शनिवार, 16 अक्टूबर 2010
आईये हम अपने भीतर के रावण को मारें
राम और रावण भारतीय इतिहास के सबसे चर्चित चरित्र रहे हैं.कल विजयादशमी है और इस अवसर पर हम प्रत्येक वर्ष प्रतीकात्मक रावण वध करते हैं.लेकिन क्या हमारे ऐसा करने से समाज से आसुरी शक्तियों का विनाश हो गया है?अगर रावण सिर्फ एक व्यक्ति होता तो उसका विनाश तो त्रेता में ही हो गया था.लेकिन रावण न तो व्यक्ति था और न ही एक पुतला है.रावण तो एक प्रतीक है आसुरी शक्तियों का,जिस प्रकार राम दैवी (सात्विक) शक्तियों के प्रतीक हैं.राम जहाँ एकपत्नीव्रता हैं वहीँ रावण इन्द्रिय सुख के लिए परस्त्री के हरण से भी नहीं चूकता.रावण सत्ता के लिए भाई पर पद-प्रहार करता है तो राम भाई के लिए सत्ता को ठुकरा कर वनगमन कर जाते हैं.राम अपनी विनम्रता के लिए जाने जाते हैं वहीँ रावण घमंड की पराकाष्ठा है.राम और रावण दोनों महायोद्धा हैं,शस्त्र-संचालन में पारंगत.दोनों महाशक्ति हैं.लेकिन राम की शक्ति जगत-कल्याण के लिए है तो रावण की शक्ति परपीड़ा के निमित्त.रावण विद्वान है,लेकिन इस विद्या से उसमें विनय के बदले अभिमान ही बढ़ता है और अभिमान तो सभी विनाशों का मूल है.राम की विद्या परोपकारी है तो रावण की विद्या परपीड़क.राम और रावण दोनों शिवभक्त हैं.एक की भक्ति सात्विक है तो दूसरे की हठधर्मिता वाली.रावण भक्ति में भी शक्ति-प्रदर्शन का समर्थक है.वह आराधना के समय भी अभिमान का परित्याग नहीं करता ईधर राम में तो अभिमान है ही नहीं.वो तो शत्रुओं का भी आदर करते हैं.राम को त्याग में ख़ुशी मिलती है वहीँ रावण को छीनने में.राम का मार्ग सन्मार्ग है,नैतिकता का मार्ग है;जबकि रावण के लिए साधन की पवित्रता आवश्यक नहीं उसके लिए तो सिर्फ साध्य की प्राप्ति ही अभीष्ठ है.रावण त्रेता में भी आसानी से नहीं मारा था.राम ने जितनी बार उसके सिर काटे वह पुनर्जीवित होता रहा.इसलिए हमें भी अपने भीतर के रावण को अगर मारना है तो उसके उद्गम स्थल यानी नाभि-कुंड पर प्रहार करना पड़ेगा.राम वाले पक्ष यानी सद्गुणों का पलड़ा भारी करना पड़ेगा,रावण खुद ही हार जायेगा और हमारे तन-मन से बाहर निकलने को बाध्य हो जायेगा.तो आप तैयार हैं न अपने भीतर के रावण को मारने के लिए!
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