मित्रों, यह हमारे लिए अतिशय गौरव का विषय है कि हम २१वीं में जी रहे हैं. मानवता चाँद पर तो पिछली सदी में ही पहुँच गया था अब वो मंगल पर जाने की तैयारी में है. लेकिन यह हमारे लिए अतिशय शर्म का विषय है कि हमारा समाज आज भी जातिभेद के दुष्चक्र से निकला नहीं है. हमें आए दिन ऐसी ख़बरें पढ़ने को मिलती हैं जिनमें इस तरह की घोर निंदनीय घटनाओं का जिक्र होता है-जैसे, बड़ी जाति के लोगों ने दलित दूल्हे को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया, दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार इत्यादि.
मित्रों, यह गंभीरतापूर्वक सोंचने का समय है कि हम अपने समाज को कहाँ ले जाना चाहते हैं? अस्पृश्यता या जातिभेद न केवल क़ानूनन अपराध है वरन मानवता के प्रति भी अक्षम्य अपराध है फिर जबकि साक्षरता का स्तर ७५ प्रतिशत को पार कर चुका है हमारा मानसिक स्तर इतना निम्न क्यों है?
मित्रों, हद तो तब हो गई जब जगन्नाथपुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में भारत के राष्ट्रपति के साथ बदतमीजी की गई. धक्का मारा गया और कोहनी मारी गयी. मैं सच्चाई नहीं जानता कि ऐसा करने के पीछे पंडे की क्या मंशा थी लेकिन अगर ऐसा इस कारण से किया गया क्योंकि वे दलित हैं तो फिर इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम है. वैसे इस बात की सम्भावना कम ही दिखती है क्योंकि मेरे कई दलित मित्र पुरी जा चुके हैं और उनसे उनकी जाति नहीं पूछी गई. हालाँकिपंडों की रंगदारी मैं स्वयं अपनी आँखों से काशी और देवघर में देख चुका हूँ.
मित्रों, राष्ट्रपति का पद देश का सर्वोच्च पद होता है और पूरे देश का प्रतिनिधि होता है इसलिए उनका अपमान भारत का अपमान है, भारत की सवा सौ करोड़ जनता का अपमान है. सवाल यह भी उठता है कि क्या राष्ट्रपति की सुरक्षा-व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त है? अगर हाँ तो फिर यह घटना कैसे घट गई? अगर नहीं तो नहीं क्यों?
मित्रों, मेरा हमेशा से ऐसा मानना रहा है कि न तो कोई नीच है और न हो कोई महान है क्योंकि सब एक ही तरीके से जन्म लेते हैं. फिर अगर कोई ठाकुर यानि मेरी जाति का व्यक्ति घोड़ी पर चढ़ सकता है तो दलित क्यों नहीं चढ़ सकता? कई बार दलित महिलाओं को गरीबी के कारण दूसरों के खेतों में काम करना पड़ता है जिसका मालिक लोग नाजायज फायदा उठाते हैं जबकि ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए और उनको सोंचना चाहिए कि अगर ऐसा कुकर्म उनकी बहू-बेटियों के साथ हो तो उन पर क्या बीतेगी? इस दुनिया में मेरी नज़र में अगर कोई सबसे बड़ा पाप है तो वो है दूसरों की मजबूरियों का फायदा उठाना. वैसे मैं चाहता हूँ कि बलात्कारियों को जितनी क्रूर सजा दी जा सकती है दी जानी चाहिए और अच्छा हो कि उनको बीच चौराहे पर मृत्युदंड दिया जाए.
मित्रों, आज मुझे एक और खबर ने व्यथित कर दिया है. वो है भारत के प्रधानमंत्री द्वारा लोकतंत्र अमर रहे का नारा लगाना और लगवाना. क्या प्रधानमंत्री मोदी मानते हैं कि भारत में लोकतंत्र मर चुका है क्योंकि अमर रहे का नारा तो दिवंगत के लिए लगाया जाता है? या फिर हमारे प्रधानमंत्री को इतनी छोटी-सी बात का भी ज्ञान नहीं है? जब प्रधानमंत्री इस तरह की गलतियाँ करते हैं तो हमें खुद पर शर्म आती है कि हमने किसे चुन लिया. हमें नहीं चाहिए चौबीसों घंटे जागने वाला प्रधानमंत्री बल्कि हमें ऐसा प्रधानमंत्री चाहिए जो ज्ञानी,समझदार,ईमानदार और वास्तव में देश को अपना सबकुछ माननेवाला देशभक्त हो. जो मदारी की तरह लच्छेदार बातें भले ही न करे वादे पूरे करे. जो अपने मन की बात भी भले ही न सुनाए बल्कि जनता के मन की बात सुने. और प्रत्येक कदम पूरी तैयारी करने के बाद, पूरी तरह से सोंच-समझकर उठाए. जो अपनी उपलब्धियां गिनाए न कि विपक्ष की कमजोरियाँ, यानि वास्तव में सकारात्मक सोंच वाला हो. जो जितना पढ़ा हो उतने का ही दावा करे और ताल ठोंक कर करे. जो हवाई यात्रा पर जाते समय सबके साथ सीढियों पर चढ़ता हुआ नजर आए न कि अकेले जैसे पूरी विदेश नीति वो बिना सचिवों, उच्चायुक्तों और मंत्री के खुद अकेले ही चलाता हो.
मित्रों, एक समय हमने २०१४ के चुनाव परिणामों की तुलना फ़्रांस की राज्यक्रांति से की थी लेकिन यह नहीं बताया था कि फ़्रांस में क्रांति के नाम पर लाखों लोगों को सूली पर चढ़ा दिया गया था और भयंकर अत्याचार किए गए थे. एक तरह का भयानक आतंकराज रॉबस्पियर के नेतृत्व में स्थापित कर दिया गया था. खैर वर्तमान भारत तो क्या फ़्रांस में भी ऐसा संभव नहीं है तथापि समझ में नहीं आता कि हमसे गलती हुई तो कहाँ हुई? समझ में तो आज भी नहीं आता कि हमारे समक्ष सबसे अच्छा विकल्प क्या है. तमाम निराशाओं के बीच हमारे लिए सबसे बड़े सौभाग्य की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री द्वारा लोकतंत्र अमर रहे का नारा लगाने के बावजूद भारत में लोकतंत्र जिंदा है भले ही हमारे देश में वो मूर्खों का, मूर्खों द्वारा, मूर्खों के लिए शासन बनकर रह गया हो.
मित्रों, यह गंभीरतापूर्वक सोंचने का समय है कि हम अपने समाज को कहाँ ले जाना चाहते हैं? अस्पृश्यता या जातिभेद न केवल क़ानूनन अपराध है वरन मानवता के प्रति भी अक्षम्य अपराध है फिर जबकि साक्षरता का स्तर ७५ प्रतिशत को पार कर चुका है हमारा मानसिक स्तर इतना निम्न क्यों है?
मित्रों, हद तो तब हो गई जब जगन्नाथपुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में भारत के राष्ट्रपति के साथ बदतमीजी की गई. धक्का मारा गया और कोहनी मारी गयी. मैं सच्चाई नहीं जानता कि ऐसा करने के पीछे पंडे की क्या मंशा थी लेकिन अगर ऐसा इस कारण से किया गया क्योंकि वे दलित हैं तो फिर इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम है. वैसे इस बात की सम्भावना कम ही दिखती है क्योंकि मेरे कई दलित मित्र पुरी जा चुके हैं और उनसे उनकी जाति नहीं पूछी गई. हालाँकिपंडों की रंगदारी मैं स्वयं अपनी आँखों से काशी और देवघर में देख चुका हूँ.
मित्रों, राष्ट्रपति का पद देश का सर्वोच्च पद होता है और पूरे देश का प्रतिनिधि होता है इसलिए उनका अपमान भारत का अपमान है, भारत की सवा सौ करोड़ जनता का अपमान है. सवाल यह भी उठता है कि क्या राष्ट्रपति की सुरक्षा-व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त है? अगर हाँ तो फिर यह घटना कैसे घट गई? अगर नहीं तो नहीं क्यों?
मित्रों, मेरा हमेशा से ऐसा मानना रहा है कि न तो कोई नीच है और न हो कोई महान है क्योंकि सब एक ही तरीके से जन्म लेते हैं. फिर अगर कोई ठाकुर यानि मेरी जाति का व्यक्ति घोड़ी पर चढ़ सकता है तो दलित क्यों नहीं चढ़ सकता? कई बार दलित महिलाओं को गरीबी के कारण दूसरों के खेतों में काम करना पड़ता है जिसका मालिक लोग नाजायज फायदा उठाते हैं जबकि ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए और उनको सोंचना चाहिए कि अगर ऐसा कुकर्म उनकी बहू-बेटियों के साथ हो तो उन पर क्या बीतेगी? इस दुनिया में मेरी नज़र में अगर कोई सबसे बड़ा पाप है तो वो है दूसरों की मजबूरियों का फायदा उठाना. वैसे मैं चाहता हूँ कि बलात्कारियों को जितनी क्रूर सजा दी जा सकती है दी जानी चाहिए और अच्छा हो कि उनको बीच चौराहे पर मृत्युदंड दिया जाए.
मित्रों, आज मुझे एक और खबर ने व्यथित कर दिया है. वो है भारत के प्रधानमंत्री द्वारा लोकतंत्र अमर रहे का नारा लगाना और लगवाना. क्या प्रधानमंत्री मोदी मानते हैं कि भारत में लोकतंत्र मर चुका है क्योंकि अमर रहे का नारा तो दिवंगत के लिए लगाया जाता है? या फिर हमारे प्रधानमंत्री को इतनी छोटी-सी बात का भी ज्ञान नहीं है? जब प्रधानमंत्री इस तरह की गलतियाँ करते हैं तो हमें खुद पर शर्म आती है कि हमने किसे चुन लिया. हमें नहीं चाहिए चौबीसों घंटे जागने वाला प्रधानमंत्री बल्कि हमें ऐसा प्रधानमंत्री चाहिए जो ज्ञानी,समझदार,ईमानदार और वास्तव में देश को अपना सबकुछ माननेवाला देशभक्त हो. जो मदारी की तरह लच्छेदार बातें भले ही न करे वादे पूरे करे. जो अपने मन की बात भी भले ही न सुनाए बल्कि जनता के मन की बात सुने. और प्रत्येक कदम पूरी तैयारी करने के बाद, पूरी तरह से सोंच-समझकर उठाए. जो अपनी उपलब्धियां गिनाए न कि विपक्ष की कमजोरियाँ, यानि वास्तव में सकारात्मक सोंच वाला हो. जो जितना पढ़ा हो उतने का ही दावा करे और ताल ठोंक कर करे. जो हवाई यात्रा पर जाते समय सबके साथ सीढियों पर चढ़ता हुआ नजर आए न कि अकेले जैसे पूरी विदेश नीति वो बिना सचिवों, उच्चायुक्तों और मंत्री के खुद अकेले ही चलाता हो.
मित्रों, एक समय हमने २०१४ के चुनाव परिणामों की तुलना फ़्रांस की राज्यक्रांति से की थी लेकिन यह नहीं बताया था कि फ़्रांस में क्रांति के नाम पर लाखों लोगों को सूली पर चढ़ा दिया गया था और भयंकर अत्याचार किए गए थे. एक तरह का भयानक आतंकराज रॉबस्पियर के नेतृत्व में स्थापित कर दिया गया था. खैर वर्तमान भारत तो क्या फ़्रांस में भी ऐसा संभव नहीं है तथापि समझ में नहीं आता कि हमसे गलती हुई तो कहाँ हुई? समझ में तो आज भी नहीं आता कि हमारे समक्ष सबसे अच्छा विकल्प क्या है. तमाम निराशाओं के बीच हमारे लिए सबसे बड़े सौभाग्य की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री द्वारा लोकतंत्र अमर रहे का नारा लगाने के बावजूद भारत में लोकतंत्र जिंदा है भले ही हमारे देश में वो मूर्खों का, मूर्खों द्वारा, मूर्खों के लिए शासन बनकर रह गया हो.
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