31-03-2014,ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों, आपने ऩकलची बंदर की कहानी जरूर पढ़ी होगी परंतु हो सकता है कि आपको कहानी को जीने का अवसर नहीं मिला हो। अगर सचमुच में ऐसा है तो भी घबराने की कोई जरुरत नहीं है। बंदर को नकल करते हुए नहीं देखा तो क्या आप जब चाहे एक राजनैतिक दल को ऐसा करते हुए देख सकते हैं। आपने एकदम ठीक समझा है! मैं भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की ही बात कर रहा हूँ। उसी कांग्रेस की जिसकी नीतियों में हमेशा मौलिकता की कमी रही है और जो हमेशा से विदेशी सरकारों की नकल करती रही है। इसकी सरकारों के मंत्री सरकार चलाने के गुर सीखने के लिए अक्सर विदेश जाते रहे हैं और फिर वापस आकर उन विदेशी नीतियों को बिना थोड़ा-सा दिमाग खर्च किए लागू करने लगते हैं जबकि भारत की स्थितियाँ अमेरिका-यूरोप से साफ इतर होती हैं। जाहिर है कि फिर उन आयातित योजनाओं का अंजाम वही होता है जो होना होता है।
मित्रों,नकल की यह कहानी पं. नेहरू के समय से ही कांग्रेसी नेताओं द्वारा बार-बार दोहराई जा रही है। बात सिर्फ आर्थिक नीतियों तक सीमित होती तो फिर भी गनीमत थी लेकिन अब कांग्रेस नेता जबर्दस्ती भारत के समाज को अमेरिकी-यूरोपियन समाज बना देना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि भारत में भी यौन-क्रांति की स्थिति उत्पन्न हो जाए। तभी तो बलात्कार की बाढ़ आने के बाद भी कांग्रेस सरकार ने सनी लियोन को भारत आने और फिल्में बनाने से नहीं रोका। तभी तो दिल्ली के रेप कैपिटल बन जाने के बाद भी भारत में अच्छे-अच्छों के दिमाग खराब कर देनेवाली पोर्न वेबसाईटों पर रोक नहीं लगाई गई। तभी तो समस्या मस्तिष्क-प्रदूषण से है लेकिन ईलाज कानून बनाकर किया जा रहा है। तभी तो जबसे केंद्र में माँ-बेटे का शासन कायम हुआ है बार-बार समलैंगिकता का समर्थन किया जा रहा है। तभी तो अभी कुछ महीने पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को सामाजिक अपराध कहा था तब कांग्रेस के युवराज ने झटपट समलैंगिकता का पक्ष लेते हुए इस पर भाजपा से उसके विचार पूछ लिए थे। तभी तो पार्टी के घोषणा-पत्र में भी समलैंगिकता को वैधानिकता प्रदान करने के नायाब व क्रांतिकारी वादे किए गए हैं।
मित्रों, कांग्रेस के युवराज और महारानी को यह मालूम नहीं है कि भारत भारत है नार्वे या इंग्लैंड नहीं जहाँ की जनसंख्या के 20-30 प्रतिशत लोग घोषित समलैंगिक हो चुके हैं और इस तरह बहुत बड़े वोटबैंक में तब्दील हो चुके हैं। मैं समझता हूँ कि भारत में अभी भी कुछ सौ या कुछ हजार से ज्यादा घोषित समलैंगिक नहीं हैं। फिर राहुल और सोनिया गांधी क्यों समलैंगिकता ही नहीं बल्कि वेश्यावृत्ति को भी वैधानिक मान्यता देने की हड़बड़ी में हैं? कांग्रेस में ऐसे कौन-से समलैंगिक लोग हैं जिनको खुश करने के लिए इस तरह के गंदे प्रयास किए जा रहे हैं? आखिर एक स्त्री एक स्त्री से और एक पुरुष एक पुरुष से विवाह करके समाज के लिए कौन-सा अमूल्य योगदान कर पाएगा? क्या ईश्वर ने हमें जो अंग जिस काम के लिए दिए हैं उसको उसी काम के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाना चाहिए? क्या ऐसा नहीं करना प्रकृति के नियमों के साथ मजाक नहीं होगा? क्या कांग्रेसी मुँह से मलत्याग या गुदा से भोजन कर सकते हैं? अगर नहीं तो फिर अप्राकृतिक यौनाचार को मान्यता देने पर वे इतना जोर क्यों दे रहे हैं? क्या इन अश्लील,घोर भोगवादी और विनाशकारी प्रवृत्तियों को कानून बनाकर बढ़ावा देने से भारतीय समाज के ताने-बाने के बिखर जाने का खतरा उत्पन्न नहीं हो जाएगा? क्या कांग्रेस को उस भारतीय संस्कृति की कोई चिंता नहीं है,क्या उसको उस भारतीय संस्कृति पर गर्व नहीं है जिस पर गर्व करते हुए कभी इकबाल ने कहा था कि यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से, अब तक मगर है बाकी नाम-ओ-निशाँ हमारा, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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