शनिवार, 22 अक्तूबर 2022
इस लोकतंत्र से तो राजतन्त्र ही अच्छा था
मित्रों, पिछले दिनों मेरे साथ जो हुआ उसके बाद मैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि इस लोकतंत्र से तो राजतंत्र अच्छा था. हुआ यह कि मैंने महनार के सीओ के यहाँ फटिकवाडा मौजा में अपनी माँ के नाम से जमीन की दाखिल ख़ारिज के लिए आवेदन दिया. आवेदन देने के करीब एक साल बाद जब मैंने सीओ रमेश प्रसाद सिंह से संपर्क कर विलम्ब का कारण पूछा तो वो आवेदन रिजेक्ट कर देने की धमकी देने लगे जबकि हल्का कर्मचारी और सीआई की रिपोर्ट कह रही थी कि जमीन पाक-साफ़ है, जगरानी देवी के पास हाजीपुर कोर्ट की डिक्री है और जमीन पर उनका दखल कब्ज़ा भी है. फिर भी कागजात अपठनीय कहकर सीओ ने आवेदन रद्द कर दिया क्योंकि बिहार के सीओ बिना पैसा लिए दाखिल ख़ारिज करते ही नहीं है. मुझे आश्चर्यमिश्रित गुस्सा आया कि जो कागज कर्मचारी और सीआई के लिए पठनीय था सीओ के लिए अपठनीय कैसे हो गया? जब मैंने सीओ से बात की तो उन्होंने सीधा कहा अपील में जाईए मुझे जो करना था कर दिया. अब कुछ नहीं हो सकता चाहे कहीं भी चले जाईए.
मित्रों, मैंने गुस्से में आकर नमो ऐप पर शिकायत की. मुझे पूरा विश्वास था कि प्रधानमंत्री जी के पास शिकायत करने से मेरी समस्या का समाधान हो जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पीएमओ ने मेरे मामले को जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, वैशाली को भेज दिया जिन्होंने छह महीने दौड़ाने के बाद मेरे केस को रिजेक्ट कर दिया और कहा कि जो सीओ कह रहे हैं वही सही है जबकि मेरे पास सीओ को झूठा साबित करने के पर्याप्त प्रमाण थे.
मित्रों, अब आप बताएं कि रिश्वतखोर अधिकारियों से त्रस्त जनता कहाँ जाए? मुख्यमंत्री सुनते नहीं, प्रधानमंत्री सिवाय औपचारिकता के कुछ कर नहीं सकते फिर बिहार की जनता करे तो क्या करे? क्या इसी दिन के लिए हमारे पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी? क्या इसी दिन के लिए ५५० से ज्यादा राजाओं ने अपने अधिकारों का त्याग किया था? आज सरकार काम के बदले सामाजिक समीकरण पर भरोसा करती है. चारों तरफ हंस चुगेगा दाना धूर्त कौआ मोती खाएगा वाली हालत है. खुलेआम घोटाले किए जा रहे, रिश्वत लिए जा रहे. क्या यही लोकतंत्र है. भारतीय लोकतंत्र के तीनों स्तम्भ निरंकुश हो गए हैं और मनमानी कर रहे हैं. जज अपने पक्ष में फैसले दे रहे हैं और कोलेजियम पर अड़े हुए हैं, नेता अपने पेंशन और सुविधाओं को कायम रखने और बढ़ाने के लिए कानून बनाने की अपनी संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं. कार्यपालिका ने खुद को ही क़ानून घोषित कर दिया है और कहती है आई एम द लॉ जैसा कि आपने मेरे मामले में देखा. हरेक दफ्तर को दुकान बनाकर रख दिया गया है जहाँ बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता. गुंडे-आवारा शिक्षक बन गए हैं और विद्वान भूखों मर रहे हैं. ७०००० प्राप्त करनेवाले सरकारी शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों जितना भी ज्ञान नहीं है और उनके बच्चों को ७००० पाने वाले निजी स्कूलों के शिक्षक पढ़ा रहे हैं. दहेज़ और हरिजन एक्ट सहित सारे कानूनों का जमकर दुरूपयोग हो रहा है. जो व्यक्ति मुखिया-सरपंच बनते समय पैदल होता है पांच साल में ही कार की सवारी करने लगता है. जिनको जेल में होना चाहिए वह देश-प्रदेश के कर्णधार बने हुए हैं. २०१५ के चुनावों के समय रवीश कुमार ने ठीक ही कहा था कि बिहार में बहार है. बिहार में बहार है रवीश जी मगर सिर्फ भ्रष्टाचारियों की बहार है. हर तरफ रूदन बर्बादी है क्या इसी का नाम आजादी है.
मित्रों, हम सपना देख रहे हैं कि भारत को अमेरिका बना देंगे. मगर कैसे? नम्बी नारायण को झूठे मुकदमे में फंसाकर और थर्ड डिग्री देकर. अमेरिका तो अपने वैज्ञानिकों के साथ ऐसा नहीं करता. बल्कि वो तो थामस अल्वा एडिसन को सारी सुविधाएँ देता है ताकि वो रेल यात्रा के समय भी प्रयोग कर सकें और १४०० चीजों का आविष्कार कर सके. इस तरह तो प्रतिभा को लॉक उप में बंद कर भारत कभी अमेरिका नहीं बन पाएगा. जिस ढांचे और कानून के सहारे फिरंगियों ने भारत को लूटा अब नेता लूट रहे हैं और पकडे जाने पर अपनी जाति और धर्म की आड़ लेने लगते हैं. कई भ्रष्टाचारियों ने तो सीधे खुद को गाँधी और भगत सिंह तक घोषित कर रखा है. इतिहास गवाह है कि ऐसा तो राजतन्त्र में नहीं होता था. राजा रघु ने अपना सबकुछ दान कर दिया था, बलि ने देह तक नाप दिया था. राजतंत्र में आरक्षण के नाम पर प्रतिभा का गला नहीं घोंटा जाता था बल्कि उसका सम्मान किया जाता था. महेश दास को बीरबल की पदवी दी जाती थी, तो राम तनु पांडे को तानसेन की, टोडरमल का भी सम्मान था तो रामाकृष्णा तेनालीराम का भी, राम चन्द्र पांडुरंग को तात्या टोपे का ख़िताब देकर सेनापति बनाया जाता था. अंगराज कर्ण और बीआर अम्बेदकर भी तमाम आलोचनाओं के बावजूद राजतंत्र की ही देन थे. अब आप ही बताईए इस लोकतंत्र का हम करें तो क्या करें जहाँ प्रधानमंत्री तक लाचार है. सड़ी हुई चीजों का तो अंचार भी नहीं डाल सकते.
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