बुधवार, 17 मार्च 2010
क्या भारत मुर्दों का देश है?
कहा जाता है कि भारत त्योहारों का देश है होगा और है भी लेकिन उससे ज्यादा बड़ा सत्य भारत के बारे में यह है कि यह इंतजारों का देश है.इस देश में आजकल सालोंभर इंतजारों का मौसम रहता है.ट्रेन में आरक्षण करवाया है तो ट्रेन का इंतजार कीजिये.इस प्रकार का इंतजार १ घन्टे से लेकर १ दिन तक का हो सकता है.ए.टी.एम. से पैसा निकालना है तो आपको कम-से-कम आधे घन्टे तक इंतजार करना पड़ेगा.ट्रेन के लिए सामान्य या आरक्षित टिकट लेना है तब भी आपको कम-से-कम आधे घन्टे के लिए लाइन में लगना पड़ेगा.आज मुझे इनसे अलग तरह के इंतजार के दर्द से गुजरना पड़ा.आज सुबह से हमारे शहर हाजीपुर में बिजली नहीं थी.मैं दिनभर एफ.एम. पर गाने सुनता रहा लेकिन जी नहीं लग रहा था.आखिर रात के सवा नौ बजे यानी अब से कुछ देर पहले इंतजार समाप्त हुआ है लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि कब बिजली गुल हो जाए और मुझे फ़िर से इंतजार की इन्तहां होने का इंतजार करना पड़े.इतना ही नहीं हम भारतीय असीम धैर्य के साथ आज ६० साल से इंतजार कर रहे हैं गरीबी के समाप्त होने का और भारत के विकसित होने का.जब बिहार में २००५ में नीतीश सरकार ने सत्ता संभाली तब हमारे मन में उम्मीद जगी कि अब बिहार का कायाकल्प होकर रहेगा.लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अब सरकार कह रही है कि २०१५ तक वह बिहार की सभी सड़कों को विश्वस्तरीय बना देगी और २०१५ तक बिहार के पास पर्याप्त बिजली होगी.यानी यह सरकार भी इंतजार करने को कह रही है.लेकिन हमें तभी इंतजार करना पड़ेगा जब यह सरकार दोबारा सत्ता प्राप्त कर ले.वरना दूसरी सरकार बन गई तो न जाने कब तक इंतजार करने को कह दे.उधर केंद्र सरकार तो कोई समय सीमा भी नहीं बता रही कि हमें भारत को विकसित देशों की जमात में शामिल होते और भारत से गरीबी ख़त्म होते देखने के लिए और कितने सालों तक इंतजार करना पड़ेगा.वैसे भी किसी सरकार द्वारा दी गई समय सीमा कौन-सी सही साबित होनी है?तारीख-पे-तारीख-यही तो हमारी नियति बन चुकी है.हम इंतजार करने से नहीं डरते.हमें इसकी आदत जो पड़ गई है लेकिन प्रत्येक चीज की एक सीमा होती है यहाँ तक कि आदमी के धैर्य की भी.लोहिया कहा करते थे कि जिंदा कौमें ५ सालों तक इंतजार नहीं करती.तो क्या भारत जिंदा लोगों का देश नहीं है?
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1 टिप्पणी:
लोहिया जी की परिभाषानुसार तो भारत मुर्दों का ही देश है.साथ ही यह भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों का भी देश है.
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