रविवार, 3 जनवरी 2016

राजगीर पे करम सही मगर वैशाली पे सितम क्यों?


हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,किसी को भी पता नहीं है कि बिहार सरकार का पर्यटन के लिए रोडमैप क्या है। अगर तनिक गौर से भी देखा जाए तो हम पाएंगे कि बिहार की वर्तमान सरकार के लिए राजगीर और नालंदा ही पर्यटन की दृष्टि से सबकुछ है। अगर हम यह कहें कि नालंदा जिला ही नीतीश कुमार के लिए पूरा बिहार है तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।
मित्रों,कोई भी नेता या सीएम पहली प्राथमिकता अपने इलाके को देता है इसलिए अगर नीतीश कुमार भी ऐसा करते हैं तो जरूर करें लेकिन न जाने क्यों वे बिहार के दूसरे सबसे महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल वैशाली से नाराज दिखते हैं। राजगीर तो वे बार-बार जाते हैं,टमटम की सवारी करते हैं,वहाँ नौका विहार भी करते हैं लेकिन कभी वैशाली के लिए वक्त नहीं निकालते। यहाँ तक कि वैशाली महोत्सव के उद्घाटन में भी नहीं आते। अभी वैशाली के जिला मुख्यालय हाजीपुर से सटे दुनिया के सबसे बड़े मेले सोनपुर मेले का समापन हुआ है नीतीश जी इसके उद्घाटन में तो नहीं ही आते हैं मेला घूमने भी नहीं आते। हम बराबर अखबार में पढ़ते हैं कि राजगीर में यह बन रहा है या यह बन चुका है लेकिन वैशाली में? इतिहास साक्षी है कि भगवान बुद्ध को वैशाली भी कम प्रिय नहीं थी फिर यह नीतीश कुमार जी और उनकी सरकार को अप्रिय क्यों है?
मित्रों,हद तो तब हो जाती है जब हम पाते हैं कि विगत कई वर्षों से बिहार सरकार जैनियों के अंतिम तीर्थंकर महावीर का जन्मोत्सव वैशाली के बाहर मगध के किसी स्थान पर मनाने लगी है। यह तो बहुत पहले ही सिद्ध हो चुका है और इतिहासकारों में निर्विवादित तथ्य भी है कि महावीर का जन्म वैशाली के लिच्छवी गणतंत्र के राजपरिवार में हुआ था। यह भी निर्विवादित तथ्य है कि लिच्छवी गणतंत्र गंगा के उत्तर में स्थित था फिर पिछले कुछ वर्षों में महावीर गंगा के दक्षिण मगध या अंग क्षेत्र में कैसे पैदा होने लगे हैं समझ में नहीं आता। क्या गंगा के दक्षिण दक्षिण बिहार में महावीर जन्मोत्सव मनाना वैशाली के खिलाफ कोई सरकारी साजिश है? यह सही है कि महावीर ने नालंदा जिले के पावापुरी में अपने प्राण त्यागे थे लेकिन जन्म तो उन्होंने वैशाली में ही लिया था और जैन और बौद्ध धर्मग्रंथ भी तो ऐसा ही मानते हैं। अगर बिहार सरकार या नीतीश कुमार के मन में वैशाली के खिलाफ कोई साजिश चल रही है तो बिहार के हित में उस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगनी चाहिए। वैसे इतिहास साक्षी है कि नीतीश जी के मगध और हमारी वैशाली के बीच लंबे समय तक शत्रुता चलती रही लेकिन उसे समाप्त हुए तो हजारों साल बीत चुके हैं।
मित्रों,अब थोड़ी बात कर लेते हैं बिहार की बिगड़ती कानून-व्यवस्था पर। पिछले दिनों मुख्यमंत्री बिहार जो गृह मंत्री भी हैं ने राजधानी पटना में लगातार कई दिनों तक राज्य के वरीय पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग की। एक मीटिंग से तो उन्होंने कई अधिकारियों को उसी तरह बाहर निकाल दिया जैसे कि अयोग्य शिक्षक कक्षाओं से शरारती बच्चों को निकाल देते हैं। यहाँ तात्पर्य उन शिक्षकों से है जिनको पढ़ाना तो आता नहीं सिर्फ अनुशासन का डंडा फटकारना आता है। कदाचित् नीतीश जी भी बिहार की कानून-व्यवस्था के मामले में कुछ इसी तरह का आडंबरपूर्ण रवैया अख्तियार किए हुए हैं। सारे योग्य अधिकारियों को तो उन्होंने संटिंग में डाल रखा है और जमकर ट्रांस्फर और पोस्टिंग के नाम पर पैसा भी बना रहे हैं। उनकी जिद है कि हम गदहों से ही घोड़ों का काम लेंगे। दूसरी तरफ उनके बड़े भाई लालू प्रसाद जी प्रसिद्ध पुलिस अधिकारी अभयानंद के पीछे पड़े हुए हैं जबकि यह बात किसी से भी छिपी हुई नहीं है कि नीतीश कुमार के सीएम बनने के बाद अभयानंद जी के फार्मूले पर चलने से ही बिहार की कानून-व्यवस्था में सुधार हुआ था। यह बात भी किसी से छिपी हुई नहीं है कि लालू जी को अपने एकछत्र राज के समय से ही अभयानंद,डीएन गौतम और किशोर कुणाल जैसे वर्तमान और अवकाशप्राप्त जिद्दी, ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारियों से चिढ़ है।
मित्रों,ऐसे में सोंचना नीतीश जी को है कि वे बिहार को किस बिहार मॉडल से चलाना चाहते हैं-अपने मॉडल से जिस पर उन्होंने शासन संभालने के आरंभिक वर्षों में अमल किया था या फिर लालू जी के मॉडल से जिस पर चलकर कोई दशकों तक लगातार किसी राज्य को बर्बाद करते हुए भी सत्ता में बना रह सकता है।

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