मित्रों,आज कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जी काफी खुश हैं और काफी
दुःखी भी। आप कहेंगे ऐसा कैसे हो सकता है तो फिर आप राहुल जी को नहीं जानते
हैं। वे स्थिरबुद्धि हैं इसलिए एकसाथ ऐसा कर लेते हैं। माननीय युवराज जी
इस बात से काफी खुश हैं कि उन्होंने जिन्दगी में पहली बार अच्छा भाषण किया
है। वैसे यह मुगालता उनको हर बार हो जाता है जब-जब वे भाषण करते हैं लेकिन
कुछ ही समय बाद दूर भी हो जाता है। खैर श्री गांधी को इस बात से भारी सदमा
लगा है कि भाजपा नेतागण उनकी बातों का सही-सही जवाब नहीं दे पाए। पता नहीं
उनकी दृष्टि में सही जवाब क्या हो सकता है।
मित्रों,चूँकि मुझसे श्री गांधी का दुःख देखा नहीं जा रहा है इसलिए हमने फैसला किया है कि राहुल जी की बातों और उनके सवालों का जवाब हम ही दे देते हैं। वैसे हम न तो सांसद हैं और न ही नेतारूपी अभिनेता लेकिन हमारी आदत रही है अनाधिकार चेष्टा करने की। सो हम इस बात की बिना परवाह किए कि किसी को हमारी चेष्टा से दुःख हो सकता है हम राहुल गांधी जी का दुःख दूर कर देते हैं। आखिर परोपकार भी तो कोई चीज होती है।
मित्रों,हमारे राहुल जी का कहना है कि मोदी सरकार सूट-बूटवालों की सरकार है। राहुल जी कितने बड़े पाखंडी हैं जो उनको यह पता ही नहीं है कि भारत को सबसे ज्यादा नुकसान खादी के बने सस्ते कपड़े पहननेवालों ने पहुँचाया है। उनके पिताजी के नानाजी भी खादी ही पहनते थे लेकिन उनका कपड़ा पेरिस से धुलकर आता था। आज भारत में सबसे ज्यादा कालाधन अगर किसी के पास है तो वे खादीवाले ही हैं।
मित्रों,राहुल जी ने निश्चित रूप से स्वामी विवेकानंद के संस्मरण नहीं पढ़े हैं अन्यथा वे कपड़ों की बात ही नहीं करते। हुआ यूँ था कि जब विवेकानंद जी पहली बार अमेरिका की यात्रा पर गए तो उनके गेरूए वस्त्र को देखकर अमेरिकी हँस पड़े। तब स्वामी जी ने पूरी विनम्रता के साथ अमेरिकियों से पूछा कि आपके यहाँ व्यक्ति की पहचान क्या उनके कपड़ों से निर्धारित होती है उनके कर्म से नहीं? राहुल जी को भी नरेंद्र मोदी के कपड़ों को नहीं उनके कर्मों को देखना चाहिए। नरेंद्र मोदी तो ऐसी शख्सियत हैं कि जो अपने कपड़े तक को नीलाम कर देते हैं और प्राप्त धनराशि को सरकारी खजाने में जमा कर देते हैं। नरेंद्र मोदी राहुल जी की तरह पाखंडी नहीं हैं कि खादी पहनकर चांदी के बरतन में भोजन करें या चांदी की पलंग पर सोयें बल्कि वे तो पूर्ण योगी हैं,ज्ञान योगी,कर्म योगी और राज योगी भी। साथ ही राहुल जी को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि मोदी जी के देश-विदेश में सूट पहनने से भारत को लाभ हो रहा है या हानि हो रही है? वास्तविकता तो यह है कि मोदी जी के सूट पहनने या शॉल ओढ़ने से भारत के उस वस्त्रोद्योग को बढ़ावा मिलता है जो आज भारत के सबसे ज्यादा श्रमिकों को रोजगार दे रहा है।
मित्रों,वास्तविकता तो यह है कि मनमोहन सिंह की सरकार असली सूट-बूटवालों की सरकार थी जिसमें कौन संचार मंत्री बनेगा का फैसला रतन टाटा,मुकेश अंबानी,नीरा राडिया और बरखा दत्त करते थे न कि मोदी की सरकार सूट-बूटवाली है जिसके समय सहारा श्री तिहाड़ जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं,मुकेश अंबानी पर जुर्माना हो रहा है,वोडाफोन परेशान है,विजय माल्या बेहाल है आदि-आदि। मोदी की सरकार तो गरीबों की सरकार है जिसकी सारी नीतियाँ और कार्यक्रम गरीबों की भलाई के लिए हैं।
मित्रों,इसी तरह राहुल जी नितिन गडकरी के बयान को भी अपने भाषण में उद्धृत किया है लेकिन उन्होंने ऐसा करते हुए थोड़ी-सी धूर्तता भी की है। उन्होंने गडकरी जी के बयान को संदर्भ से काटकर पेश किया है। गडकरी जी ने न सिर्फ यह कहा था कि किसानों की मदद न तो सरकार ही कर सकती है और न तो भगवान ही बल्कि यह भी कहा था कि उनकी सरकार चाहती है कि किसानों आर्थिक रूप से इतने सक्षम हो जाएँ कि उनको न तो भगवान और न ही सरकार का आसरा ही करना पड़े बल्कि वे हर तरह की क्षति को खुद अपने बल पर झेल सकें। राहुल जी क्या बताएंगे कि गडकरी जी ने क्या गलत कहा था? आज किसान अगर फसल खराब होने पर आत्महत्या करने को बाध्य हो रहे हैं तो यह कोई 14 महीने में पैदा हुई स्थिति नहीं है बल्कि 70 सालों में किसानों को इतना विपन्न बना दिया गया है कि उनको अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा है। 70 साल पहले कहा जाता था उत्तम खेती,मध्यम बान,अधम चाकरी भीख निदान। क्यों आज यह कहावत उल्टी हो गई है? क्यों आज भी किसान सिंचाई के लिए रामभरोसे है? क्यों आज किसान खेती करना नहीं चाहता? क्या 14 महीने पहले किसानों की स्थिति अच्छी थी? गुजरात के किसानों की जमीन अगर मोदी सरकार ने जबरन छीना था तो वहाँ के किसानों ने कभी विरोध क्यों नहीं किया? कल की राहुल की रैली में कितने ऐसे किसान थे जो गुजरात से आए थे? गुजरात के किसानों की स्थिति बाँकी राज्यों के किसानों से अच्छी क्यों है?
मित्रों,क्या राहुल जी यह नहीं जानते हैं कि कृषि राज्य सूची का विषय है? किस किसान की कितनी फसल खराब हुई इसका सर्वेक्षण करवाना संवैधानिक रूप से किसका काम है केंद्र की सरकार का या राज्य की सरकार का? केंद्र सरकार तो बार-बार राज्य सरकारों से इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांग रही है। अगर राज्य सरकारें इस काम को गंभीरता से नहीं ले रही हैं तो इसके लिए दोषी कौन है राज्य सरकार या नरेंद्र मोदी? हाँ,अगर राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार मुआवजा नहीं देती है तो जरूर वह दोषी होगी लेकिन केंद्र तो पैसे राज्य सरकारों को ही दे सकती है। फिर भी बाँटना तो राज्यों की सरकारों को ही है। अगर बाँटने में भ्रष्टाचार होता है और मुआवजे को तंत्र सोख जाता है तो फिर दोषी कौन होगी राज्य की या केंद्र की सरकार?
मित्रों,हमारे राहुल जी को इस बात का भी दुःख है कि मोदीजी किसानों से मिलने नहीं गए। क्या किसानों का भला करने के लिए सिर्फ उनसे मिल लेना ही काफी होगा? हमारा उद्देश्य किसानों से मिलना होना चाहिए या उनके दुःखों का निवारण करना? क्या उनकी समस्याओं को उनके खेतों में गए बिना दूर नहीं किया जा सकता है? अगर नहीं तो पिछले 70 सालों में किसानों की हालत दिन-ब-दिन खराब क्यों होती चली गई जबकि 65 सालों तक कांग्रेस या कांग्रेस के समर्थन से बनी सरकार केंद्र में सत्ता में थी? क्या राहुल जी द्वारा लीलावती-कलावती की झोपड़ी में रात गुजारने से देश की गरीबी दूर हो गई? क्या राहुलजी बताएंगे कि आजादी के 70 साल बाद भी अगर भारत की 65 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है तो इसके लिए कौन सबसे ज्यादा जिम्मेदार है? भारत के कृषि मंत्री आसमानी आपदा के आने के बाद से ही प्रत्येक राज्य का दौरा कर रहे हैं। राज्यों के मुख्यमंत्रियों,मंत्रियों और अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं। भारत के गृहमंत्री खेतों में जाकर स्वयं बालियों से दानों को निकालकर देख रहे हैं। क्या पीएम को उन्होंने अपनी रिपोर्ट नहीं दी होगी? फिर मोदी जी को हर खेत पर जाने की क्या आवश्यकता है? क्या पीएम के हर खेत का दौरा कर लेने मात्र से ही किसानों की समस्त समस्याओं का समाधान हो जाएगा? या इसके लिए इस तरह की योजनाएँ बनानी पड़ेंगी या संजीदगी से लागू करनी पड़ेगी कि खेती फिर से गुलाम भारत की तरह भारत का सबसे उत्तम व्यवसाय हो जाए? और हम समझते हैं कि मोदी सरकार इसी दिशा में काम भी कर रही है।
मित्रों,सत्ता और विपक्ष में से कौन किसानों की तरफ है और कौन वाड्रा की तरफ यह राहुल जी को बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। आँकड़े गवाह हैं कि किसानों की सबसे ज्यादा जमीन पिछले दिनों हरियाणा में कांग्रेस की सरकार ने ही छीनी है। जमीन का अधिग्रहण होने बाद भी जमीन का मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेगा न कि उद्योगपतियों के पास। किसानों और गरीबों के नाम की माला जपते-जपते मुँह में राम बगल में छुरी को चरितार्थ करनेवाले कांग्रेसियों ने किसानों और गरीबों की हालत कितनी चिंताजनक बना दी यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। मोदी जी ने पहली बार किसानों की मूल समस्या को पकड़ा है और वह है सिंचाई के साधन नहीं होना और फसल का उचित मूल्य नहीं मिलना। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री सिंचाई योजना शुरू की है और कहा है कि हम किसानों को उसकी लागत से ड्योढ़ा दाम देंगे।
मित्रों,राहुल जी और पूरा विपक्ष परेशान है कि मोदी इतनी विदेश-यात्रा क्यों करते हैं तो उनको पता होना चाहिए कि मोदी विदेश भी गए थे तो देश के लिए ही न कि छुट्टियाँ मनाने या गुप्त-यात्रा पर गए थे।
मित्रों,लगता है कि राहुलजी ने अभी तक नरेंद्र मोदी को पीएम के रूप में स्वीकार नहीं किया है तभी तो वे कभी मनमोहन सिंह को पीएम कह जाते हैं तो कभी कहते हैं कि आपके पीएम जबकि उनको कहना चाहिए था हमारे पीएम,देश के पीएम।
मित्रों,हम अंत में राहुल जी को बता देते हैं कि मोदी सरकार ने पिछली बार लोकसभा में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में कौन-कौन से परिवर्तन किया था हो सकता है कि वे अपने थाईलैंड प्रवास के दौरान उनको पढ़ने का समय नहीं मिला होगा-
01. खेती योग्य जमीन दायरे में नहीं
मोदी सरकार ने पहले संशोधन में खेती योग्य भूमि को अधिग्रहित करने का भी प्रस्ताव शामिल किया था। लेकिन अब लोकसभा में लाए गए बिल में संशोधन कर दिया गया है। अब बहुफसली भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। साथ ही इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के लिए सीमित जमीन लिए जाने का फैसला लिया गया है। इससे किसानों के एक बड़े वर्ग को राहत मिलेगी।
02. मंजूरी जरूरी
भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के मुताबिक अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी किसानों की मंजूरी का प्रावधान था। उसे मोदी सरकार ने नए संशोधन में खत्म कर दिया था लेकिन अब लोकसभा में पास किए गए बिल के मुताबिक सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए होने वाले अधिग्रहण में किसानों की मंजूरी भी जरूरी होगी। इसी तरह से आदिवासी क्षेत्रों में अधिग्रहण के लिए पंचायत की सहमति जरूरी होगी।
03. अपील का अधिकार
मोदी सरकार ने 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में शामिल अपील के अधिकार को खत्म कर दिया था। पर अब संशोधन के बाद आए बिल में किसानों को अपील का अधिकार वापस मिल गया है। अब वे अधिग्रहण के किसी भी मामले में अपील कर सकेंगे। इससे उनके अधिकारों की सुरक्षा को बल मिलेगा।
04. मिलेगी नौकरी
पहले चले आ रहे भूमि अधिग्रहण कानून में प्रभावित किसानों को मुआवजा देने का प्रावधान था लेकिन किसी को नौकरी नहीं दी जाती थी। संशोधन के बाद लोकसभा में पास हुए बिल में प्रभावित परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
05. इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लिए अधिग्रहण
भूमि अधिग्रहण बिल में शामिल किए गए एक प्रावधान से रेलवे ट्रेक और हाइवे के एक किलोमीटर दायरे में रहने वालों को परेशानी हो सकती है। सरकार ने फैसला कर लिया है कि इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लिए अब रेलवे ट्रैक और हाईवे के दोनों तरफ एक किलोमीटर तक की जमीन का अधिग्रहण किया जा सकता है। संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल के मुताबिक बंजर जमीनों के लिए अलग से रिकॉर्ड रखा जाएगा।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,चूँकि मुझसे श्री गांधी का दुःख देखा नहीं जा रहा है इसलिए हमने फैसला किया है कि राहुल जी की बातों और उनके सवालों का जवाब हम ही दे देते हैं। वैसे हम न तो सांसद हैं और न ही नेतारूपी अभिनेता लेकिन हमारी आदत रही है अनाधिकार चेष्टा करने की। सो हम इस बात की बिना परवाह किए कि किसी को हमारी चेष्टा से दुःख हो सकता है हम राहुल गांधी जी का दुःख दूर कर देते हैं। आखिर परोपकार भी तो कोई चीज होती है।
मित्रों,हमारे राहुल जी का कहना है कि मोदी सरकार सूट-बूटवालों की सरकार है। राहुल जी कितने बड़े पाखंडी हैं जो उनको यह पता ही नहीं है कि भारत को सबसे ज्यादा नुकसान खादी के बने सस्ते कपड़े पहननेवालों ने पहुँचाया है। उनके पिताजी के नानाजी भी खादी ही पहनते थे लेकिन उनका कपड़ा पेरिस से धुलकर आता था। आज भारत में सबसे ज्यादा कालाधन अगर किसी के पास है तो वे खादीवाले ही हैं।
मित्रों,राहुल जी ने निश्चित रूप से स्वामी विवेकानंद के संस्मरण नहीं पढ़े हैं अन्यथा वे कपड़ों की बात ही नहीं करते। हुआ यूँ था कि जब विवेकानंद जी पहली बार अमेरिका की यात्रा पर गए तो उनके गेरूए वस्त्र को देखकर अमेरिकी हँस पड़े। तब स्वामी जी ने पूरी विनम्रता के साथ अमेरिकियों से पूछा कि आपके यहाँ व्यक्ति की पहचान क्या उनके कपड़ों से निर्धारित होती है उनके कर्म से नहीं? राहुल जी को भी नरेंद्र मोदी के कपड़ों को नहीं उनके कर्मों को देखना चाहिए। नरेंद्र मोदी तो ऐसी शख्सियत हैं कि जो अपने कपड़े तक को नीलाम कर देते हैं और प्राप्त धनराशि को सरकारी खजाने में जमा कर देते हैं। नरेंद्र मोदी राहुल जी की तरह पाखंडी नहीं हैं कि खादी पहनकर चांदी के बरतन में भोजन करें या चांदी की पलंग पर सोयें बल्कि वे तो पूर्ण योगी हैं,ज्ञान योगी,कर्म योगी और राज योगी भी। साथ ही राहुल जी को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि मोदी जी के देश-विदेश में सूट पहनने से भारत को लाभ हो रहा है या हानि हो रही है? वास्तविकता तो यह है कि मोदी जी के सूट पहनने या शॉल ओढ़ने से भारत के उस वस्त्रोद्योग को बढ़ावा मिलता है जो आज भारत के सबसे ज्यादा श्रमिकों को रोजगार दे रहा है।
मित्रों,वास्तविकता तो यह है कि मनमोहन सिंह की सरकार असली सूट-बूटवालों की सरकार थी जिसमें कौन संचार मंत्री बनेगा का फैसला रतन टाटा,मुकेश अंबानी,नीरा राडिया और बरखा दत्त करते थे न कि मोदी की सरकार सूट-बूटवाली है जिसके समय सहारा श्री तिहाड़ जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं,मुकेश अंबानी पर जुर्माना हो रहा है,वोडाफोन परेशान है,विजय माल्या बेहाल है आदि-आदि। मोदी की सरकार तो गरीबों की सरकार है जिसकी सारी नीतियाँ और कार्यक्रम गरीबों की भलाई के लिए हैं।
मित्रों,इसी तरह राहुल जी नितिन गडकरी के बयान को भी अपने भाषण में उद्धृत किया है लेकिन उन्होंने ऐसा करते हुए थोड़ी-सी धूर्तता भी की है। उन्होंने गडकरी जी के बयान को संदर्भ से काटकर पेश किया है। गडकरी जी ने न सिर्फ यह कहा था कि किसानों की मदद न तो सरकार ही कर सकती है और न तो भगवान ही बल्कि यह भी कहा था कि उनकी सरकार चाहती है कि किसानों आर्थिक रूप से इतने सक्षम हो जाएँ कि उनको न तो भगवान और न ही सरकार का आसरा ही करना पड़े बल्कि वे हर तरह की क्षति को खुद अपने बल पर झेल सकें। राहुल जी क्या बताएंगे कि गडकरी जी ने क्या गलत कहा था? आज किसान अगर फसल खराब होने पर आत्महत्या करने को बाध्य हो रहे हैं तो यह कोई 14 महीने में पैदा हुई स्थिति नहीं है बल्कि 70 सालों में किसानों को इतना विपन्न बना दिया गया है कि उनको अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा है। 70 साल पहले कहा जाता था उत्तम खेती,मध्यम बान,अधम चाकरी भीख निदान। क्यों आज यह कहावत उल्टी हो गई है? क्यों आज भी किसान सिंचाई के लिए रामभरोसे है? क्यों आज किसान खेती करना नहीं चाहता? क्या 14 महीने पहले किसानों की स्थिति अच्छी थी? गुजरात के किसानों की जमीन अगर मोदी सरकार ने जबरन छीना था तो वहाँ के किसानों ने कभी विरोध क्यों नहीं किया? कल की राहुल की रैली में कितने ऐसे किसान थे जो गुजरात से आए थे? गुजरात के किसानों की स्थिति बाँकी राज्यों के किसानों से अच्छी क्यों है?
मित्रों,क्या राहुल जी यह नहीं जानते हैं कि कृषि राज्य सूची का विषय है? किस किसान की कितनी फसल खराब हुई इसका सर्वेक्षण करवाना संवैधानिक रूप से किसका काम है केंद्र की सरकार का या राज्य की सरकार का? केंद्र सरकार तो बार-बार राज्य सरकारों से इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांग रही है। अगर राज्य सरकारें इस काम को गंभीरता से नहीं ले रही हैं तो इसके लिए दोषी कौन है राज्य सरकार या नरेंद्र मोदी? हाँ,अगर राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार मुआवजा नहीं देती है तो जरूर वह दोषी होगी लेकिन केंद्र तो पैसे राज्य सरकारों को ही दे सकती है। फिर भी बाँटना तो राज्यों की सरकारों को ही है। अगर बाँटने में भ्रष्टाचार होता है और मुआवजे को तंत्र सोख जाता है तो फिर दोषी कौन होगी राज्य की या केंद्र की सरकार?
मित्रों,हमारे राहुल जी को इस बात का भी दुःख है कि मोदीजी किसानों से मिलने नहीं गए। क्या किसानों का भला करने के लिए सिर्फ उनसे मिल लेना ही काफी होगा? हमारा उद्देश्य किसानों से मिलना होना चाहिए या उनके दुःखों का निवारण करना? क्या उनकी समस्याओं को उनके खेतों में गए बिना दूर नहीं किया जा सकता है? अगर नहीं तो पिछले 70 सालों में किसानों की हालत दिन-ब-दिन खराब क्यों होती चली गई जबकि 65 सालों तक कांग्रेस या कांग्रेस के समर्थन से बनी सरकार केंद्र में सत्ता में थी? क्या राहुल जी द्वारा लीलावती-कलावती की झोपड़ी में रात गुजारने से देश की गरीबी दूर हो गई? क्या राहुलजी बताएंगे कि आजादी के 70 साल बाद भी अगर भारत की 65 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है तो इसके लिए कौन सबसे ज्यादा जिम्मेदार है? भारत के कृषि मंत्री आसमानी आपदा के आने के बाद से ही प्रत्येक राज्य का दौरा कर रहे हैं। राज्यों के मुख्यमंत्रियों,मंत्रियों और अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं। भारत के गृहमंत्री खेतों में जाकर स्वयं बालियों से दानों को निकालकर देख रहे हैं। क्या पीएम को उन्होंने अपनी रिपोर्ट नहीं दी होगी? फिर मोदी जी को हर खेत पर जाने की क्या आवश्यकता है? क्या पीएम के हर खेत का दौरा कर लेने मात्र से ही किसानों की समस्त समस्याओं का समाधान हो जाएगा? या इसके लिए इस तरह की योजनाएँ बनानी पड़ेंगी या संजीदगी से लागू करनी पड़ेगी कि खेती फिर से गुलाम भारत की तरह भारत का सबसे उत्तम व्यवसाय हो जाए? और हम समझते हैं कि मोदी सरकार इसी दिशा में काम भी कर रही है।
मित्रों,सत्ता और विपक्ष में से कौन किसानों की तरफ है और कौन वाड्रा की तरफ यह राहुल जी को बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। आँकड़े गवाह हैं कि किसानों की सबसे ज्यादा जमीन पिछले दिनों हरियाणा में कांग्रेस की सरकार ने ही छीनी है। जमीन का अधिग्रहण होने बाद भी जमीन का मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेगा न कि उद्योगपतियों के पास। किसानों और गरीबों के नाम की माला जपते-जपते मुँह में राम बगल में छुरी को चरितार्थ करनेवाले कांग्रेसियों ने किसानों और गरीबों की हालत कितनी चिंताजनक बना दी यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। मोदी जी ने पहली बार किसानों की मूल समस्या को पकड़ा है और वह है सिंचाई के साधन नहीं होना और फसल का उचित मूल्य नहीं मिलना। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री सिंचाई योजना शुरू की है और कहा है कि हम किसानों को उसकी लागत से ड्योढ़ा दाम देंगे।
मित्रों,राहुल जी और पूरा विपक्ष परेशान है कि मोदी इतनी विदेश-यात्रा क्यों करते हैं तो उनको पता होना चाहिए कि मोदी विदेश भी गए थे तो देश के लिए ही न कि छुट्टियाँ मनाने या गुप्त-यात्रा पर गए थे।
मित्रों,लगता है कि राहुलजी ने अभी तक नरेंद्र मोदी को पीएम के रूप में स्वीकार नहीं किया है तभी तो वे कभी मनमोहन सिंह को पीएम कह जाते हैं तो कभी कहते हैं कि आपके पीएम जबकि उनको कहना चाहिए था हमारे पीएम,देश के पीएम।
मित्रों,हम अंत में राहुल जी को बता देते हैं कि मोदी सरकार ने पिछली बार लोकसभा में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में कौन-कौन से परिवर्तन किया था हो सकता है कि वे अपने थाईलैंड प्रवास के दौरान उनको पढ़ने का समय नहीं मिला होगा-
01. खेती योग्य जमीन दायरे में नहीं
मोदी सरकार ने पहले संशोधन में खेती योग्य भूमि को अधिग्रहित करने का भी प्रस्ताव शामिल किया था। लेकिन अब लोकसभा में लाए गए बिल में संशोधन कर दिया गया है। अब बहुफसली भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। साथ ही इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के लिए सीमित जमीन लिए जाने का फैसला लिया गया है। इससे किसानों के एक बड़े वर्ग को राहत मिलेगी।
02. मंजूरी जरूरी
भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के मुताबिक अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी किसानों की मंजूरी का प्रावधान था। उसे मोदी सरकार ने नए संशोधन में खत्म कर दिया था लेकिन अब लोकसभा में पास किए गए बिल के मुताबिक सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए होने वाले अधिग्रहण में किसानों की मंजूरी भी जरूरी होगी। इसी तरह से आदिवासी क्षेत्रों में अधिग्रहण के लिए पंचायत की सहमति जरूरी होगी।
03. अपील का अधिकार
मोदी सरकार ने 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में शामिल अपील के अधिकार को खत्म कर दिया था। पर अब संशोधन के बाद आए बिल में किसानों को अपील का अधिकार वापस मिल गया है। अब वे अधिग्रहण के किसी भी मामले में अपील कर सकेंगे। इससे उनके अधिकारों की सुरक्षा को बल मिलेगा।
04. मिलेगी नौकरी
पहले चले आ रहे भूमि अधिग्रहण कानून में प्रभावित किसानों को मुआवजा देने का प्रावधान था लेकिन किसी को नौकरी नहीं दी जाती थी। संशोधन के बाद लोकसभा में पास हुए बिल में प्रभावित परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
05. इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लिए अधिग्रहण
भूमि अधिग्रहण बिल में शामिल किए गए एक प्रावधान से रेलवे ट्रेक और हाइवे के एक किलोमीटर दायरे में रहने वालों को परेशानी हो सकती है। सरकार ने फैसला कर लिया है कि इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लिए अब रेलवे ट्रैक और हाईवे के दोनों तरफ एक किलोमीटर तक की जमीन का अधिग्रहण किया जा सकता है। संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल के मुताबिक बंजर जमीनों के लिए अलग से रिकॉर्ड रखा जाएगा।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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