गुरुवार, 14 नवंबर 2024

नीतीश बाबू का सुशासन मॉडल अद्भुत-मोदी!

मित्रों, आज हमने ज्यों ही दैनिक हिंदुस्तान अख़बार का प्रथम पृष्ठ देखा चौंक गया. कल दरभंगा की धरती से भारत के प्रधानमंत्री ने बिहार की नीतीश सरकार के प्रशस्ति गान में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और यहाँ तक बोल गए कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी का सुशासन मॉडल अद्भुत है. पता नहीं एक समय नीतीश जी के डीएनए पर सवाल उठानेवाले प्रधानमंत्री जी ने ऐसा राजनैतिक मजबूरी में कहा या फिर उनको बिहार की वस्तु-स्थिति के बारे में कुछ पता ही नहीं है. वैसे कारण चाहे पहला हो या दूसरा दोनों ही स्थिति खतरनाक है. मित्रों, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि नीतीश जी के बिहार के मुख्यमंत्री बनने से पहले बिहार में जंगलराज था लेकिन बिहार में जंगलराज तो आज भी है बस उसका स्वरुप बदल गया है. पहले जहाँ रंगबाज जनता को बन्दूक दिखाकर लूट रहे थे नीतीश राज में अधिकारी कलम दिखाकर जनता को लूट रहे हैं. आज की तारीख में ऐसा कोई सरकारी काम नहीं जो बिहार में बिना रिश्वत दिए हो जाता हो. सबसे ख़राब स्थिति पुलिस और राजस्व विभाग की है. पुलिस बिना रिश्वत लिए एफ़आईआर तक दर्ज नहीं करती तो वहीँ राजस्व विभाग बिना पैसे लिए दाखिल ख़ारिज तक नहीं करता. खुद मैंने ४ मौजों में जमीन का दाखिल ख़ारिज करवा कर भ्रष्टाचार को जाना और भोगा है जबकि सम्बंधित अंचलाधिकारी अच्छी तरह से जानते थे कि मैं एक पत्रकार हूँ. फिर भी उन्होंने एक ही तरह के कागजात के आधार पर तीन मौजे की जमीन का दाखिल ख़ारिज तो कर दिया लेकिन एक मौजे का आवेदन इस बेतुके आधार पर रिजेक्ट कर दिया कि कागजात अपठनीय है जबकि कागजात हुबहू वही थे. आखिर तीन मौजे के मामले में वही कागजात पठनीय और एक मौजे के मामले में अपठनीय कैसे हो गए? नहीं समझे तो समझाता हूँ दरअसल बांकी तीन के लिए मैंने पैसे दिए थे जबकि एक के लिए नहीं दिए. मित्रों, अब आप कहेंगे कि दोषी मैं भी हूँ रिश्वत देने का. हाँ, मैं दोषी हूँ लेकिन अगर पैसे नहीं देता तो निश्चित रूप से अंचलाधिकारी महोदय बांकी तीन मौजों के आवेदन भी रद्द कर देते. मुझे इस सन्दर्भ में इतिहास से एक उदाहरण याद आ रहा है. कहते हैं कि फिरोजशाह तुगलक (१३५१-८८) के समय में भ्रष्टाचार चरम पर था. सुल्तान का एक नजदीकी जब इसकी शिकायत लेकर सुल्तान के पास पहुंचा तब सुल्तान ने कहा कि कभी-कभी तो उसे खुद रिश्वत देनी पड़ती है. फिर सुल्तान ने उस व्यक्ति को पैसे देते हुए कहा कि जाओ उस अधिकारी को ये पैसे देकर अपना काम करवा लो. मित्रों, अभी शुक्रवार 8 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भ्रष्ट लोगों के खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई बहुत ही जरूरी है, क्योंकि देरी से या कमजोर कार्रवाई से ऐसे लोगों को बढ़ावा मिलता है। राष्ट्रपति ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के सतर्कता जागरूकता सप्ताह समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि विश्वास सामाजिक जीवन का आधार है और भ्रष्टाचार लोकतंत्र में जनता के विश्वास को कमजोर करता है. लेकिन सवाल उठता है कि जब अधिकारी एक पत्रकार को भी अंगूठा दिखा देते हैं तो आम आदमी की क्या बिसात? सवाल यह भी उठता है कि बिहार के अधिकारियों में ऐसा करने की हिम्मत आती कहाँ से है? मैंने फिर नमो ऐप पर शिकायत की वो भी पूरे प्रमाण के साथ. वहां से मेरी शिकायत वैशाली जिला लोक शिकायत में भेज दी गयी और फिर शुरू हुआ तारीखों का खेल. लोक शिकायत पदाधिकारी ने कई महीनों तक कार्यालय में कदम ही नहीं रखे. फिर एक दिन मुझे बताए बिना उस सीओ को बुलाकर स्पष्टीकरण लिखवा लिया गया जिसमें वही सफाई दी गई थी कि कागजात अपठनीय थे. उनसे यह पूछा तक नहीं गया कि जबकि तीन मौजों के लिए कागजात पठनीय थे तो एक मौजा के लिए अपठनीय कैसे हो गए? और फिर मेरे केस को रिजेक्ट कर दिया गया. उसके बाद से जब भी मैंने नमो ऐप पर बिहार सरकार से सम्बंधित कोई भी शिकायत की है तो उसे लोकशिकायतों की कब्रगाह जिला लोक शिकायत में भेज दिया गया है और कर्तव्यों की इतिश्री कर ली गई है. जबकि मामले को सीधे सम्बंधित विभाग में भेजा जाना चाहिए था. अब भारत की माननीया राष्ट्रपति जी बताएंगी कि बिहार की भ्रष्ट्राचारपीड़ित जनता जाए तो कहाँ जाए जबकि प्रधानमंत्री के स्तर तक तो कुछ होता नहीं. अब क्या हम अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय, हेग का रूख करें? मित्रों, इतना ही नहीं बिहार में अदालत के फैसलों का भी कोई मतलब नहीं है. मान लिया आपने कोई जमीन का मुकदमा जीता और कोर्ट ने आपको दखल कब्ज़ा भी करवा दिया तो इसका मतलब यह नहीं कि आपका उस जमीन कर कब्ज़ा हो ही जाएगा. उधर कोर्ट के अधिकारी कब्ज़ा दिलवाकर वापस गए नहीं कि दबंग फिर से जमीन पर चढ़ जाएंगे और फिर से वही सारे चक्कर. बिहार में नीतीश राज में भी मुगलकालीन कहावत लागू होती है-जमीन जोरू जोर का नहीं तो किसी और का. कहने का तात्पर्य यह कि मोदीजी बुरा मानें या भला बिहार में कोई सुशासन नहीं है बल्कि आज भी बिहार में जंगलराज है. बिहार में पहले अपराधी जनता को लूटते थे अब सिस्टम लूट रहा है मगर पूरी खामोशी से. बिहार में आज भी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी काम नहीं करने के ऐवज में सरकार से वेतन लेते हैं और काम करने के बदले जनता से रिश्वत. लालू-राबड़ी राज से अंतर बस इतना है कि आज पटना उच्च न्यायालय नहीं कह रहा कि बिहार में जंगलराज है. मैं मोदी जी और नीतीश कुमार जी से हाथ जोड़कर विनती करना चाहूँगा कि सिर्फ दिखावा नहीं करिए वास्तव में धरातल पर काम होना चाहिए। और वास्तिवकता यह है जब आप बिहार के थाने में अपने मोबाइल के चोरी हो जाने की एफ़आइआर करने जाएंगे तो आपसे लिखवाया जाएगा कि मोबाइल चोरी नहीं हुआ खो गया है. इतना ही नहीं जब आपके किसी परिजन की हत्या हो जाती है और आप लाश लेने पोस्टमार्टम कक्ष में जाते हैं तो क्या मजाल कि बिना हजारों रूपये की रिश्वत लिए आपको अपने प्रियजन का शव दे दिया जाए. फिर न्याय मिलना तो दूर की कौड़ी रही. गुर्दाचोरी की शिकार सुनीता के साथ जो कुछ हुआ किसी से छिपा हुआ नहीं है. गजब तो यह कि कल जब प्रधानमंत्री बिहार में सुशासन होने के अद्भुत दावे कर रहे थे उसी दिन बिहार की राजधानी पटना के एक आश्रय गृह में जहरीला भोजन खाने से छः और १२ वर्ष की दो बच्चियों सहित तीन महिलाओं की मौत हो गई, वहीं 12 महिलाएं गंभीर रूप से बीमार पड़ गईं। मित्रों, आज से डेढ़ सौ साल पहले भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जो तत्कालीन शासन के बारे में कहा था वही बात दुर्भाग्यवश आज के राजनेताओं पर भी अक्षरशः लागू होती है फिर चाहे वो किसी भी पार्टी का कोई भी नेता हो- भीतर भीतर सब रस चूसै। हँसि हँसि कै तन मन धन मूसै। जाहिर बातन मैं अति तेज। क्यों सखि साजन नहिं अँगरेज।

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