मित्रों, क्या आप बता सकते हैं कि दुनियाभर में इतिहास क्यों
पढ़ा-पढाया जाता है? इतिहास कोई साहित्य नहीं है जिसका केवल
रसानंद लिया जाए बल्कि इतिहास सबक सीखने के लिए भी है. इतिहास गवाह है कि हमारे
देश पर १३२५ से १३५१ ई. तक मुहम्मद बिन तुगलक नामक व्यक्ति ने शासन किया था. उसने
सांकेतिक मुद्रा सहित कई प्रयोग किए थे लेकिन उनको सही तरीके से लागू न करवा पाने
के चलते बुरी तरह असफल हुआ था.
मित्रों, कई लोग ८ नवम्बर के बाद हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी की तुलना तुगलक से करने लगे हैं. हमने घर बनाने में नकद की कमी से परेशान
रहने के बावजूद पहले भी कहा है कि नोटबंदी अच्छा कदम है लेकिन तभी जब मोदी बैंक
प्रबंधकों पर नियंत्रण कर सकें. दुर्भाग्यवश ऐसा होता दिख नहीं रहा है. कुछेक बैंक
वाले पकडे भी जा रहे हैं लेकिन उनकी संख्या काफी कम है. बैंकवालों ने बड़ी संख्या
में नए फर्जी खाते खोलकर मोदी सरकार की कालेधन के खिलाफ मुहिम को विफल साबित करने
में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है. सरकार को चाहिए कि सारे बैंकों और बैंक अधिकारियों की
जांच की जाए. साथ-ही-साथ आय कर अधिकारियों और जजों की संपत्ति की भी जाँच होनी
चाहिए क्योंकि अंग्रेजी में एक कहावत है हू विल गार्ड द गार्ड.
मित्रों, अभी कुछ दिन पहले हमें अपुष्ट सूत्रों से जानने को मिला कि
भारत के ११०० पंजीकृत राजनैतिक दलों में से ४०० ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा. फिर
इनके गठन का उद्देश्य क्या है? क्या सूचना के अधिकार
से बाहर होने के चलते राजनैतिक दल काले धन को सफ़ेद करने की फैक्ट्री बन गए हैं? सवाल उठता है कि जबकि बांकी सारे दलों की
रैलियां नकद नहीं होने के चलते स्थगित हो गयी हैं भाजपा रैलियों के लिए कहाँ से और
कैसे खर्च कर रही है?
मित्रों, कई लोग सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि
जब सारी नकदी बैंक में आ गयी तो नोटबंदी से लाभ क्या हुआ. मगर वे यह भूल जाते हैं
कि अब सारा पैसा सरकार के पास आ गया है और सरकार के लिए एक-एक खाते की जाँच करना
कोई मुश्किल काम नहीं है जबकि हर घर पर छापा मारना नामुमकिन था.
मित्रों,सारे सवालों के बावजूद कम-से-कम मैं अभी मोदी की तुलना तुगलक से करने की मूर्खता नहीं करूंगा और वेट एंड वाच की नीति का पालन करूंगा.आलेख का अंत मैं एक संस्कृत कहावत से करना चाहूँगा कि अगर कोई राजकीय योजना विफल होती है तो या तो राजा के सलाहकार मूर्ख हैं या फिर राजा अयोग्य.