शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

प्रियंका ने क्यों छोड़ा वाराणसी का मैदान?


मित्रों, जहाँ पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की नैया डूब गई थी इस बार लगता है कि जैसे उसकी नब्ज भी डूब रही है. राहुल गाँधी की अपार असफलता के बाद बड़े ही धूमधाम से प्रियंका को पार्टी महासचिव बनाकर मैदान में उतारा गया. फिर तो कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने सर पर आसमान ही उठा लिया. बड़े ही जोरदार नारे बनाए-जैसे प्रियंका गाँधी नहीं आंधी है इत्यादि. लेकिन अब जबकि चुनाव अंतिम चरण में पहुँचने को है ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रियंका गाँधी आयी तो आंधी की तरह थी लेकिन जा रही है बगुले की तरह.
मित्रों, प्रियंका ने न जाने क्या सोंचकर बार-बार जनता से पूछा था कि मैं वाराणसी से लडूं क्या? निस्संदेह वो पूरी मीडिया में ऐसा करके छा भी गई. एक बार तो उसने यहाँ तक कहा कि अगर राहुल कहेंगे तो वो सहर्ष वाराणसी से चुनाव लड़ने को तैयार है लेकिन जब कल मोदी का विमान वाराणसी में लैंड कर रहा था तभी कांग्रेस ने उस गुब्बारे की जैसे हवा ही निकाल दी अजय राय को वाराणसी से पार्टी का उम्मीदवार बनाकर. यह वही अजय राय है जिसे पिछली बार मात्र ७० हजार वोट मिले थे. इस तरह कांग्रेस ने मोदी के आगे पूरी तरह से हथियार डालते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली है.  वैसे मेरा मानना यह है कि प्रियंका इसलिए भी चुनाव लड़ने से भाग गई क्योंकि ऐसा करने पर उसे अपने पति की संपत्ति घोषित करनी पड़ती. साथ ही कांग्रेस को शुरू से ही पता था कि इस समय वाराणसी में मोदी के खिलाफ लड़ने का सीधा मतलब होगा करारी और शर्मनाक हार.
मित्रों, कारण चाहे जो भी हो अब इसे हम कांग्रेस की महामूर्खता न कहें तो क्या कहें कि कांग्रेस ने ब्लोअर की नकली हवा उत्पन्न करने की कोशिश की? अगर प्रियंका को वहां से चुनाव नहीं लड़ना था तो उसने इस बात की झूठी अफवाह क्यों उडाई? अब जबकि उसके झूठ की पोल खुल चुकी है तो कांग्रेस क्या करेगी? अब वो किस बालू के ढेर में जाकर अपना सिर छुपाएगी? उसके जख्मों पर नमक पड़ने जैसी एक और घटना कल घटी. वो यह कि मोदी के रोड शो में धर्म और जाति के सारे भेदों को त्यागकर पूरा-का-पूरा वाराणसी सड़कों पर आ गया और इतना भव्य स्वागत किया कि न भूतो न भविष्यति.
मित्रों, मैं तो पहले दिन से ही कह रहा था कि कहाँ पड़े हो चक्कर में कोई नहीं है टक्कर में लेकिन तब कांग्रेसी मेरी सुनने को तैयार नहीं थे. आज जब कांग्रेस कहीं भी टक्कर में नहीं दिख रही तब कांग्रेसियों की जैसे बोलती ही बंद हो गई है. वैसे मुझे तो पहले दिन से ही यह भी पता था कि इस बार कांग्रेस अपनी जीत के लिए नहीं लड़ रही है बल्कि मोदी को हराने के लिए लड़ रही है. वहीँ दूसरी तरफ मोदी अपनी, अपनी पार्टी और अपने देश की जीत के लिए लड़ रहे हैं. जहाँ कांग्रेस को सिर्फ-और-सिर्फ कुर्सी दिखाई दे रही है मोदी का उद्देश्य स्पष्ट है और वो है पूरी दुनिया में भारत को नंबर एक पर लाना.
मित्रों, आज जब मोदी जी ने वाराणसी से अपना नामांकन दाखिल किया है उनके और हमारे देश के लिए चीन से एक बहुत बड़ी खुशखबरी आई है. और वो खबर ऐसी है जिसे जानकर हर भारतीय को गर्व होगा और वो खबर यह है कि चीन ने पहली बार भारत के मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को दर्शाया है. आज से पांच साल पहले हम चीन के भारत के आगे झुकने की कल्पना तक नहीं कर सकते थे. मैं भारत की उस जनता का आभारी हूँ जिसने राष्ट्र सर्वोपरि को सच साबित करते हुए प्रियंका को वाराणसी छोड़कर भाग जाने को मजबूर कर दिया साथ ही उनका आह्वान करना चाहता हूँ कि क्या वो चाहती है कि भारत में भी फिर से वही सब हो जो पिछले दिनों श्रीलंका में हुआ या चीन-पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया को भारत के क़दमों में देखना चाहती है जैसा कि इन दिनों देखने को मिल रहा है. अगर वो अपने हाथों अपने और देश के भविष्य का गला दबा देना चाहती है तो उसे जरूर विपक्ष का या नोटा का बटन दबाना चाहिए.

मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

क्या दुनिया फिर से धर्मयुद्ध की ओर बढ़ रही है?

मित्रों, इतिहास गवाह है कि जब इस्लाम अस्तित्व में आया तो लगभग 500 सालों तक ईसाईयों और मुसलमानों के बीच रक्तरंजित युद्ध हुआ जिसको ईसाई क्रूसेड और मुसलमान जिहाद के नाम से जानते हैं. हालाँकि 1453 में यह कथित धर्मयुद्ध समाप्त हो गया लेकिन कहीं-न-कहीं दोनों धर्मों के लोगों के बीच तनाव लगातार बना रहा और छिट-पुट झडपें भी होती रहीं. हालांकि आज वैश्विक कूटनीति की स्थिति काफी जटिल है और कई मुस्लिम देश एक तरफ अमेरिका के समर्थन में हैं तो वहीँ कई मुस्लिम देशों के बीच घनघोर दुश्मनी भी है. फिर भी पिछले दिनों घटी दो घटनाओं ने दुनिया के समक्ष एक बार फिर से यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या ईसाईयों और मुसलमानों के बीच फिर से धर्मयुद्ध छिड़ गया है.
मित्रों, इस श्रृंखला में पहली घटना में पिछले महीने की १५ तारीख को न्यूजीलैंड की दो मस्जिदों में घटी जब एक स्थानीय ईसाई गोरे व्यक्ति ने शुक्रवार की नमाज पढ़ रहे लोगों पर अचानक और बेवजह गोलीबारी कर दी जिसमें ५० लोग मारे गए. पूरी दुनिया में शोक और गुस्से की लहर दौड़ पड़ी. न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री ने अपने व्यवहार और संबोधन के माध्यम से शोक में डूबे लोगों के घावों पर मरहम लगाया और तब ऐसा समझा गया कि मामला यही समाप्त हो गया. लेकिन ऐसा था नहीं.
मित्रों, दूसरे पक्ष में भी कई लोग ऐसे थे जिनका मानना था कि मुसलमानों को बदला लेना चाहिए और इसके लिए उन्होंने कदाचित हमारे पडोसी देश श्रीलंका का चुनाव किया. हालाँकि १० दिन पहले ही श्रीलंका पुलिस ने इस बात का अलर्ट जारी किया था कि श्रीलंका के गिरिजाघरों और भारतीय दूतावास पर चरमपंथी मुस्लिम संगठन हमला कर सकते हैं फिर भी हमले को रोका नहीं जा सका जिसके लिए शायद वहां के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच चल रहा सत्ता संघर्ष भी जिम्मेदार है. इस घटना में अब तक ३०० लोग मारे जा चुके हैं. श्रीलंका इस समय सन्निपात की स्थिति में है तथापि यह हमारे लिए प्रसन्नता का विषय है कि भारत के दूतावास पर हमला नहीं किया गया इसके लिए हमारी केंद्र सरकार बधाई की पात्र है जो सत्ता में आने के बाद से ही आतंकवादियों के प्रति पूरी तरह से सचेत है.
मित्रों, श्रीलंका की सरकार ने पिछले दिनों मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का अनुशरण भी किया था यह हमला शायद उसका भी दुष्परिणाम है क्योंकि इतिहास गवाह है कि मुस्लिम चरमपंथी भस्मासुर हैं और ये जिस डाल पर बैठते हैं पहले न केवल उसे काट डालते हैं बल्कि पूरे पेड़ को ही जला देते हैं. अब श्रीलंका की सरकार जो कुछ भी कार्रवाई इनके खिलाफ कर रही है उसकी तुलना हम सांप के बिल में चले जाने के बाद लाठी पटकने से कर सकते हैं.
मित्रों, अब सवाल उठता है कि श्रीलंका की घटना के तार क्या न्यूजीलैंड के हमलों से जुड़े हैं? जिस तरह से गिरिजाघरों में बम विस्फोट ठीक ईस्टर के दिन किए गए उससे तो ऐसा ही लगता है कि ये हमले न्यूजीलैंड हमलों के जवाब में किए गए. कितनी बड़ी विडंबना है कि इस कथित धर्मयुद्ध की चक्की में एक ऐसा देश पिस गया जो न तो मुस्लिम देश है और न ही ईसाई.
मित्रों, अब सवाल उठता है कि इस बारे में क्या किया जा सकता है? मेरी समझ से संयुक्त राष्ट्र संघ को अविलम्ब स्थिति के बिगड़ने और बेकाबू होने से पहले विश्व-समुदाय की बैठक बुलानी चाहिए और इस मसले पर विचार करना चाहिए जिससे दोनों पक्षों से हमलों की एक श्रृंखला न बने. साथ ही श्रीलंका के राजनैतिक दलों को अपने मतभेदों को भुलाकर देश को इस संकट से कैसे उबारा जाए पर विचार करना चाहिए और तदनुसार अपेक्षित कदम उठाने चाहिए.

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की उम्मीदवारी पर बवाल क्यों?


मित्रों, जबसे भोपाल लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी ने अपने उम्मीदवार की घोषणा की है पूरा विपक्ष जैसे सर के बल खड़े होकर विधवा-विलाप कर रहा है. कारण आप भी जानते हैं, दरअसल भाजपा ने वहां से प्रखर राष्ट्रवादी और देशभक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को टिकट दिया है. यह वही प्रज्ञा सिंह ठाकुर हैं जिसे सोनिया-मनमोहन की सरकार ने भगवा आतंकवाद की झूठी व पूर्णतया परिकल्पित थ्योरी के लिए बलि का बकरा बनाने का असफल किन्तु वीभत्स प्रयास किया था.
मित्रों, हुआ यह था कि मालेगांव की मक्का मस्जिद में आठ सितंबर, 2006 को हुए विस्फोटों में 37 लोग मारे गए तथा 125 घायल हुए। मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को भी विस्फोट हुआ जिसमें सात लोगों की मौत हो गई। विस्फोटों की जाँच के लिए गठित एटीएस ने नौ लोगों को प्रतिबंधित संगठन सिमी का सदस्य बताते हुए गिरफ्तारी की। उसका कहना था कि इन सभी ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की मदद से संवेदनशील कस्बे मालेगांव में विस्फोट करवाए। गिरफ्तार लोगों के नाम थे-नूरुल हुदा, रईस अहमद, सलमान फारसी, फारुख मकदूमी, शेख मोहम्मद अली, आसिफ खान, मोहम्मद जाहिद, अबरार अहमद और शब्बीर अहमद। बाद में जांच सीबीआइ को सौंप दी गई और उसने भी एटीएस की जांच पर ही मुहर लगा दी। उधर, महाराष्ट्र एटीएस ने मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत करकरे के नेतृत्व में भी इसकी समानान्तर जांच की और इस नतीजे पर पहुँची कि विस्फोटों के तार प्रज्ञा ठाकुर से जुड़े थे. साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे उस अपराध में शामिल होने के लिए अपनी संलिप्तता स्वीकार को बाध्य करने के लिए अंतहीन और अकल्पनीय यातना की हरेक सीमा पार कर ली गई. उसे नंगा करके उल्टा टांग कर पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा इतना पीटा गया कि उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गयी और कैंसर भी हो गया. न सिर्फ पीटा बल्कि जबरन अंडा खिलाया गया और अश्लील पोर्न विडियो दिखाया गया. मुम्बई के पुलिस कमिश्नर हेमंत करकरे पर तो जैसे धुन सवार थी कि कैसे मालेगांव कांड में उसकी संलिप्तता को किसी भी तरह और किसी भी कीमत पर यहाँ तक कि मानवता की कीमत पर भी साबित कर दे और कांग्रेस नेतृत्व की भगवा आतंकवाद की परिकल्पना को जबरन सच साबित कर दे जिससे कांग्रेस नेतृत्व खुश हो जाए.
मित्रों, बाद में हमने और आपने जब दिल्ली में सरकार बदली और जांच में हिन्दू आतंकवाद का कोई सबूत नहीं मिला तब १३ अप्रैल २०१६ को अदालत ने क्लीन चिट देकर साध्वी को रिहा करने का आदेश दिया. इसी बीच हेमंत करकरे २६/११ के मुम्बई हमले में मारा गया.
मित्रों, साध्वी को क्लीनचिट देने का अर्थ है कि बमकांड में उनके ख़िलाफ़ जांच एजेंसियों के पास ऐसे सबूत नहीं थे, जिससे उन्हें दोषी साबित किया जा सकता। इसका यह भी मतलब होता है कि साध्वी और अन्य दूसरे पांच आरोपियों को बिना ठोस सबूत के ही गिरफ़्तार कर लिया गया था। यानी जिस अपराध ने उनकी ज़िंदगी के आठ कीमती साल छीन लिए, उस अपराध को उन्होंने किया ही नहीं था।
मित्रों, अब आप ही बताईए कि भाजपा ने भोपाल से साध्वी को टिकट देकर क्या गलत किया? हमारे देश की पुलिस कैसे काम करती है इसके बारे में मैं आपको अपनी एक आपबीती सुनाना चाहूँगा. हुआ यह कि मैं अपना घर बनवा रहा था और वो भी हाजीपुर में वैशाली महिला थाने के पीछे. थानेदार थी पूनम कुमारी. अब उसका प्रोन्नति देकर तबादला हो चुका है. मैंने घर बनाने के दौरान ईटें मंगवाई. काम कुछ कारणों से रूका हुआ था. एक दिन सुबह जब मैं निर्माण-स्थल पर पहुंचा तो पाया कि मेरी ईटें गायब है. मैंने थाने में पूछा तो कोई बताने को तैयार नहीं. फिर मैंने देखा कि थाने में फूलों के नए पौधे लगाए गए हैं और उनकी घेराबंदी के लिए मेरी ईटें लगा दी गई हैं. फिर मैंने मजदूर बुलवाए ईंटें उठवाने के लिए. मजदूरों को देखते ही महिला थानेदार मुझे गालियाँ देने लगीं और धमकी दी कि बलात्कार के झूठे में मुकदमे में फंसा देगी. फिर मैंने पहले बिहार के डीजीपी को और फिर वैशाली एसपी गौरव कुमार को फोन किया. पत्रकार होने के कारण दोनों मुझसे परिचित थे. गौरव जी ने फोन उठाया और फोन करने का कारण पूछा. फिर उन्होंने थानेदारनी को फोन पर वो डांट लगाई कि वो कमरे की सिटकनी अन्दर से बंद करके कैद हो गयी.
मित्रों, अब आप ही बताईए कि अगर मैं पत्रकार नहीं होता तो मेरा क्या होता और मैं आज कहाँ होता? एक बार हाजीपुर, हिंदुस्तान के तत्कालीन ब्यूरो चीफ मानपुरी जी ने मुझे बताया था कि उनके पास ऐसी सैंकड़ों सच्ची कहानियां हैं जिनमें पुलिस ने ऐसे लोगों को हत्या-डाका आदि मामलों में गिरफ्तार किया और सजा दिलवाई जिनका उन मामलों से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध ही नहीं था. अगर हमारी न्यायपालिका, सीबीआई, पुलिस आदि सही होती तो सरेआम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के कनाट प्लेस में हत्या कर दी गई जेसिका लाल मामले में कोर्ट यह नहीं कहती कि जेसिका की हत्या तो हुई मगर उसकी किसी ने हत्या नहीं की. इसी तरह न जाने पुलिस द्वारा रिश्वत लेकर हमारे देश में कितनी हत्याओं को आत्महत्या में बदल जा चुका है.
मित्रों, अब बात करते हैं कांग्रेस की. कांग्रेस के बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है. कांग्रेस पूरी तरह से हिन्दू-विरोधी पार्टी है और भारत को हिन्दू-विहीन बनाना चाहती है. कांग्रेस को पता ही नहीं था कि भाजपा आधुनिक जयचंद दिग्विजय सिंह के खिलाफ उसी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनाव में खड़ा कर देगी जिस पर अपने हिन्दू-विरोधी एजेंडे को पूरा करने के लिए उसने अनगिनत जुल्म करवाए थे. ऐसा भी नहीं है कि मैंने कभी कांग्रेस को आदतन मुफ्त की सलाह नहीं दी लेकिन हम करें तो क्या करें-
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम. लोचनाभ्याम विहीनस्य दर्पणं किं करिष्यति.
अब कांग्रेस की प्रज्ञा यानि बुद्धि को बहन प्रज्ञा सिंह ठाकुर ही ठिकाने पर लाएगी और ठिकाने पर लाएगी भारत की सवा अरब जनता.

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

श्रद्धा, भक्ति और मोदी


मित्रों, एक बार फिर से भारत में लोकसभा चुनाव प्रगति पर है और एक बार फिर से नरेन्द्र मोदी भारत का प्रधानमंत्री बनने को ओर अग्रसर हैं.  ऐसा मैं ही नहीं बल्कि सारे सर्वे भी कह रहे हैं और इसका कारण यह है कि मोदी जी ने पिछले ५ सालों में जितने दुश्मन बनाए हैं उससे कहीं अधिक संख्या में उनसे श्रद्धा करने वाले लोग उनके प्रशंसक बन गए हैं.
मित्रों, कुछ लोग कहते हैं कि मोदी जी ने प्रयत्नपूर्वक अपने श्रद्धालु बनाये हैं जबकि हिंदी के सार्वकालिक सबसे बड़े आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ऐसा मानते हैं कि श्रद्धा स्वतःस्फूर्त होती हैं. वे कहते हैं कि किसी मनुष्य में जनसाधारण से विशेष गुण या शक्ति का विकास देख उसके सम्बन्ध में जो एक स्थायी आनंद-पद्धति ह्रदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं. श्रद्धा महत्व की आनंदपूर्ण स्वीकृति के साथ-साथ पूज्य-बुद्धि का संचार है. यदि हमें निश्चय हो जाएगा कि कोई मनुष्य बड़ा वीर, बड़ा सज्जन, बड़ा गुणी, बड़ा दानी, बड़ा विद्वान, बड़ा परोपकारी व बड़ा धर्मात्मा है तो वह बड़े आनंद का एक विषय हो जाएगा. हम उसका नाम आने पर प्रशंसा करने लगेंगे, उसे सामने देख आदर से सिर नवाएंगे, किसी प्रकार का स्वार्थ न रहने पर भी हम सदा उसका भला चाहेंगे, उसकी बढती से प्रसन्न होंगे और अपनी पोषित आनंद-पद्धति में व्याघात पहुँचने के कारण उसकी निंदा न सह सकेंगे. इससे सिद्ध होता है कि जिन कर्मों के प्रति श्रद्धा होती है उनका होना संसार को वांछित है. यही विश्व-कामना श्रद्धा की प्रेरणा का मूल है.
मित्रों, आप कहेंगे कि लोग मोदी जी से प्रेम करने लगे हैं और प्रेम तो अँधा होता है तो इस बारे में आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहते हैं कि प्रेम और श्रद्धा में अंतर यह है कि प्रेम प्रिय के स्वाधीन कार्यों पर उतना निर्भर नहीं-कभी-कभी किसी का रूप मात्र,जिसमें उसका कुछ हाथ भी नहीं, उसके प्रति प्रेम उत्पन्न होने का कारण होता है. पर श्रद्धा ऐसी नहीं है. किसी की सुन्दर आँख या नाक देखकर उसके प्रति श्रद्धा नहीं उत्पन्न होगी, प्रीति उत्पन्न हो सकती है. प्रेम के लिए इतना ही बस है कि कोई मनुष्य हमें अच्छा लगे; पर श्रद्धा के लिए आवश्यक यह है कि कोई मनुष्य किसी बात में बढ़ा हुआ होने के कारण हमारे लिए सम्मान का पात्र हो. श्रद्धा का व्यापार-स्थल विस्तृत है, प्रेम का एकांत. प्रेम में घनत्व अधिक है और श्रद्धा में विस्तार.
मित्रों, जहाँ तक भक्ति का सवाल है तो आचार्य शुक्ल के अनुसार श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति है. जब पूज्यभाव की वृद्धि के साथ श्रद्धा-भाजन के सामीप्य-लाभ की प्रवृत्ति हो, उसकी सत्ता के कई रूपों के साक्षात्कार की वासना हो, तब ह्रदय में भक्ति का प्रादुर्भाव समझना चाहिए.
मित्रों, अब आप ही बताईए कि अगर कोई मोदी जी के प्रति श्रद्धा रखता है तो क्या ऐसा वो अपनी मर्जी से करता है या फिर मोदी जी के कर्म ही ऐसे हैं जो उसे ऐसा करने के लिए उसे बाध्य करते हैं? जहाँ तक मोदी जी की भक्ति करने का सवाल है तो जैसा कि हमने देखा कि जब श्रद्धा में प्रेम भी मिश्रित हो जाता है तो उसे भक्ति कहते हैं. अब अगर देश की जनता ऐसा कर रही है तो इसके लिए मोदी जी कहाँ से और कैसे दोषी हो गए? भारत एक आजाद मुल्क है, प्रत्येक नेता जनता के मन-मंदिर में अपना स्थान बनाने को स्वतंत्र है. अब कोई निरंतर गर्हित कार्यों में लगा रहे और फिर भी ऐसी उम्मीद करे कि जनता मोदी जी को छोड़ कर उसकी भक्ति करे और ऐसा न होने पर मोदी जी के प्रति ईर्ष्या रखने लगे तो रखे उसकी मर्जी लेकिन ऐसा करके वो खुद अपने ही स्वास्थ्य की हानि करेगा और बदले में कुछ सार्थकता प्राप्त भी नहीं कर पाएगा. चोर-चोर चिल्लाने से कोई चोर साध नहीं हो जाता बल्कि इसके लिए उसे सन्मार्ग पर और त्याग के मार्ग पर चलना भी होगा. सबकुछ छोड़ कर ही सबकुछ पाया जा सकता है.

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

इमरान के बयान के पीछे की चाल


मित्रों, मैं हमेशा से मानता रहा हूँ कि कूटनीति में पाकिस्तान का जवाब नहीं. वो ६५ की लडाई मैदान में हार जाता है लेकिन बातचीत की मेज पर मजे से जीत जाता है. साथ ही हमारे प्रधानमंत्री बेहद संदेहास्पद परिस्थितियों में मृत पाए जाते हैं. इसी तरह से ७१ की लडाई हार जाता है, उसके दो टुकड़े हो जाते हैं लेकिन एक बार फिर से बातचीत की मेज पर जीत उसी की होती है. १९९९ में विमान का अपहरण होता है. पाकिस्तानी ही अपहरण करते हैं. बातचीत में मध्यस्थ भी पाकिस्तान ही होता है. छोड़ा भी पाकिस्तानी आतंकवादियों को जाता है. है न गजब. मुझे याद है कि कारगिल की लडाई के समय वाजपेयी जी की सरकार ने एक ऑडियो जारी किया था. जिसमें चीन की यात्रा पर गए पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री से फोन पर बात करते हैं. नवाज शरीफ कहते हैं कि भारत आरोप लगा रहा है कि हमने घुसपैठ की है और उसकी चोटियों पर कब्ज़ा जमा लिया है. तब मुशर्रफ कहता है कि आप ऐसे क्यों नहीं कहते कि वे पाकिस्तानी सैनिक नहीं हैं बल्कि मुजाहिदीन हैं.
मित्रों, इन दिनों जब भारत में लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं तब उसी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने बयान दिया है कि भारत में अगर नरेन्द्र मोदी चुनाव जीत जाते हैं तो सबसे ज्यादा ख़ुशी उन्हें होगी. हद तो यह है कि हमारे कुछ राजनेता जो इमरान खान को महापवित्र और सत्यवादी मानते हैं काफी उछल रहे हैं. जबकि मैंने समझता हूँ कि पाकिस्तान का कोई भी नेता या अधिकारी जब भी बोलता है उल्टा ही बोलता है और झूठ ही बोलता है. क्यांकि पाकिस्तान कभी भारत का भला चाह ही नहीं सकता,भारत के भले के बारे में सोंच ही नहीं सकता फिर इमरान खान को तो वहां का प्रधानमंत्री बनाया ही वहां की सेना ने है. ऐसे में उनके बयान को सीधे-सीधे लेना हमारे लिए न केवल मूर्खता होगी बल्कि खतरनाक भी होगा.
मित्रों, इस बीच बालाकोट एयर स्ट्राइक के ४३ दिनों के बाद पश्चिमी पत्रकारों को उस मदरसे की यात्रा करवाई गई है जिस पर भारतीय वायुवीरों ने २६ फरवरी को हमला किया था.मगर पत्रकारों को चुनिन्दा स्थानों तक ही ले जाया गया और किसी से बात नहीं करने दी गई जबकि पाकिस्तान ने हमले के कल होकर ही कहा था कि वो पत्रकारों को उसी दिन वहां ले जाएगा. इस बीच जब रायटर के संवाददाता कई हफ्ते बाद वहां पहुंचे तो उनको भगा दिया गया. सवाल उठता है कि अगर हमला हुआ ही नहीं तो पाकिस्तान को पत्रकारों को वहां ले जाने में ४३ दिन क्यों लगे और मीडिया को वहां पढ़ रहे बच्चों से बात क्यों नहीं करने दिया गया? क्या इमरान के पास इन सवालों का जवाब है?
मित्रों, इमरान कहता है कि मोदी अगर जीतते हैं तो कश्मीर-समस्या हल करने में सहूलियत होगी. कितना शरारती बयान है ये? जबकि सच्चाई तो यह है कि जहाँ एक तरफ पाकिस्तान मोदी से बातचीत करने को बेहाल है वहीँ मोदी तो कश्मीर के मामले में पाकिस्तान को पार्टी या फरीक मानते ही नहीं बल्कि कश्मीर मुद्दे को वो भारत का आंतरिक मामला मानते हैं. हाँ, मोदी की वापसी के बाद कश्मीर-समस्या जरूर हल होगी और वो इस तरह कि आतंकवाद का अंत हो जाएगा-कश्मीर से भी और पाकिस्तान से भी. ज्यादा से भी ज्यादा लगभग पूरी सम्भावना तो यह है कि मोदी की वापसी के बाद शायद पाकिस्तान ही नक्शे से गायब हो जाए.जहाँ तक मुझे लगता है कि चूंकि पीएम मोदी पिछले दिनों चुनाव प्रचारों में यह कहते रहे हैं कि अगर वे हार जाते हैं तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे इसलिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से कांग्रेस और भाजपा विरोधी अन्य दलों ने संपर्क करके इमरान खान से ऐसा बयान दिलवाया है जिससे विपक्ष को यह कहने का मौका मिल सके कि देखो पाकिस्तान क्या चाहता है अर्थात पाकिस्तान के हित में किसकी जीत है.
मित्रों, मैं इस लोकसभा चुनाव में जिस व्यक्ति की सबसे ज्यादा कमी महसूस कर रहा हूँ वो है कांग्रेस नेता मणिशंकरअय्यर. बंदा न जाने कहाँ चला गया? क्या अब वो पाकिस्तान से मदद नहीं मांगेगा मोदी को हटाने में? हो सकता है उसी के कहने पर इमरान ने यह शरारतपूर्ण बयान दिया हो और बंदा पाकिस्तान में ही अड्डा जमाए बैठा हो.
मित्रों, मैं कांग्रेस पार्टी से पूछना चाहता हूँ कि जिस प्रशांत भूषण को आगे करके वो राफेल का खेल खेल रही है क्या वो नहीं जानती कि कश्मीर के बारे में उसके ख्याल कितने खतरनाक हैं? वैसे खतरनाक ख्याल तो कांग्रेस के भी हैं न सिर्फ कश्मीर के बारे में बल्कि पूरे भारतवर्ष के बारे में.
मित्रों, अंत में मैंने मुज़फ्फरनगर में जो देखा उसका जिक्र करना चाहूँगा. लगभग सारे सजीव चुनाव प्रसारण हमारे कॉलेज श्रीराम कॉलेज से ही प्रसारित हुए. एक दो को छोड़कर किसी में भी रालोद उम्मीदवार अजित सिंह ने अपना प्रतिनिधि नहीं भेजा. लेकिन कांग्रेस के प्रतिनिधि सारे कार्यक्रमों में आए जबकि अजीत सिंह जिस गठबंधन का हिस्सा हैं कांग्रेस उसमें है ही नहीं. इतना ही नहीं कांग्रेस प्रतिनिधि लगातार बिन बुलाए मेहमान की तरह आकर भाजपा के खिलाफ बोलते रहे. सवाल उठता है कि कांग्रेस ने जब यहाँ से अपना उम्मीदवार ही नहीं दिया और वो गठबंधन में भी नहीं है तो फिर वो कूद-फांद क्यों कर रही है? सच्चाई तो यह है कि हिन्दुकूश पर्वत से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक और जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक सारे भारतविरोधी तत्व एकजुट हो गए हैं और चाहते हैं कि किस तरह से मोदी को हराकर भारत को विकसित और मजबूत होने से रोका जाए और पापिस्तान की रक्षा की जाए. जाहिर है पापिस्तान का नापाक प्रधानमंत्री इमरान खान भी इस खेल में शामिल हैं.

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

जीतेगा मोदी जीतेगा भारत


मित्रों,आप जानते हैं कि भविष्यवाणी करना काफी कठिन काम है और फिर जब बात भारत के चुनावों की हो तब तो बड़े-बड़े विश्लेषक भी भविष्यवाणी करने से डरते हैं.  फिर भी पिछले दिनों जो सर्वेक्षण सामने आ रहे हैं और मैं खुद भी जितने लोगों से मिला हूँ उसके आधार भी यह बिना किसी लाग-लपेट के कहा जा सकता है कि इस बार के लोकसभा चुनावों में निश्चित रूप से वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शानदार वापसी करने जा रहे हैं.
मित्रों, कांग्रेस और भाजपा सहित सभी प्रमुख दलों का घोषणापत्र सामने आ चुका है और अगर हम दोनों दलों के घोषणापत्रों की तुलना करें तो स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ भाजपा के पास दूरदृष्टि और भारत के तीव्र व सर्वांगीण विकास का पूरा खाका है वहीँ कांग्रेस के पास सिर्फ झूठ, लालच और फरेब है. कांग्रेस कितनी झूठी पार्टी है और कितनी वादाखिलाफ है यह उन तीनों राज्यों में उसकी सरकार के कामकाज से भी जनता जनार्दन के सामने प्रकट हो चुका है जिन तीन राज्यों में हाल में उसने चुनाव जीते थे. उन तीनों राज्यों में जनता के साथ जबरदस्त धोखा हुआ है.
मित्रों, यह कांग्रेस देशद्रोह को अपराध नहीं मानती और इसकी धारा को ही समाप्त कर देने का वादा उसने अपने घोषणापत्र में किया है जबकि देशद्रोह से बड़ा कोई अपराध हो ही नहीं सकता. इसी तरह कांग्रेस ने धारा ३७० की रक्षा करने का वादा भी किया है जबकि भाजपा ने इसे समाप्त करने का और कश्मीर की रक्षा करने का वादा किया है और पिछले दिनों मोदी सरकार ने इस धारा में कुछ बदलाव किए भी हैं.
मित्रों, सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस भारतीयों को कुत्ता समझती है कि वो ७२००० के लालच में उसके पीछे भाग लेंगे और देश को एक बार फिर से बहुरूपिये लुटेरों के हवाले कर देंगे? सवाल यह भी उठता है कि भारतीय भारत की जय चाहते हैं या चीन और पाकिस्तान की जो इस समय कांग्रेस की ही तरह मोदी सरकार की हार की मन्नतें मांग रहे हैं और कांग्रेस जिनकी गोद में बैठी है? मैं नहीं समझता कि वर्तमान भारत की जनता इतनी मूर्ख है कि वो कांग्रेस पार्टी के फरेब को समझ नहीं सके. वो यह अच्छी तरह से जानती है कि कांग्रेस को गरीबों से नहीं बल्कि उनकी गरीबी से प्यार है. कांग्रेस को कालाधन और भ्रष्टाचार से भी बेईन्तिहाँ मुहब्बत है और वो खुद तो भ्रष्ट है ही उसके सारे सहयोगी भी जाने-माने भ्रष्ट हैं और एक-से-बढ़कर-एक भ्रष्ट हैं. साथ ही तीसरे मोर्चे में भी सिर्फ-और-सिर्फ भ्रष्टाचारियों का जमावड़ा है. इन दलों का उद्देश्य कहीं से भी जनहित और देशहित नहीं है बल्कि इनका सिर्फ एक ही एजेंडा है कि कैसे मोदी को हराया और हटाया जाए और खुद को जेल जाने से बचाया जाए. जो दल मोदी सरकार पर कालाधन के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के आरोप लगा रहे थे वही दल मध्य प्रदेश में बदले की भावना से कमलनाथ के निकटतम सहयोगियों पर आयकर का छापा पड़वाने के आरोप लगा रहे हैं. अभी कल ही कांग्रेस के दत्तक पुत्र माओवादियों ने कांग्रेसशासित दंतेवाडा में भाजपा विधायक की हत्या कर दी है और उनके साथ हमारे ५ सीआरपीएफ जवान भी शहीद हो गए हैं. साथ ही कल जम्मू-कश्मीर में प्रखर राष्ट्रवादी चंद्रकांत शर्मा जी की भी जेहादियों ने हत्या कर दी है. ऐसे में अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि वो पूरे देश को माओवादियों और जेहादियों के हवाले कर देगी. साथ ही दोनों हाथों से लूटेगी सो अलग. और तब शायद आपके पास पछताने तक का भी समय न रहे.
मित्रों, पिछले दिनों घटे घटनाक्रम से यह स्वतः स्पष्ट है कि चौकीदार चोर नहीं है बल्कि चौकस है न सिर्फ सीमा पर बल्कि देश के भीतर सत्ता में रहकर देश को लूटनेवालों पर भी उनकी पैनी नजर है. उसने न सिर्फ सैनिकों के साजो-सामान पर ध्यान दिया है बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में परिवहन के साधन भी विकसित किए हैं जिससे चीन के किसी भी संभावित हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके. इसके साथ ही किसानों को वेतन,मजदूरों को पेंशन, उज्ज्वला, आयुष्मान, सीधे खाते में सब्सिडी, रेलवे की रफ़्तार बढाने, नई रेल लाईनें बिछाने और पुरानी लाईनों के दोहरीकरण, तीव्र गति से सड़क-निर्माण, बिजली की कमी को पूरी तरह से दूर करने की दिशा में भी इस सरकार ने काफी सराहनीय काम किया है इसमें कोई संदेह नहीं. मैं मानता हूँ कि रोजगार-सृजन कम हुआ है लेकिन मैं पहले भी कह चूका हूँ कि आज भारत दुनिया में सबसे ज्यादा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्राप्त करनेवाला देश बन चुका है और पूँजी आ रही है तो रोजगार भी आ रहा है बस थोड़े दिनों तक धैर्य रखने की आवश्यकता है.
मित्रों, परसों से मतदान का महापर्व शुरू होनेवाला है. आप सभी देशवासियों से मैं अपील करता हूँ कि आपलोग इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लें और भारत की पूरी दुनिया पर जीत और भारत के विश्वगुरु बनने के मार्ग को फिर से प्रशस्त करें. फिर से कमल खिलाएँ और खूनी पंजे से देश को बचाएँ. मेरे इस आह्वान में मेरा कोई स्वार्थ नहीं है बल्कि सबका सवा सौ करोड़ भारतियों का स्वार्थ है. मैं आज तक किसी भी पार्टी का सदस्य नहीं रहा हूँ और न ही किसी दल से कभी एक पैसे का लाभ ही प्राप्त किया है. मेरे लिए मेरा देश सर्वोपरि और सर्वस्व था, है और हमेश रहेगा. वन्दे मातरम, भारतमाता की जय.