शुक्रवार, 11 जून 2021
बंगाल की अंतर्कथा और राष्ट्रीय परिदृश्य
मित्रों, हुआ यूं कि मेरे गाँव में एक परिवार था. परिवार के सारे सदस्य मिलजुल कर रहते थे. फिर बड़े बेटे की शादी हुई. आंगन के अन्य पट्टीदारों ने सास-ससुर के खिलाफ बड़ी बहू के कान भरने शुरू कर दिए. लेकिन बड़ी बहू समझदार थी इसलिए उनकी दाल नहीं गली. फिर कुछेक साल बाद जब छोटे बेटे की शादी हुई तब उन्होंने फिर छोटी बहू के कान भरने शुरू कर दिए. संयोगवश छोटी थी कान की कच्ची सो उनकी बातों में आ गई. इस प्रकार एक खुशहाल परिवार लड़ाई का अखाडा बन गया. परेशान होकर ससुर और बड़े भाई ने बंटवारा कर दिया. जैसे ही बंटवारा हुआ पट्टीदार छोटे बेटे और बहू को तंग करने लगे. ऐसा लगने लगा जैसे उनको आँगन में रहने ही नहीं देंगे.
मित्रों, कुछ ऐसा ही खेल बंगाल में कई दशकों से चल रहा है. पहले साम्यवाद और नक्सलवाद के नाम पर वामपंथियों ने बंगाल के अवर्णों को सवर्णों से अलग कर दिया. फिर बांग्लादेश से ला-लाकर घुसपैठियों को बंगाल में भर दिया और अवर्णों और मुसलमानों का सामाजिक समीकरण बनाकर तीन दशकों तक लगातार बंगाल को कुछ इस तरह से लूटा कि बंगाल बंगाल से कंगाल बन गया.
मित्रों, फिर आई ममता जिसमें ममता एक छटांक भी नहीं थी. वो बस नाममात्र की हिन्दू थी. उनके लिए हिन्दू सिर्फ वोट बैंक थे. उधर बंगाल के मुसलमानों की तो जैसे लौटरी ही लग गई थी. कम्युनिस्ट जहाँ खुलकर मुस्लिम तुष्टिकरण करने से बचते थे ममता एक मुसलमान से भी ज्यादा मुसलमान थी. जो रोगी को भावे वही वैद फरमावे. मुसलमान अब खुलकर अपने दारुल इस्लाम के १४०० साल पुराने एजेंडे पर जुट गए. जाहिर था कि चाहे बंगाल हो या पाकिस्तान या बांग्लादेश सवर्ण हिन्दुओं का मुसलमानों से कम ही वास्ता पड़ता है लेकिन बहुत सारे दलित हिन्दू मुसलमानों के रैयत हैं इसलिए वे मुसलमानों के लिए सॉफ्ट टारगेट बन जाते हैं.
मित्रों, जिस तरह नक्सलवाद के समय बहुत सारे हिन्दुओं ने मुसलमानों के साथ मिलकर कथित क्रांति के लिए बहुत सारे सवर्ण हिन्दुओं को मार डाला था दुर्भाग्यवश इस समय भी बहुत सारे हिन्दू तृणमूल कांग्रेस के बहकावे में आकर मुसलमानों के साथ मिलकर अपने हिन्दू भाईयों की हत्या कर रहे हैं. विडंबना यह है कि तब भी बंगाल में हिन्दू मारे जा रहे थे और अब भी हिन्दू ही मारे जा रहे हैं. वास्तव में इन दिनों बंगाल में नरभक्षी भेड़ियों का आतंकी राज चल रहा है.
मित्रों, अब रही बात भाजपा की तो उसे तो बस राज भोगने और पैसा कमाने से मतलब है. हिंदुत्व वगैरह अटल-आडवाणी के समय जरूर पार्टी का मुख्य लक्ष्य था लेकिन आज की भाजपा के लिए हिंदुत्व सह उत्पाद भर है बाई प्रोडक्ट, मुख्य उत्पाद तो पैसा है. कदाचित यही कारण है कि भाजपा बंगाल में हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार, सामूहिक बलात्कार से आँखें मूंदें है. जब सपा के समय यूपी जल रहा था तब भी मोदी ने कोई कदम नहीं उठाया था इसलिए इस सरकार से तो कोई उम्मीद करना ही बेकार है.
मित्रों, तो ये रही बंगाल की अंतर्कथा. लेकिन क्या आप जानते हैं हैं भीम आर्मी के माध्यम से ठीक यही प्रयोग पूरे भारत में करने के प्रयास किए जा रहे हैं? राष्ट्रिय स्तर पर अवर्ण हिन्दुओं को हिन्दुओं की मुख्य धारा से अलग करने के प्रयास किए जा रहे हैं. फिर इस कहानी के अंत में भी वही होगा जो उत्तर प्रदेश के नीरपुर, बिहार के बायसी और हरियाणा के मेवात में हो रहा है. धीरे-धीरे प्रत्येक हिन्दू की बारी आएगी, बचेगा कोई नहीं.
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