सोमवार, 7 अगस्त 2023

मणिपुर के बाद मेवात से भाग मिल्खा भाग

मित्रों, अपना भारत भी गजब देश है. दुनिया में ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जहाँ बहुसंख्यक हाशिए पर हों और अल्पसंख्यक इस कदर हावी हों कि बहुसंख्यकों के लिए अपने धार्मिक क्रिया-कलाप का पालन करना जानलेवा हो जाए. मानो हिन्दू न हुए बकरे हो गए जब जी चाहे दस-बीस के गले रेत डालो. मानो हिन्दू न हुए पंछी हो गए जब जी चाहे बन्दूक उठाओ और दस-बीस को मारकर गिरा दो. कभी बंगाल में कांवरियों को डरे-सहमे समुदाय द्वारा पीटा जाता है तो कभी मणिपुर में घुसपैठियों द्वारा उनका सामूहिक नरसंहार कर दिया जाता है तो कभी हरियाणा के मेवात में तीन तरफ से पहाड़ पर से घेरकर मंदिर गए हिन्दू श्रद्धालुओं पर गोलीबारी कर दी जाती है और न जाने हत्याकांड को सही ठहराने के लिए क्या-क्या बहाने बनाए जाते हैं. जैसे, उन्होंने जय श्रीराम के नारे क्यों लगाए? उनको यात्रा निकालने के लिए यही इलाका मिला था? उन्होंने हमारी बहन को गाली क्यों दी? उन्होंने एक मुसलमान की गाड़ी में धक्का क्यों मारा? उन्होंने बदतमीजी की आदि-आदि. हाय, कितने मासूम हैं वो कि बहाने बनाना भी नहीं आता, छिपाना चाहते हैं अपनी गंदी फितरत को छिपाना भी नहीं आता। मित्रों, हमने बचपन में अपनी पाठ्य-पुस्तक में एक कहानी पढी थी जो आज बड़ी शिद्दत से याद आ रही है. किसी जंगल में एक मेमना एक झरने से पानी पीने गया तभी उसने देखा कि एक भेड़िया भी उससे ऊपर झरने का पानी पी रहा है. बेचारा मेमना चुपचाप पानी पी रहा था कि तभी भेड़िया चिल्लाया कि तू मेरे पानी को जूठा कर रहे हो. सुनकर मेमना हैरान हो गया कि जबकि भेड़िया ऊपर पानी पी रहा है तो वो कैसे उसके पानी को जूठा कर सकता है. जब उसने भेड़िये को समझाने की कोशिश की तो भेड़िए ने आरोप बदल दिया और कहने लगा कि तेरे बाप ने मुझे बहुत दिन पहले गाली दी थी और फिर भेड़िया मेमने को खा गया. मित्रों, कहने का तात्पर्य यह है कि भेड़िये को तो बस मेमने को मारकर खा जाने का बहाना चाहिए भले ही वो झूठा हो या फिर भले ही उसमें दम नहीं हो. मणिपुर में घुसपैठिए ईसाईयों को और मेवात में रोहिंग्या सहित सभी मुसलमानों को बस हिन्दुओं को मारना था, सबक सिखाना था, डराना था कि तुम जब तक हिन्दू रहोगे तुमको हम चैन से जीने नहीं देंगे. उनको हमसे समस्या और कुछ नहीं है बस इतनी-सी है कि हम हिन्दू क्यों हैं, ईसाई या मुसलमान क्यों नहीं हो जाते. २०२० के दिल्ली दंगों के बारे में कोर्ट भी कह चुका है कि मुसलमान हिन्दुओं को सबक सिखाना चाहते थे. मित्रों, आपने देखा होगा कि बलि या क़ुरबानी हमेशा मेमनों की दी जाती है शेर-बाघों की नहीं. फैसला अब हम हिन्दुओं को करना है कि हम मेमने बनकर रहेंगे या शेर बनकर. जो व्यक्ति अपने तन की भी रक्षा नहीं कर सकता वो देश-धर्म की रक्षा क्या करेगा. मिल्खा सिंह की तरह भागोगे तो बस भागते ही रहोगे, पाकिस्तान से भागकर भारत आ गए अब भारत से भागकर कहाँ जाओगे? कोई दूसरा हिन्दू देश तो है नहीं इस भूमंडल पर? इसलिए अपनी रक्षा करना सीखो, घमंड छोड़ो और पूरे हिन्दू समाज के बारे में सोंचो, सबको साथ लेकर चलना सीखो.

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