शनिवार, 2 जनवरी 2010

रेलगाड़ी या यातना शिविर

क्या आपने कभी भारतीय रेल से सफ़र करने का सौभाग्य पाया है?यदि नहीं तो आप बहुत भाग्यशाली हैं.लेकिन मैं इतना भाग्यशाली नहीं हूँ.इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं हवाई जहाज से यात्रा का खर्च उठा सकूं.मजबूरन मुझे बार-बार रेलगाड़ी से सफ़र करना पड़ता है.वैसे मैं हजारों बार रेलगाड़ी से यात्रा कर चुका हूँ, लेकिन इस बार का मेरा अनुभव इतना भयावह रहा कि मुझे रेलयात्रा करने की अपनी मजबूरी पर काफी क्षोभ हुआ.यह भी कह सकते हैं कि मुझे अपनी स्थिति पर पूरी यात्रा के दौरान खुद ही तरस आती रही.हुआ यूं कि मुझे एम.फिल की फाइनल परीक्षा देने के लिए नोएडा जाना पड़ा.लौटते समय मुझे अपने साथ दीदी और अपनी दो भांजियों को लेकर बिहार आना था.मैंने जाने के समय ही मगध एक्सप्रेस में लौटने का भी आरक्षण करवा लिया था.निर्धारित तिथि यानि २५ दिसम्बर २००९ को शाम के समय रेलवे पूछताछ नंबर १३९ पर पूछने पर पता चला कि हमारी ट्रेन शाम के ८.१० के बजाये देर रात ११.५० में खुलेगी.इसलिए हमलोग रात ११ बजे नई दिल्ली स्टेशन पर पहुंचे.वहां भी डिस्प्ले बोर्ड पर गाड़ी खुलने का समय ११.५० अंकित था.रात साढ़े ११ बजे अचानक स्टेशन के लाउडस्पीकर पर घोषणा की गई कि यात्रियों को सूचना दी जाती है कि २४०२ डाउन मगध एक्सप्रेस अब रात ११.५० के बदले सुबह ४.५० पर रवाना होगी.हमें लगा जैसे हम पर वज्रपात हो गया हो.पूस की यह ठंडी रात अब हमें प्लेटफ़ॉर्म पर गुजारनी थी.मेरी छोटी बहन का घर जहाँ हम रुके हुए थे गाज़ियाबाद में था और हम वापस भी नहीं जा सकते थे.एक घंटे तक तो हम बातचीत में लगे रहे फिर दीदी और दोनों बच्चियों को नींद आने लगी.हमारे पास दो कम्बल थे दोनों निकाल लिए गए लेकिन ठण्ड इतनी ज्यादा थी कि कम्बल बेअसर साबित हो रहे थे.पटना से आनेवाली अप ट्रेन शाम साढ़े छः बजे ही आ चुकी थी फिर ट्रेन के प्रस्थान के समय को सुबह ४.५० क्यों कर दिया गया यह हमलोगों की समझ में नहीं आ रहा था.सर्द हवाओं के झोंके गोलियों की तरह प्रहार करते लग रहे थे.ऐसा अनुभव हो रहा था कि हम अभी के अभी ठन्डे हो जायेंगे.मैं मन में कल्पना कर रहा था कि क्या हिटलर का यातना शिविर कुछ ऐसा ही नहीं होता होगा?ठण्ड के मारे हमें नींद आ भी रही थी और नहीं भी.किसी तरह रात बीती और ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर आई परन्तु खुली अपने पुनर्निर्धारित समय से चालीस मिनट की देरी से यानि साढ़े पांच बजे.भारतीय रेल में मैंने जबसे होश संभाला है देख रहा हूँ कि एक बड़ा ही भद्दा रिवाज प्रचलित है यानि देर से चलनेवाली ट्रेनों को और भी लेट करते जाने का.इसी रिवाज का अनुपालन करते हुए रेल प्रशासन ने हमारी ट्रेन को और भी लेट करते हुए इतना लेट कर दिया कि मगध एक्सप्रेस रात २ बजे पटना जंक्शन पर पहुंची.किसी तरह हम हाजीपुर घर तक जीवित पहुँच सके.आज मैं एक आम भारतीय के रूप में रेल मंत्रालय से पूछता हूँ कि वह क्यों चला रहा है ट्रेनों को?क्या वह इसके माध्यम से हम गरीबों की गरीबी का मजाक उड़ाना चाहता है या हमें अपनी जानवरों से भी बदतर हालत का अहसास दिलाने के लिए वह ट्रेनों का परिचालन कर रहा है?अमीरों की गाड़ियों राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेसों के साथ तो ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता.आज २ जनवरी को एक ही दिन में तीन रेल दुर्घटनाओं से तो यहीं परिलक्षित होता है कि रेलवे को यात्रियों की जान माल के नुकसान से कोई मतलब ही नहीं रह गया है.उसका काम तो बस दुर्घटनाओं के बाद मुआवजे की घोषणा भर करना शेष रह गया लगता है.

कोई टिप्पणी नहीं: