शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

अभागा राज्य झारखण्ड



छोटे राज्यों के पक्षधरों को उम्मीद थी कि भारत का रूर कहलानेवाला झारखण्ड अस्तित्व में आते ही विकास के मामले में देश के उन्नत राज्यों से टक्कर लेता दिखाई देगा.लेकिन एक कहावत है कि गेली नेपाल त साथे गेल कपार.आज इसी राज्य का पूर्व मुखिया भारतीय राजनीति का सबसे बदनुमा दाग बन गया है.उस मुखिया के राज्य के विकास की नीति का खाका भले ही नहीं रहा हो अपने आर्थिक विकास के लिए उसक पास योजना भी थी और इच्छाशक्ति भी.राज्य का खान मंत्री रहते हुए उसने अकूत धन-सम्पदा को जमकर लूटा.बिहार में जंगल राज कायम करनेवालों ने भी उनके इस काम में भरपूर सहयोग दिया.सत्ता में साझेदारी के लिए कांग्रेसी हाथ ने भी भ्रष्टाचारियों से हाथ मिला लिया और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाकर इस गरीब राज्य को लूटा.एक बार फ़िर हमारे राजनेता गरीब बढाओ की नीति पर चलते दिखे.अब जब संविधान की शपथ लेनेवालों का ही यह हाल है तो फ़िर संविधान को मानने से ही इनकार करनेवालों की भूमिका तो राज्य की बर्बादी में गंभीर होनी ही है.

कोई टिप्पणी नहीं: