मित्रों,बिहार सरकार की मानें तो गत 5 वर्षों में बिजली चोरी से बिहार के सरकारी खजाने को लगभग 7000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। ऐसी स्थिति में किसी भी सुशासनी सरकार से ऐसी उम्मीद की जाती है कि वो चोरी रोकने के लिए कठोर कदम उठाएगी लेकिन बिहार सरकार कर रही है इसका ठीक उल्टा। बिहार सरकार ने बिजली चोरी में उत्तरोत्तर वृद्धि के मद्देनजर बड़े धनवानों द्वारा बिजली चोरी को बढ़ावा देने के लिए ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे गरीब राज्य बिहार के खजाने को अरबों का धक्का लगा है वहीं सरकार के कृपापात्र व्यवसायियों को काफी लाभ हुआ है। मुलाहिजा फरमाईए।
1.बिजली सरकार ने कई दशकों से कार्यरत विद्युत निगरानी कोषांग को बंद कर दिया है। यह कोषांग विशिष्ट रूप से ऊर्जा चोरी एवं बोर्ड के वैसे जनसेवक जो कदाचारपूर्ण कृत्यों में लिप्त होकर बिजली चोरी में सहायता करते थे,उन पर निगरानी रखने के लिए गठित किया था।
2. बिहार राज्य ने निगरानी पुलिस को बिजली चोरी के मामले में हस्तक्षेप को निषेध कर दिया है।
3. बिहार राज्य ने बिजली कंपनी के वैसे जनसेवक जो कदाचारपूर्वक उपभोक्ताओं से बिजली चोरी करवाकर नाजायज लाभ पहुँचाते हैं उन्हें भ्रष्टाचार अधिनियम 1988 के दायरे से मुक्त कर दिया है।
4. बिहार राज्य विद्युत नियामक आयोग ने वर्ष 2007 में बिहार विद्युत आपूर्ति अधिनियम की कंडिका 114 के तहत यह प्रावधान किया है कि बिजली चोरी करते हुए पकड़े जाने के बाद भी अगर कोई उपभोक्ता स्वैच्छिक घोषणा करता है तो उसे एक निश्चित अवधि के लिए औसत विपत्र देकर आपराधिक कांड और जुर्माना एवं दंडात्मक विपत्र से मुक्ति मिल सकती है। इस बात की पुष्ट जानकारी है कि कम-से-कम एक बड़े उपभोक्ता को निगरानी कोषांग के द्वारा 21 करोड़ रुपये की बिजली चोरी करते हुए रंगे हाथ पकड़े जाने के बाद भी एक करोड़ रुपये की स्वैच्छिक घोषणा कर आपराधिक कांड से मुक्त कर दिया गया है। 2007 से अब तक इसका लाभ सिर्फ बड़े HHT/HT एवं रसूख वाले उपभोक्ताओं ने ही उठाया है या फिर उनको ही उठाने दिया गया है।
5.बिजली बोर्ड ने प्रभावशाली और बड़े उपभोक्ताओं तथा साधारण उपभोक्ताओं के लिए अलग-अलग विधिक प्रावधान बना रखा है।
6.वर्ष 2007 में बोर्ड ने टोका फंसाकर 60000 रुपये की बिजली चोरी करनेवाले उपभोक्ताओं पर कांड दर्ज कराया। उपभोक्ता के पक्ष में उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि पुलिस को नए विद्युत अधिनियम 2003 में कांड दर्ज कर अनुसंधान करने का कोई अधिकार ही नहीं है। बोर्ड ने इस मामले के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की और यह कहा कि बिजली अधिनियम 2007 में प्रावधान संशोधित हो चुके हैं। परिणामस्वरूप उच्चतम न्यायालय ने फैसला बोर्ड के पक्ष में सुनाया और अभियुक्त आरोपपत्रित होकर जेल चले गए। इतना ही नहीं हाजीपुर में कई बिजली उपभोक्ताओं पर मीटर को बाईपास कर बिजली जलाने पर मुकदमा कर दिया गया। बाद में बिल जमा कर देने के बाद कहा गया कि कोर्ट फीस जमा कर देने पर मामले को समाप्त कर दिया जाएगा। लेकिन 3000 रुपये से भी ज्यादा कोर्ट फीस के नाम पर जमा करवाने के बाद भी 7000रुपये बकाये का नोटिस भेजा जाता रहा।
7.परंतु बोर्ड ने 20 करोड़ रुपये की चोरी के मामले में दायर सी.डबल्यू.जे.सी. 921/09 आदि में बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में अपने इस स्टैंड से बिल्कुल भिन्न स्टैंड लेते हुए कहा कि निगरानी (पुलिस) को बिजली चोरी का कांड दर्ज करने का अधिकार ही नहीं है तथा भारतीय विद्युत अधिनियम 1910 के तहत जारी यह अधिसूचना विद्युत अधिनियम 2003 के लागू होने के बाद प्रभावी नहीं रही। इस मामले में 20 करोड़ रुपये की राशि की बिजली चोरी का मामला था। बिजली बोर्ड के इस स्टैंड से अतिधनवान उपभोक्ता एवं उनकी मदद करनेवाले बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य इंजीनियर बरी हो गए। बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में एस.एल.पी. दायर करना भी मुनासिब नहीं समझा।
मित्रों,यह घोर आश्चर्य का विषय है कि जहाँ वर्ष 2012-13 में बोर्ड ने 4000 छोटी चोरी में शामिल उपभोक्ताओं से कई करोड़ रुपयों की वसूली की वहीं इसी वर्ष में बिजली बोर्ड की निगरानी कोषांग द्वारा वर्ष 2003 से 2006 में दर्ज किए गए 6 मुकदमें जिनमें कई सौ करोड़ की राशि निहित थी माननीय उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिए गए। बिजली बोर्ड ने न तो औपचारिक रूप से इसका विरोध किया और न ही उच्चतम न्यायालय में अपील ही की।
मित्रों,बिजली बोर्ड एक षड्यंत्र के तहत कई सालों से बड़े उपभोक्ताओं की चोरी को संस्थागत संरक्षण देकर कदाचारपूर्ण कृत्य करता है परंतु यह दिखाने के लिए कि वह बिजली चोरी रोकने के लिए कृतसंकल्पित है गरीब उपभोक्ताओं पर महत्तम शक्ति एवं निरोधात्मक कार्रवाइयाँ करता है। बिजली बोर्ड ने आज भी बहुत सूझबूझ तथा शातिराना ढंगे से बड़े-बड़े उपभोक्ताओं को पुराने मामले से भी मुक्त कराने का जो अभियान चला रखा है,उसकी शुरुआत वस्तुतः तत्कालीन अध्यक्ष स्वप्न मुखर्जी के कार्यकाल में वर्ष 2008 में हुई थी और इस दुरभिसंधि में उन्हें सरकार के शीर्षस्थ स्तर पर पदासीन पदाधिकारियों का पूरा सहयोग मिला था। तब माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को भी इस मामले की पूरी जानकारी थी और उन्होंने भी इस भ्रष्टाचार के खेल को रोकने के बजाए प्रश्रय ही दिया था। बाद में विद्युत निगरानी कोषांग के महानिदेशक आनंद शंकर द्वारा दीना आयरन स्टील,दीना मेटल्स और दादीजी स्टील जैसे बड़े चोरों पर कांड दर्ज होने और इनकी अवैध तरीके से मदद करने के आरोप में बोर्ड अध्यक्ष के खिलाफ कोषांग के उनके बाद महानिदेशक बने मनोजनाथ द्वारा मुकदमा दर्ज करने के बाद कोषांग को बिहार सरकार ने वर्ष 2012 में बंद ही कर दिया। इसके बाद से ही जहाँ से बोर्ड के अध्यक्ष और इंजीनियरों की मोटी कमाई हो रही है वहाँ बिजली चोरी जारी है और बाँकी जगहों पर तड़ातड़ छापेमारी की जा रही है।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
1.बिजली सरकार ने कई दशकों से कार्यरत विद्युत निगरानी कोषांग को बंद कर दिया है। यह कोषांग विशिष्ट रूप से ऊर्जा चोरी एवं बोर्ड के वैसे जनसेवक जो कदाचारपूर्ण कृत्यों में लिप्त होकर बिजली चोरी में सहायता करते थे,उन पर निगरानी रखने के लिए गठित किया था।
2. बिहार राज्य ने निगरानी पुलिस को बिजली चोरी के मामले में हस्तक्षेप को निषेध कर दिया है।
3. बिहार राज्य ने बिजली कंपनी के वैसे जनसेवक जो कदाचारपूर्वक उपभोक्ताओं से बिजली चोरी करवाकर नाजायज लाभ पहुँचाते हैं उन्हें भ्रष्टाचार अधिनियम 1988 के दायरे से मुक्त कर दिया है।
4. बिहार राज्य विद्युत नियामक आयोग ने वर्ष 2007 में बिहार विद्युत आपूर्ति अधिनियम की कंडिका 114 के तहत यह प्रावधान किया है कि बिजली चोरी करते हुए पकड़े जाने के बाद भी अगर कोई उपभोक्ता स्वैच्छिक घोषणा करता है तो उसे एक निश्चित अवधि के लिए औसत विपत्र देकर आपराधिक कांड और जुर्माना एवं दंडात्मक विपत्र से मुक्ति मिल सकती है। इस बात की पुष्ट जानकारी है कि कम-से-कम एक बड़े उपभोक्ता को निगरानी कोषांग के द्वारा 21 करोड़ रुपये की बिजली चोरी करते हुए रंगे हाथ पकड़े जाने के बाद भी एक करोड़ रुपये की स्वैच्छिक घोषणा कर आपराधिक कांड से मुक्त कर दिया गया है। 2007 से अब तक इसका लाभ सिर्फ बड़े HHT/HT एवं रसूख वाले उपभोक्ताओं ने ही उठाया है या फिर उनको ही उठाने दिया गया है।
5.बिजली बोर्ड ने प्रभावशाली और बड़े उपभोक्ताओं तथा साधारण उपभोक्ताओं के लिए अलग-अलग विधिक प्रावधान बना रखा है।
6.वर्ष 2007 में बोर्ड ने टोका फंसाकर 60000 रुपये की बिजली चोरी करनेवाले उपभोक्ताओं पर कांड दर्ज कराया। उपभोक्ता के पक्ष में उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि पुलिस को नए विद्युत अधिनियम 2003 में कांड दर्ज कर अनुसंधान करने का कोई अधिकार ही नहीं है। बोर्ड ने इस मामले के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की और यह कहा कि बिजली अधिनियम 2007 में प्रावधान संशोधित हो चुके हैं। परिणामस्वरूप उच्चतम न्यायालय ने फैसला बोर्ड के पक्ष में सुनाया और अभियुक्त आरोपपत्रित होकर जेल चले गए। इतना ही नहीं हाजीपुर में कई बिजली उपभोक्ताओं पर मीटर को बाईपास कर बिजली जलाने पर मुकदमा कर दिया गया। बाद में बिल जमा कर देने के बाद कहा गया कि कोर्ट फीस जमा कर देने पर मामले को समाप्त कर दिया जाएगा। लेकिन 3000 रुपये से भी ज्यादा कोर्ट फीस के नाम पर जमा करवाने के बाद भी 7000रुपये बकाये का नोटिस भेजा जाता रहा।
7.परंतु बोर्ड ने 20 करोड़ रुपये की चोरी के मामले में दायर सी.डबल्यू.जे.सी. 921/09 आदि में बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में अपने इस स्टैंड से बिल्कुल भिन्न स्टैंड लेते हुए कहा कि निगरानी (पुलिस) को बिजली चोरी का कांड दर्ज करने का अधिकार ही नहीं है तथा भारतीय विद्युत अधिनियम 1910 के तहत जारी यह अधिसूचना विद्युत अधिनियम 2003 के लागू होने के बाद प्रभावी नहीं रही। इस मामले में 20 करोड़ रुपये की राशि की बिजली चोरी का मामला था। बिजली बोर्ड के इस स्टैंड से अतिधनवान उपभोक्ता एवं उनकी मदद करनेवाले बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य इंजीनियर बरी हो गए। बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में एस.एल.पी. दायर करना भी मुनासिब नहीं समझा।
मित्रों,यह घोर आश्चर्य का विषय है कि जहाँ वर्ष 2012-13 में बोर्ड ने 4000 छोटी चोरी में शामिल उपभोक्ताओं से कई करोड़ रुपयों की वसूली की वहीं इसी वर्ष में बिजली बोर्ड की निगरानी कोषांग द्वारा वर्ष 2003 से 2006 में दर्ज किए गए 6 मुकदमें जिनमें कई सौ करोड़ की राशि निहित थी माननीय उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिए गए। बिजली बोर्ड ने न तो औपचारिक रूप से इसका विरोध किया और न ही उच्चतम न्यायालय में अपील ही की।
मित्रों,बिजली बोर्ड एक षड्यंत्र के तहत कई सालों से बड़े उपभोक्ताओं की चोरी को संस्थागत संरक्षण देकर कदाचारपूर्ण कृत्य करता है परंतु यह दिखाने के लिए कि वह बिजली चोरी रोकने के लिए कृतसंकल्पित है गरीब उपभोक्ताओं पर महत्तम शक्ति एवं निरोधात्मक कार्रवाइयाँ करता है। बिजली बोर्ड ने आज भी बहुत सूझबूझ तथा शातिराना ढंगे से बड़े-बड़े उपभोक्ताओं को पुराने मामले से भी मुक्त कराने का जो अभियान चला रखा है,उसकी शुरुआत वस्तुतः तत्कालीन अध्यक्ष स्वप्न मुखर्जी के कार्यकाल में वर्ष 2008 में हुई थी और इस दुरभिसंधि में उन्हें सरकार के शीर्षस्थ स्तर पर पदासीन पदाधिकारियों का पूरा सहयोग मिला था। तब माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को भी इस मामले की पूरी जानकारी थी और उन्होंने भी इस भ्रष्टाचार के खेल को रोकने के बजाए प्रश्रय ही दिया था। बाद में विद्युत निगरानी कोषांग के महानिदेशक आनंद शंकर द्वारा दीना आयरन स्टील,दीना मेटल्स और दादीजी स्टील जैसे बड़े चोरों पर कांड दर्ज होने और इनकी अवैध तरीके से मदद करने के आरोप में बोर्ड अध्यक्ष के खिलाफ कोषांग के उनके बाद महानिदेशक बने मनोजनाथ द्वारा मुकदमा दर्ज करने के बाद कोषांग को बिहार सरकार ने वर्ष 2012 में बंद ही कर दिया। इसके बाद से ही जहाँ से बोर्ड के अध्यक्ष और इंजीनियरों की मोटी कमाई हो रही है वहाँ बिजली चोरी जारी है और बाँकी जगहों पर तड़ातड़ छापेमारी की जा रही है।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
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