शनिवार, 24 अप्रैल 2021
आईसीयू में भारत, भाषण झाड़ते पीएम
ममित्रों, इन दिनों कोविद 19 के कारण देश के हालात काफी खराब हैं। जांच में हर तीसरा व्यक्ति कोरोना पॉजीटिव मिल रहा है। संक्रमितों की मृत्यु दर पिछले साल के मुकाबले तीन गुनी है। आज शनिवार को मिली जानकारी के मुताबिक, देश में पिछले 24 घंटे में 2 624 मौतें हो गईं हैं और 3.46 लाख से ज्यादा संक्रमण के नए केस आए हैं. भारत में अब तक मौतों का कुल आंकड़ा 1,89,544 हो गया है और सक्रिय मामलों की कुल संख्या 25 लाख 52 हजार के पार हो गए हैं. उधर कनाडा ने भारत से जानेवाली सभी उड़ानों पर अगले ३० दिनों के लिए रोक लगा दी है. ब्रिटेन ने पहले ही भारत को ‘रेड-लिस्ट’ में जोड़ लिया था, जहां से कोविड -19 मामलों की अधिक संख्या के कारण अधिकांश यात्रा पर प्रतिबंध है. इसके अलावा, फ्रांस ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका और भारत के यात्रियों के लिए 10-दिन के लिए क्वारंटीन कर रहा है, जबकि संयुक्त अरब अमीरात ने भारत से सभी उड़ानों को रद्द कर दिया है.
मित्रों, देश में कोविद की ऐसी भयावह स्थिति तब है जबकि महामारी अभी अपने शबाब पर पहुँची भी नहीं है. इस बीच अमेरिकी के एक विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा किया गया है. इस अध्ययन में दावा किया गया है यही हालत रही तो मध्य मई तक भारत में कोविद से होनेवाली मौतों का आंकड़ा रोजाना ५६०० तक पहुँच जाएगा.
मित्रों, इस समय देश में ऑक्सीजन की भारी किल्लत हो गई है. विद्युत् शवदाहगृहों में इतनी ज्यादा संख्या में लाशें पहुँच रही हैं कि उनकी भट्ठियां पिघलने लगीं हैं. सर गंगाराम अस्पताल जैसे राष्ट्रीय राजधानी के प्रतिष्ठित अस्पताल में कल ३० से ज्यादा कोरोना मरीजों की मौत हो गई. स्थिति इतनी ख़राब है कि दिल्ली के सक्षम लोग तीन गुना ज्यादा किराया देकर दुबई भागने लगे हैं जबकि पिछले साल दुबई से लोग भारत आ रहे थे. कई सारे विधायक-अधिकारी भी कोरोना का शिकार हो चुके हैं. कम-से-कम कोरोना बीमारों में कोई भेद-भाव नहीं कर रहा वरना भारत में कानून तो अंग्रेजों के ज़माने से ही अमीरों की रखैल है.
मित्रों, आप कहेंगे कि पिछले एक साल से सरकारें इस मामले में क्या कर रही थीं. ऑक्सीजन प्लांट बैठाना कोई राकेट साइंस तो है नहीं. तो जवाब है कि पिछले साल केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन प्लांट खोलने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को दी थीं और राज्य सरकारों ने उस पर ध्यान तक नहीं दिया. राज्य सरकारों को पैसे भी दे दिए गए थे। बांकी राज्य सरकारों ने उनका किधर दुरूपयोग किया पता नहीं लेकिन केजरीवाल ने पूरा पैसा टीवी पर थोबड़ा दिखाने में लगा दिया। फिर केंद्र सरकार की जिम्मेदारी थी कि वो राज्य सरकारों को तकादा करके काम पूरा करवाए लेकिन केंद्र ने ऐसा नहीं किया. अब जबकि कोरोना दोबारा कहीं ज्यादा भीषणता के साथ कोहराम मचा रहा है तो अफरातफरी मची हुई है लेकिन भोज शुरू होने के बाद कद्दू रोपने से कब कोई लाभ हुआ है जो अब होगा.
मित्रों, इतना ही नहीं जब कोरोना की दूसरी लहर ने कहर ढाना शुरू कर दिया था तब भारत के माननीय प्रधानसेवक जी बंगाल में बड़ी-बड़ी रैलियां कर रहे थे जो कि अपने आपमें खुद एक अपराध था. अब प्रधान सेवक जी ने बेमन से रैलियों में जाना बंद कर दिया है लेकिन रैलियों को बंद नहीं किया है बल्कि अब डिजिटली रैलियों को संबोधित कर रहे हैं. मतलब अब भी रैलियों में लोगों को ईकट्ठा किया जा रहा है जबकि कोरोना से देश की हालत ख़राब हो चुकी है. मतलब कि प्रधानमंत्री जी को सिर्फ कुर्सी से मतलब है जनता के स्वास्थ्य से उनको कुछ भी लेना-देना नहीं है.
मित्रों, आप कहेंगे कि प्रधानमंत्री जी लगातार मीटिंग तो कर ही रहे हैं और क्या करें? मीटिंग हो, होनी भी चाहिए लेकिन उसका परिणाम भी तो धरातल पर दिखे. हमने मोदी सरकार के गठन के मात्र २ महीने के बाद अपने गवर्नेंट विथ डिफरेंस कहाँ तक डिफरेंट? शीर्षक आलेख में कहा था कि मोदी जी हमें आपकी कोशिश नहीं परिणाम चाहिए. हमने उस आलेख में एक बन्दर के जंगल का राजा बन जाने की कहानी भी लिखी थी जिसमें बन्दर एक डाल से दूसरे डाल पर कूद-कूद कर जानवरों से अपना व्यवहार सुधारने की अपील करता फिरता है. बाद में जब जानवर क्षुब्ध हो जाते हैं तब कहता है कि मेरी कोशिश में तो कमी नहीं थी.
मित्रों, जाहिर है कि मित्रों वाले प्रधानमंत्री जी हर मोर्चे पर विफल साबित हो चुके हैं. उनसे न चीन संभल रहा है, न चीनी बीमारी संभल रही है. अमेरिका जो प्रधानमंत्री का सबसे नजदीकी मित्र है इस संकट में टीका बनाने के लिए कच्चा माल तक नहीं दे रहा. कोरोना की जो हालत है उसमें पता नहीं मेरा कौन-सा आलेख मेरा अंतिम आलेख हो जाए. अंत में यही कहूँगा कि चाय-पकौडेवाले को टिप्स तो दी जा सकती है लेकिन उनके हाथों में देश नहीं दिया जा सकता.
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