मंगलवार, 1 दिसंबर 2009
मुंबई को केन्द्रशासित प्रदेश बनाया जाए
मुंबई को आप किस रूप में जानते हैं?भारतवर्ष के सबसे बड़े शहर के रूप में या भारत की आर्थिक राजधानी के रूप में या सपनों के शहर के रूप में.या फ़िर उस शहर के रूप में जहाँ मनसे या शिवसेना के गुर्गों के शासन चलता है.या उस शहर के रूप में जहाँ आप बेधड़क होकर अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी का प्रयोग भी न कर सकें या जहाँ क्षेत्रीय आधार पर गरीब श्रमिकों पर अक्सर हमले होते रहते हैं.मुंबई में भारत के कुल औद्योगिक श्रमिकों का १०% रोजगार पाता है.मुबई भारत के आयकर में ४०% का,कस्टम ड्यूटी में ६०% का,केंद्रीय उत्पाद कर में २०% का,विदेश व्यापार में ४०% का और कॉरपोरेट कर में ४० हजार करोड़ रूपये यानि १० अरब डॉलर का भारी-भरकम योगदान करता है.जाहिर है हम मुंबई को भले ही सपनों के शहर के बदले डरावने सपनोंवाले शहर के रूप में याद करें मुंबई आज के भारत का दिल है.१६६८ में मात्र १० पौंड की लीज पर ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा लिया गया यह शहर आज जिस मुकाम पर है उसके पीछे है मुंबईकरों का खुला दिल, विभिन्न विचारों को तहेदिल से ग्रहण करने का हौसला.लेकिन आज मुंबई की कानून-व्यवस्था का भारी-भरकम बोझ उठाने में महाराष्ट्र की सरकार अपने को अक्षम पा रही है.२६/११ के हमले के समय पाया गया कि महाराष्ट्र पुलिस के पास न तो आतंकवादियों से निबटने लायक हथियार थे न ही सही गुणवत्ता का बुल्लेटप्रूफ जैकेट.इसलिए एनएसजी कमांडो को बुलाना पड़ा परन्तु इससे पहले ही मुंबई पुलिस के कई दर्जन जवान शहीद हो चुके थे.जबकि बृहन मुंबई नगरपालिका का बजट भारत के ९ राज्यों के बजट से ज्यादा का होता है.इतना ही नहीं आज मुंबई महाराष्ट्र के अतिमहत्वकांक्षी कुत्सित विचारों वाले राजनेताओं की गन्दी राजनीति का अखाडा बन गया है.ऐसे में मेरी समझ में भारत की जीडीपी में अकेले ५% की हिस्सेदारी रखनेवाले इस शहर को आतंकी हमलों और गन्दी राजनीति से बचाने का अब एक ही रास्ता बचा है और वो यह कि इसे दिल्ली की तरह केन्द्रशासित प्रदेश बना दिया जाए.यह विचार कोई नया भी नहीं है स्वयं जवाहरलाल नेहरु की भी यही दिलीख्वाहिश थी.आज मुंबई को निश्चित रूप से मनसे और शिवसेना की गुंडागर्दी और कांग्रेस की गन्दी राजनीति से बचाने की जरूरत है.आंकड़ों के अनुसार १९९४-९८ में मुंबई की आर्थिक वृद्धि दर जहाँ ७% थी १९९८-२००० के दौरान वह २.४% रह गई.जबकि इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था ५.६% की दर से आगे बढ़ रही थी.चूँकि बीएसई सहित सभी आर्थिक केंद्र मुंबई में स्थित हैं इसलिए जब भी मुंबई में अव्यवस्था उत्पन्न होती है तो नुकसान पूरे भारत की अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ता है.केन्द्रशासित प्रदेश मुंबई में न तो कानून की कोई समस्या होगी न ही व्यवस्था की.तब भारत के सभी प्रान्तों से आये मजदूर, दुकानदार, उद्यमी, ड्राईवर या अधिकारी निर्भय होकर अपना काम करेंगे और भारत के विकास का यह ईंजन और भी तेज रफ़्तार में सरपट दौड़ेगा.
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1 टिप्पणी:
भाई साब यो तुम कहते तो सही हो लेकिन इसमें पहल कौन करेगा केंद्र या राज्य?यो तो वही बात हुई की बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन!
अमित भाटी, गुडगाँव
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