मित्रों, आज साल २०१७ का अंतिम दिन है. समझ में नहीं आता कि इस साल को किस तरह याद करूँ? व्यक्तिगत जीवन की अगर बात करूँ तो ये साल हमारे लिए काफी अच्छा रहा. साल की शुरुआत में हमने अधूरा ही सही घर बनाया. भगवान ने हमें साल के अंत में दिसंबर की सात तारीख को ७ बजकर ७ मिनट पर एक और पुत्र दिया जिसका नाम उसके बड़े भाई भगत सिंह ने कुंवर सिंह रखा. लेकिन हमारा कुछ भी व्यक्तिगत तो होता नहीं है बल्कि हमारा दिल तो देश के लिए धडकता है इसलिए आगे हम बीते हुए साल की व्याख्या देश के सन्दर्भ में करेंगे.
मित्रों, इस साल हमारे देश में सबसे बड़ी घटना हुई जीएसटी लागू होना. इसे हम एक आर्थिक क्रांति का नाम भी दे सकते हैं हालाँकि वर्तमान में इसका अल्पकालिक दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि बहुत जल्दी केंद्र और प्रदेशों की सरकारें मिलकर तात्कालिक मंदी को दूर कर लेंगी और न सिर्फ जीडीपी दहांई के अंकों में दहाडेगी बल्कि तेजी से बढती बेरोजगारी भी घटेगी और भारत २०१८ में एक बार फिर से वर्ष १८१३ से पहले के भारत की तरह दुनिया की फैक्ट्री बन सकेगा.
मित्रों, इस साल में देश में जो दूसरी सबसे बड़ी घटना घटी वो थी तीन तलाक पर प्रतिबन्ध. इसे हम रक्तहीन सामाजिक क्रांति की संज्ञा भी दे सकते हैं. इस क्रांति का नेत्रित्व किया स्वयं मुस्लिम बहनों ने लेकिन उनके पीछे चट्टान की तरह खड़ी दिखी केंद्र सरकार. पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्वाधीनता दिवस के ठीक एक सप्ताह बाद इसे प्रतिबंधित कर दिया और करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को डेढ़ हजार साल की लैंगिक गुलामी से आजादी दे दी . परन्तु फिर भी जब तीन तलाक जारी रहा तब केंद्र सरकार ने दो कदम आगे बढ़कर संसद में तत्सम्बन्धी नया कानून पेश किया. कानून लोकसभा से ध्वनिमत से पारित भी हो चुका है, उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल में राज्यसभा से पारित होने के बाद लागू भी हो जाएगा. गौरतलब है कि नए कानून में तीन तलाक को गैरजमानती अपराध बना दिया गया है और इसके लिए शौहर को ३ साल की जेल हो सकती है.
मित्रों, मुस्लिम पारिवारिक और विवाह कानून में बदलाव करने की हिम्मत आज तक न तो अंग्रेजों ने की थी और न ही पिछले ७० सालों में आनेवाली सरकारों ने. अब अगर लगे हाथों जनसंख्या स्थिरीकरण की दिशा में भी कोई कानून आ जाता है तो भारत को महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता.
मित्रों, इस साल भी नरेन्द्र मोदी अपराजेय बने रहे. गोवा और मणिपुर में यद्यपि भाजपा को बहुमत नहीं मिला फिर भी अमित शाह ने अनहोनी को होनी में बदलते हुए भाजपा की सरकार बनवा दी तथापि देश के यशस्वी रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर को फिर से गोवा भेजना पड़ा. उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से मोदी लहर चली और राजग गठबंधन ने ४०३ में से ३२५ सीटें जीत लीं और रामजी जी की कृपा से योगी सरकार अच्छा काम भी कर रही है. पंजाब,उत्तराखंड और हिमाचल में हर बार सत्ता बदली की परम्परानुसार सत्ताविरोधी लहर चली. पंजाब में भाजपा को झटका लगा तो वहीँ उत्तराखंड में उसने सरकार बनाई.
मित्रों, सबसे आश्चर्यजनक राजनैतिक बदलाव देखने को मिला बिहार में. नीतीश कुमार ने लालू परिवार को झटका देते हुए एक बार फिर से भाजपा का हाथ थाम लिया. हालाँकि अभी तक बिहार में कुव्यवस्था और कुशासन का दौर ही जारी है और न जाने नीतीश कुमार जी किस बात और किस तरह की समीक्षा के लिए एक बार फिर से यात्रा पर निकले हुए हैं. इससे तो अच्छा होता कि वे एक बार पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल की औचक यात्रा कर लेते. चिराग तले ही अँधेरा है, बालू पर रोक के चलते लाखों ट्रक मालिक और करोड़ों मजदूर भुखमरी को मजबूर हैं और नीतीश सुशासन का बुझा हुआ दीपक लेकर घूम रहे हैं चंपारण और जमुई में.
मित्रों, साल का अंत हुआ गुजरात और हिमाचल के बहुचर्चित चुनावों से. हिमाचल की बात हम पहले ही कर चुके है. गुजरात में इस बार कांग्रेस ने बिहार वाला कुत्सित फार्मूला अपनाया जिससे भाजपा को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. ईधर भाजपा का हिन्दू वोट बैंक बंट गया तो उधर सारी जातिवादी और सांप्रदायिक शक्तियां कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हो गईं. कांग्रेस ने अपनी रणनीति में मौलिक परिवर्तन करते हुए यहाँ सॉफ्ट हिन्दू कार्ड खेला जिसका उसे लाभ भी मिला तथापि देखना है कि कांग्रेस कब तक अपने नए रूख पर कायम रहती है और कब तक फिर से भगवा आतंकवाद के अपने हिंदूविरोधी एजेंडे पर नहीं जाती है. राहुल की ताजपोशी को मैंने बहुत बड़ी घटना नहीं मानता. अंतर बस इतना आया है कि पहले बेटा छुट्टी पर जाता था अब माँ जा रही है. हालाँकि गुजरात में भाजपा जीत गई है लेकिन उसके कमजोर होने का असर अब भी दिख रहा है क्योंकि उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल अभी से ही आँखें दिखाने लगे हैं. आगे क्या होगा रामजी ही जानें.
मित्रों, बीते साल में अदालतों की निरंकुशता जारी रही. जिसको जी चाहा छोड़ दिया जिसको जी चाहा जेल भेज दिया. उच्च न्यायालय के एक जज ने तो घनघोर क्रांतिकारिता दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ ही अवमानना का मुकदमा चलाने का आदेश दे दिया. श्रीमान ६ महीने की सजा काटकर बाहर आए हैं. देश की जनता २०१७ में भी न्यायिक सुधार की प्रतीक्षा करती रही लेकिन निराशा ही हाथ लगी. कोलेजियम सिस्टम को लेकर भी गतिरोध बना रहा अलबत्ता राममंदिर की रोजाना सुनवाई का रास्ता जरूर साफ़ हो गया है.
मित्रों, कूटनीति के परिपेक्ष्य में भारत ने चीनी सेना को डोकलाम में पीछे हटने के लिए बाध्य करके अभूतपूर्व सफलता पाई. ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान माल पहुंचाकर भारत ने एक मील का पत्थर स्थापित किया. साल के मध्य में प्रधानमंत्री ने इजराईल की यात्रा की जिससे भारत की सामरिक शक्ति में अकूत वृद्धि का मार्ग खुला. ऐसा करनेवाले वे भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं. साल के अंत में येरुसलम के सवाल पर भारत ने यूएनओ में इजराईल के खिलाफ वोट दिया लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि इसका दोनों देशों के संबंधों पर बुरा असर नहीं पड़ेगा. तथापि फिलिस्तीन के राजदूत ने हाफिज सईद के साथ खड़े होकर भारत सरकार की फिलिस्तीन नीति पर सवालिया निशान जरूर लगा दिया है. श्रीलंका ने हम्बनतोता बंदरगाह चीन के हवाले करके भारत को करारा झटका दिया तो वहीँ मालदीव भी चीन के नजदीक जाता दिखा. रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या ने भी भारत के सामने नई चुनौतियाँ पेश की. देखना है कि भारत सरकार इससे कैसे निबटती है. कुलभूषण जाधव की रिहाई बीते साल भी नहीं हो पाई और पाकिस्तानी गोलीबारी में रोजाना जवान कालकवलित होते रहे. नए साल में देखना है कि भारत सरकार चीन और पाकिस्तान से कैसे निबटती है.
मित्रों, आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर गत वर्ष सुधार हुआ और नक्सली हमले में प्रभावी कमी आई. कश्मीर में दो सौ से ज्यादा आतंकियों को जहन्नुम का रास्ता दिखाया गया और स्थिति ऐसी भी आई कि कोई जैस और लश्कर का कमांडर बनने को ही तैयार नहीं था.
मित्रों, कुल मिलाकर देश के लिए भी २०१७ अच्छा रहा यद्यपि अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक बनी रही और बेरोजगारी घटने के बजाए बढ़ी. लगा जैसे जीएसटी लागू करने से पहले भी सरकार ने नोटबंदी की तरह ही पूरी तैयारी नहीं की थी. जहाँ तक साल २०१८ का सवाल है तो यह साल मोदी सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण रहनेवाला है क्योंकि २०१९ के लोकसभा चुनाव में जनता का जो भी निर्णय होगा वो केंद्र और १९ राज्यों में सत्तासीन भाजपा सरकारों के आगामी वर्ष में प्रदर्शन पर निर्भर करेगा. आशा करनी चाहिए कि नए साल में जो भी होगा देश और देशवासियों के लिए अच्छा ही होगा क्योंकि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है.
मित्रों, इस साल हमारे देश में सबसे बड़ी घटना हुई जीएसटी लागू होना. इसे हम एक आर्थिक क्रांति का नाम भी दे सकते हैं हालाँकि वर्तमान में इसका अल्पकालिक दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि बहुत जल्दी केंद्र और प्रदेशों की सरकारें मिलकर तात्कालिक मंदी को दूर कर लेंगी और न सिर्फ जीडीपी दहांई के अंकों में दहाडेगी बल्कि तेजी से बढती बेरोजगारी भी घटेगी और भारत २०१८ में एक बार फिर से वर्ष १८१३ से पहले के भारत की तरह दुनिया की फैक्ट्री बन सकेगा.
मित्रों, इस साल में देश में जो दूसरी सबसे बड़ी घटना घटी वो थी तीन तलाक पर प्रतिबन्ध. इसे हम रक्तहीन सामाजिक क्रांति की संज्ञा भी दे सकते हैं. इस क्रांति का नेत्रित्व किया स्वयं मुस्लिम बहनों ने लेकिन उनके पीछे चट्टान की तरह खड़ी दिखी केंद्र सरकार. पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्वाधीनता दिवस के ठीक एक सप्ताह बाद इसे प्रतिबंधित कर दिया और करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को डेढ़ हजार साल की लैंगिक गुलामी से आजादी दे दी . परन्तु फिर भी जब तीन तलाक जारी रहा तब केंद्र सरकार ने दो कदम आगे बढ़कर संसद में तत्सम्बन्धी नया कानून पेश किया. कानून लोकसभा से ध्वनिमत से पारित भी हो चुका है, उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल में राज्यसभा से पारित होने के बाद लागू भी हो जाएगा. गौरतलब है कि नए कानून में तीन तलाक को गैरजमानती अपराध बना दिया गया है और इसके लिए शौहर को ३ साल की जेल हो सकती है.
मित्रों, मुस्लिम पारिवारिक और विवाह कानून में बदलाव करने की हिम्मत आज तक न तो अंग्रेजों ने की थी और न ही पिछले ७० सालों में आनेवाली सरकारों ने. अब अगर लगे हाथों जनसंख्या स्थिरीकरण की दिशा में भी कोई कानून आ जाता है तो भारत को महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता.
मित्रों, इस साल भी नरेन्द्र मोदी अपराजेय बने रहे. गोवा और मणिपुर में यद्यपि भाजपा को बहुमत नहीं मिला फिर भी अमित शाह ने अनहोनी को होनी में बदलते हुए भाजपा की सरकार बनवा दी तथापि देश के यशस्वी रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर को फिर से गोवा भेजना पड़ा. उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से मोदी लहर चली और राजग गठबंधन ने ४०३ में से ३२५ सीटें जीत लीं और रामजी जी की कृपा से योगी सरकार अच्छा काम भी कर रही है. पंजाब,उत्तराखंड और हिमाचल में हर बार सत्ता बदली की परम्परानुसार सत्ताविरोधी लहर चली. पंजाब में भाजपा को झटका लगा तो वहीँ उत्तराखंड में उसने सरकार बनाई.
मित्रों, सबसे आश्चर्यजनक राजनैतिक बदलाव देखने को मिला बिहार में. नीतीश कुमार ने लालू परिवार को झटका देते हुए एक बार फिर से भाजपा का हाथ थाम लिया. हालाँकि अभी तक बिहार में कुव्यवस्था और कुशासन का दौर ही जारी है और न जाने नीतीश कुमार जी किस बात और किस तरह की समीक्षा के लिए एक बार फिर से यात्रा पर निकले हुए हैं. इससे तो अच्छा होता कि वे एक बार पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल की औचक यात्रा कर लेते. चिराग तले ही अँधेरा है, बालू पर रोक के चलते लाखों ट्रक मालिक और करोड़ों मजदूर भुखमरी को मजबूर हैं और नीतीश सुशासन का बुझा हुआ दीपक लेकर घूम रहे हैं चंपारण और जमुई में.
मित्रों, साल का अंत हुआ गुजरात और हिमाचल के बहुचर्चित चुनावों से. हिमाचल की बात हम पहले ही कर चुके है. गुजरात में इस बार कांग्रेस ने बिहार वाला कुत्सित फार्मूला अपनाया जिससे भाजपा को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. ईधर भाजपा का हिन्दू वोट बैंक बंट गया तो उधर सारी जातिवादी और सांप्रदायिक शक्तियां कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हो गईं. कांग्रेस ने अपनी रणनीति में मौलिक परिवर्तन करते हुए यहाँ सॉफ्ट हिन्दू कार्ड खेला जिसका उसे लाभ भी मिला तथापि देखना है कि कांग्रेस कब तक अपने नए रूख पर कायम रहती है और कब तक फिर से भगवा आतंकवाद के अपने हिंदूविरोधी एजेंडे पर नहीं जाती है. राहुल की ताजपोशी को मैंने बहुत बड़ी घटना नहीं मानता. अंतर बस इतना आया है कि पहले बेटा छुट्टी पर जाता था अब माँ जा रही है. हालाँकि गुजरात में भाजपा जीत गई है लेकिन उसके कमजोर होने का असर अब भी दिख रहा है क्योंकि उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल अभी से ही आँखें दिखाने लगे हैं. आगे क्या होगा रामजी ही जानें.
मित्रों, बीते साल में अदालतों की निरंकुशता जारी रही. जिसको जी चाहा छोड़ दिया जिसको जी चाहा जेल भेज दिया. उच्च न्यायालय के एक जज ने तो घनघोर क्रांतिकारिता दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ ही अवमानना का मुकदमा चलाने का आदेश दे दिया. श्रीमान ६ महीने की सजा काटकर बाहर आए हैं. देश की जनता २०१७ में भी न्यायिक सुधार की प्रतीक्षा करती रही लेकिन निराशा ही हाथ लगी. कोलेजियम सिस्टम को लेकर भी गतिरोध बना रहा अलबत्ता राममंदिर की रोजाना सुनवाई का रास्ता जरूर साफ़ हो गया है.
मित्रों, कूटनीति के परिपेक्ष्य में भारत ने चीनी सेना को डोकलाम में पीछे हटने के लिए बाध्य करके अभूतपूर्व सफलता पाई. ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान माल पहुंचाकर भारत ने एक मील का पत्थर स्थापित किया. साल के मध्य में प्रधानमंत्री ने इजराईल की यात्रा की जिससे भारत की सामरिक शक्ति में अकूत वृद्धि का मार्ग खुला. ऐसा करनेवाले वे भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं. साल के अंत में येरुसलम के सवाल पर भारत ने यूएनओ में इजराईल के खिलाफ वोट दिया लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि इसका दोनों देशों के संबंधों पर बुरा असर नहीं पड़ेगा. तथापि फिलिस्तीन के राजदूत ने हाफिज सईद के साथ खड़े होकर भारत सरकार की फिलिस्तीन नीति पर सवालिया निशान जरूर लगा दिया है. श्रीलंका ने हम्बनतोता बंदरगाह चीन के हवाले करके भारत को करारा झटका दिया तो वहीँ मालदीव भी चीन के नजदीक जाता दिखा. रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या ने भी भारत के सामने नई चुनौतियाँ पेश की. देखना है कि भारत सरकार इससे कैसे निबटती है. कुलभूषण जाधव की रिहाई बीते साल भी नहीं हो पाई और पाकिस्तानी गोलीबारी में रोजाना जवान कालकवलित होते रहे. नए साल में देखना है कि भारत सरकार चीन और पाकिस्तान से कैसे निबटती है.
मित्रों, आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर गत वर्ष सुधार हुआ और नक्सली हमले में प्रभावी कमी आई. कश्मीर में दो सौ से ज्यादा आतंकियों को जहन्नुम का रास्ता दिखाया गया और स्थिति ऐसी भी आई कि कोई जैस और लश्कर का कमांडर बनने को ही तैयार नहीं था.
मित्रों, कुल मिलाकर देश के लिए भी २०१७ अच्छा रहा यद्यपि अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक बनी रही और बेरोजगारी घटने के बजाए बढ़ी. लगा जैसे जीएसटी लागू करने से पहले भी सरकार ने नोटबंदी की तरह ही पूरी तैयारी नहीं की थी. जहाँ तक साल २०१८ का सवाल है तो यह साल मोदी सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण रहनेवाला है क्योंकि २०१९ के लोकसभा चुनाव में जनता का जो भी निर्णय होगा वो केंद्र और १९ राज्यों में सत्तासीन भाजपा सरकारों के आगामी वर्ष में प्रदर्शन पर निर्भर करेगा. आशा करनी चाहिए कि नए साल में जो भी होगा देश और देशवासियों के लिए अच्छा ही होगा क्योंकि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है.