29-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हाल ही में मुझे कई बार
टेलीवीजन पर अली बाबा और मरजीना फिल्म देखने का सुअवसर मिला। फिल्म क्या थी
भारत के वर्तमान का सच्चा प्रतिबिम्ब थी। फिल्म में बगदाद में एक ऐसे अमीर
का शासन है जो निहायत लालची है। वह अपने सारे फैसले और सारे न्याय इस आधार
पर देता है कि किस पक्ष ने कितना सोना पेश किया है। वो हर बार कहता कि
सबूत पेश किया जाए लेकिन सबूत के बदले पक्षकार सोने की अशर्फियाँ पेश करते
हैं और तब वो कहता है कि इस पक्ष का सबूत उस पक्ष के सबूत (सोने की अशर्फी)
से ज्यादा वजनदार है इसलिए फैसला इस पक्ष के पक्ष में सुनाया जाता है और
उस पक्ष को सजा दी जाती है।
मित्रों,क्या आपको नहीं लगता कि इस समय भारत में भी ठीक यह स्थिति है? जिसके पास जितना ज्यादा पैसा और जितनी तगड़ी पैरवी होती है वह कानून के साथ बलात्कार करने के लिए उतना ही ज्यादा स्वतंत्र है। जाँच का नाटक किया जाता है फिर इंसाफ का ड्रामा खेला जाता है और अंत में इंसाफ को ही वजनदार सबूत के आधार पर सजाये मौत सुना दी जाती है। आखिर कब तक भारत में ऐसा चलता रहेगा,कब तक??
मित्रों,जैसा कि आप जानते हैं कि लखनऊ की निर्भया मामले की जाँच को यूपी की बाप-बेटे,बलात्कारियों और दंगाइयों की सरकार ने सीबीआई के हवाले कर दिया है। इससे पहले स्त्री-गौरव उप्र की एडीजी सुतापा सान्याल अपनी खराब किस्सागोई के कारण उप्र की सरकार की काफी फजीहत करवा चुकी हैं।
मित्रों,मैंने देखा है कि जो दलित-पिछड़ा-गरीब अधिकारी बन जाते थे वे दलित-पिछड़ा-गरीब नहीं रह जाते थे बल्कि वे सिर्फ और सिर्फ घूस खानेवाला अधिकारी रह जाता था लेकिन शायद यह पहली ऐसी महिला अधिकारी हैं जो अधिकारी बनने के बाद सिर्फ अधिकारी रह गई हैं। न तो इनके मन में महिलाओं के प्रति दर्द है और न ही करुणा इनके मन में तो सिर्फ जीहुजूरी है,अपने आका नेताओं को खुश रखने का उत्साह है,तत्परता है। मैं मानता हूँ कि अगर इस महिला को अपने महिला होने का थोड़ा-सा भी भान है तो उनको अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि उन्होंने महिला होते हुए भी एक बलात्कार-पीड़िता महिला के दर्द और संघर्ष की हँसी उड़ाने की धृष्टता की है।
मित्रों,आपको क्या लगता है कि अब जब सीबीआई इस मामले की जाँच करने जा रही है तो क्या पीड़िता को न्याय मिल जाएगा? मैं जानता हूँ कि आप भी इस संभावना को लेकर निश्चित नहीं हैं। मैं तो निश्चित हूँ कि और दुष्कर्मियों की तरह निश्चिंत भी कि सीबीआई अब उस रसूखदार को बचाने के लिए जिसको कि श्रीमती सान्याल बचा रही थीं काफी लंबे समय तक जाँच करने का नाटक करेगी और अंत में केस का क्लोजर रिपोर्ट लगा देगी। मामला खत्म इंसाफ खल्लास। दरअसल पिछले कुछ दशकों से सीबीआई का काम ही यही रह गया है कि बड़े और बहुत बड़े लोगों को कानून के पंजे से यानि सजा पाने से बचाना।
मित्रों,आपको याद होगा कि 90 के दशक के अंत में बिहार में गौतम सिंह और शिल्पी जैन नामक प्रेमी जोड़े की हत्या कर दी गई थी। तब शक के दायरे में थे लालू जी के साले यानि आधे घरवाले साधु यादव। यहां तक चर्चाएं रहीं कि साधु यादव और उनके तत्कालीन सहयोगी मंत्री ने मिलकर गौतम के सामने ही शिल्पी के साथ दुष्कर्म किया और फिर हत्या कर डाली। भाजपा के पुरजोर विरोध के बाद मामला सीबीआई के हवाले हुआ। पर साधु यादव ने पॉलीग्राफी टेस्ट और रक्त के नमूने देने से मना कर दिया। इसी बीच साधु जी केंद्र में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस में चले गए। यूपीए 2 के आखिर में सीबीआई ने कहा साधु वाकई साधु हैं इसलिए हम उनको निर्दोष मानते हुए मामले को बंद करने की अनुमति मांगते हैं। कोर्ट ने भी सीबीआई के इस साधु वाद को साधुवाद कहा और इस प्रकार इंसाफ के साथ-साथ गौतम-शिल्पी की भी दोबारा हत्या कर दी गई।
मित्रों, इसी प्रकार यूपीए 1 के दौरान वर्ष 2006 में अपनी लाख कोशिशों के बावजूद सीबीआई को कई-कई महान घोटालों के निर्माता और निर्देशक लालू प्रसाद यादव जी के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का कोई सबूत नहीं मिला और वे बरी करार दिये गए। इसी प्रकार सीबीआई को मुलायम सिंह यादव के पास भी आय से अधिक संपत्ति होने का कोई प्रमाण नहीं मिला और पिछले साल सितंबर में यूपीए 2 के समय वे भी दूध के धुले घोषित किए जा चुके हैं। कुछ इसी तरह की कोशिश यूपीए 2 के दौरान मायावती को भी आयानुसार सम्पत्ति निर्माण का प्रमाण-पत्र देकर सीबीआई कर चुकी है यानि यूपीए की सरकार के समय जिन-जिन भ्रष्टाचारियों-बलात्कारियों ने कांग्रेस की शरणागति स्वीकार कर ली सरकार ने सीबीआई के माध्यम से सबको अभयदान दे दिया कि करो और भ्रष्टाचार करो,और बलात्कार करो कोई तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं कर सकेगा क्योंकि देश में कानून का नहीं हमारा स्वेच्छाचारी शासन है। न जाने क्यों न तो आयकर विभाग को ही और न तो सीबीआई को ही नेताओं के पास आय से ज्यादा सम्पत्ति मिल पाती है जबकि पटना के चोर बार-बार उसका पता लगा लेते हैं। इसी प्रकार मुजफ्फरपुर की नवरुणा का भी सीबीआई पिछले दो सालों में पता नहीं लगा पाई है क्योंकि उसके माता-पिता के पास इंसाफ पाने लायक सबूत (पैसा) नहीं है। यहाँ सवाल सिर्फ सीबीआई का नहीं है बल्कि पूरे तंत्र का है जो पैसों और पैरवी की बीन पर नाच रही है। राज्यों की जाँच एजेंसियाँ तो केंद्र की जाँच एजेंसियों से भी ज्यादा भ्रष्ट हैं। जिनके पास पैसा और पैरवी नहीं है वे वास्तविक लाभार्थी होते हुए भी बेहाल हैं और जिनके पास पैसा है,पैरवी है वे जेल में होने के बदले मलाई चाभ रहे हैं।
मित्रों,इस बार के लोकसभा चुनावों में जब हमने मतदान किया था तो हमारे मन में एक आशा इस बात को लेकर भी थी कि आनेवाली सरकार सही मायनों में भारत में कानून का शासन स्थापित करेगी। तब कानून के हाथ इतने लंबे और मोदी जी की मजबूत सरकार की तरह मजबूत होगी कि कोई भी अपराधी सजा पाने से बच नहीं पाएगा भले ही वो देश का राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री ही क्यों न हो। मगर हमारा यह सपना सच होगा क्या? क्या लखनऊ की निर्भया समेत भारत के हजारों पीड़ितों को जीवित रहते या मरने के बाद भी कभी इंसाफ मिल पाएगा?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,क्या आपको नहीं लगता कि इस समय भारत में भी ठीक यह स्थिति है? जिसके पास जितना ज्यादा पैसा और जितनी तगड़ी पैरवी होती है वह कानून के साथ बलात्कार करने के लिए उतना ही ज्यादा स्वतंत्र है। जाँच का नाटक किया जाता है फिर इंसाफ का ड्रामा खेला जाता है और अंत में इंसाफ को ही वजनदार सबूत के आधार पर सजाये मौत सुना दी जाती है। आखिर कब तक भारत में ऐसा चलता रहेगा,कब तक??
मित्रों,जैसा कि आप जानते हैं कि लखनऊ की निर्भया मामले की जाँच को यूपी की बाप-बेटे,बलात्कारियों और दंगाइयों की सरकार ने सीबीआई के हवाले कर दिया है। इससे पहले स्त्री-गौरव उप्र की एडीजी सुतापा सान्याल अपनी खराब किस्सागोई के कारण उप्र की सरकार की काफी फजीहत करवा चुकी हैं।
मित्रों,मैंने देखा है कि जो दलित-पिछड़ा-गरीब अधिकारी बन जाते थे वे दलित-पिछड़ा-गरीब नहीं रह जाते थे बल्कि वे सिर्फ और सिर्फ घूस खानेवाला अधिकारी रह जाता था लेकिन शायद यह पहली ऐसी महिला अधिकारी हैं जो अधिकारी बनने के बाद सिर्फ अधिकारी रह गई हैं। न तो इनके मन में महिलाओं के प्रति दर्द है और न ही करुणा इनके मन में तो सिर्फ जीहुजूरी है,अपने आका नेताओं को खुश रखने का उत्साह है,तत्परता है। मैं मानता हूँ कि अगर इस महिला को अपने महिला होने का थोड़ा-सा भी भान है तो उनको अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि उन्होंने महिला होते हुए भी एक बलात्कार-पीड़िता महिला के दर्द और संघर्ष की हँसी उड़ाने की धृष्टता की है।
मित्रों,आपको क्या लगता है कि अब जब सीबीआई इस मामले की जाँच करने जा रही है तो क्या पीड़िता को न्याय मिल जाएगा? मैं जानता हूँ कि आप भी इस संभावना को लेकर निश्चित नहीं हैं। मैं तो निश्चित हूँ कि और दुष्कर्मियों की तरह निश्चिंत भी कि सीबीआई अब उस रसूखदार को बचाने के लिए जिसको कि श्रीमती सान्याल बचा रही थीं काफी लंबे समय तक जाँच करने का नाटक करेगी और अंत में केस का क्लोजर रिपोर्ट लगा देगी। मामला खत्म इंसाफ खल्लास। दरअसल पिछले कुछ दशकों से सीबीआई का काम ही यही रह गया है कि बड़े और बहुत बड़े लोगों को कानून के पंजे से यानि सजा पाने से बचाना।
मित्रों,आपको याद होगा कि 90 के दशक के अंत में बिहार में गौतम सिंह और शिल्पी जैन नामक प्रेमी जोड़े की हत्या कर दी गई थी। तब शक के दायरे में थे लालू जी के साले यानि आधे घरवाले साधु यादव। यहां तक चर्चाएं रहीं कि साधु यादव और उनके तत्कालीन सहयोगी मंत्री ने मिलकर गौतम के सामने ही शिल्पी के साथ दुष्कर्म किया और फिर हत्या कर डाली। भाजपा के पुरजोर विरोध के बाद मामला सीबीआई के हवाले हुआ। पर साधु यादव ने पॉलीग्राफी टेस्ट और रक्त के नमूने देने से मना कर दिया। इसी बीच साधु जी केंद्र में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस में चले गए। यूपीए 2 के आखिर में सीबीआई ने कहा साधु वाकई साधु हैं इसलिए हम उनको निर्दोष मानते हुए मामले को बंद करने की अनुमति मांगते हैं। कोर्ट ने भी सीबीआई के इस साधु वाद को साधुवाद कहा और इस प्रकार इंसाफ के साथ-साथ गौतम-शिल्पी की भी दोबारा हत्या कर दी गई।
मित्रों, इसी प्रकार यूपीए 1 के दौरान वर्ष 2006 में अपनी लाख कोशिशों के बावजूद सीबीआई को कई-कई महान घोटालों के निर्माता और निर्देशक लालू प्रसाद यादव जी के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का कोई सबूत नहीं मिला और वे बरी करार दिये गए। इसी प्रकार सीबीआई को मुलायम सिंह यादव के पास भी आय से अधिक संपत्ति होने का कोई प्रमाण नहीं मिला और पिछले साल सितंबर में यूपीए 2 के समय वे भी दूध के धुले घोषित किए जा चुके हैं। कुछ इसी तरह की कोशिश यूपीए 2 के दौरान मायावती को भी आयानुसार सम्पत्ति निर्माण का प्रमाण-पत्र देकर सीबीआई कर चुकी है यानि यूपीए की सरकार के समय जिन-जिन भ्रष्टाचारियों-बलात्कारियों ने कांग्रेस की शरणागति स्वीकार कर ली सरकार ने सीबीआई के माध्यम से सबको अभयदान दे दिया कि करो और भ्रष्टाचार करो,और बलात्कार करो कोई तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं कर सकेगा क्योंकि देश में कानून का नहीं हमारा स्वेच्छाचारी शासन है। न जाने क्यों न तो आयकर विभाग को ही और न तो सीबीआई को ही नेताओं के पास आय से ज्यादा सम्पत्ति मिल पाती है जबकि पटना के चोर बार-बार उसका पता लगा लेते हैं। इसी प्रकार मुजफ्फरपुर की नवरुणा का भी सीबीआई पिछले दो सालों में पता नहीं लगा पाई है क्योंकि उसके माता-पिता के पास इंसाफ पाने लायक सबूत (पैसा) नहीं है। यहाँ सवाल सिर्फ सीबीआई का नहीं है बल्कि पूरे तंत्र का है जो पैसों और पैरवी की बीन पर नाच रही है। राज्यों की जाँच एजेंसियाँ तो केंद्र की जाँच एजेंसियों से भी ज्यादा भ्रष्ट हैं। जिनके पास पैसा और पैरवी नहीं है वे वास्तविक लाभार्थी होते हुए भी बेहाल हैं और जिनके पास पैसा है,पैरवी है वे जेल में होने के बदले मलाई चाभ रहे हैं।
मित्रों,इस बार के लोकसभा चुनावों में जब हमने मतदान किया था तो हमारे मन में एक आशा इस बात को लेकर भी थी कि आनेवाली सरकार सही मायनों में भारत में कानून का शासन स्थापित करेगी। तब कानून के हाथ इतने लंबे और मोदी जी की मजबूत सरकार की तरह मजबूत होगी कि कोई भी अपराधी सजा पाने से बच नहीं पाएगा भले ही वो देश का राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री ही क्यों न हो। मगर हमारा यह सपना सच होगा क्या? क्या लखनऊ की निर्भया समेत भारत के हजारों पीड़ितों को जीवित रहते या मरने के बाद भी कभी इंसाफ मिल पाएगा?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)