हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आप सोंच रहे होंगे कि मुझे क्या हो गया है। क्या अब मैं देशभक्त नहीं रहा? अगर आप ऐसा सोंच रहे हैं तो बिल्कुल गलत सोंच रहे हैं। दरअसल मैं इस तरह की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मेरा दिल आज भी देश के लिए धड़कता है। दरअसल आप रोज टीवी पर देखते हैं कि सैनिक वन रैंक वन पेंशन की मांग कर रहे हैं। टीवी वाले बस इतना ही दिखाते हैं और आप इतना ही देखते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि वन रैंक वन पेंशन की मांग है क्या और इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?
मित्रों,मैं पहेलियाँ बुझाने में यकीन नहीं रखता इसलिए मैं आपको बताता हूँ कि वन रैंक वन पेंशन की मांग क्या है और इसे लागू करने से पिछली सरकार क्यों हिचकती थी और वर्तमान सरकार भी क्यों संकोच कर रही है। दरअसर सैनिकों की मांग है कि जो व्यक्ति कर्नल या किसी भी पद से 1980 में 250 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर रिटायर हुआ उसका पेंशन उनके उन समकक्षों के बराबर हो जो अब एक-डेढ़ लाख प्रतिमाह के वेतन पर रिटायर हो रहे हैं।
मित्रों,आप जानते हैं कि हमारे देश में सारी सरकारी नौकरियों में पेंशन का निर्धारण उनके तत्कालीन वेतन के आधार पर होता है। उदाहरण के लिए मेरे पिताजी डॉ. विष्णुपद सिंह,कॉलेज रीडर के पद से वर्ष 2003 में 18000 रुपये के वेतन पर रिटायर हुए। अभी उनको 45000 का पेंशन मिल रहा है लेकिन अभी दो महीने पहले रामसुरेश गिरि रीडर के पद पर ही सवा लाख के वेतन पर रिटायर हुए हैं और उनका पेंशन 60 हजार से भी ज्यादा है। अब अगर पिताजी को वन रैंक वन पेंशन चाहिए तो उनका पेंशन भी कम-से-कम 60 हजार तो होना ही चाहिए।
मित्रों,अब सोंचिए कि अगर सैनिकों की वन रैंक वन पेंशन की मांग को केंद्र सरकार ने मान लिया तो क्या अन्य विभाग के लोग भी अपने लिए यही मांग नहीं करेंगे? फिर देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा? वैसे भी अगले साल नए वेतनमान के आने के बाद अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़नेवाला है। क्या वन रैंक वन पेंशन लागू होने के बाद रचनात्मक कार्यों के लिए देश के खजाने में पर्याप्त पैसा बचेगा? फिर देश के विकास का क्या होगा? हो सकता है कि सैनिकों की मांग सैद्धांतिक रूप से सही हो लेकिन क्या वह व्यावहारिक तौर पर सही है? इसलिए सैनिकों को जिद छोड़ते हुए उस देश की भलाई के लिए बीच में कहीं समझौते को मान लेना चाहिए जिस देश के लिए उन्होंने अपना खून बहाया है। दरअसल वन रैंक वन पेंशन की मांग मधुमक्खी का छत्ता है जिस पर हाथ डालने का मतलब होगा सभी विभागों के सारे सरकारी पेंशनधारियों को धरना,प्रदर्शन,अनशन और आंदोलन के लिए भड़काना,प्रेरित करना। वैसे इसके लागू होने से मुझे भी लाभ होगा क्योंकि मेरे पिताजी भी पेंशनधारी हैं लेकिन मुझे देश की कीमत पर यह लाभ नहीं चाहिए,कतई नहीं।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
मित्रों,मैं पहेलियाँ बुझाने में यकीन नहीं रखता इसलिए मैं आपको बताता हूँ कि वन रैंक वन पेंशन की मांग क्या है और इसे लागू करने से पिछली सरकार क्यों हिचकती थी और वर्तमान सरकार भी क्यों संकोच कर रही है। दरअसर सैनिकों की मांग है कि जो व्यक्ति कर्नल या किसी भी पद से 1980 में 250 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर रिटायर हुआ उसका पेंशन उनके उन समकक्षों के बराबर हो जो अब एक-डेढ़ लाख प्रतिमाह के वेतन पर रिटायर हो रहे हैं।
मित्रों,आप जानते हैं कि हमारे देश में सारी सरकारी नौकरियों में पेंशन का निर्धारण उनके तत्कालीन वेतन के आधार पर होता है। उदाहरण के लिए मेरे पिताजी डॉ. विष्णुपद सिंह,कॉलेज रीडर के पद से वर्ष 2003 में 18000 रुपये के वेतन पर रिटायर हुए। अभी उनको 45000 का पेंशन मिल रहा है लेकिन अभी दो महीने पहले रामसुरेश गिरि रीडर के पद पर ही सवा लाख के वेतन पर रिटायर हुए हैं और उनका पेंशन 60 हजार से भी ज्यादा है। अब अगर पिताजी को वन रैंक वन पेंशन चाहिए तो उनका पेंशन भी कम-से-कम 60 हजार तो होना ही चाहिए।
मित्रों,अब सोंचिए कि अगर सैनिकों की वन रैंक वन पेंशन की मांग को केंद्र सरकार ने मान लिया तो क्या अन्य विभाग के लोग भी अपने लिए यही मांग नहीं करेंगे? फिर देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा? वैसे भी अगले साल नए वेतनमान के आने के बाद अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़नेवाला है। क्या वन रैंक वन पेंशन लागू होने के बाद रचनात्मक कार्यों के लिए देश के खजाने में पर्याप्त पैसा बचेगा? फिर देश के विकास का क्या होगा? हो सकता है कि सैनिकों की मांग सैद्धांतिक रूप से सही हो लेकिन क्या वह व्यावहारिक तौर पर सही है? इसलिए सैनिकों को जिद छोड़ते हुए उस देश की भलाई के लिए बीच में कहीं समझौते को मान लेना चाहिए जिस देश के लिए उन्होंने अपना खून बहाया है। दरअसल वन रैंक वन पेंशन की मांग मधुमक्खी का छत्ता है जिस पर हाथ डालने का मतलब होगा सभी विभागों के सारे सरकारी पेंशनधारियों को धरना,प्रदर्शन,अनशन और आंदोलन के लिए भड़काना,प्रेरित करना। वैसे इसके लागू होने से मुझे भी लाभ होगा क्योंकि मेरे पिताजी भी पेंशनधारी हैं लेकिन मुझे देश की कीमत पर यह लाभ नहीं चाहिए,कतई नहीं।
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