मित्रों, सारी दुनिया जानती है कि आज से ढाई हजार साल पहले सिद्धार्थ गौतम को भारी तपस्या के बाद बोधगया के बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. सारी दुनिया यह भी जानती है कि गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल अर्थात बाधा को घर पर छोड़ कर रात्रि के समय गृहस्थ जीवन से पलायन कर गए थे.
मित्रों, बुद्ध के ढाई हजार साल बाद एक और राहुल भारतभूमि पर अवतरित हुए हैं और इनको भी ज्ञानप्राप्ति की तलाश है. लेकिन इसके लिए ये जंगल नहीं जा रहे बल्कि बार-बार थाईलैंड और यूरोप के चक्कर काट रहे हैं. यहाँ तक कि विदेशी बिगडैल महिलाओं के साथ होटल में कमरा भी साझा करते हैं. ऐसा लगता कि इनको रजनीश के दिए सम्भोग से समाधि के सिद्धांत पर कुछ ज्यादा ही यकीन है.
मित्रों, यह मेरा व्यक्तिगत मत कदापि नहीं है कि इस अबोध बालक के उलटे क्रियाकलाप में इसका किंचित भी दोष नहीं है. दोषी तो इसके लिए आलेख और भाषण लिखनेवाले अथवा इसको सलाह देनेवाले हैं क्योंकि ये बेचारा तो आज से ३०-३५ साल पहले भी सादा स्लेट था और आज भी है. अब आज से कुछ दिन पहले ८ नवम्बर को अख़बारों में प्रकाशित इस चिरबालक के नाम से प्रकाशित आलेख को ही लें जिसमें सिवाय झूठ के और कुछ है ही नहीं. आलेख कहता है मोदी सरकार ने काफी तेज गति से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर दिया है.
मित्रों, जबकि वास्तविक आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि जब अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र के डॉक्टर मनमोहन सिंह के हाथों में थी तब उसकी हालत २०१० के बाद से ही दिन-ब-दिन ख़राब होती जा रही थी. देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर 2012-13 के दौरान तो 4.5 फ़ीसदी रही थी जो कि पिछले एक दशक की सबसे कम थी. इससे पहले विकास दर वर्ष २०१० में ८.९, २०११ में ६.७ प्रतिशत थी. सोनिया-मनमोहन सरकार के अंतिम वर्ष २०१३ में विकास दर हांफती हुई ४.७ प्रतिशत रही थी.
मित्रों, मोदी सरकार के शुभागमन के बाद वित्त वर्ष 2014-15 में देश की विकास दर लम्बी छलांग लगाती हुई 7.2 फीसदी पर पहुँच गयी. फिर 2015-16 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई और वास्तविक प्रति व्यक्ति आय भी 6.2 फीसदी बढ़कर 77,435 रुपए हो गई। २०१६-१७ में विकास दर में हल्की सी गिरावट आई और यह ७.१ प्रतिशत पर रही. मगर ऐसा होना किसी भी प्रकार से अप्रत्याशित नहीं था क्योंकि अर्थव्यवस्था के शुद्धिकरण के लिए की गई नोटबंदी के बाद ऐसा होना अपेक्षित ही था.
मित्रों, अब आप ही बताईए कि राहुल के आलेख में सच का लेश भी है? अर्थव्यवस्था की हालत तो घोटालों के चहुमुखी विकास के चलते उनकी सरकार के समय ही ज्यादा ख़राब थी और मृत्युगामी थी. आश्चर्यजनक तरीके से बाद में और ८ नवम्बर से पहले गुजरात में दिए गए अपने कई भाषणों में भी राहुल ने मोदी सरकार को तेज गति से आगे बढती अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर देने का आरोप लगाया.
मित्रों, चूंकि हम उनको आज भी अबोध बालक समझते हैं इसलिए हमें उनसे कोई गिला-शिकवा नहीं है बल्कि हम तो उस व्यक्ति के परम पवित्र चरणों को ढूंढ रहे हैं जो उनके लिए भाषण और आलेख तैयार करता है. वैसे सोनिया ताई हमारे जैसे अकुलीन की सुननेवाली नहीं हैं फिर भी हम उनसे अनुरोध करना चाहते हैं कि ताई उधार के ज्ञान से न तो कोई बुद्धत्व की प्राप्ति कर पाया है और न ही भविष्य में कर पाएगा बैशाख पूर्णिमा तो हर साल आता है और चला जाता है. फिर काहे उपले में घी लपेट रही हो इस उम्मीद में कि एक दिन उपला रोटी बन जाएगा? हो सकता है कि राहुल गुजरात चुनाव जीत भी जाएं लेकिन इसके लिए उसकी बौद्धिक योग्यता नहीं बल्कि सीधे तौर पर बुद्धिमान गुजरातियों की मूर्खता जिम्मेदार होगी.
मित्रों, बुद्ध के ढाई हजार साल बाद एक और राहुल भारतभूमि पर अवतरित हुए हैं और इनको भी ज्ञानप्राप्ति की तलाश है. लेकिन इसके लिए ये जंगल नहीं जा रहे बल्कि बार-बार थाईलैंड और यूरोप के चक्कर काट रहे हैं. यहाँ तक कि विदेशी बिगडैल महिलाओं के साथ होटल में कमरा भी साझा करते हैं. ऐसा लगता कि इनको रजनीश के दिए सम्भोग से समाधि के सिद्धांत पर कुछ ज्यादा ही यकीन है.
मित्रों, यह मेरा व्यक्तिगत मत कदापि नहीं है कि इस अबोध बालक के उलटे क्रियाकलाप में इसका किंचित भी दोष नहीं है. दोषी तो इसके लिए आलेख और भाषण लिखनेवाले अथवा इसको सलाह देनेवाले हैं क्योंकि ये बेचारा तो आज से ३०-३५ साल पहले भी सादा स्लेट था और आज भी है. अब आज से कुछ दिन पहले ८ नवम्बर को अख़बारों में प्रकाशित इस चिरबालक के नाम से प्रकाशित आलेख को ही लें जिसमें सिवाय झूठ के और कुछ है ही नहीं. आलेख कहता है मोदी सरकार ने काफी तेज गति से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर दिया है.
मित्रों, जबकि वास्तविक आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि जब अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र के डॉक्टर मनमोहन सिंह के हाथों में थी तब उसकी हालत २०१० के बाद से ही दिन-ब-दिन ख़राब होती जा रही थी. देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर 2012-13 के दौरान तो 4.5 फ़ीसदी रही थी जो कि पिछले एक दशक की सबसे कम थी. इससे पहले विकास दर वर्ष २०१० में ८.९, २०११ में ६.७ प्रतिशत थी. सोनिया-मनमोहन सरकार के अंतिम वर्ष २०१३ में विकास दर हांफती हुई ४.७ प्रतिशत रही थी.
मित्रों, मोदी सरकार के शुभागमन के बाद वित्त वर्ष 2014-15 में देश की विकास दर लम्बी छलांग लगाती हुई 7.2 फीसदी पर पहुँच गयी. फिर 2015-16 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई और वास्तविक प्रति व्यक्ति आय भी 6.2 फीसदी बढ़कर 77,435 रुपए हो गई। २०१६-१७ में विकास दर में हल्की सी गिरावट आई और यह ७.१ प्रतिशत पर रही. मगर ऐसा होना किसी भी प्रकार से अप्रत्याशित नहीं था क्योंकि अर्थव्यवस्था के शुद्धिकरण के लिए की गई नोटबंदी के बाद ऐसा होना अपेक्षित ही था.
मित्रों, अब आप ही बताईए कि राहुल के आलेख में सच का लेश भी है? अर्थव्यवस्था की हालत तो घोटालों के चहुमुखी विकास के चलते उनकी सरकार के समय ही ज्यादा ख़राब थी और मृत्युगामी थी. आश्चर्यजनक तरीके से बाद में और ८ नवम्बर से पहले गुजरात में दिए गए अपने कई भाषणों में भी राहुल ने मोदी सरकार को तेज गति से आगे बढती अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर देने का आरोप लगाया.
मित्रों, चूंकि हम उनको आज भी अबोध बालक समझते हैं इसलिए हमें उनसे कोई गिला-शिकवा नहीं है बल्कि हम तो उस व्यक्ति के परम पवित्र चरणों को ढूंढ रहे हैं जो उनके लिए भाषण और आलेख तैयार करता है. वैसे सोनिया ताई हमारे जैसे अकुलीन की सुननेवाली नहीं हैं फिर भी हम उनसे अनुरोध करना चाहते हैं कि ताई उधार के ज्ञान से न तो कोई बुद्धत्व की प्राप्ति कर पाया है और न ही भविष्य में कर पाएगा बैशाख पूर्णिमा तो हर साल आता है और चला जाता है. फिर काहे उपले में घी लपेट रही हो इस उम्मीद में कि एक दिन उपला रोटी बन जाएगा? हो सकता है कि राहुल गुजरात चुनाव जीत भी जाएं लेकिन इसके लिए उसकी बौद्धिक योग्यता नहीं बल्कि सीधे तौर पर बुद्धिमान गुजरातियों की मूर्खता जिम्मेदार होगी.
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