शनिवार, 4 दिसंबर 2010

विकिलीक्स के खुलासे और भारत की भावी विदेश नीति

विकिलीक्स के खुलासों ने दुनिया के सामने अमेरिकी कूटनीति को उघाड़ कर रख दिया है.विकिलीक्स द्वारा सार्वजनिक की गई २.५ लाख सूचनाओं में से ३ हजार का सम्बन्ध भारत से है जिनसे अमेरिका के साथ-साथ पाकिस्तान और चीन की भारत के प्रति सोंच का भी पता चलता है.एक तरफ तो अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा भारत की धरती से भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का सदस्य बनाने का समर्थन कर रहे हैं वहीँ दूसरी ओर उनका शासन भारत को इसकी सदस्यता का स्वघोषित उम्मीदवार मानता है.वाह क्या दोस्ती निभाई जा रही है!मुंह में राम बगल में छूरी.इतना ही नहीं अमेरिका ने २६-११ के बाद भारत की ख़ुफ़िया नाकामियों की आलोचना करने में भी सिर्फ इसलिए संकोच बरता क्योंकि उसे इस बात का डर था कि ऐसा करने से भारत को पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उकसावा मिल सकता है.एक तरफ तो वह अफगानिस्तान में भारत से हजारों करोड़ रूपये का निवेश करवाता है तो दूसरी ओर पाकिस्तान को खुश करने के लिए अफगानिस्तान पर होने वाली अंतर्राष्ट्रीय बैठकों से भारत को अलग भी रखता है.जब अफगानिस्तान से भविष्य में भारत को कुछ नहीं मिलनेवाला फ़िर भारत सरकार क्यों वहां पैसा लगा रही है,यह तो वही जाने.अमेरिका अच्छी तरह जानता है कि पाकिस्तानी सेना और पाक ख़ुफ़िया एजेंसियां एक साथ अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबान और भारत में आतंक फैला रहे लश्करे तैयबा जैसे संगठनों को सहायता प्रदान कर रही हैं फ़िर भी वह उस पर सिर्फ तालिबान को काबू में करने के लिए दबाव डालता रहा है.भारत की चिंता पर उसने सिर्फ जुबानी जमा खर्च किया है,पाकिस्तान पर दबाव डालने का प्रयास नहीं किया है.इतना ही नहीं पिछले ७० सालों से पाकिस्तान को जब-जब अमेरिका ने सैन्य और वित्तीय सहायता दी है उसने इसका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ भारत के खिलाफ किया है.विकिलीक्स द्वारा सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों के अनुसार वर्तमान अमेरिकी शासन भी इस तथ्य से अवगत है फ़िर भी वह लगातार पाकिस्तान को सैनिक साजो-सामान और अरबों डॉलर की सहायता इस नाम पर देता जा रहा है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका का सहायक है.दस्तावेजों में अमेरिका ने साफ़ तौर पर माना है कि पाकिस्तान में शासन की वास्तविक बागडोर सेना के हाथों में है और जरदारी सिर्फ कठपुतली हैं.अमेरिका यह भी मानता है कि पाकिस्तान कभी भी तालिबान का पूरा खात्मा नहीं होने देगा फ़िर भी वह भारत के बदले उसे आतंकवाद के विरुद्ध चल रहे युद्ध में साथ रखे हुए है.हमें समझ लेना चाहिए कि भारत सिर्फ अमेरिका की आर्थिक मजबूरी है जबकि पाकिस्तान उसका पुराना प्यार है.अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका आज भी उसके साथ जाना ज्यादा पसंद करता है न कि भारत के साथ.दस्तावेजों से स्पष्ट है कि भारत अगर पाकिस्तान स्थित आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने के लिए हमले करता है तो भारत को निश्चित रूप से पाकिस्तान के परमाणु हमले का सामना करना पड़ेगा.इसलिए हमारे लिए आवश्यक हो जाता है कि हम मिसाईलों को हवा में ही नष्ट करने वाले प्रक्षेपास्त्रों का शीघ्रातिशीघ्र विकास करें.दस्तावेजों के अनुसार हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार चीन भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर भारत का ऊपर-ऊपर से तो समर्थन कर रहा है जबकि वास्तव में वह सुरक्षा परिषद् के विस्तार के ही पक्ष में नहीं है.अमेरिका यह भी मानता है कि पाकिस्तान दुनिया में व्यापक संहार वाले हथियार सबसे तेज गति से बनाने की क्षमता रखता है.उसे यह भी पता है कि पाकिस्तान चीन का भी निकट मित्र है और चीन अपने सभी बांकी पड़ोसियों के प्रति शत्रुता का भाव रखता है.साथ ही वह इस बात से भी अनभिज्ञ नहीं है कि चीन पाकिस्तान का भारत के विरुद्ध इस्तेमाल करता रहा है.इन खुलासों के बाद भी अगर भारत सरकार अपनी विदेश नीति की समीक्षा नहीं करती है तो यह उसका शुतुरमुर्गी व्यवहार माना जाएगा जो संकट आने पर बालू में इस उम्मीद में मुंह छिपा लेता है कि ऐसा करने से संकट टल जाएगा.अमेरिका को पाकिस्तान के भारत विरोधी आतंकवाद को समर्थन देने से कोई ऐतराज नहीं है.उसे सिर्फ इस बात से मतलब है कि अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकी गुटों के खिलाफ कार्रवाई में पाकिस्तान सच्चे मन से मदद दे.जबकि सच्चाई तो यह है कि आतंकवादी एक हैं और उनके बीच अमेरिका विरोधी या भारत विरोधी होने के आधार पर विभाजन की रेखा नहीं खिंची जा सकती है.अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा जब हाल ही में भारत से मदद मांगने आए तो हमने दिल खोलकर उनकी मदद की जबकि हम आज भी दुनिया के सबसे गरीब और कुपोषित देशों में से हैं.लेकिन यह उतना ही दुखद है कि अमेरिका हमें मूर्ख मानता है और हमारी मित्रतापूर्ण भावनाओं की उसे तनिक भी क़द्र नहीं है.विकिलीक्स के खुलासों ने दुनिया के कूटनीतिक इतिहास को विकिलीक्स से पहले और विकिलीक्स के बाद, दो भागों में बाँट दिया है.अब बदले हुए हालात में भारत को भी अपनी कूटनीति की समीक्षा करनी चाहिए जिससे कोई भी देश हमसे एकतरफा लाभ न उठा सके.साथ ही सरकार को यह समझ लेना होगा कि चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में अधिकारों की लड़ाई हो या पाक समर्थित आतंकवाद से संघर्ष का मसला हो हमारी लड़ाई अमेरिका सहित कोई भी दूसरा देश नहीं लड़ने वाला.हमें अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी.वर्तमान विश्व में अगर हमें अग्रणी भूमिका निभानी है तो हमें यथासंभव व्यावहारिक नीतियाँ अपनानी होगी.किसी को कुछ भी देने से पहले यह देखना होगा कि बदले में हमें क्या प्राप्त होने जा रहा है.कहीं मित्रता प्रदर्शित करने वाला राष्ट्राध्यक्ष मीठी-मीठी बातें बोलकर हमें धोखा तो नहीं दे रहा है.चीन के प्रति भी हमें सावधानी रखनी पड़ेगी क्योंकि संबंधों में कथित सुधार से उसे ही ज्यादा लाभ हुआ है.दूसरी ओर उसके साथ हमारे सिर्फ आर्थिक सम्बन्ध सुधरे हैं सीमा विवादों पर उसका रवैया आज भी उतना ही कठोर और शत्रुतापूर्ण है.जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है तो अब यह आईने की तरह हमारे सामने है कि वहां वास्तविक शासन आज भी सेना के हाथों में है इसलिए उसके साथ सम्बन्ध सुधरने की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है.हमें उसे दुनिया में अलग-थलग करने का प्रयास करना चाहिए और इसमें सबसे बड़ी बाधा बनेगा कोई और नहीं बल्कि हमारा नया और कथित मित्र अमेरिका.

1 टिप्पणी:

प्रभात कुमार रॉय ने कहा…

ब्रज किशोर सिंह ने वीकिलीक्स के खुलासे पर अपना बेबाक कमेंट किया है जोकि बहुत ही सटीक एवं सार्थक है।