे पर उतर आया और अंपायर से ही उलझ गया कि उसने तो नो बॉल फेंकी थी। अंपायर भी मरता क्या न करता मान गया। फिर तो ऐसा बार-बार हुआ,बार-बार हुआ। और इस प्रकार हमारे गाँव की टीम एक जीता हुआ मैच हार गई।
                मित्रों,कुछ ऐसा ही मैच इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहा है। पाकिस्तानी सेना की मदद से आतंकवादी बार-बार भारतीय सीमा में घुसपैठ कर रहे हैं। हमारे सैनिकों के सिर उनके सैनिक ट्रॉफी की तरह उतारकर ले जा रहे हैं लेकिन हमारे विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद कहते हैं कि पाकिस्तान को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए क्योंकि उनका मानना है कि पाक सैनिकों ने सिर काटा,गोलियाँ चलाईं,मगर किसी ने न देखा। पूरी दुनिया कह रही है यानि दर्शक कह रहे हैं, अमेरिका यानि अंपायर कह रहा है कि इन तरह की तमाम घटनाओं में पाक सेना का हाथ रहता है लेकिन गेंदबाज खुर्शीद कह रहे हैं कि बल्लेबाज को संदेह का लाभ मिलना ही चाहिए क्योंकि इसका वीडियो फुटेज तो उपलब्ध है नहीं। मैं नहीं जानता कि नवाज शरीफ खुर्शीद के किस तरह के रिश्तेदार हैं लेकिन इन दोनों के बीच कोई-न-कोई किसी-न-किसी तरह का मधुर रिश्ता तो जरूर है वरना कोई इस तरह मादरे वतन के प्रति यूँ ही बेवफा नहीं होता। खुर्शीद इतने पर ही रूक जाते तो फिर भी गनीमत थी लेकिन वे तो अपने मौसेरे भाई की तरफ से बल्लेबाजी भी करने लगे हैं। कहते हैं कि हमसे ज्यादा तो आतंकवाद का शिकार पाकिस्तान खुद है। जबसे वे विदेश मंत्री बने हैं पता ही नहीं चल रहा है कि वे भारत के विदेश मंत्री हैं या पाकिस्तान के। जब भी बोलते हैं तो भारत से ज्यादा पाकिस्तान के पक्ष में ही बोलते हैं। ऐसा वे क्यों कर रहे हैं,ऐसा करने के बदले उनको क्या मिल रहा है,का पता लगाना निश्चित रूप से भविष्य में हमारी जाँच एजेंसियों के लिए चुनौती भरा कार्य होगा। दुर्भाग्यवाश एक तरफ तो पाकिस्तान हमारे देश के कोने-कोने में हमारे बच्चों को गुमराह कर आतंकी बना रहा है,उसके हिन्दुस्तानी चेले गांधी मैदान से लेकर गेटवे ऑफ इंडिया तक पर मानव-रक्त बहाकर दिवाली मनाते फिर रहे हैं और खुर्शीद साहब हैं कि उसके ही गम में पागल हुए जा रहे हैं जैसे इन शेरों में शायर अमीर मीनाई हुए जा रहे थे-
वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उनसे,
हुज़ूर आहिस्ता-आहिस्ता जनाब आहिस्ता-आहिस्ता।

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