मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

गलतियों का राजकुमार नीतीश कुमार

जबसे बिहार विधानसभा चुनावों के परिणाम आए हैं पूरे भारत की मीडिया नीतीश नाम की माला जपने में जुटी है.कोई उन्हें भारतीय राजनीति का पथप्रदर्शक बता रहा है तो कोई उन्हें भारतीय राजनीति को नई दिशा देने का श्रेय दे रहा है.ऐसा लग रहा है मानों मीडिया सावन की अंधी है और नीतीश राज में बिहार में हरियाली ही हरियाली है.उनकी गलतियों को भुला दिया है जो वास्तव में इतनी ज्यादा और इतनी गंभीर प्रकृति के हैं कि इनकी बदौलत नीतीश बड़ी आसानी से गलतियों के राजकुमार का ख़िताब प्राप्त कर सकते हैं.कभी इतिहासकार लेनपुल ने दीने ईलाही को अकबर महान की मूर्खता का स्मारक कहा था जबकि यह अकबर की देश-काल और परिस्थिति के मद्देनजर एकमात्र गलती थी.लेकिन हमारे नीतीश कुमार की मूर्खता के एक नहीं कई स्मारक मौजूद हैं.नीतीशजी को सिपाही तो पढ़ा-लिखा चाहिए लेकिन शिक्षक अनपढ़ भी हो तो कोई बात नहीं.श्रीमान सिपाहियों से लिखित परीक्षा लेकर बहाली कर रहे हैं और शिक्षकों को बिना जाँच परीक्षा के ही नियुक्त कर रहे हैं.करा दिया न सारे स्थापित मानदंडों को शीर्षासन.ये वही बात हुई कि प्रिंसिपल मूर्ख हो तो चलेगा लेकिन चपरासी किसी भी स्थिति में मंदबुद्धि नहीं होना चाहिए बल्कि अक्लमंद चाहिए.आप तो जानते ही होंगे कि हमारा गाँव गंगा के गर्भ में स्थित है.काफी समय पहले हमारे गाँव में बाढ़ आई.एक पेटू किसान कोयले को नाव पर चढाने लगा.शायद उसे कल भोजन कैसे बनेगा की चिंता ज्यादा थी.जबकि स्वर्णाभूषणों की पेटियां पानी में बह गईं.बिहार में नीतीश भी वही काम कर रहे हैं यानी सोना बहा जा रहा है और वे कोयले पर छापा मार रहे हैं.लोग कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं तो इस तरह तो शिक्षक भाविष्य निर्माता हो गए.अब मैं आपको एक रोचक वाकया सुनाता हूँ.जैसा कि आप जानते हैं कि पिछले दिनों मैं अपने गाँव में था.मेरे एक ग्रामीण ने बताया कि वे एक दिन मध्य विद्यालय के पास से गुजर रहे थे.२००६ में बहाल एक शिक्षक बच्चों को १९ का पहाडा पढ़ा रहा था.उसके अनुसार १९ सते १३३ नहीं १२६ होता था और १९ अठे १५२ नहीं बल्कि १३६ होता था.मेरे ग्रामीण के खेतों की ओर बढ़ते पांव ठिठक गए.उन्होंने प्रधानाध्यापक के पास जाकर शिकायत की तो उसने अपनी लाचारी जाहिर कर दी और कहा कि यह मुखिया का चहेता है इसलिए वे कुछ नहीं कर सकते.ज्ञातव्य हो कि नीतीश सरकार ने शिक्षकों की नियुक्ति के पहले चरण में तो सब कुछ और दूसरे चरण में बहुत कुछ अधिकार मुखियों के हाथों में दे रखा था.राज्यभर के मुखियों ने इन बहालियों में इतना ज्यादा पैसा बनाया कि विधायकों को भी उनसे ईर्ष्या होने लगी.वैसे बिहार के लोगों के बारे में पूरे देश में माना जाता है कि वे इतने उर्वर मस्तिष्क के स्वामी/स्वामिनी होते हैं कि लहरें गिनकर भी पैसा बना लें.शिक्षकों के द्वितीय चरण की बहाली की प्रक्रिया तो अभी भी जारी है और हजारों होनहार शिक्षकों के करोड़ों रूपये घूस के रूप में दांव पर लगे हुए हैं.हालांकि सरकार ने इस बार बहाली की प्रकिया में प्रमाण-पत्रों को लेकर सख्ती बरती है लेकिन बहाली में अब भी मुख्य भूमिका ग्रामप्रधानों की ही है.बहाली के बाद ये शिक्षक पहले चरण में नियुक्त शिक्षकों की तरह ११ बजे विद्यालय जाएँगे और वो भी महीने में २-४ दिन.बांकी समय वे ए.पी.एल.-बी.पी.एल. सूची में नाम शामिल करने के लिए लोगों से १००-२०० रूपये वसूलने में व्यतीत करेंगे या फ़िर खिचड़ी की लूट की राशि के बंटवारे में.पढाना चाहें भी तो नहीं पढ़ा सकेंगे क्योंकि उन्हें सिर्फ तिकड़म आते हैं पढाना नहीं आता.मेरे घर के सौभाग्य और गाँव के नौनिहालों के दुर्भाग्य से मेरा चचेरा भाई भी प्रथम चरण की बहाली में यानी २००६ में शिक्षक बना था.छोटे चाचा के श्राद्ध के दिन मेरे अन्य चाचा रामभवन सिंह जी जो आई.बी.,दिल्ली में इंस्पेक्टर हैं ने उससे अचानक एक सवाल पूछ दिया.सवाल बड़ा ही सरल था उसे पी.एच.डी. का पूर्ण विन्यास बताना था.मेरे अनुज का कभी पढाई-लिखाई से मतलब रहा नहीं सो जाहिर है कि वह उत्तर नहीं दे पाया और भागा-भागा मेरे पास आया.उस समय रात के ११ बज रहे थे और मैं आदतन सोया हुआ था.आते ही उसने मुझसे वही सवाल पूछा.मैंने जब बताया कि पी.एच.डी. का फुल फॉर्म डाक्टर ऑफ़ फिलोसोफी होता है तो वह डाईरेक्टर ऑफ़ फिलोसोफी रटता हुआ चला गया.अब आप खुद ही अनुमान लगा सकते हैं कि ये शिक्षक क्या पढ़ते होंगे और उनके शिष्य बड़े होकर किस तरह के नागरिक बनेंगे.वैसे मेरे भाई में एक गुण जरूर है वह सभी शराबों के नाम और दाम जानता है.नीतीश कुमार बार-बार अपनी साईकिल वितरण योजना का जिक्र करते हैं.क्या छात्र-छात्राओं को साईकिल मिल जाने से ही पढाई पूरी हो जाएगी?साईकिलें उन्हें पढ़ाएंगी तो नहीं,इसके लिए तो योग्य शिक्षक चाहिए जो सरकार ने उन्हें दिया ही नहीं.जैसा कि आप जानते होंगे कि भारत तीव्र जन्म-दर के बल पर दुनिया का सबसे युवा देश है.यानी दुनिया में युवाओं की सबसे बड़ी संख्या भारत में है.युवावस्था ही वह दोराहा होता है जहाँ से व्यक्ति अच्छे या बुरे मार्ग पर चलता है.लेकिन हमारे नीतीश जी को युवाओं की चिंता ही नहीं है.वे तो युवाओं के बजाए बुजुर्गों को काम देने में लगे हैं.कहीं अवकाशप्राप्त लोगों से काम कराया जा रहा है तो कहीं रिटायरमेंट की उम्र-सीमा बढ़ाई जा रही है.जहाँ पूरे यूरोप में इसी तरह के कदमों के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए हैं बिहार में जनता नीतीशजी को अभूतपूर्व बहुमत देकर जीता रही है.यही अंतर है परिपक्व और अपरिपक्व लोकतंत्र में.एक मामले में तो नीतीश सरकार ने उल्टी गंगा ही बहा दी है.दूध के खटालों को बंद करा दिया और शराब की दुकानें गाँव-गाँव में खोल दी.वृद्ध से लेकर बच्चा तक पीकर मस्त रहता है और सरकारी आमदनी में पैसे के साथ-साथ अपनी जिंदगी देकर योगदान कर रहा है.दुकानदारों को किराने की दुकानों में भी शराब रखनी पड़ रही है नहीं तो आटा-दाल की भी बिक्री नहीं होती.किसी भी चिकित्सक को जब बीमार शरीर दिया जाता है तो वह उसमें सुधार के प्रयास करता है लेकिन नीतीश जी ने शिक्षा सहित कई क्षेत्रों को सुधारने के नाम पर बर्बाद करके रख दिया है.अब नीतीश जी दोबारा सत्ता में आ चुके हैं वो भी प्रचंड बहुमत के साथ.देखना है कि वे अपनी पुरानी गलतियों में सुधार करते हैं या फ़िर नई गलतियाँ करके सिलसिले को आगे बढ़ाते हैं और अपनी मूर्खता के नए स्मारक स्थापित करते हैं.

2 टिप्‍पणियां:

dharmendra ने कहा…

thanks lekhni me jaan hai. really bhaiya nitish kumar ke paas abhi bhi samay hai ki wo education me parivartan layen. nahi to sab kara karaya par pani phir jayega. intezar us din ka hai jab nitish is front par bhi etihasik kadam uthayenge.

dharmendra ने कहा…

thanks lekhni me jaan hai. really bhaiya nitish kumar ke paas abhi bhi samay hai ki wo education me parivartan layen. nahi to sab kara karaya par pani phir jayega. intezar us din ka hai jab nitish is front par bhi etihasik kadam uthayenge.