बुधवार, 28 नवंबर 2018

कांग्रेस का मुस्लिम घोषणापत्र

मित्रों, अगर कोई मुझसे पूछे कि भारत का सबसे ज्यादा नुकसान किसने किया है तो मेरा बस एक ही जवाब होता है कि छद्म धर्मनिरपेक्षता की राजनीति ने. असल में लालू, मुलायम, माया, नवीन, नायडू, जया, करुणा, ज्योति, अजीत, सुरजीत, केजरीवाल, चौटाला और कांग्रेस पार्टी का जो एजेंडा रहा है, जो राजनीति रही है वो धर्मनिरपेक्ष रही ही नहीं है बल्कि हिंदुविरोध और मुस्लिम तुष्टिकरण की रही है. है न अद्भुत? बहुसंख्यक को अपमानित करो, हाशिए पर डाल दो और जो अल्पसंख्यक हैं उनको देश का मालिक-सर्वेसर्वा बना दो. फिर भी कहो कि लोकतंत्र तो बहुमत से चलता है.
मित्रों, आपको याद होगा कि भारत के पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लाल किले से अपने पहले संबोधन में कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है. क्यों होना चाहिए उनको पहला हक़? आज मोदी को कम बोलने की सलाह देनेवाले मनमोहन क्या बतलाएँगे कि उन्होंने ऐसा क्यों नहीं कहा था कि भारत के संसाधनों पर सबका बराबर हक़ है? जिस कॉम ने सैंकड़ों सालों तक एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में तलवार लेकर कश्मीर से लेकर तमिलनाडु और बलूचिस्तान से लेकर असम तक धर्म के नाम पर हिन्दुओं पर अनंत अत्याचार किए क्यों होना चाहिए देश के संसाधनों पर उनका पहला हक़, क्यों? 
मित्रों, मैं बताता हूँ क्यों? क्यों कांग्रेस पार्टी ऐसा चाहती है? क्योंकि कांग्रेस पार्टी को नेहरु के समय से ही हिन्दुओं और हिन्दू धर्म से नफरत है. अभी मुझे १९४६ का एक अख़बार पढने का मौका मिला जिसमें जवाहर लाल नेहरु धमकी दे रहे थे कि अगर भारत धर्मनिरपेक्ष घोषित नहीं हुआ और हिन्दू राष्ट्र घोषित हुआ तो वे प्रधानमंत्री के पद से त्यागपत्र दे देंगे. फिर देश का बंटवारा हुआ ही क्यों? क्या देश का बंटवारा धर्म के नाम पर नहीं हुआ था? और क्या नेहरु ने उस रक्तरंजित बंटवारे को रोकने के लिए कुछ किया था?
मित्रों, फिर भी मैं मानता हूँ कि भारत ने धर्मनिरपेक्षता की घोषणा करके ठीक किया लेकिन क्या नेहरु के समय से ही कांग्रेस और मुसलमान एक दूजे के लिए बने हुए नहीं हैं? जो मुसलमान १५ अगस्त १९४७ से पहले १६ अगस्त १९४६ को प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस के समय से ही कोलकाता से सियालकोट तक जिन्ना के आह्वान पर हिन्दुओं के खून की नदियाँ बहा रहे थे क्या वे इस तारीख के बाद अचानक हिन्दुओं से अगाध प्रेम करने लगे? कांग्रेस भी समझती थी और समझती है कि ऐसा नहीं है और न ही हो सकता है. देश का धर्म के आधार पर बंटवारा करनेवाले मुसलमान आजादी के बाद से अगर चुप हैं तो वो उनकी मजबूरी है और इससे ज्यादा और कुछ नहीं. जिस दिन उनकी आबादी ५० प्रतिशत से ज्यादा हुई उस दिन न तो हिन्दू रहेंगे और न ही हिंदुस्तान रहेगा. हाँ, कांग्रेस पार्टी जरूर रहेगी. इसलिए मैं भारत सरकार से अविलम्ब जनसँख्या नियंत्रण कानून लाने की मांग करता हूँ.
मित्रों, अभी राहुल गाँधी एक तरफ तो मध्य प्रदेश और राजस्थान में भगवा पहनकर और अपना दत्तात्रेय गोत्र बतलाकर मंदिर में भगवान और हिन्दुओं की आँखों में धूल झोंकने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीँ दूसरी ओर तेलंगाना में उनकी पार्टी का घोषणापत्र मुस्लिम घोषणापत्र बनकर रह जाता है जिसमें उनकी पार्टी सिर्फ मुस्लिमों के लिए सात घोषणाएं करती हैं, इन्द्रधनुषी-सतरंगी घोषणाएं. पार्टी ने अपने घोषणापत्र में मस्जिदों और चर्च को मुफ्त बिजली, इमाम और पादरियों को हर महीने तनख्वाह देने सहित कई लुभावने वादे किए हैं। घोषणापत्र के मसोदे के मुताबिक कांग्रेस ने सत्ता में आने पर उर्दू को राज्य की 'दूसरी आधिकारिक भाषा' बनाने और सरकारी आदेश इस भाषा में भी जारी किए जाने का वादा किया है। इसके साथ-साथ कांग्रेस ने मुस्लिम फाइनेंस कॉर्पोरेशन के तहत मुस्लिम युवाओं को सरकारी ठेके हासिल करने में मदद दिलानेल और आरक्षण देने की बात भी कही है। इसके साथ ही मुसलमानों को घर बनाने के लिए 5 लाख रुपए की वित्तीय सहायता और गरीब छात्रों को विदेश जाकर पढ़ाई करने के लिए 20 लाख रुपए का लोन देने की बात कही गई है। विशेष रेसिडेंशियल स्कूलों और सरकारी अस्पतालों में मुस्लिमों को तवज्जो के अलावा वक्फ बोर्ड को न्यायिक शक्ति दी जाएगी। इतना ही नहीं राज्य में मस्जिदों के सभी इमाम को हर महीने छह हजार रुपए का वेतन देने का वादा भी किया गया है.
मित्रों, मैं इस घोषणापत्र को देखकर आश्चर्यचकित हूँ कि यह भारत की एक पार्टी का घोषणापत्र है न कि पाकिस्तान की किसी राजनैतिक पार्टी का. इन घोषणाओं का विश्लेषण करिए फिर समझ में आ जाएगा कि कांग्रेस के दिलो-दिमाग में क्या है. बांकी विघटनकारी वादों के अलावे वक्फ बोर्ड को न्यायिक शक्ति देने तक का वादा उसने किया है. फिर तो भारत में अदालतें भी दो तरह की हो जाएंगी. कुछ इसी तरह की मांगें जो इस घोषणापत्र में हैं आजादी से पहले मुस्लिम लीग कर रही थी और इसी कांग्रेस पर हिन्दुओं की पार्टी होने के झूठे आरोप लगा रही थी क्योंकि कांग्रेस न तो तब हिन्दुओं की पार्टी थी और न ही अब है. बल्कि उसने तब भी हिन्दुओं का इस्तेमाल किया और आज भी कर रही है.
मित्रों, अगर आपने मोदी पर नोटा का सोंटा चलाने की सोंच रखी है तो अब तेलंगाना का कांग्रेस का घोषणापत्र पढ़कर आपकी ऑंखें खुल जानी चाहिए. मैं अपने बारे में तो पहले भी कह चुका हूँ कि अगर मुझे राहुल और मोदी के बीच चुनना पड़े तो हजार बार मोदी को ही चुनूँगा क्योंकि राहुल हिन्दुओं को सिर्फ धोखा दे सकता है उनसे प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि हिन्दुओं से प्रेम तो उसके कथित पूर्वज कथित हिन्दू नेहरु के खून में ही नहीं था. 
मित्रों, इस आलेख का अंत मैं गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता अँधेरे में की चंद पंक्तियों के साथ करना चाहूँगा हालाँकि इन पक्तियों का अपने आलेखों में प्रयोग मैं पहले भी कर चुका हूँ. तो गौर फरमाईए एक बार फिर और एक बार फिर कांग्रेस के खिलाफ वोट देकर इन चुनावों को कांग्रेस पार्टी की अंतिम यात्रा में बदल दीजिए, बना दीजिए इन चुनावों को और हरेक चुनाव को शोभायात्रा कांग्रेस नामक मृत-दल की.
कर्नल, बिग्रेडियर, जनरल, मॉर्शल
कई और सेनापति सेनाध्यक्ष
चेहरे वे मेरे जाने-बूझे से लगते,
उनके चित्र समाचारपत्रों में छपे थे,
उनके लेख देखे थे,
यहाँ तक कि कविताएँ पढ़ी थीं
भई वाह!
उनमें कई प्रकांड आलोचक, विचारक जगमगाते कवि-गण
मंत्री भी, उद्योगपति और विद्वान
यहाँ तक कि शहर का हत्यारा कुख्यात
डोमाजी उस्ताद
बनता है बलबन
हाय, हाय !!
यहाँ ये दीखते हैं भूत-पिशाच-काय।
भीतर का राक्षसी स्वार्थ अब
साफ उभर आया है,
छिपे हुए उद्देश्य
यहाँ निखर आये हैं,
यह शोभायात्रा है किसी मृत-दल की।
विचारों की फिरकी सिर में घूमती है

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

बिहार में नाली या नाली में बिहार

मित्रों, बिहार! नाम तो आपने भी सुना होगा. भारत का गौरव. भारतीय इतिहास का मुकुटमणि. लेकिन वर्तमान में भारत का सबसे बीमार राज्य. जहाँ हर चुनाव में विधायक बदल जाते हैं,गठबंधन बदल जाते हैं, निजाम बदल जाते हैं, सत्ता बदल जाती है मंत्रियों के नाम बदल जाते हैं बस नहीं बदलती तो बिहार की तस्वीर और तक़दीर.
मित्रों, मुझे याद आता है १९९५ का विधानसभा चुनाव. स्थान कोढ़ा,कटिहार. अटल जी मेरी आँखों के सामने भाषण दे रहे हैं. उम्मीदवार हैं मेरे घनिष्ठ अरविन्द कुमार महाराणा. अटल जी अपने खास अंदाज में बताते हैं कि बिहार की सड़कें उनको बहुत कष्ट देती हैं. यहाँ पता ही नहीं चलता कि सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें. जनता तालियाँ बजाती है और यह अटल वाक्य तत्कालीन बिहार का प्रतीक बन जाता है.
मित्रों, फिर वक़्त बदलता है. सरकार बदलती है. तारीख बदल जाती है और कैलेंडर पर दर्ज होता है १७ नवम्बर,२०१८. पटना के पुनाई चक में १० साल का दीपक दिन के २ बजे अपने पिता के लिए दोपहर का खाना ले जा रहा है. तभी रास्ते में एक आवारा गाय भड़क जाती है और उसे मारने के लिए दौड़ती है. बचने के लिए वो भागता है और खुले हुए में मेनहोल में गिर जाता है. सड़क पर ठेला लगानेवाले गुड्डू को जब पता चलता है कि उसका इकलौता बेटा नाली में गिर गया है तो वो बेतहाशा दौड़ता हुआ आता है. एक बेहद गरीब परिवार के दीपक दीपक को बुझने के बचाने के लिए सरकारी प्रयास सरकारी लापरवाही और जानी-पहचानी देरी के साथ शुरू होता है. आज तीन दिन हो जाते हैं लेकिन दीपक का पता नहीं चलता. पता चलता है तो बस इस बात का कि पटना नरक निगम के पास नालियों का नक्शा ही नहीं है और पता इस बात का भी चलता है कि दशकों से इन नालियों की सफाई हुई ही नहीं है. यह भी पता चलता है कि बिहार में शराबबंदी नीतीश कुमार नाम के महाढोंगी नेता का ढोंग है क्योंकि नाली से क्विंटल में शराबबंदी के बाद की शराब की बोतलें बरामद होती हैं.
मित्रों, पटना में मेनहोल का खुला होना,गायों का आवारा विचरण करना और नालियों की सफाई नहीं होना कोई नई बात नहीं है. नई बात यह है कि पहले यह पता नहीं चलता था कि बिहार में सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें अब बिहार में सरकार सतह से ढाई गज जमीन के नीचे पहुँच चुकी है और यह पता नहीं चल रहा कि बिहार में नाली है या नाली में बिहार.
मित्रों, सब कुछ अस्त-व्यस्त. सब कुछ अस्त हो चुका है. न कहीं सरकार और दूर-दूर तक न कहीं सरकार का नामो-निशान. अभी उसी पटना में जो सिपाही विद्रोह हुआ उसके बारे में आपने भी पढ़ा-सुना होगा. सिपाही विद्रोह पटना में पहले भी हो चुके हैं, १८५७ में. मगर यह १८५७ के पटना के दानापुर के सिपाही विद्रोह की तरह गौरवमयी नहीं था बल्कि बेशर्मों द्वारा शासित हो रहे बिहार को शर्मशार करनेवाला था. महिला सिपाहियों से छुट्टी के बदले ईज्जत मांगी गई थी, सर्वस्व मांगा गया था.
मित्रों, बिहार में सुशासन १९९० से ही बेघर है जब यहाँ लालू जी मुख्यमंत्री बने थे. २००५ से लालू जी के मुंहबोले छोटे भाई का राज है मगर असलियत यह है कि लालू-राबड़ी का शासन इनसे कहीं अच्छा था. आज के बिहार में हर जगह अराजकता,भ्रष्टाचार,अनाचार,अत्याचार है और है हर तरफ घनघोर निराशावादी अँधेरे का साम्राज्य. सृजन घोटाले और मुजफ्फरपुर कांड में तो खुद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री भी शक के कटघरे में हैं. सवाल है कि नाली से कैसे बाहर आएगा बिहार, कैसे निकलेगा बाहर, कौन बाहर निकालेगा इसे और कैसे? क्या बिहार खुद नाली से बाहर निकलना चाहता भी है?

रविवार, 18 नवंबर 2018

पांच राज्यों के चुनाव और देशद्रोही कांग्रेस पार्टी

मित्रों, इन दिनों भारत के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं. चारों राज्यों में भाजपा और कांग्रेस में मुकाबला है. आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है. इन दिनों सौभाग्यवश भाजपाइयों की तरफ से बदजुबानी नहीं हो रही मगर कांग्रेस की ओर से उटपटांग बयानों की जैसे बाढ़ आई हुई है. कभी शशि थरूर तो कभी कमलनाथ और कभी नवजोत सिंह सिद्धू. कमलनाथ महिलाओं के खिलाफ बयान दे रहे तो सिद्धू को जैसे पता ही नहीं है कि गोधरा में ट्रेन को भाजपाइयों ने नहीं कांग्रेसियों ने जलाया था.
मित्रों, इस बीच एक और घटना ने देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है और वह है पंजाब में आतंकी घटना. विदित हो कि इन दिनों पंजाब में कांग्रेस पार्टी की सरकार है. फिर ऐसा क्यों है कि जो पंजाब पिछले १० सालों से शांत था कांग्रेस की सरकार आते ही वहां आतंकी घुसपैठ होने लगी? वैसे भी कांग्रेस का पाकिस्तान-प्रेम सर्वविदित है. तो क्या हम उम्मीद रखें कि जिन-जिन राज्यों में निकट भविष्य में कांग्रेस की सरकार बनेगी उन सभी राज्यों में पाकिस्तान-समर्थित आतंकवादी घटनाएँ देखने को मिलेंगी?
मित्रों, बांकी मोर्चों पर भले ही मोदी सरकार का रिकॉर्ड उतना अच्छा नहीं रहा हो मगर इसे आतंकवाद और माओवाद पर लगाम लगाने में सफलता जरूर मिली है. इन दिनों जिस तरह कश्मीर में आतंकवाद से लड़ा जा रहा है ऐसे अगर १९९० के दशक में लड़ा गया होता तो कदाचित वहां आतकवाद पैदा ही नहीं हुआ होता फलने-फूलने की तो बात ही दूर रही.
मित्रों, इन चुनावों में कांग्रेस ने जो घोषणापत्र जारी किए हैं उनसे उसकी वैचारिक दीनता ही प्रदर्शित हो रही है. यह फ्री में देंगे तो वह फ्री में देंगे. बस इससे आगे कुछ भी नहीं. क्या फ्री में सबकुछ दे देने और कर्ज माफ़ कर देने से किसानों की स्थिति सुधर जाएगी? अगर ऐसे सुधरनी होती तो बहुत पहले सुधर गयी होती और वे हवाई जहाज से चल रहे होते न कि आत्महत्या कर रहे होते.
मित्रों, इन दिनों राफेल डील को लेकर कांग्रेस काफी मुखर है जबकि सरकार द्वारा इस मामले में ज्यादातर सवालों का जवाब दिया जा चुका है और ऐसा लगता है कि कुल मिलाकर वैसी कोई गड़बड़ी इस मामले में हुई नहीं है जैसा कि आरोपों में साबित करने की कोशिश चल रही है. बल्कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस नहीं चाहती कि भारत की सेना मजबूत हो और चीन के आगे ताल ठोंककर खडी हो. इन दिनों मालदीव और श्रीलंका से भी हमारे लिए उत्साहजनक समाचार आ रहे हैं जिससे हिंदमहासागर में भारत को घेरने की राहुल गाँधी के प्रिय चीन की कुत्सित मंशा को आघात लगा है. मोदी की पाकिस्तान नीति भी शानदार रही है जिससे पाकिस्तान आज दुनिया में नीलामी पर चढ़े देश के रूप में जाना जाता है.
मित्रों, नोटबंदी और जीएसटी का जहाँ तक सवाल है तो इनके दुष्परिणाम भी रहे और सद्परिणाम भी. इनसे विकास दर घटी और बेरोजगारी बढ़ी तो वहीँ कर वसूली और कर दाताओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. भ्रष्टाचार और कालेधन के मोर्चे पर भी यह सरकार अब तक सफल नहीं दिख रही. फिर भी देश का विश्वास अभी भी भाजपा में ही है क्योंकि देश का कुछ भला करेगी तो भाजपा ही करेगी कांग्रेस तो सिर्फ घोटाले कर सकती है और इसके साथ ही चीन-पाकिस्तान और कश्मीरी आतंकवादियों के साथ गलबहियां भी. एक मंदबुद्धि और पोप के पीडी से हम उम्मीद भी क्या कर सकते हैं?

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

योगी बनें 2019 में प्रधानमंत्री

मित्रों, इन दिनों देश के हालात कैसे है और मोदी सरकार जिस तरह काम कर रही है किसी से छिपी नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि केंद्र में सरकार नाम की चीज ही नहीं है। अधिकतर मंत्री या तो अयोग्य है या फिर योग्यतानुसार उनको मंत्रालय ही नही दिया गया है।
मित्रों, वास्तविकता तो यह भी है केंद्र सरकार मोदी नहीं चला रहे पूर्व (शेयर) दलाल अमित शाह चला रहे हैं। अब तो हालात ऐसे हैं कि मोदी के आगमन पर शाह कई बार खडे भी नही होते। समझ मेंं नहीं आता कि शाह से मोदी इतना डर क्यों रहे हैं या उन पर इतना निर्भर क्यों हैं या इतना भाव क्यों दे रहे हैं? यहाँ तक कि पहली बार राज्य सभा में आए शाह की सीट तमाम प्रोटोकॉलों को दरकिनार करते हुए प्रधानमंत्री की बगल मेंं निर्धारित कर दी गई है।
मित्रों, अरूण जेटली को आप भी जानते होंगे। कोई जीतकर भी मंत्री नहीं बना और उनको चुनाव हारने के बावजूद वित्त मंत्री बना दिया गया जबकि इस आदमी को अर्थव्यवस्था की एबीसीडी भी नहीं आती। इस बीमार आदमी को अर्थव्यवस्था को बीमार बना देने के बाद भी न जाने क्यों वित्त मंत्री बनाए रखा गया है? यह आदमी इन दिनों रिजर्व बैंक से उलझा हुआ है। सूत्रों की माने तो यह आदमी पहले से खस्ताहाल हो चुके बैंकोंं पर भाजपा के मित्र अरबपतियों को लोन देने का दबाव डाल रहे हैं चाहे खजाना खाली ही क्यों न हो जाए।
मित्रों, क्या आपको याद है कि मोदीजी ने कौन-कौन से वादे किए थे? दुर्भाग्यवश उनके सारे वादे जुमले साबित हो चुके हैं।
जनता ने एक सच्चे देशभक्त को वोट दिया था पर वो तो पिछडी और गंदी सोंचवाला मूर्तिवादी-जातिवादी नेता निकला। जनता के बीच रहते हुए हमने महसूस किया है कि निराश और स्तब्ध जनता ने उनको सबक सिखाने का मन बना लिया है। ऐसे में अगर 2019 के चुनावों में भाजपा ने पीएम पद का उम्मीदवार नहीं बदला तो हिंदुत्ववादी शासन का फिर से देश से अंत हो जाएगा और भविष्य में पता नहीं फिर कब ऐसा अवसर आए और इस बीच हिंदुओं के साथ कैसे-2 अन्याय किए जाएं।
मित्रों, इसलिए बेहतर होगा कि भाजपा उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 2019 के चुनावों में अपना पीएम उम्मीदवार बनाए। मेरी नजर में तो तमाम खामियों के बावजूद वे सबसे बेहतर विकल्प हैं। वैसे अगर आपकी नजर में भाजपा के भीतर कोई और बेहतर विकल्प है तो बताईए। मगर जहाँ तक मैं हवा के रूख और जनता के मन और मिजाज को समझ रहा हूँ मोदी को अगले चुनावों में पीएम पद का उम्मीदवार नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि मोदी देश और पार्टी दोनों के लिए हानिकारक हैं।


गुरुवार, 1 नवंबर 2018

कुत्ते का मांस खानेवाला ब्राह्मण

मित्रों, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु बड़े ही गर्व से कहा करते थे कि
I am English by education, a Muslim by culture, just born as a Hindu by accident”? किसी ने भी पंडित जी को कभी पूजा-पाठ करते या मंदिर जाते नहीं देखा. उनकी बेटी इंदिरा मंदिर तो गई थीं पर चुनावी जरूरतों के कारण। कदाचित वो नास्तिक धीं क्योकि वे शपथ भी ईश्वर की नहीं लेती थी. फिर उसके खानदान से हम क्या उम्मीद रखें?
मित्रों, अभी कुछ साल पहले ही इंदिरा और फिरोज का पोता राहुल गाँधी कहा करता था कि जो हिन्दू मंदिर जाते हैं वे लड़कियां छेड़ने जाते हैं. इतना ही नहीं उसी पार्टी की सरकार ने हिन्दुओं के खिलाफ एक कानून बनाने का प्रयास भी किया जिसके तहत दंगे होने पर सिर्फ हिन्दुओं को ही दोषी माना जाता. फिर ऐसा क्या हुआ कि वही राहुल जनेऊधारी ब्राह्मण बनकर मंदिरों के चक्कर लगाने लगा? कई बार इस तरह के विवाद भी इस बीच उत्पन्न हुए कि राहुल ने मंदिर जाने से पहले मांस खाया था. मुझे लगा कि यह झूठ होगा और बेवजह यह विवाद खड़ा किया जा रहा है परन्तु अब लगता है कि खाया भी होगा क्योंकि वो आदमी इन दिनों मध्य प्रदेश में जीत सुनिश्चित देखकर खुलेआम ऐतिहासिदक नगरी इंदौर में हॉट डॉग यानि कुत्ते का मांस खोजता फिर रहा है उसके लिए मंदिर की पवित्रता क्या मायने रखती है? वो तो गोमांस खाकर मंदिर जाता होगा क्योंकि मंदिर जाना उसके लिए एक औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं. मंदिर जाना उनकी मजबूरी है जैसे रावण के लिए साधू बनना मजबूरी थी. हद तो यह रही कि मांस भक्षण के बाद यह कलयुगी रावण यह कहता है कि वो राष्ट्रवादी है हिंदूवादी नहीं जबकि वास्तविकता तो यह है कि वो न तो राष्ट्रवादी है और न ही हिन्दू, वो एक बहुरुपिया ठग है. जिस व्यक्ति को राष्ट्र की संस्कृति से कोई कोई लगाव, कोई प्रेम नहीं बल्कि महान सनातन संस्कृति से घनघोर घृणा हो,जो मानसिक रूप से पूर्णतया विदेशी हो वो राष्ट्रवादी हो ही नहीं सकता.
मित्रों, इस सन्दर्भ में मैंने पहले भी कहा है कि राहुल और रावण में कोई अंतर नहीं है. रावण भी जब सीता माता का अपहरण करने गया था तब साधू के वेश में गया था परन्तु क्या ऐसा करने से रावण मूलतः राक्षस नहीं गया था? सच्चाई तो यही थी कि रावण ने साधू वेश का छल के लिए दुरुपयोग किया. वह एक राक्षस था और मरते दम तक राक्षस ही रहा.
मित्रों, राहुल के साथ भी यही बात है. राहुल भी मरते दम तक अहिंदू था और अहिंदू रहेगा. नेहरु तो फिर भी जन्मना हिन्दू थे. राहुल तो जन्मना भी अहिंदू है क्योंकि उसका बाप जन्मना पारसी था और उनकी माँ जन्मना ईसाई है और वो भी पोप की नगरी की. राहुल तो by education, by culture aur by born हर तरीके से अहिंदू है और अहिंदू रहेगा बस जिस तरह से कुछ देर के लिए रावण साधू बन गया था उसी तरह से ये भी कुछ क्षणों के लिए हिन्दू बन गया है. जैसे ये हमसे हमारा सबकुछ छीन लेगा ये फिर से रावण की तरह अपने असली रूप में आ जाएगा इसलिए इस बहुरूपिए राक्षस से सावधान रहने की जरुरत है अन्यथा फिर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत. वैसे भी अगर मुझे मोदी और राहुल में से हजार बार किसी एक को चुनना पड़े तो मैं हजार बार मोदी को ही चुनूँगा क्योंकि राहुल को चुनने से देश, धन और धर्म तीनों के विनाश का खतरा है जबकि मोदी को वोट देने से धन चला भी जाए पर देश और धर्म निश्चित रूप से सुरक्षित रहेंगे.