मंगलवार, 2 मार्च 2010

ईर्ष्या और प्रेम

जब सूरज की किरणें सभी मानवों
पर पड़ती हैं एकसमान,
चांद की चांदनी और
सितारों की टिमटिमाती रौशनी,
नहीं करती कभी भेदभाव;
फ़िर कैसे देवदत्त के ह्रदय में भड़कने लगी ईर्ष्या की आग
और बुद्ध के मन में लहराने लगा
प्रेम का अथाह सागर.
दोनों का पालन-पोषण एक साथ
एक ही राजमहल में हुआ था,
एक ही गुरु से पाई थी शिक्षा
एक ही अन्न खाया
और एक साथ पिया पानी कपिलवस्तु में.
फ़िर ऐसा क्यों हुआ कि बुद्ध बन गए
दया और करूणा के अवतार
और देवव्रत बन गया ईर्ष्या का पुतला
शैतानियत का जीता-जागता प्रतीक.
नहीं पता मुझे और न ही विज्ञान को
शायद मालूम हो ईश्वर को
लेकिन वह जबकि है अनुपलब्ध
बताने के लिए 
तो क्या किया जा सकता है
सब कुछ भाग्य का खेल
मान लेने के सिवाय.

कोई टिप्पणी नहीं: