मित्रों, अगर कोई मुझसे पूछे कि भारत का सबसे ज्यादा नुकसान किसने किया है तो मेरा बस एक ही जवाब होता है कि छद्म धर्मनिरपेक्षता की राजनीति ने. असल में लालू, मुलायम, माया, नवीन, नायडू, जया, करुणा, ज्योति, अजीत, सुरजीत, केजरीवाल, चौटाला और कांग्रेस पार्टी का जो एजेंडा रहा है, जो राजनीति रही है वो धर्मनिरपेक्ष रही ही नहीं है बल्कि हिंदुविरोध और मुस्लिम तुष्टिकरण की रही है. है न अद्भुत? बहुसंख्यक को अपमानित करो, हाशिए पर डाल दो और जो अल्पसंख्यक हैं उनको देश का मालिक-सर्वेसर्वा बना दो. फिर भी कहो कि लोकतंत्र तो बहुमत से चलता है.
मित्रों, आपको याद होगा कि भारत के पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लाल किले से अपने पहले संबोधन में कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है. क्यों होना चाहिए उनको पहला हक़? आज मोदी को कम बोलने की सलाह देनेवाले मनमोहन क्या बतलाएँगे कि उन्होंने ऐसा क्यों नहीं कहा था कि भारत के संसाधनों पर सबका बराबर हक़ है? जिस कॉम ने सैंकड़ों सालों तक एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में तलवार लेकर कश्मीर से लेकर तमिलनाडु और बलूचिस्तान से लेकर असम तक धर्म के नाम पर हिन्दुओं पर अनंत अत्याचार किए क्यों होना चाहिए देश के संसाधनों पर उनका पहला हक़, क्यों?
मित्रों, मैं बताता हूँ क्यों? क्यों कांग्रेस पार्टी ऐसा चाहती है? क्योंकि कांग्रेस पार्टी को नेहरु के समय से ही हिन्दुओं और हिन्दू धर्म से नफरत है. अभी मुझे १९४६ का एक अख़बार पढने का मौका मिला जिसमें जवाहर लाल नेहरु धमकी दे रहे थे कि अगर भारत धर्मनिरपेक्ष घोषित नहीं हुआ और हिन्दू राष्ट्र घोषित हुआ तो वे प्रधानमंत्री के पद से त्यागपत्र दे देंगे. फिर देश का बंटवारा हुआ ही क्यों? क्या देश का बंटवारा धर्म के नाम पर नहीं हुआ था? और क्या नेहरु ने उस रक्तरंजित बंटवारे को रोकने के लिए कुछ किया था?
मित्रों, फिर भी मैं मानता हूँ कि भारत ने धर्मनिरपेक्षता की घोषणा करके ठीक किया लेकिन क्या नेहरु के समय से ही कांग्रेस और मुसलमान एक दूजे के लिए बने हुए नहीं हैं? जो मुसलमान १५ अगस्त १९४७ से पहले १६ अगस्त १९४६ को प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस के समय से ही कोलकाता से सियालकोट तक जिन्ना के आह्वान पर हिन्दुओं के खून की नदियाँ बहा रहे थे क्या वे इस तारीख के बाद अचानक हिन्दुओं से अगाध प्रेम करने लगे? कांग्रेस भी समझती थी और समझती है कि ऐसा नहीं है और न ही हो सकता है. देश का धर्म के आधार पर बंटवारा करनेवाले मुसलमान आजादी के बाद से अगर चुप हैं तो वो उनकी मजबूरी है और इससे ज्यादा और कुछ नहीं. जिस दिन उनकी आबादी ५० प्रतिशत से ज्यादा हुई उस दिन न तो हिन्दू रहेंगे और न ही हिंदुस्तान रहेगा. हाँ, कांग्रेस पार्टी जरूर रहेगी. इसलिए मैं भारत सरकार से अविलम्ब जनसँख्या नियंत्रण कानून लाने की मांग करता हूँ.
मित्रों, अभी राहुल गाँधी एक तरफ तो मध्य प्रदेश और राजस्थान में भगवा पहनकर और अपना दत्तात्रेय गोत्र बतलाकर मंदिर में भगवान और हिन्दुओं की आँखों में धूल झोंकने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीँ दूसरी ओर तेलंगाना में उनकी पार्टी का घोषणापत्र मुस्लिम घोषणापत्र बनकर रह जाता है जिसमें उनकी पार्टी सिर्फ मुस्लिमों के लिए सात घोषणाएं करती हैं, इन्द्रधनुषी-सतरंगी घोषणाएं. पार्टी ने अपने घोषणापत्र में मस्जिदों और चर्च को मुफ्त बिजली, इमाम और पादरियों को हर महीने तनख्वाह देने सहित कई लुभावने वादे किए हैं। घोषणापत्र के मसोदे के मुताबिक कांग्रेस ने सत्ता में आने पर उर्दू को राज्य की 'दूसरी आधिकारिक भाषा' बनाने और सरकारी आदेश इस भाषा में भी जारी किए जाने का वादा किया है। इसके साथ-साथ कांग्रेस ने मुस्लिम फाइनेंस कॉर्पोरेशन के तहत मुस्लिम युवाओं को सरकारी ठेके हासिल करने में मदद दिलानेल और आरक्षण देने की बात भी कही है। इसके साथ ही मुसलमानों को घर बनाने के लिए 5 लाख रुपए की वित्तीय सहायता और गरीब छात्रों को विदेश जाकर पढ़ाई करने के लिए 20 लाख रुपए का लोन देने की बात कही गई है। विशेष रेसिडेंशियल स्कूलों और सरकारी अस्पतालों में मुस्लिमों को तवज्जो के अलावा वक्फ बोर्ड को न्यायिक शक्ति दी जाएगी। इतना ही नहीं राज्य में मस्जिदों के सभी इमाम को हर महीने छह हजार रुपए का वेतन देने का वादा भी किया गया है.
मित्रों, मैं इस घोषणापत्र को देखकर आश्चर्यचकित हूँ कि यह भारत की एक पार्टी का घोषणापत्र है न कि पाकिस्तान की किसी राजनैतिक पार्टी का. इन घोषणाओं का विश्लेषण करिए फिर समझ में आ जाएगा कि कांग्रेस के दिलो-दिमाग में क्या है. बांकी विघटनकारी वादों के अलावे वक्फ बोर्ड को न्यायिक शक्ति देने तक का वादा उसने किया है. फिर तो भारत में अदालतें भी दो तरह की हो जाएंगी. कुछ इसी तरह की मांगें जो इस घोषणापत्र में हैं आजादी से पहले मुस्लिम लीग कर रही थी और इसी कांग्रेस पर हिन्दुओं की पार्टी होने के झूठे आरोप लगा रही थी क्योंकि कांग्रेस न तो तब हिन्दुओं की पार्टी थी और न ही अब है. बल्कि उसने तब भी हिन्दुओं का इस्तेमाल किया और आज भी कर रही है.
मित्रों, अगर आपने मोदी पर नोटा का सोंटा चलाने की सोंच रखी है तो अब तेलंगाना का कांग्रेस का घोषणापत्र पढ़कर आपकी ऑंखें खुल जानी चाहिए. मैं अपने बारे में तो पहले भी कह चुका हूँ कि अगर मुझे राहुल और मोदी के बीच चुनना पड़े तो हजार बार मोदी को ही चुनूँगा क्योंकि राहुल हिन्दुओं को सिर्फ धोखा दे सकता है उनसे प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि हिन्दुओं से प्रेम तो उसके कथित पूर्वज कथित हिन्दू नेहरु के खून में ही नहीं था.
चेहरे वे मेरे जाने-बूझे से लगते,
उनके चित्र समाचारपत्रों में छपे थे,
उनके लेख देखे थे,
यहाँ तक कि कविताएँ पढ़ी थीं
भई वाह!
उनमें कई प्रकांड आलोचक, विचारक जगमगाते कवि-गण
मंत्री भी, उद्योगपति और विद्वान
यहाँ तक कि शहर का हत्यारा कुख्यात
डोमाजी उस्ताद
बनता है बलबन
हाय, हाय !!
यहाँ ये दीखते हैं भूत-पिशाच-काय।
भीतर का राक्षसी स्वार्थ अब
साफ उभर आया है,
छिपे हुए उद्देश्य
यहाँ निखर आये हैं,
यह शोभायात्रा है किसी मृत-दल की।
विचारों की फिरकी सिर में घूमती है
मित्रों, आपको याद होगा कि भारत के पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लाल किले से अपने पहले संबोधन में कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है. क्यों होना चाहिए उनको पहला हक़? आज मोदी को कम बोलने की सलाह देनेवाले मनमोहन क्या बतलाएँगे कि उन्होंने ऐसा क्यों नहीं कहा था कि भारत के संसाधनों पर सबका बराबर हक़ है? जिस कॉम ने सैंकड़ों सालों तक एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में तलवार लेकर कश्मीर से लेकर तमिलनाडु और बलूचिस्तान से लेकर असम तक धर्म के नाम पर हिन्दुओं पर अनंत अत्याचार किए क्यों होना चाहिए देश के संसाधनों पर उनका पहला हक़, क्यों?
मित्रों, मैं बताता हूँ क्यों? क्यों कांग्रेस पार्टी ऐसा चाहती है? क्योंकि कांग्रेस पार्टी को नेहरु के समय से ही हिन्दुओं और हिन्दू धर्म से नफरत है. अभी मुझे १९४६ का एक अख़बार पढने का मौका मिला जिसमें जवाहर लाल नेहरु धमकी दे रहे थे कि अगर भारत धर्मनिरपेक्ष घोषित नहीं हुआ और हिन्दू राष्ट्र घोषित हुआ तो वे प्रधानमंत्री के पद से त्यागपत्र दे देंगे. फिर देश का बंटवारा हुआ ही क्यों? क्या देश का बंटवारा धर्म के नाम पर नहीं हुआ था? और क्या नेहरु ने उस रक्तरंजित बंटवारे को रोकने के लिए कुछ किया था?
मित्रों, फिर भी मैं मानता हूँ कि भारत ने धर्मनिरपेक्षता की घोषणा करके ठीक किया लेकिन क्या नेहरु के समय से ही कांग्रेस और मुसलमान एक दूजे के लिए बने हुए नहीं हैं? जो मुसलमान १५ अगस्त १९४७ से पहले १६ अगस्त १९४६ को प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस के समय से ही कोलकाता से सियालकोट तक जिन्ना के आह्वान पर हिन्दुओं के खून की नदियाँ बहा रहे थे क्या वे इस तारीख के बाद अचानक हिन्दुओं से अगाध प्रेम करने लगे? कांग्रेस भी समझती थी और समझती है कि ऐसा नहीं है और न ही हो सकता है. देश का धर्म के आधार पर बंटवारा करनेवाले मुसलमान आजादी के बाद से अगर चुप हैं तो वो उनकी मजबूरी है और इससे ज्यादा और कुछ नहीं. जिस दिन उनकी आबादी ५० प्रतिशत से ज्यादा हुई उस दिन न तो हिन्दू रहेंगे और न ही हिंदुस्तान रहेगा. हाँ, कांग्रेस पार्टी जरूर रहेगी. इसलिए मैं भारत सरकार से अविलम्ब जनसँख्या नियंत्रण कानून लाने की मांग करता हूँ.
मित्रों, अभी राहुल गाँधी एक तरफ तो मध्य प्रदेश और राजस्थान में भगवा पहनकर और अपना दत्तात्रेय गोत्र बतलाकर मंदिर में भगवान और हिन्दुओं की आँखों में धूल झोंकने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीँ दूसरी ओर तेलंगाना में उनकी पार्टी का घोषणापत्र मुस्लिम घोषणापत्र बनकर रह जाता है जिसमें उनकी पार्टी सिर्फ मुस्लिमों के लिए सात घोषणाएं करती हैं, इन्द्रधनुषी-सतरंगी घोषणाएं. पार्टी ने अपने घोषणापत्र में मस्जिदों और चर्च को मुफ्त बिजली, इमाम और पादरियों को हर महीने तनख्वाह देने सहित कई लुभावने वादे किए हैं। घोषणापत्र के मसोदे के मुताबिक कांग्रेस ने सत्ता में आने पर उर्दू को राज्य की 'दूसरी आधिकारिक भाषा' बनाने और सरकारी आदेश इस भाषा में भी जारी किए जाने का वादा किया है। इसके साथ-साथ कांग्रेस ने मुस्लिम फाइनेंस कॉर्पोरेशन के तहत मुस्लिम युवाओं को सरकारी ठेके हासिल करने में मदद दिलानेल और आरक्षण देने की बात भी कही है। इसके साथ ही मुसलमानों को घर बनाने के लिए 5 लाख रुपए की वित्तीय सहायता और गरीब छात्रों को विदेश जाकर पढ़ाई करने के लिए 20 लाख रुपए का लोन देने की बात कही गई है। विशेष रेसिडेंशियल स्कूलों और सरकारी अस्पतालों में मुस्लिमों को तवज्जो के अलावा वक्फ बोर्ड को न्यायिक शक्ति दी जाएगी। इतना ही नहीं राज्य में मस्जिदों के सभी इमाम को हर महीने छह हजार रुपए का वेतन देने का वादा भी किया गया है.
मित्रों, मैं इस घोषणापत्र को देखकर आश्चर्यचकित हूँ कि यह भारत की एक पार्टी का घोषणापत्र है न कि पाकिस्तान की किसी राजनैतिक पार्टी का. इन घोषणाओं का विश्लेषण करिए फिर समझ में आ जाएगा कि कांग्रेस के दिलो-दिमाग में क्या है. बांकी विघटनकारी वादों के अलावे वक्फ बोर्ड को न्यायिक शक्ति देने तक का वादा उसने किया है. फिर तो भारत में अदालतें भी दो तरह की हो जाएंगी. कुछ इसी तरह की मांगें जो इस घोषणापत्र में हैं आजादी से पहले मुस्लिम लीग कर रही थी और इसी कांग्रेस पर हिन्दुओं की पार्टी होने के झूठे आरोप लगा रही थी क्योंकि कांग्रेस न तो तब हिन्दुओं की पार्टी थी और न ही अब है. बल्कि उसने तब भी हिन्दुओं का इस्तेमाल किया और आज भी कर रही है.
मित्रों, अगर आपने मोदी पर नोटा का सोंटा चलाने की सोंच रखी है तो अब तेलंगाना का कांग्रेस का घोषणापत्र पढ़कर आपकी ऑंखें खुल जानी चाहिए. मैं अपने बारे में तो पहले भी कह चुका हूँ कि अगर मुझे राहुल और मोदी के बीच चुनना पड़े तो हजार बार मोदी को ही चुनूँगा क्योंकि राहुल हिन्दुओं को सिर्फ धोखा दे सकता है उनसे प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि हिन्दुओं से प्रेम तो उसके कथित पूर्वज कथित हिन्दू नेहरु के खून में ही नहीं था.
मित्रों, इस आलेख का अंत मैं गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता अँधेरे में की चंद पंक्तियों के साथ करना चाहूँगा हालाँकि इन पक्तियों का अपने आलेखों में प्रयोग मैं पहले भी कर चुका हूँ. तो गौर फरमाईए एक बार फिर और एक बार फिर कांग्रेस के खिलाफ वोट देकर इन चुनावों को कांग्रेस पार्टी की अंतिम यात्रा में बदल दीजिए, बना दीजिए इन चुनावों को और हरेक चुनाव को शोभायात्रा कांग्रेस नामक मृत-दल की.
कर्नल, बिग्रेडियर, जनरल, मॉर्शल
कई और सेनापति सेनाध्यक्षचेहरे वे मेरे जाने-बूझे से लगते,
उनके चित्र समाचारपत्रों में छपे थे,
उनके लेख देखे थे,
यहाँ तक कि कविताएँ पढ़ी थीं
भई वाह!
उनमें कई प्रकांड आलोचक, विचारक जगमगाते कवि-गण
मंत्री भी, उद्योगपति और विद्वान
यहाँ तक कि शहर का हत्यारा कुख्यात
डोमाजी उस्ताद
बनता है बलबन
हाय, हाय !!
यहाँ ये दीखते हैं भूत-पिशाच-काय।
भीतर का राक्षसी स्वार्थ अब
साफ उभर आया है,
छिपे हुए उद्देश्य
यहाँ निखर आये हैं,
यह शोभायात्रा है किसी मृत-दल की।
विचारों की फिरकी सिर में घूमती है
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