मित्रों, आपको याद होगा कि १ नवम्बर २०१६ को ही हमने एक आलेख चिनमा से करबई लड़ईया हो भैया के माध्यम से देश को सचेत किया था कि चीन भारत पर कभी भी हमला कर सकता है. तब मेरे बहुत से सोशल मीडिया के मित्रों ने मेरा इस आलेख के लिए मजाक उड़ाया था लेकिन आज जब मैं यह आलेख लिख रहा हूँ तो मैं मेरी कलम की स्याही से नहीं लिख रहा हूँ बल्कि इस स्याही में उन २० शहीदों के खून मिले हुए हैं जो चीन के साथ कल रात हुई झड़प में मारे गए हैं.
मित्रों, दरअसल चीन १९४९ में अपनी आजादी के समय से ही नहीं चाहता है कि एशिया और पड़ोस में उसका कोई प्रतिद्वंद्वी भी हो. १९६२ में भारत पर उसके हमले के पीछे भी उसकी यही घृणित सोंच थी लेकिन तब का भारतीय नेतृत्व यह समझ नहीं पाया था कि धोखा चीन के खून में है.
मित्रों, बदली हुई परिस्थिति में जबसे कोरोना को लेकर चीन बदनाम हुआ है वह बुरी तरह बौखलाया हुआ है क्योंकि पूरी दुनिया में उसकी साख मर गई है. और जैसा कि आप भी जानते हैं कि बिना साख के कोई व्यवसायी व्यापार कर ही नहीं सकता. चीन आज अपने कुकर्मों की वजह से पूरी दुनिया में घृणा का पात्र बन चुका है. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ चीन छोड़कर भारत आने लगी हैं. अमेरिका ने तो सीधे इस बाबत संसद से प्रस्ताव ही पारित करवा दिया है.
मित्रों, अब अगर निवेशक चीन छोड़कर भारत का रूख कर रहे हैं तो इसके लिए किसी भी तरह भारत दोषी नहीं है लेकिन चीन तो खिसियानी बिल्ली की तरह नोचने के लिए खम्भा खोजता फिर रहा है. चीन को आज भी सबसे सॉफ्ट टारगेट भारत ही दिख रहा है. वह यह भूल गया है कि यह २०२० का भारत है १९६२ का नहीं और न ही इस समय भारत में नेहरु या उनके वंशज सत्ता में हैं. बल्कि इस समय भारत में राष्ट्रवादी सत्ता में हैं जिनके लिए राष्ट्र और राष्ट्र का गौरव प्राणों से भी बढ़कर है.
मित्रों, यही कारण है कि जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है तभी से सीमावर्ती ईलाकों में सड़कों के निर्माण और सेना के आधुनिकीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है.
मित्रों, १९६२ में भी भारत की सेना कमजोर नहीं थी और न ही हमें सेना की कायरता के कारण शर्मनाक और कभी न भुला सकनेवाली हार का मुंह देखना पड़ा था बल्कि तब कायर और कमजोर था हमारा नेतृत्व. उस समय का प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री खुद चीन का एजेंट था या चीन के एजेंट की तरह काम कर रहा था और उन्होंने काफी मेहनत करकेजानबूझकर भारतीय सेना को काफी कमजोर कर दिया था. कहना न होगा भारत की उसी सेना ने मात्र ३ साल बाद ही शास्त्री जी के नेतृत्व में पाकिस्तान को धोबिया पछाड़ लगाते हुए लाहौर तक पर कब्ज़ा कर लिया था. अभी कल की शहादत को ही देखें तो भले ही यह १६ बिहार रेजिमेंट की अगुवाई में दी गई हो और वीर शहीदों में ज्यादातर बिहार के हों लेकिन इसमें तमिलनाडु के भी जवान शामिल हैं और सबसे बढ़कर यह कि उनका नेतृत्व जो कर्नल संतोष बाबू कर रहे थे वे भी सुदूर दक्षिण तेलंगाना के थे. उनकी माँ ने अपने बेटे की शहादत पर जो शब्द कहे वे न सिर्फ हमारा मस्तक ऊंचा करनेवाले हैं बल्कि चीन को दहला देनेवाले हैं. उस माँ ने जिसने अपना इकलौता जवान बेटा खोया है कहा है कि उसे अपने बेटे की मौत का दुःख तो है लेकिन उससे ज्यादा इस बात पर गर्व है कि उसके बेटे ने देश के लिए अपना बलिदान दिया है.
मित्रों, मैं जानता हूँ कि इस समय पूरे भारत का खून उबल रहा है. उबले भी क्यों नहीं भारत दुनिया का सबसे युवा देश जो ठहरा. कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे भारत में इस समय चीन के प्रति गुस्सा चरम सीमा पर है. प्रत्येक भारतीय को अपने जवानों की शहादत का बदला चाहिए. सेना और मोदी सरकार को जो करना है वो कर रही है लेकिन हम अगर चाहें तो चीन को घर बैठे काफी कमजोर कर सकते है, यहाँ तक कि बर्बाद कर सकते हैं. बस हमें प्रतिज्ञा लेनी पड़ेगी कि आगे से हम चीन में निर्मित सामानों की बिलकुल भी खरीद नहीं करेंगे. व्यापारियों को भी प्रण लेना पड़ेगा कि वे चीन को कोई भी आर्डर नहीं देंगे. इतना ही नहीं जरुरत पड़ेगी तो हम अधेड़, बच्चे और वृद्ध भी चीन के खिलाफ बन्दूक उठाने को तैयार हैं. हमें इस बात का दृढनिश्चय लेना होगा कि जब तक भारत का अंतिम बच्चा, आखिरी व्यक्ति सांस ले रहा है तब तक भारत अपने बिगडैल पडोसी के साथ युद्ध में अपने कदम एक ईंच भी पीछे नहीं लेगा. जय हिन्द, जय हिन्द की सेना.
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