बुधवार, 16 दिसंबर 2009

चीन और भारत : दो समानांतर रेखाएं


चीन और भारत दुनिया की दो सबसे प्राचीन सभ्यताएं हैं.दोनों सभ्यताओं के बीच भले ही कभी-कभी कोई तिर्यक रेखा आ गई हो परन्तु दोनों का व्यवहार दो सामानांतर रेखाओं की तरह रहा है जो आपस में कहीं नहीं मिलतीं.चीन सदियों तक दुनिया से कटा रहा और रहस्यमय बना रहा.उसने हमेशा अपने को दुनिया की महानतम सभ्यता माना.भारत के लिए चीन पूरी तरह नहीं तो कूटनीतिक तौर पर जरूर आज भी रहस्यमय है.१९६२ के युद्ध के पूर्व एक तरफ तो चीन हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा लगा रहा था तो दूसरी ओर भारत पर हमले पर भी आमादा था.वर्तमान चीन सामाजिक अथवा आर्थिक दृष्टि से भले ही बदल गया हो भारत को लेकर उसका मिला-जुला रवैया अभी भी बदला नहीं है.जहाँ एक ओर वह भारत से विश्व व्यापार संगठन और अन्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंचों पर समर्थन की अपेक्षा रखता है वहीँ अरुणाचल प्रदेश को लेकर शत्रुतापूर्ण रूख रखता है.हाल ही में जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को अन्य भारतीय नागरिकों से भिन्न वीजा जारी कर उसने जाहिर कर दिया है कि भारत को लेकर उसकी सोंच में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है.ज्यादा शक्तिशाली होने के कारण उसे संबंधों के निर्धारण का निर्बाध अधिकार भी प्राप्त है.
विचारधारात्मक अंतर-४० के दशक में चीन में माओत्से तुंग को वही स्थान प्राप्त था जो भारत में महात्मा गांधी को.दोनों ने अपने-अपने तरीके से अपने-अपने देशों का उद्धार किया.एक ने हिंसा का रास्ता अपना तो दूसरे ने अहिंसा का.एक का मानना था कि शक्ति बन्दूक की नली निकलती है वहीँ दूसरा शत्रुओं से भी प्यार करना सीखता था.माओ के बाद भी चीन की विदेश नीति में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है.कभी ओलम्पिक तो कभी स्थापना दिवस के बहाने अस्त्र-शास्त्र प्रदर्शन कम-से-कम यह तो नहीं ही दर्शाता कि वह दुनिया में अमन-चैन चाहता है.
चीन और भारत में शक्ति असंतुलन-जैसा कि सभी जानते हैं कि चीन आज दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.वह जहाँ तीन ट्रिलियन डालर तक पहुँच चुका है वहीँ भारत का ट्रिलियन क्लब में अभी प्रवेश ही हुआ है (एक ट्रिलियन=१००० अरब).सीधे तौर पर अगर कहें तो चीन की अर्थव्यवस्था हमसे लगभग तीन गुना बड़ी है जबकि हमारी जनसंख्या में कोई ज्यादा अंतर नहीं है.चीन की अर्थव्यस्था के ज्यादा तेज गति से विकसित होने से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय असंतुलन पैदा हो गया है.अब धन ज्यादा होगा तो सैन्य शक्ति भी ज्यादा होगी है.सामरिक दृष्टि से भी अगर हम देखें तो भारत उसके आगे कहीं नहीं ठहरता है.हमारे वायुसेना अध्यक्ष यह स्वीकार भी कर चुके हैं.चीन के पास १३००० किमी तक आक्रमण करनेवाली मिसाइलें हैं जिनका हमारे पास कोई जवाब नहीं है.वह भारत के किसी भी हिस्से पर अपने अंतरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों द्वारा हमला कर सकता है.चीन ने भारत-चीन सीमा के समानांतर सड़कों का भी निर्माण कर लिया है और हमें इस मामले में अभी शुरुआत करनी है.थल और वायु सेना के मामले में चीन हमसे कोसों आगे है ही नौसेना की दृष्टि से भी हिंद महासागर में उसकी बढती सक्रियता शुभ संकेत नहीं दे रहे.
तिब्बत का मुद्दा-तिब्बत को लेकर भारत का रवैया हमेशा से ढुलमुल रहा है.एक तरफ तो वह तिब्बत को चीन का हिस्सा मानता है वहीँ दलाई लामा को अपने यहाँ शरण भी दी है.दलाई लामा और तिब्बती शरणार्थी बार-बार कुछ ऐसा करते रहते हैं जिससे चीन का नाराज होना स्वाभाविक है.यह तो तय है कि तिब्बत को अब चीन आजादी नहीं देगा.भारत को तिब्बती मेहमानों को साफ तौर पर बता देना चाहिए कि अगर भारत में रहना है तो हमारी शर्तों पर रहना होगा.
शासन व्यवस्था में अंतर-शासन व्यवस्था के मामले में भी चीन और भारत समानांतरता की स्थिति में हैं.चीन में जहाँ तानाशाही एकदलीय शासन व्यवस्था है वहीँ भारत के लोग लोकतंत्र का आनंद उठा रहे हैं.दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं.फायदे भी हैं और नुकसान भी. चीन में कानून नहीं है पर व्यवस्था है और भारत में कहने को तो कानून का शासन है पर व्यवस्था नहीं है.भारत में लोकतंत्र मजबूत स्थिति में तो है मगर मजबूर भी है.ईमानदार नेतृत्व अब पुस्तकों में मिलनेवाली बातों में शुमार हो गया है.१९४९ के पहले चीन में भी लोकतंत्र था और स्थितियां भी कुछ ऐसी ही थीं जैसी आज के भारत में है.
भारत के सामने विकल्प-चीन घुसपैठ में बढ़ोतरी कर लगातार भारत को उकसा रहा है.अब प्रश्न उठता है कि भारत के सामने कौन-से विकल्प उपलब्ध हैं!विकल्प ज्यादा हैं भी नहीं.कोई भी देश अपने से कई गुना शक्तिशाली पड़ोसी से दुश्मनी तो नहीं कर सकता. चीन की नीति भी भारत से सीधी लड़ाई की नहीं है.बल्कि वह भारत के विकास की मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करना चाहता है.भारत को भी अपनी आर्थिक शक्ति बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए और ऐसा तब तक संभव नहीं है जब तक न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में व्यापक रूप से व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त न कर दिया जाए.साथ ही तब तक चीन से सावधान भी रहने की जरूरत है जब तक भारत उसकी बराबरी में न आ जाए और एक बराबर में बैठकर बातचीत करने लायक न हो जाए.तब तक तो हम चीन के बारे में यही कह सकते हैं-तौबा तेरा जलवा, तौबा तेरा प्यार, तेरा इमोशनल अत्याचार.

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