मंगलवार, 9 मार्च 2010
रक्तहीन क्रांति
सभी क्रांतियाँ रक्तरंजित ही नहीं होतीं कभी-कभी रक्तहीन क्रांतियाँ भी होती हैं जैसा कि इंग्लैंड में १६८८ में हुआ था.आज भारत में भी रक्तहीन क्रांति हुई है.आज राज्यसभा ने महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में एक-तिहाई आरक्षण देने संबधी विधेयक को पारित कर दिया.अब यह विधेयक लोकसभा और आधी विधानसभाओं में पारित होने के बाद कानून बन जायेगा जिसमें कोई खास मुश्किल आती नजर नहीं आती.वैदिक काल में भी महिलाएं सभा और समिति के सदस्य के रूप में राजनीति में हिस्सा लेती थीं लेकिन बाद में भारतीय महिलाओं की गतिविधियों को सिर्फ घर की चहारदीवारी तक सीमित कर दिया गया.अब एक बार फ़िर महिलाएं राजनीति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती दिखेंगी और राजनीति से पुरुषों का वर्चस्व समाप्त हो जायेगा.इस तरह यह विधेयक समतावादी समाज की स्थापना की दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है.हर पॉँच साल पर आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र बदल दिए जायेंगे.इसके चलते किसी खास निर्वाचन क्षेत्र को अपनी जागीर समझनेवाले बड़े नेताओं को बीच-बीच में दूसरे निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ना पड़ेगा.शायद इसलिए कुछ राजनेता इसका विरोध भी कर रहे थे.अब तक हमने महिलाओं को स्वतंत्र मानव समझा ही नहीं और उन्हें पुरुष अपने हुक्म का गुलाम समझते रहे हैं.यहाँ तक कि पंचायती चुनावों में आरक्षण के कारण जीतने वाली अधिकतर महिलाएं आज भी अपने परिवार के पुरुषों के कथनानुसार ही काम कर रही हैं.शायद विधायिकाओं में भी कुछ दिनों तक ऐसी ही स्थिति रहे लेकिन बच्चे को भी तो पहले ऊंगली पकड़ कर चलना सिखाना पड़ता है लेकिन एक बार जब वे चलना सीख जाते हैं तब न तो ऊंगली पकड़ने वाले की आवश्यकता रह जाती है और न ही कदम लड़खड़ाने का खतरा.बिहारवासियों के लिए यह और भी ख़ुशी की बात है कि स्त्री-सशक्तिकरण का यह पहला प्रयोग बिहार के विधानसभा चुनावों में ही होनेवाला है.अब भारतीय महिलाएं न तो देवी रहेगी और न ही रोज घर में मार खानेवाली मूक जानवर.अब वह इंसान के रूप में न केवल अपना जीवन जियेंगी वरन बराबर की सहभागी बनकर शासन का संचालन भी करेंगी.
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1 टिप्पणी:
ब्रज जी मैं आपकी बात पूरी तरह से सत्य है.इसे हम स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे युगांतरकारी कदम भी कह सकते हैं.हमें आशा करनी चाहिए कि महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ने का भारतीय राजनीति ही नहीं पूरे परिदृश्य पर सकारात्मक असर पड़ेगा.
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