14-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अंग्रेजी में एक कहावत है
कि आक्रमण ही रक्षण का सर्वश्रेष्ठ तरीका है परन्तु यह कहावत सिर्फ चुनावों
के समय के लिए ही सत्य हो सकती है। लगता है कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया
गांधी ऐसा बिल्कुल भी नहीं मानती। शायद उनका यह मानना है कि चाहे संघर्ष का
समय हो या निर्माण का आक्रमण ही एकमात्र विकल्प हो सकता है। तभी तो जब
यूपीए की सरकार सत्ता में थी तब भी देश का शुद्ध अंतर्मन से भारत-निर्माण करने
के बदले कांग्रेस हमेशा इसी प्रयास में लगी रही कि कैसे विपक्ष के दामन को
दागदार बना दिया जाए या दागदार साबित कर दिया जाए।
मित्रों,मैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कथन से पूरी तरह से सहमत हूँ कि आप अपने बल पर सरकार तो चला सकते हैं लेकिन देश का निर्माण नहीं कर सकते। सोनिया गांधी इसी बात को समझ नहीं पाई या फिर समझ कर भी समझना नहीं चाहा इसलिए उनका भारत निर्माण का नारा महज नारा बनकर रह गया। कभी द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की जीत सुनिश्चित करवाने वाले चर्चिल को ब्रिटेन की जनता ने यह देखकर सत्ता से बाहर कर दिया था कि विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भी उनका मिजाज सेनानायकों वाला ही था शायद यही हाल वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों के समय से ही सोनिया गांधी का है। मेरी समझ से सोनिया जी की सबसे बड़ी परेशानी उनके पुत्र हैं जो वर्षों में भी कुछ भी सीख पाए। कदाचित् उनमें नेतृत्व क्षमता है ही नहीं और नेतृत्व क्षमता तो जियाले माँ के गर्भ से ही लेकर पैदा होते हैं उसे किसी के भीतर इंजेक्ट नहीं किया जा सकता। सोनिया जी को किसी दूसरे योग्य व्यक्ति को आगे लाना चाहिए और केंद्र सरकार के साथ सहयोगपूर्ण व्यवहार करना चाहिए अन्यथा क्या पता अगले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस दोहरे अंकों में भी नहीं पहुँच सके क्योंकि देश की जनता समझ चुकी है कि राहुल गांधी अयोग्य हैं और भविष्य में अगर देश के विकास की राह में मोदी सरकार के मार्ग में कांग्रेस किसी भी तरह से बाधक बनती है तो इसका दंड भी वही अकेली भुगतेगी।
मित्रों,कांग्रेस जब केंद्र में सत्ता में थी तब उसका फुलटाईम वर्क क्या था इसके बारे में हम पहले पाराग्राफ में बात कर चुके हैं। सत्ता से हटने के बाद भी उसके दुर्भाग्य से उसका रवैय्या वही है। सबसे पहले उसने बेवजह स्मृति ईरानी की पढ़ाई को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास किया फिर उस एक केंद्रीय मंत्री को बलात्कार के आरोप में लपेटना चाहा जिसको उसी की पार्टी की प्रदेश सरकार उसी मामले में कभी निर्दोष ठहरा चुकी है और अब पत्रकार वेद प्रताप वैदिक के मामले में बिना किसी तथ्य के हो-हल्ला मचा रही है। शायद उसको लगता है कि इन बेतुके हमलों से जनता को विश्वास हो जाएगा कि इस सरकार और उसकी अपदस्थ हो चुकी सरकार में कोई फर्क नहीं है। हम जानते हैं कि वेद प्रताप वैदिक कभी नरेंद्र मोदी के नजदीकी नहीं रहे और लोकसभा चुनावों के दौरान तो उन्होंने कई बार उनका विरोध भी किया। यहाँ तक कि वे उनकी नजदीकी माकपा नेता सीताराम येचुरी और आप नेता अरविन्द केजरीवाल के साथ भी रही है फिर कांग्रेस क्यों वैदिक की रामदेव बाबा के साथ निकटता को लेकर हंगामा खड़ा कर रही है?
मित्रों,पत्रकार तो रोज सैंकड़ों लोगों से मिलता है। उसमें से कई अच्छे लोग होते हैं तो कई निहायत बुरे तो इसका यह मतलब नहीं हो जाता कि वह पत्रकार उसके गिरोह में शामिल हो गया। इतिहास गवाह है कि कभी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी जी के पति राजीव गांधी ने भी उस एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरण के साथ मुलाकात की थी जिन पर बाद में उनकी ही हत्या करवाने का आरोप लगा तो क्या कांग्रेस बताएगी कि राजीव क्यों प्रभाकरण से मिले थे? क्या वे उनके यहाँ अपने बच्चों के लिए वर-वधु की तलाश कर रहे थे? फिर राजीव जी तो पत्रकार भी नहीं थे जबकि वेद प्रताप वैदिक देश के वरिष्ठ पत्रकार है। अगर कांग्रेस पार्टी यह समझती है कि वैदिक को कटघरे में खड़ा करने का मतलब है मोदी को कटघरे में खड़ा करना तो यह उसकी निरी मूर्खता है। देश की जनता अब इतनी बेवकूफ नहीं रह गई है कि कांग्रेस के चोर बोले जोर से की नीति को समझ नहीं पाए इसलिए कांग्रेस और सोनिया परिवार के हित में यही अच्छा होगा कि वह मोदी सरकार के काम-काज में बाधा डालने के बदले उसके साथ सहयोग करे,मुद्दों के आधार पर विरोध करे न कि विरोध के लिए विरोध करे और बेवजह की आक्रामकता से बचे। बिना बात के गाली-गलौज को भारत में शिष्टता नहीं अशिष्टता माना जाता है। एक बात और कि जब शीशे के घर में रहनेवाला व्यक्ति दूसरे के घरों पर पत्थर फेंकता है तो अंततः वह अपने ही हाथों खुद का ही नुकसान करता है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,मैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कथन से पूरी तरह से सहमत हूँ कि आप अपने बल पर सरकार तो चला सकते हैं लेकिन देश का निर्माण नहीं कर सकते। सोनिया गांधी इसी बात को समझ नहीं पाई या फिर समझ कर भी समझना नहीं चाहा इसलिए उनका भारत निर्माण का नारा महज नारा बनकर रह गया। कभी द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की जीत सुनिश्चित करवाने वाले चर्चिल को ब्रिटेन की जनता ने यह देखकर सत्ता से बाहर कर दिया था कि विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भी उनका मिजाज सेनानायकों वाला ही था शायद यही हाल वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों के समय से ही सोनिया गांधी का है। मेरी समझ से सोनिया जी की सबसे बड़ी परेशानी उनके पुत्र हैं जो वर्षों में भी कुछ भी सीख पाए। कदाचित् उनमें नेतृत्व क्षमता है ही नहीं और नेतृत्व क्षमता तो जियाले माँ के गर्भ से ही लेकर पैदा होते हैं उसे किसी के भीतर इंजेक्ट नहीं किया जा सकता। सोनिया जी को किसी दूसरे योग्य व्यक्ति को आगे लाना चाहिए और केंद्र सरकार के साथ सहयोगपूर्ण व्यवहार करना चाहिए अन्यथा क्या पता अगले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस दोहरे अंकों में भी नहीं पहुँच सके क्योंकि देश की जनता समझ चुकी है कि राहुल गांधी अयोग्य हैं और भविष्य में अगर देश के विकास की राह में मोदी सरकार के मार्ग में कांग्रेस किसी भी तरह से बाधक बनती है तो इसका दंड भी वही अकेली भुगतेगी।
मित्रों,कांग्रेस जब केंद्र में सत्ता में थी तब उसका फुलटाईम वर्क क्या था इसके बारे में हम पहले पाराग्राफ में बात कर चुके हैं। सत्ता से हटने के बाद भी उसके दुर्भाग्य से उसका रवैय्या वही है। सबसे पहले उसने बेवजह स्मृति ईरानी की पढ़ाई को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास किया फिर उस एक केंद्रीय मंत्री को बलात्कार के आरोप में लपेटना चाहा जिसको उसी की पार्टी की प्रदेश सरकार उसी मामले में कभी निर्दोष ठहरा चुकी है और अब पत्रकार वेद प्रताप वैदिक के मामले में बिना किसी तथ्य के हो-हल्ला मचा रही है। शायद उसको लगता है कि इन बेतुके हमलों से जनता को विश्वास हो जाएगा कि इस सरकार और उसकी अपदस्थ हो चुकी सरकार में कोई फर्क नहीं है। हम जानते हैं कि वेद प्रताप वैदिक कभी नरेंद्र मोदी के नजदीकी नहीं रहे और लोकसभा चुनावों के दौरान तो उन्होंने कई बार उनका विरोध भी किया। यहाँ तक कि वे उनकी नजदीकी माकपा नेता सीताराम येचुरी और आप नेता अरविन्द केजरीवाल के साथ भी रही है फिर कांग्रेस क्यों वैदिक की रामदेव बाबा के साथ निकटता को लेकर हंगामा खड़ा कर रही है?
मित्रों,पत्रकार तो रोज सैंकड़ों लोगों से मिलता है। उसमें से कई अच्छे लोग होते हैं तो कई निहायत बुरे तो इसका यह मतलब नहीं हो जाता कि वह पत्रकार उसके गिरोह में शामिल हो गया। इतिहास गवाह है कि कभी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी जी के पति राजीव गांधी ने भी उस एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरण के साथ मुलाकात की थी जिन पर बाद में उनकी ही हत्या करवाने का आरोप लगा तो क्या कांग्रेस बताएगी कि राजीव क्यों प्रभाकरण से मिले थे? क्या वे उनके यहाँ अपने बच्चों के लिए वर-वधु की तलाश कर रहे थे? फिर राजीव जी तो पत्रकार भी नहीं थे जबकि वेद प्रताप वैदिक देश के वरिष्ठ पत्रकार है। अगर कांग्रेस पार्टी यह समझती है कि वैदिक को कटघरे में खड़ा करने का मतलब है मोदी को कटघरे में खड़ा करना तो यह उसकी निरी मूर्खता है। देश की जनता अब इतनी बेवकूफ नहीं रह गई है कि कांग्रेस के चोर बोले जोर से की नीति को समझ नहीं पाए इसलिए कांग्रेस और सोनिया परिवार के हित में यही अच्छा होगा कि वह मोदी सरकार के काम-काज में बाधा डालने के बदले उसके साथ सहयोग करे,मुद्दों के आधार पर विरोध करे न कि विरोध के लिए विरोध करे और बेवजह की आक्रामकता से बचे। बिना बात के गाली-गलौज को भारत में शिष्टता नहीं अशिष्टता माना जाता है। एक बात और कि जब शीशे के घर में रहनेवाला व्यक्ति दूसरे के घरों पर पत्थर फेंकता है तो अंततः वह अपने ही हाथों खुद का ही नुकसान करता है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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