क्या इसी का नाम आज़ादी है?
देश कर रहा तीव्र विकास,
गरीबों का हो रहा विनाश;
उद्योगपति हैं मालामाल,
आम आदमी हुआ बेहाल;
नेता-पुलिस लूट रहे देश को
बदनाम खाकी-खादी है;
हर तरफ रूदन-बर्बादी है,
क्या इसी का नाम आज़ादी है?
सूचना मांगो गोली मिलती,
न्याय मांगो तो तारीख मिलती;
ग्राम-प्रधान शोषण कर रहा,
भाई-भतीजों का पोषण कर रहा;
राशन-किरासन ब्लैक हो रहा,
गोदामों में अनाज सड़ रहा;
सुरसा के मुंह की तरह तेजी से,
बढ़ रही आबादी है;
हर तरफ रूदन बर्बादी है,
क्या इसी का नाम आज़ादी है?
नक्सली आतंक फैला रहे,
आम जनता को डरा रहे;
नेता जनता को बरगला रहे;
महंगा हुआ जीना भारत में,
महंगी बेटी की शादी है;
हर तरफ रूदन बर्बादी है,
क्या इसी का नाम आज़ादी है?
देश को लूटने की आज़ादी,
कानून तोड़ने की आज़ादी;
कानून बनाने की आज़ादी,
घूस खाने की आज़ादी;
जनता को बाँटने की आज़ादी,
योजना बनाने की आज़ादी;
डंडा लहराने की आज़ादी;
हर तरफ माहौल-ए- आज़ादी,
हर किसी को हके आज़ादी है;
हर तरफ रूदन बर्बादी है,
क्या इसी का नाम आज़ादी है?
2 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया लिखा है! शुक्रिया
-शेखर मित्तल
भई मान गये क्या दमदार लिखा है। काश ये रचनात्मक संवेदनशीलता कभी देश के संचालकों के कानों तक गूंजे।
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