रविवार, 15 नवंबर 2020

इस्लाम, यूरोप और भारत

मित्रों, देखते-देखते कई साल बीत गए जब सितम्बर २०१५ में तुर्की के समुद्र तट के पास अयलान नामक मुस्लिम बच्चे की समुद्र किनारे तैरती लाश को देखकर पूरा यूरोप द्रवित हुआ जा रहा था. उस गलदस्रु भावुकता को देखकर तब हमने कहा था कि एक दिन ऐसा आएगा जब ये लोग पछताएंगे. और दोस्तों दुर्भाग्यवश वह दिन आ भी गया है. इस्लाम में सब जायज है नाजायज कुछ भी नहीं है यूरोप वाले कई सौ सालों तक क्रुसेड लड़ने के बाद भी इस सच्चाई को समझ ही नहीं पाए. शायद इस्लाम ने मृत बच्चे की लाश का हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. मित्रों, भावुकतावश यूरोप ने अपने दरवाजे मुस्लिम शरणार्थियों के लिए खोल दिए मगर जैसे ही उनके खाली पेटों में अनाज गया वे यूरोप वालों को चेतावनी देने लगे कि उनको शरियत के अनुसार चलना पड़ेगा. यूरोप में आज जगह-जगह जेहादी हिंसा हो रही है. वे गैर मुस्लिमों को मारने के लिए किसी भी वस्तु या वाहन को हथियार बना लेते हैं. उनका बस एक ही लक्ष्य है पूरी दुनिया में इस्लाम का साम्राज्य स्थापित करना. चूंकि उनकी आसमानी किताब सिर्फ हिंसा, लूट और बलात्कार की शिक्षा देती है इसलिए वे दूसरे धर्म के अनुयायियों के साथ मिलकर रह ही नहीं सकते. वे मानवों से अधिक मानवता के हत्यारे हैं. मित्रों, आज यूरोप के विभिन्न देशों में मस्जिदों में ताले लगाए जा रहे हैं. बहशी मुसलमानों को जेलों में ठूंसा जा रहा है. यह उसी यूरोप में हो रहा है जो दो दशक पहले तक यह मानने को तैयार ही नहीं था कि भारत जेहादी हिंसा से परेशान है. बल्कि तब वो मुसलमानों के मानवाधिकारों की बात करते थे और कश्मीर पर भारत के विरोध में थे. तब उनको कश्मीरी हिन्दुओं की पीड़ा नजर नहीं रही थी जो अपने ही देश में शरणार्थी बना दिए गए थे और इस्लाम ने जिनका सबकुछ छीन लिया था. मित्रों, सवाल उठता है कि क्या भारत को यूरोप के अनुभवों से शिक्षा लेते हुए समय रहते ऐहतियाती कदम नहीं उठाने चाहिए? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस्लाम एक मार्शल कौम है और हम अहिंसावादी बनकर हरगिज उनका सामना नहीं कर सकते. सरकार को हिन्दुओं को सशक्त योद्धा बनाना होगा और अगर सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो जनसँख्या नियंत्रण कानून को शीघ्रातिशीघ्र बनाना होगा. इस काम में जितनी देरी होगी भारत को उसकी उतनी ही बड़ी कीमत चुकानी होगी. इसके साथ ही मदरसों को बंद करना होगा और कट्टरपंथी मौलानाओं को जेलों में बंद करना होगा. पीएफआई जैसी इस्लामिक सेनाओं पर कठोरतम कार्रवाई करनी होगी. दिल्ली में दंगे करके और शाहीन बाग़ में धरना आयोजित करके इस्लाम ने भारत पर कब्ज़ा करने का प्रयोग शुरू भी कर दिया है. अगर देश में कोरोना नहीं आया होता तो कदाचित इस समय भारत गृहयुद्ध का सामना कर रहा होता.

कोई टिप्पणी नहीं: