वैधानिक चेतावनी-यद्यपि यह रचना व्यंग्य नहीं है तथापि अगर पढ़ते समय या पढ़ने के बाद आपको लगे कि यह व्यंग्य ही है तो इसे हम आपकी कृपा समझेंगे।
हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आप कहेंगे कि जब नीतीश सरकार काम कर रही है तो ताली पीटना चाहिए छाती क्यों पीटें? लगता है आप नहीं समझे आजकल वाला विकास के बिहार मॉडल को। पहले वाला मॉडल भाजपा का था अब वाला भाई-भतीजा का है। नीतीश जी का अपना कोई मॉडल न पहले था और न अब है। जब जिसके साथ रहे तब उसका वाला मॉडल ले लिए।
मित्रों,पहले नीतीश जी की सहयोगी भाजपा मानती थी कि सुशासन स्थापित करने से और विकास करने से वोट मिलता है। वोट मिला भी 2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश और भाजपा दोनों को मिला। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को ज्यादा मिला और नीतीश जी को कम। मतलब यह कि जिसका विकास मॉडल था लोग बिहार की लगभग सब सीट भी उसी को दे दिया।
मित्रों,तब नीतीश जी का माथा ठनका और वो होश में आ गए। सारा भ्रम टूट गया कि जिसको लोग बिहार का विकास मॉडल कहते हैं वो उनका था। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश जी के पास न तो वोट था और न ही कोई मॉडल ही बचा था। तब उन्होंने लालू जी से संपर्क किया जिनके पास उनसे ज्यादा वोट भी था और एक विकास का मॉडल भी था जिसको एक समय नीतीश जी भी विनाश का मॉडल,जंगलराज और आतंकराज कहते थे।
मित्रों,लेकिन अब स्थितियाँ अलग थीं। नीतीश जी लंबे समय से सत्ता में थे और किसी भी कीमत पर बिहार के राजपाठ को हाथ से जाना नहीं देना चाहते थे। अबतक वे अच्छी तरह से समझ चुके थे कि न तो विकास का कोई मतलब होता है और न ही विकास मॉडल का असली सार तो सत्ता में बने रहने में हैं। फिर चाहे इसके लिए घिनौने बड़े भैया की गोद में बैठना पड़े या फिर शरारती-बदनाम भतीजों को अपनी गोद में बैठाना पड़े।
मित्रों,आपको याद होगा कि साल 1990 से 2005 तक लालू-राबड़ी स्टाईल बिहार मॉडल से कैसे बिहार का विकास हुआ था। जनता का एक वर्ग जो साध था छाती पीट रहा था और दूसरा वर्ग जो अपराधी था वो पहले वर्ग को पीट रहा था। ताली सिर्फ लालू-राबड़ी और उनके दरबारी पीट रहे थे। अब नीतीश कुमार जी अगर कहते हैं कि जितनी छाती पीटनी है पीटिए हम तो अपना काम करेंगे तो इसका कोई और मतलब नहीं निकालिए। उनके कहने का मतलब बस इतना है कि 1990 से 2005 तक जो लोग छाती पीट रहे थे एकबार फिर से पीट सकते हैं उनको फर्क नहीं पड़ता क्योंकि अब उनके साथ ताली पीटने के लिए वे सारे लोग आ गए हैं जो उस महान् कालखंड में ताली पीट रहे थे। और जब छाती और ताली पीटनेवाले मौजूद हैं तो फिर जबतक छाती पीटनेवालों को पीटनेवाले नहीं हों तो विकास का मॉडल पूरा कैसे होगा,अधूरा नहीं रह जाएगा? सो अब बिहार में खून-तून सब माफ होगा लेकिन नीतीश जी बस इतना ही गुनगुनाते रहेंगे कि आबो हवा बिहार की बहुत साफ है, कायदा है कानून है इंसाफ है,अल्ला मियाँ जाने कोई जिए या मरे,बिहार में खून-तून सब माफ है। इसे ही तो कहते हैं कानून के राज के साथ-साथ न्याय के साथ विकास भी और गरीबों का राज भी। अब बिहार में कोई जंगलराज नहीं बोलेगा और नीतीश जी के सामने तो हरगिज नहीं क्योंकि इस शब्द को बिहार में प्रतिबंधित कर दिया गया है। बोला नहीं कि गया बेट्टा!!! कहाँ जाने की बात हो रही है अगर जानना है तो पहले उस बस वाले से पूछिए जो बस के पीछे लिखवाए हुए है कि लटकले त गेले बेटा।
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