बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

आखिर कब सुधरेंगे बिहार के पटवारी?

मित्रों, साल तो याद नहीं लेकिन १९८० के दशक की बात है. पिताजी हर महीने प्रसिद्ध पत्रिका कादम्बिनी लाते थे. ऐसे ही किसी साल के दिवाली अंक में चम्बल के पूर्व डाकू मोहर सिंह का साक्षात्कार छपा था. मोहर सिंह से जब पूछा गया कि वो बागी क्यों बने तो उन्होंने कहा था कि अगर गाँव का पटवारी सुधर जाए तो कोई बागी नहीं बनेगा. मित्रों, उत्तर प्रदेश का तो पता नहीं कि वहां के पटवारी सुधरे कि नहीं लेकिन अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि बिहार के पटवारी नहीं सुधरे हैं. मैं दावे के साथ कहता हूँ कि अभी भी बिहार में एक भी दाखिल ख़ारिज बिना रिश्वत दिए नहीं होता. राजस्व मंत्री की जमीन का भले ही हो गया हो. इतना ही नहीं पैसा देने पर भी दाखिल ख़ारिज में कर्मचारी सालों साल लगा देता है. मित्रों, ईधर सरकार कहती है कि दाखिल ख़ारिज को ऑनलाइन कर दिया गया है लेकिन सच्चाई यही है कि सारे काम ऑफलाइन हो रहे हैं. इस बारे में पूछने पर एक राजस्व कर्मचारी ने दिलचस्प वाकया सुनाया. हुआ यह कि किसी किसान ने दाखिल ख़ारिज के लिए ऑनलाइन आवेदन दिया. फिर वो कर्मचारी से मिलने आया. कर्मचारी ने २५०० रूपये मांगे तो किसान ने कहा कि आप काम करिए मैं रसीद कटवाने आऊंगा तो पैसे दे दूंगा. कर्मचारी ने विश्वास करके काम करवा दिया और उसे ऑनलाइन भी कर दिया. उधर किसान चालाक निकला और कर्मचारी के पास रसीद कटवाने आया ही नहीं. जब कई महीने बीत गए तब कर्मचारी को शक हुआ और उसने चेक किया. कर्मचारी यह देखकर सन्न रह गया कि किसान ने ऑनलाइन रसीद कटवा लिया था. कर्मचारी ने बताया कि उसने अपनी जेब से सीओ और सीआई को १००० रूपये दे रखे थे. इस धोखे के बाद उस कर्मचारी ने बिना पैसे लिए ऑनलाइन दाखिल ख़ारिज करना ही बंद कर दिया. मजबूरन पार्टी को उसके पास जाना ही पड़ता है और बार-बार जाना पड़ता है. मित्रों, हमारे एक परिचित की तो जमीन ही चोरी हो गई. बेचारे की खतियानी जमीन थी. जब वो रसीद कटवाने गया तो पता चला कि जमीन है ही नहीं. बेचारे की पाँव तले की जमीन भी खिसक गई. आजकल बेचारे डीसीएलआर कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं. मित्रों, अब सुनिए सरकार की तो उसे जहाँ विभाग में पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए वहीँ वो पारदर्शिता कम करने में लगी है. संशोधन करके सूचना के अधिकार की जान पहले ही निकाली जा चुकी है. पहले जहाँ बिहार भूमि वेबसाइट पर हरेक मौजा में किस-किस किसान का दाखिल ख़ारिज का आवेदन कितने महीनों या सालों से लंबित है का विवरण उपलब्ध रहता था वहीँ अब अनुपलब्ध है. अब किसान सिर्फ अपने आवेदन की स्थिति देख सकता है. न जाने सरकार ने वेबसाइट में इस तरह का संशोधन क्यों किया जिससे इस महाभ्रष्ट विभाग में और भी ज्यादा भ्रष्टाचार हो जाए. मित्रों, आज ही यह समाचार पढने को मिला कि अब अंचलाधिकारी दाखिल ख़ारिज का काम नहीं देखेंगे लेकिन उससे होगा क्या? जो अधिकारी दाखिल ख़ारिज देखेगा क्या वो रिश्वत नहीं लेगा? फिर यह कोई सुधार तो हुआ नहीं. यह भी पढ़ा कि कानपुर आईआईटी की टीम ने कोई नया सॉफ्टवेयर बनाया है जिससे बिना रिश्वत के दाखिल ख़ारिज हो सकेगा. देखते हैं कि आगे होता क्या है? वैसे मुझे नहीं लगता कि अंचलाधिकारी, अंचल निरीक्षक और हलका कर्मचारी के पास इसका तोड़ नहीं होगा. ऐसे में ४० साल बाद वही सवाल उठता है जो चम्बल के कुख्यात डाकू मोहर सिंह ने तब उठाया था कि आखिर कब सुधरेंगे बिहार के पटवारी?

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