मित्रों, बिहार! नाम तो आपने भी सुना होगा. भारत का गौरव. भारतीय इतिहास का मुकुटमणि. लेकिन वर्तमान में भारत का सबसे बीमार राज्य. जहाँ हर चुनाव में विधायक बदल जाते हैं,गठबंधन बदल जाते हैं, निजाम बदल जाते हैं, सत्ता बदल जाती है मंत्रियों के नाम बदल जाते हैं बस नहीं बदलती तो बिहार की तस्वीर और तक़दीर.
मित्रों, मुझे याद आता है १९९५ का विधानसभा चुनाव. स्थान कोढ़ा,कटिहार. अटल जी मेरी आँखों के सामने भाषण दे रहे हैं. उम्मीदवार हैं मेरे घनिष्ठ अरविन्द कुमार महाराणा. अटल जी अपने खास अंदाज में बताते हैं कि बिहार की सड़कें उनको बहुत कष्ट देती हैं. यहाँ पता ही नहीं चलता कि सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें. जनता तालियाँ बजाती है और यह अटल वाक्य तत्कालीन बिहार का प्रतीक बन जाता है.
मित्रों, फिर वक़्त बदलता है. सरकार बदलती है. तारीख बदल जाती है और कैलेंडर पर दर्ज होता है १७ नवम्बर,२०१८. पटना के पुनाई चक में १० साल का दीपक दिन के २ बजे अपने पिता के लिए दोपहर का खाना ले जा रहा है. तभी रास्ते में एक आवारा गाय भड़क जाती है और उसे मारने के लिए दौड़ती है. बचने के लिए वो भागता है और खुले हुए में मेनहोल में गिर जाता है. सड़क पर ठेला लगानेवाले गुड्डू को जब पता चलता है कि उसका इकलौता बेटा नाली में गिर गया है तो वो बेतहाशा दौड़ता हुआ आता है. एक बेहद गरीब परिवार के दीपक दीपक को बुझने के बचाने के लिए सरकारी प्रयास सरकारी लापरवाही और जानी-पहचानी देरी के साथ शुरू होता है. आज तीन दिन हो जाते हैं लेकिन दीपक का पता नहीं चलता. पता चलता है तो बस इस बात का कि पटना नरक निगम के पास नालियों का नक्शा ही नहीं है और पता इस बात का भी चलता है कि दशकों से इन नालियों की सफाई हुई ही नहीं है. यह भी पता चलता है कि बिहार में शराबबंदी नीतीश कुमार नाम के महाढोंगी नेता का ढोंग है क्योंकि नाली से क्विंटल में शराबबंदी के बाद की शराब की बोतलें बरामद होती हैं.
मित्रों, पटना में मेनहोल का खुला होना,गायों का आवारा विचरण करना और नालियों की सफाई नहीं होना कोई नई बात नहीं है. नई बात यह है कि पहले यह पता नहीं चलता था कि बिहार में सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें अब बिहार में सरकार सतह से ढाई गज जमीन के नीचे पहुँच चुकी है और यह पता नहीं चल रहा कि बिहार में नाली है या नाली में बिहार.
मित्रों, सब कुछ अस्त-व्यस्त. सब कुछ अस्त हो चुका है. न कहीं सरकार और दूर-दूर तक न कहीं सरकार का नामो-निशान. अभी उसी पटना में जो सिपाही विद्रोह हुआ उसके बारे में आपने भी पढ़ा-सुना होगा. सिपाही विद्रोह पटना में पहले भी हो चुके हैं, १८५७ में. मगर यह १८५७ के पटना के दानापुर के सिपाही विद्रोह की तरह गौरवमयी नहीं था बल्कि बेशर्मों द्वारा शासित हो रहे बिहार को शर्मशार करनेवाला था. महिला सिपाहियों से छुट्टी के बदले ईज्जत मांगी गई थी, सर्वस्व मांगा गया था.
मित्रों, बिहार में सुशासन १९९० से ही बेघर है जब यहाँ लालू जी मुख्यमंत्री बने थे. २००५ से लालू जी के मुंहबोले छोटे भाई का राज है मगर असलियत यह है कि लालू-राबड़ी का शासन इनसे कहीं अच्छा था. आज के बिहार में हर जगह अराजकता,भ्रष्टाचार,अनाचार,अत्याचार है और है हर तरफ घनघोर निराशावादी अँधेरे का साम्राज्य. सृजन घोटाले और मुजफ्फरपुर कांड में तो खुद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री भी शक के कटघरे में हैं. सवाल है कि नाली से कैसे बाहर आएगा बिहार, कैसे निकलेगा बाहर, कौन बाहर निकालेगा इसे और कैसे? क्या बिहार खुद नाली से बाहर निकलना चाहता भी है?
मित्रों, मुझे याद आता है १९९५ का विधानसभा चुनाव. स्थान कोढ़ा,कटिहार. अटल जी मेरी आँखों के सामने भाषण दे रहे हैं. उम्मीदवार हैं मेरे घनिष्ठ अरविन्द कुमार महाराणा. अटल जी अपने खास अंदाज में बताते हैं कि बिहार की सड़कें उनको बहुत कष्ट देती हैं. यहाँ पता ही नहीं चलता कि सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें. जनता तालियाँ बजाती है और यह अटल वाक्य तत्कालीन बिहार का प्रतीक बन जाता है.
मित्रों, फिर वक़्त बदलता है. सरकार बदलती है. तारीख बदल जाती है और कैलेंडर पर दर्ज होता है १७ नवम्बर,२०१८. पटना के पुनाई चक में १० साल का दीपक दिन के २ बजे अपने पिता के लिए दोपहर का खाना ले जा रहा है. तभी रास्ते में एक आवारा गाय भड़क जाती है और उसे मारने के लिए दौड़ती है. बचने के लिए वो भागता है और खुले हुए में मेनहोल में गिर जाता है. सड़क पर ठेला लगानेवाले गुड्डू को जब पता चलता है कि उसका इकलौता बेटा नाली में गिर गया है तो वो बेतहाशा दौड़ता हुआ आता है. एक बेहद गरीब परिवार के दीपक दीपक को बुझने के बचाने के लिए सरकारी प्रयास सरकारी लापरवाही और जानी-पहचानी देरी के साथ शुरू होता है. आज तीन दिन हो जाते हैं लेकिन दीपक का पता नहीं चलता. पता चलता है तो बस इस बात का कि पटना नरक निगम के पास नालियों का नक्शा ही नहीं है और पता इस बात का भी चलता है कि दशकों से इन नालियों की सफाई हुई ही नहीं है. यह भी पता चलता है कि बिहार में शराबबंदी नीतीश कुमार नाम के महाढोंगी नेता का ढोंग है क्योंकि नाली से क्विंटल में शराबबंदी के बाद की शराब की बोतलें बरामद होती हैं.
मित्रों, पटना में मेनहोल का खुला होना,गायों का आवारा विचरण करना और नालियों की सफाई नहीं होना कोई नई बात नहीं है. नई बात यह है कि पहले यह पता नहीं चलता था कि बिहार में सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें अब बिहार में सरकार सतह से ढाई गज जमीन के नीचे पहुँच चुकी है और यह पता नहीं चल रहा कि बिहार में नाली है या नाली में बिहार.
मित्रों, सब कुछ अस्त-व्यस्त. सब कुछ अस्त हो चुका है. न कहीं सरकार और दूर-दूर तक न कहीं सरकार का नामो-निशान. अभी उसी पटना में जो सिपाही विद्रोह हुआ उसके बारे में आपने भी पढ़ा-सुना होगा. सिपाही विद्रोह पटना में पहले भी हो चुके हैं, १८५७ में. मगर यह १८५७ के पटना के दानापुर के सिपाही विद्रोह की तरह गौरवमयी नहीं था बल्कि बेशर्मों द्वारा शासित हो रहे बिहार को शर्मशार करनेवाला था. महिला सिपाहियों से छुट्टी के बदले ईज्जत मांगी गई थी, सर्वस्व मांगा गया था.
मित्रों, बिहार में सुशासन १९९० से ही बेघर है जब यहाँ लालू जी मुख्यमंत्री बने थे. २००५ से लालू जी के मुंहबोले छोटे भाई का राज है मगर असलियत यह है कि लालू-राबड़ी का शासन इनसे कहीं अच्छा था. आज के बिहार में हर जगह अराजकता,भ्रष्टाचार,अनाचार,अत्याचार है और है हर तरफ घनघोर निराशावादी अँधेरे का साम्राज्य. सृजन घोटाले और मुजफ्फरपुर कांड में तो खुद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री भी शक के कटघरे में हैं. सवाल है कि नाली से कैसे बाहर आएगा बिहार, कैसे निकलेगा बाहर, कौन बाहर निकालेगा इसे और कैसे? क्या बिहार खुद नाली से बाहर निकलना चाहता भी है?
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