बुधवार, 27 जनवरी 2010

गीदड़ का शासन बेहतर!


लोकतंत्र निस्संदेह वर्तमान काल की सबसे अच्छी शासन प्रणाली है.लेकिन यह पूरी तरह निर्दोष हो ऐसा भी नहीं है.कम-से-कम भारतीय लोकतंत्र में समय-समय पर कई बुराइयाँ देखने में आई हैं और समय बीतने के साथ मुखर होती चली गई हैं.सबसे बड़ी समस्या जो पिछले दिनों ज्यादा परेशान करने लगी है वो है शासन का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार और अयोग्य लोगों का मंत्रिमंडल में आ जाना.हमारे यहाँ सबसे ज्यादा मत पानेवाले को विजयी घोषित कर दिया जाता है.कभी-कभी तो १० प्रतिशत या इससे भी कम मत पाकर भी लोग चुनाव जीत जाते हैं.सबसे ज्यादा परेशानी तो तब आती है जब विधान सभा या लोकसभा में किसी भी एक दल को बहुमत प्राप्त नहीं हो.तब शुरू होता है मोलभाव का सिलसिला.सत्ता-प्राप्ति के लिए अयोग्य और भ्रष्ट लोगों से भी हाथ मिला लिया जाता है.इस तरह मोलभाव के बाद जो लोग मंत्री बनते हैं उनमें जिम्मेदारी का भाव बिलकुल भी नहीं होता.वर्तमान केंद्रीय मंत्रिमंडल को ही लें जिसके कई मंत्री अपनी जिम्मेदारी से भागते देखे जा सकते हैं.महंगाई मंत्री शरद पवार कह रहे हैं कि महंगाई के लिए सिर्फ वही जिम्मेदार नहीं हैं वहीं एक और मंत्री कृष्णा तीरथ एक गंभीर गलती होने के बाद कह रही हैं कि ऐसा तो आडवाणी के समय भी हुआ था.अरे बहनजी आडवाणीजी के समय जो हुआ वह अब इतिहास का विषय है और आपने उससे कोई सीख नहीं ली यह शर्म का विषय है.उस काल खंड से आप क्यों तुलना कर रही हैं!जब मंत्रियों में जिम्मेदारी का भाव ही नहीं रहेगा तब फ़िर अच्छा शासन कैसे देखने को मिलेगा.यहीं कारण है कि विदेश नीति से लेकर अर्थ नीति तक प्रत्येक मोर्चे पर सरकार विफल है और देश में अराजकता का माहौल उत्पन्न हो रहा है.हमने सामान्य ज्ञान की किताबों में पढ़ा था कि मध्यकाल में १२ साल तक भारत के ही किसी राज्य में एक गीदड़ ने शासन किया था.शायद उसका शासन भी वर्तमान शासन से बेहतर रहा होगा.

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