गुरुवार, 12 अगस्त 2010

भारत नाम जहाज चढ़े सों कभी न उतरे पार


कवि सदियों से भारत का मानवीकरण करते रहे हैं पर हमें तो लीक से हटकर चलने की आदत है.हम भारतमाता के सपूत जो ठहरे और वो कहते हैं न कि लीके लीक गाड़ी चले लीके चले कपूत,लीक छाड़ी के तीन चले सिंह,शायर,सपूत.सो भारतमाता का सच्चा सपूत होने का काफी दमदार परिचय देते हुए हमने उनका जहाजीकरण कर दिया है.नहीं समझे?मेरे भाइयों और उन भाइयों की बहनों मैंने बीजगणित के प्रश्न की तरह मान लिया है कि भारतमाता एक जहाज हैं और दुनिया के समंदर में विचरण कर रही हैं.जहाज के कप्तान जनमोहन सिंह अपने सख्त सुरक्षावाले वातानुकूलित कक्ष में सोए हुए हैं.वह क्यों सोये हुए हैं यह भी बता दूंगा,धीरज तो रखिए.क्या कहा?नहीं रख सकते तो फ़िर इस देश में जन्म लेने की क्या जरूरत थी यहाँ तो १०० रूपये के लिए हुए मुकदमे का फैसला भी ५० सालों में आता है?जहाज घूम रहा है,घूम रहा है,गोल-गोल.एक विदेशी पत्रकार जो अभी-अभी जहाज पर आया था सारे परिदृश्य को देखकर हैरान-परेशान हो गया.सीधे जा धमका कप्तान को जगा ही तो दिया.कई बार जम्हाई लेने के बाद माननीय जनमोहन सिंह जी ने अपने लबे मुबारक खोलते हुए पूछा-क्यूं जगाया भाई?अगला चुनाव जीतने का कितना अच्छा सपना देख रहा था.पत्रकार ने पूछा-श्रीमान जहाज किसी किनारे की ओर क्यों नहीं बढ़ाते?जनता को गोल-गोल क्यों घुमा रहे हैं?कप्तान जी कमर के बगल में तकिया दबाते हुए कहा-क्यों ले जाऊं किनारे पर जब जनता गोल-गोल घूमकर ही मस्त है?मीनारे का मतलब है मंजिल और जब हम मंजिल पर पहुँच जाएँगे तब करने को क्या बचेगा और जब मेरे पास करने को कुछ नहीं बच तो जनता कप्तान नहीं बदल देगी?और अगर नहीं भी बदले तो रिस्क क्यों लें जब बिना रिस्क लिए ही सबकुछ गें हो जा रहा हो.पत्रकार महोदय ने दूसरा सवाल ठोंका-श्रीमान जहाज के अलग-अलग हिस्सों पर अलग-अलग लोग समानांतर सत्ता चला रहे हैं और आप सो रहे हैं.कप्तान जी ने चतुर सुजन की तरह मुस्कुराते हुए कहा-आपने कभी सत्ता के विकेंद्रीकरण का नाम सुना है तो भैया सत्ता का विकेंद्रीकरण और क्या है यही तो है.सबको थोड़ी-थोड़ी सत्ता दे दीजिये और निश्चिन्त रहिये.जितने अधिक क्षेत्र पर अपनी सत्ता नहीं रही चिंता उतनी ही कम होती गई.पत्रकार विस्मित था विद्वान कप्तान जी की मौलिक सोंच पर.उसने देखा कि माननीय की आँखें फ़िर से उनींदी हो रही हैं सो जल्दी बाजी में तीसरा सवाल पूछ लिए-महाशय जहाज की पेंदी को चूहे कुतर रहे हैं.आपको जहाज के डूबने का डर नहीं है?जनमोहन जी ने एक आँख को खोलते हुए जवाब दिया-भाई मेरे चूहे हैं तो उनका जो स्वाभाव है वही काम करेंगे न.यह देशरूपी जहाज बहुत मोटी तहवाला है डूबने में समय लगेगा.डूब भी जाए तो अपना क्या दूसरे कई जहाजों पाकर अपने रहने का उत्तम प्रबंध है.हेलीकाप्टर को भी डेक पर तैयार रखा है,निकल लेंगे. और कुछ पूछना है तुमको तो जल्दी पूछो मुझे बड़ी नींद आ रही है.पत्रकार ने एक क्षण की भी देरी नहीं करते हुए अंतिम सवाल पूछा-श्रीमान नीचे के तले पर लोग धर्म और जाति के नाम पर लड़ रहे हैं.क्या यह सब आपको अच्छा लग रहा है?कप्तान ने स्वर को धीमे करते हुए कहा-क्यों नहीं अच्छा लगेगा?हमने ही तो उन्हें लड़ाया है.आपस में ही उलझे नहीं रहेंगे तो जहाज की चिंता करने लगेंगे तब फ़िर हमें कौन कप्तान की कुर्सी पर रहने देगा?इस प्रश्न का उत्तर देते-देते धीरे-धीरे जनमोहन जी का स्वर पंचम से ऋषभ पर आ पहुंचा और नाक और गले से राग खर्राटा बजने लगा.पत्रकार ने भी डूबते जहाज से खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझी और अपने देशवाले जहाज की ओर रवाना हो गया.

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