मित्रों,यह गहन चिंतन का विषय है कि राजनीति को किसके लिए होनी चाहिए। राजनीति अगर सिर्फ राज के लिए की जाती है तो वह राजनीति है ही नहीं बल्कि राजनीति राज्य के लिय,राज्य की भलाई के लिए की जानी चाहिए। परन्तु आदर्श और यथार्थ में हमेशा एक फर्क होता है,फासला होता है और इस फासले को इन दिनों आसानी से देखा जा सकता है भारत की केंद्रीय राजनीति में विपक्ष की भूमिका निभा रही राजनैतिक पार्टियों की कथनी और करनी में।
मित्रों,लगभग सारी विपक्षी पार्टियाँ बात तो जनता की भलाई की कर रही हैं लेकिन काम कर रही हैं जनता और देश को नुकसान पहुँचाने का। चाहे किसी भी तरह का उद्यम या उद्योग हो उसके लिए सबसे जरूरी होती है जमीन। केंद्र सरकार 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में जरूरी बदलाव करना चाहती है क्योंकि इस कानून ने भूमि अधिग्रहण को लगभग असंभव ही बना दिया है। केंद्र सरकार चाहती है कि कानून में कुछ ऐसे सुधार किए जाएँ जिससे न तो किसानों को ही क्षति हो या न तो किसानों के साथ ही जबर्दस्ती हो और न ही राज्य के लिए उद्योगादि की स्थापना के लिए जमीन प्राप्त करना असंभव ही हो जाए।
मित्रों,कल अगर केंद्र सरकार देश की 65 प्रतिशत युवा आबादी को रोजगार देने में विफल रहती है तो यही विपक्ष शोर मचाएगा कि केंद्र वादे को पूरा नहीं कर पाया। क्या विपक्ष बताएगा कि बिना जमीन के उद्योग कहाँ खुलेंगे? क्या विपक्ष बताएगा कि अगर उद्योग नहीं खुलेंगे तो देश के बेरोजगार युवाओं को रोजगार कैसे मिलेगा? क्या विपक्ष के पास इसके लिए कोई वैकल्पिक योजना है? अगर विपक्ष के पास ऐसी कोई वैकल्पिक योजना नहीं है तो फिर उच्च सदन राज्यसभा को हथियार बनाकर भूमि अधिग्रहण बिल को रोकने का क्या औचित्य है? राज्यसभा का गठन तो इस उद्देश्य से किया गया था कि अगर लोकसभा से कोई गलती हो जाती है तो उसमें सुधार किया जा सके लेकिन जिस तरह से विपक्ष राज्यसभा में अपने बहुमत का देशहित के विरूद्ध दुरूपयोग कर रहा है उसने तो राज्यसभा के औचित्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। जबकि आज पूरी दुनिया की शक्तियाँ भारत के मेक इन इंडिया में अपना अहम योगदान देने को तत्पर हैं यह विडंबनापूर्ण है कि भारत का विपक्ष इसमें रोड़े अँटका रहा है। कल अगर विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों में देसी-विदेशी पूंजी का निवेश नहीं होता है यही विपक्ष कहेगा कि मेक इन इंडिया का लाभ उनको जानबूझकर नहीं मिलने दिया गया। बिहार का ही उदाहरण अगर लें तो दीघा रेल सह सड़क पुल के लिए एप्रोच पथ के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण हो रही देरी के लिए स्वयं पीएम को राज्य के मुख्य सचिव से बात करनी पड़ रही है। पुल बनकर तैयार है लेकिन एप्रोच पथ नहीं बन पाने के कारण चालू नहीं हो पा रहा है। जब सुशासन बाबू की सरकार सड़क के लिए ही जमीन नहीं जुटा पा रही है तो फिर बिना उचित भूमि अधिग्रहण बिल के उद्योग के लिए कहाँ से हजारों-लाखों एकड़ जमीन लाएगी।
मित्रों,चाहे पक्ष हो या विपक्ष सबके लिए इंडिया फर्स्ट मूल मंत्र होना चाहिए लेकिन ऐसा परिलक्षित हो रहा है कि विपक्ष के लिए इंडिया प्राथमिकता सूची में कहीं है ही नहीं। उसको तो बस मोदी को नीचा दिखाना है,पराजित होते देखना है भले ही इससे देश को कितनी ही क्षति क्यों न उठानी पड़े। मगर ऐसा करते हुए विपक्ष को यह जरूर सोंचना चाहिए कि आज के युग में पब्लिक को बरगलाना आसान नहीं रह गया है। आज की जनता सब जानती है,सब समझती है,सब देखती है। आगे बिहार में विधानसभा चुनाव होना है और बिहार की जनता अपनी देशभक्ति और राजनैतिक-विवेक के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है। बिहार की जनता को यह पता है कि मोदी सरकार को अगर राज्यसभा में बहुमत दिलवाना है तो उनको राज्य में ज्यादा-से-ज्यादा सींटें जीतकर भाजपा को देनी होगी। ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि निकट-भविष्य में आनेवाले विधानसभा चुनावों में हारते-हारते विपक्ष का राज्यसभा से भी सूपड़ा साफ हो जाए। आखिर नकारात्मक और घोर स्वहितकारी राजनीति का यही परिणाम होता है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,लगभग सारी विपक्षी पार्टियाँ बात तो जनता की भलाई की कर रही हैं लेकिन काम कर रही हैं जनता और देश को नुकसान पहुँचाने का। चाहे किसी भी तरह का उद्यम या उद्योग हो उसके लिए सबसे जरूरी होती है जमीन। केंद्र सरकार 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में जरूरी बदलाव करना चाहती है क्योंकि इस कानून ने भूमि अधिग्रहण को लगभग असंभव ही बना दिया है। केंद्र सरकार चाहती है कि कानून में कुछ ऐसे सुधार किए जाएँ जिससे न तो किसानों को ही क्षति हो या न तो किसानों के साथ ही जबर्दस्ती हो और न ही राज्य के लिए उद्योगादि की स्थापना के लिए जमीन प्राप्त करना असंभव ही हो जाए।
मित्रों,कल अगर केंद्र सरकार देश की 65 प्रतिशत युवा आबादी को रोजगार देने में विफल रहती है तो यही विपक्ष शोर मचाएगा कि केंद्र वादे को पूरा नहीं कर पाया। क्या विपक्ष बताएगा कि बिना जमीन के उद्योग कहाँ खुलेंगे? क्या विपक्ष बताएगा कि अगर उद्योग नहीं खुलेंगे तो देश के बेरोजगार युवाओं को रोजगार कैसे मिलेगा? क्या विपक्ष के पास इसके लिए कोई वैकल्पिक योजना है? अगर विपक्ष के पास ऐसी कोई वैकल्पिक योजना नहीं है तो फिर उच्च सदन राज्यसभा को हथियार बनाकर भूमि अधिग्रहण बिल को रोकने का क्या औचित्य है? राज्यसभा का गठन तो इस उद्देश्य से किया गया था कि अगर लोकसभा से कोई गलती हो जाती है तो उसमें सुधार किया जा सके लेकिन जिस तरह से विपक्ष राज्यसभा में अपने बहुमत का देशहित के विरूद्ध दुरूपयोग कर रहा है उसने तो राज्यसभा के औचित्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। जबकि आज पूरी दुनिया की शक्तियाँ भारत के मेक इन इंडिया में अपना अहम योगदान देने को तत्पर हैं यह विडंबनापूर्ण है कि भारत का विपक्ष इसमें रोड़े अँटका रहा है। कल अगर विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों में देसी-विदेशी पूंजी का निवेश नहीं होता है यही विपक्ष कहेगा कि मेक इन इंडिया का लाभ उनको जानबूझकर नहीं मिलने दिया गया। बिहार का ही उदाहरण अगर लें तो दीघा रेल सह सड़क पुल के लिए एप्रोच पथ के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण हो रही देरी के लिए स्वयं पीएम को राज्य के मुख्य सचिव से बात करनी पड़ रही है। पुल बनकर तैयार है लेकिन एप्रोच पथ नहीं बन पाने के कारण चालू नहीं हो पा रहा है। जब सुशासन बाबू की सरकार सड़क के लिए ही जमीन नहीं जुटा पा रही है तो फिर बिना उचित भूमि अधिग्रहण बिल के उद्योग के लिए कहाँ से हजारों-लाखों एकड़ जमीन लाएगी।
मित्रों,चाहे पक्ष हो या विपक्ष सबके लिए इंडिया फर्स्ट मूल मंत्र होना चाहिए लेकिन ऐसा परिलक्षित हो रहा है कि विपक्ष के लिए इंडिया प्राथमिकता सूची में कहीं है ही नहीं। उसको तो बस मोदी को नीचा दिखाना है,पराजित होते देखना है भले ही इससे देश को कितनी ही क्षति क्यों न उठानी पड़े। मगर ऐसा करते हुए विपक्ष को यह जरूर सोंचना चाहिए कि आज के युग में पब्लिक को बरगलाना आसान नहीं रह गया है। आज की जनता सब जानती है,सब समझती है,सब देखती है। आगे बिहार में विधानसभा चुनाव होना है और बिहार की जनता अपनी देशभक्ति और राजनैतिक-विवेक के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है। बिहार की जनता को यह पता है कि मोदी सरकार को अगर राज्यसभा में बहुमत दिलवाना है तो उनको राज्य में ज्यादा-से-ज्यादा सींटें जीतकर भाजपा को देनी होगी। ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि निकट-भविष्य में आनेवाले विधानसभा चुनावों में हारते-हारते विपक्ष का राज्यसभा से भी सूपड़ा साफ हो जाए। आखिर नकारात्मक और घोर स्वहितकारी राजनीति का यही परिणाम होता है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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