मित्रों,जब हम दिल्ली में थे तो एक बार 2006 में दिल्ली एम्स में पूर्व विधायक महेंद्र बैठा जी जो मेरे मित्र अजय के पिता हैं के साथ जाने का अवसर मिला था. सुअवसर नहीं बोलूँगा क्योंकि तब उनकी तबीयत बहुत खराब थी. वहाँ की व्यवस्था देखकर मैं दंग था और तभी से सोचने लगा कि ऐसा कोई अस्पताल बिहार में होता तो कितना अच्छा होता.
मित्रों,शायद यही कारण था कि जब ४ साल पहले पटना में एम्स का उद्घाटन हुआ तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था और स्वाभाविक रूप से मेरे मन में पटना एम्स को लेकर कई कल्पनाओं ने जन्म ले लिया. मैं सोचता था कि यहाँ भी दिल्ली एम्स की तरह लाजवाब व्यवस्था होगी और दिल्ली की तरह ही पैरवी लेकर आनेवालों से कहा जाता होगा कि हम राष्ट्रपति की भी नहीं सुनते लाईन में जाइए. और शायद यही कारण था कि जब मेरी पत्नी विजेता की तबियत ख़राब हुई तो मैंने आँख बंद कर पटना एम्स का रूख किया। १७ अप्रैल को हम वहां सुबह-सुबह जा पहुंचे लेकिन तब तक रजिस्ट्रेशन की लाईन हनुमान जी की पूँछ की तरह काफी लम्बी हो चुकी थी. मेरी पत्नी विजेता महिलाओं वाली पंक्ति में खड़ी हो गयी. ८ बजे से १२ बजे तक पंक्ति में खड़े रहने के बाद उसका रजिस्ट्रेशन हुआ और कहा गया कि नई वाली ओपीडी में चली जाए. पता नहीं क्यों वहां रजिस्ट्रेशन के लिए और काउंटर नहीं खोला जाता. शायद वहां के प्रशासक को धक्का-मुक्की अच्छी लगती है. वहां से उसे १०९ नंबर कमरे में जाकर पेशाब जाँच कराने को कहा गया. वहां भी पैसा जमा करने में वही धक्का-मुक्की. जब हम जाँच रिपोर्ट लेकर गए तब लांच ब्रेक हो चुका था. हम काफी खुश थे क्योंकि जाँच रिपोर्ट बता रही थी कि मैं एक बार फिर से बाप बनने जा रहा हूँ. लंच ब्रेक के बाद जब डॉक्टर विराजमान हुई तो एक नया खेल देखने को मिला। लोग जान-पहचानवाले स्टाफ को साथ में लेकर आते और दिखलाकर चले जाते. हमारी कोई पहचान तो है नहीं सो हमारे पास विरोध करने के और नरेंद्र मोदी ऐप पर जाकर शिकायत करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था. किसी तरह से साढ़े ५ बजे विजेता का बुलावा आया. डॉक्टर साहिबा को तब तक घर जाने की जल्दी हो चुकी थी. सो उन्होंने कुछेक जाँच और सिर्फ फोलिक एसिड लिखकर अपनी ड्यूटी पूरी कर ली. उनका भी क्या दोष बांकी के स्टाफ भी तो यही कर रहे थे. हम फिर से १०९ की तरफ भागे. वहां मौजूद स्टाफ को भी शायद घर भागने की जल्दी थी. उसने जाँच के लिए खून तो ले लिया लेकिन यह नहीं बताया कि एक जाँच बच गयी है जिसके लिए खाली पेट आना होगा.
मित्रों,कल होकर मुझे भी अपना खून खाली पेट में जाँच के लिए देना था सो मैं पटना एम्स गया और लौट भी आया. लेकिन अगली बात जब २१ तारीख को पत्नी जाँच रिपोर्ट लेकर डॉक्टर के पास गयी तो डॉक्टर ने बताया कि यह रिपोर्ट अधूरी है क्योंकि एक जाँच होनी तो बांकी ही रह गयी. हमारे पास भिन्नाए मन से घर लौट जाने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था. हम फिर से कल होकर एम्स गए और खून दिया. अंततः वह दिन भी आया जब हम सारी जाँच रिपोर्ट लेकर डॉक्टर के समक्ष उपस्थित हुए. मगर यह क्या डॉक्टर ने एक घटिया कंपनी की मल्टीविटामिन वीटा गोल्ड के सिवा और कुछ लिखा ही नहीं. मैं जानता था कि यह दवा भले ही ए टू जेड से ज्यादा मंहगी थी मगर क्वालिटी में उससे हलकी थी. शायद कमीशन का कोई चक्कर होगा.
मित्रों,अब तक हम एम्स का चक्कर लगाते-२ थक चुके थे. बाईक से ५० किलोमीटर आना और ५० किलोमीटर जाना. जाँच-फाँच में भी पांच-६ हजार की अच्छी-खासी राशि खर्च हो चुकी थी. अब हमने एम्स से तोबा ही कर लिया था. वहां से वापस आते हुए रास्ते में हम सोंच रहे थे कि अगर एम्स में भी यही सब होना था तो पीएमसीएच और आईजीएमएस तो पटना में पहले से था ही. हम सोंच रहे थे कि एम्स किसी बिल्डिंग का नाम है या सोंच का या फिर एक कोरे सपने का? फिर हमने जो दिल्ली एम्स में देखा था वो क्या था?
मित्रों,शायद यही कारण था कि जब ४ साल पहले पटना में एम्स का उद्घाटन हुआ तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था और स्वाभाविक रूप से मेरे मन में पटना एम्स को लेकर कई कल्पनाओं ने जन्म ले लिया. मैं सोचता था कि यहाँ भी दिल्ली एम्स की तरह लाजवाब व्यवस्था होगी और दिल्ली की तरह ही पैरवी लेकर आनेवालों से कहा जाता होगा कि हम राष्ट्रपति की भी नहीं सुनते लाईन में जाइए. और शायद यही कारण था कि जब मेरी पत्नी विजेता की तबियत ख़राब हुई तो मैंने आँख बंद कर पटना एम्स का रूख किया। १७ अप्रैल को हम वहां सुबह-सुबह जा पहुंचे लेकिन तब तक रजिस्ट्रेशन की लाईन हनुमान जी की पूँछ की तरह काफी लम्बी हो चुकी थी. मेरी पत्नी विजेता महिलाओं वाली पंक्ति में खड़ी हो गयी. ८ बजे से १२ बजे तक पंक्ति में खड़े रहने के बाद उसका रजिस्ट्रेशन हुआ और कहा गया कि नई वाली ओपीडी में चली जाए. पता नहीं क्यों वहां रजिस्ट्रेशन के लिए और काउंटर नहीं खोला जाता. शायद वहां के प्रशासक को धक्का-मुक्की अच्छी लगती है. वहां से उसे १०९ नंबर कमरे में जाकर पेशाब जाँच कराने को कहा गया. वहां भी पैसा जमा करने में वही धक्का-मुक्की. जब हम जाँच रिपोर्ट लेकर गए तब लांच ब्रेक हो चुका था. हम काफी खुश थे क्योंकि जाँच रिपोर्ट बता रही थी कि मैं एक बार फिर से बाप बनने जा रहा हूँ. लंच ब्रेक के बाद जब डॉक्टर विराजमान हुई तो एक नया खेल देखने को मिला। लोग जान-पहचानवाले स्टाफ को साथ में लेकर आते और दिखलाकर चले जाते. हमारी कोई पहचान तो है नहीं सो हमारे पास विरोध करने के और नरेंद्र मोदी ऐप पर जाकर शिकायत करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था. किसी तरह से साढ़े ५ बजे विजेता का बुलावा आया. डॉक्टर साहिबा को तब तक घर जाने की जल्दी हो चुकी थी. सो उन्होंने कुछेक जाँच और सिर्फ फोलिक एसिड लिखकर अपनी ड्यूटी पूरी कर ली. उनका भी क्या दोष बांकी के स्टाफ भी तो यही कर रहे थे. हम फिर से १०९ की तरफ भागे. वहां मौजूद स्टाफ को भी शायद घर भागने की जल्दी थी. उसने जाँच के लिए खून तो ले लिया लेकिन यह नहीं बताया कि एक जाँच बच गयी है जिसके लिए खाली पेट आना होगा.
मित्रों,कल होकर मुझे भी अपना खून खाली पेट में जाँच के लिए देना था सो मैं पटना एम्स गया और लौट भी आया. लेकिन अगली बात जब २१ तारीख को पत्नी जाँच रिपोर्ट लेकर डॉक्टर के पास गयी तो डॉक्टर ने बताया कि यह रिपोर्ट अधूरी है क्योंकि एक जाँच होनी तो बांकी ही रह गयी. हमारे पास भिन्नाए मन से घर लौट जाने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था. हम फिर से कल होकर एम्स गए और खून दिया. अंततः वह दिन भी आया जब हम सारी जाँच रिपोर्ट लेकर डॉक्टर के समक्ष उपस्थित हुए. मगर यह क्या डॉक्टर ने एक घटिया कंपनी की मल्टीविटामिन वीटा गोल्ड के सिवा और कुछ लिखा ही नहीं. मैं जानता था कि यह दवा भले ही ए टू जेड से ज्यादा मंहगी थी मगर क्वालिटी में उससे हलकी थी. शायद कमीशन का कोई चक्कर होगा.
मित्रों,अब तक हम एम्स का चक्कर लगाते-२ थक चुके थे. बाईक से ५० किलोमीटर आना और ५० किलोमीटर जाना. जाँच-फाँच में भी पांच-६ हजार की अच्छी-खासी राशि खर्च हो चुकी थी. अब हमने एम्स से तोबा ही कर लिया था. वहां से वापस आते हुए रास्ते में हम सोंच रहे थे कि अगर एम्स में भी यही सब होना था तो पीएमसीएच और आईजीएमएस तो पटना में पहले से था ही. हम सोंच रहे थे कि एम्स किसी बिल्डिंग का नाम है या सोंच का या फिर एक कोरे सपने का? फिर हमने जो दिल्ली एम्स में देखा था वो क्या था?
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