मित्रों, रामचरितमानस में एक प्रसंग है. भक्तराज हनुमान माता सीता की खोज में लंका जाते है. माता सीता से भेंट होने के बाद हनुमान भूख मिटाने के लिए पास के बगीचे से फल तोड़कर खाने लगते हैं. लेकिन उनका ऐसा करना राक्षसों को नागवार गुजरता है. फिर युद्ध होता है और अंततः हनुमान को बंदी बनाकर राक्षसराज रावण के दरबार में पेश किया जाता है. तब हनुमान रावण से पूछते हैं कि उनको किस अपराध में बंदी बनाया गया है. क्योंकि भूख लगने पर भूख मिटाने के लिए की गई चोरी अपराध नहीं होता क्योंकि अपनी जान की रक्षा करना हर प्राणी का कर्त्तव्य होता है.
मित्रों, इसी तरह का एक प्रसंग महाभारत में भी है जब रंतिदेव नामक एक ब्राह्मण का परिवार जो कई दिनों से भूखा होता है एक भिक्षुक की जठराग्नि को बुझाने के लिए अपना भोजन दान कर देता है और खुद दम तोड़ देता है. इसी प्रकार राजा शिवि द्वारा एक कबूतर की प्राणरक्षा के लिए अपना मांस अपने हाथों से काट-काटकर बाज को खिला देने का इसी महाकाव्य का प्रसंग भी हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं.
मित्रों, फिर उसी भारत में अगर किसी भूखे, लाचार गरीब को एक किलो चावल चुराने के चलते बेरहमी से पीट-पीट मनोरंजन के तौर पर मार दिया जाए तो इससे बुरा और क्या होगा. क्या आज के भारत में रामायण काल के राक्षसों का राज है? हाँ, हुज़ूर मैं बात कर रहा हूँ सर्वहारा पार्टी द्वारा शासित केरल में घटी घटना की जहाँ मधु नाम के एक गरीब आदिवासी की हत्या कर उनकी गरीबी और अभाव से भरे जीवन का भी अंत कर दिया गया है. शायद सर्वहारा के पैरोकार दल ने गरीबी मिटाने का यह नया तरीका ढूंढ निकाला है. क्या तरीका है! गजब!! अनोखा!!! जब गरीब ही नहीं रहेंगे तो गरीबी कहाँ से रहेगी, जब भूखे ही नहीं रहेंगे तो भूख कहाँ रहेगी? वैसे आश्चर्य है कि मार्क्स इस तरीके की खोज क्यों और कैसे खोज नहीं पाए?
मित्रों, आश्चर्य तो इस बात को लेकर भी है कि अभी तक किसी भी अतिसंवेदनशील ने अपने पुरस्कार वापस नहीं किए? करेंगे भी कैसे मधु ने कोई गाय की हत्या थोड़े ही की थी? चावल चुरानेवाले तो इन्सान होते ही नहीं हैं इन्सान तो गोहत्या करनेवाले होते हैं, मुम्बई में बम फोड़नेवाले होते हैं. यह बात अलग है कि मुझे आज तक कोई पुरस्कार दिया नहीं गया है वर्ना मैं कब का वापस कर चुका होता शायद तभी जब केरल में पहले आरएसएस प्रचारक की बेवजह नृशंस हत्या हुई थी.
मित्रों, इसी तरह से बंगाल में हिन्दू विद्यालयों पर रोक लगा दी गई है लेकिन फिर भी कोई असहिष्णुता नहीं फैली क्योंकि हिन्दू तो आदमी होते ही नहीं. हद तो यह है कि केंद्र की मोदी सरकार चुपचाप इस तरह की घटनाओं को मूकदर्शक बनी आँखें फाडे देखे जा रही है. क्या यही है उसका रामराज्य? उनके आदर्श राम ने तो सत्ता सँभालते ही घोषणा की थी कि निशिचरहीन करौं महि हथ उठाए पण कीन्ह. राम ने तो हर अन्याय का प्रतिकार किया. जब सत्ता में नहीं थे तब भी रावण जैसे सर्वशक्तिशाली से युद्ध किया. तो क्या आज की भाजपा के लिए राम भी सिर्फ एक वोटबैंक हैं? उनके आदर्शों का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं है? तो क्या इसी तरह मधु रोटी के लिए मारे जाते रहेंगे? अगर यही सब होना था तो क्या लाभ है भाजपा के केंद्र और १८ राज्यों में सत्ता में होने से? क्या लाभ है???
मित्रों, इसी तरह का एक प्रसंग महाभारत में भी है जब रंतिदेव नामक एक ब्राह्मण का परिवार जो कई दिनों से भूखा होता है एक भिक्षुक की जठराग्नि को बुझाने के लिए अपना भोजन दान कर देता है और खुद दम तोड़ देता है. इसी प्रकार राजा शिवि द्वारा एक कबूतर की प्राणरक्षा के लिए अपना मांस अपने हाथों से काट-काटकर बाज को खिला देने का इसी महाकाव्य का प्रसंग भी हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं.
मित्रों, फिर उसी भारत में अगर किसी भूखे, लाचार गरीब को एक किलो चावल चुराने के चलते बेरहमी से पीट-पीट मनोरंजन के तौर पर मार दिया जाए तो इससे बुरा और क्या होगा. क्या आज के भारत में रामायण काल के राक्षसों का राज है? हाँ, हुज़ूर मैं बात कर रहा हूँ सर्वहारा पार्टी द्वारा शासित केरल में घटी घटना की जहाँ मधु नाम के एक गरीब आदिवासी की हत्या कर उनकी गरीबी और अभाव से भरे जीवन का भी अंत कर दिया गया है. शायद सर्वहारा के पैरोकार दल ने गरीबी मिटाने का यह नया तरीका ढूंढ निकाला है. क्या तरीका है! गजब!! अनोखा!!! जब गरीब ही नहीं रहेंगे तो गरीबी कहाँ से रहेगी, जब भूखे ही नहीं रहेंगे तो भूख कहाँ रहेगी? वैसे आश्चर्य है कि मार्क्स इस तरीके की खोज क्यों और कैसे खोज नहीं पाए?
मित्रों, आश्चर्य तो इस बात को लेकर भी है कि अभी तक किसी भी अतिसंवेदनशील ने अपने पुरस्कार वापस नहीं किए? करेंगे भी कैसे मधु ने कोई गाय की हत्या थोड़े ही की थी? चावल चुरानेवाले तो इन्सान होते ही नहीं हैं इन्सान तो गोहत्या करनेवाले होते हैं, मुम्बई में बम फोड़नेवाले होते हैं. यह बात अलग है कि मुझे आज तक कोई पुरस्कार दिया नहीं गया है वर्ना मैं कब का वापस कर चुका होता शायद तभी जब केरल में पहले आरएसएस प्रचारक की बेवजह नृशंस हत्या हुई थी.
मित्रों, इसी तरह से बंगाल में हिन्दू विद्यालयों पर रोक लगा दी गई है लेकिन फिर भी कोई असहिष्णुता नहीं फैली क्योंकि हिन्दू तो आदमी होते ही नहीं. हद तो यह है कि केंद्र की मोदी सरकार चुपचाप इस तरह की घटनाओं को मूकदर्शक बनी आँखें फाडे देखे जा रही है. क्या यही है उसका रामराज्य? उनके आदर्श राम ने तो सत्ता सँभालते ही घोषणा की थी कि निशिचरहीन करौं महि हथ उठाए पण कीन्ह. राम ने तो हर अन्याय का प्रतिकार किया. जब सत्ता में नहीं थे तब भी रावण जैसे सर्वशक्तिशाली से युद्ध किया. तो क्या आज की भाजपा के लिए राम भी सिर्फ एक वोटबैंक हैं? उनके आदर्शों का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं है? तो क्या इसी तरह मधु रोटी के लिए मारे जाते रहेंगे? अगर यही सब होना था तो क्या लाभ है भाजपा के केंद्र और १८ राज्यों में सत्ता में होने से? क्या लाभ है???