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आपको अपने देश के नेताओं की बातों पर कितना भरोसा है मैं नहीं जानता.अपनी कहूं तो मैं मानता हूँ कि हमारे नेता हमेशा विरोधाभासी अलंकार का प्रयोग करते हैं.आप भी कहेंगे कि मैंने न जाने क्या कह दिया है तो मैं अर्थ स्पष्ट कर देता हूँ.वैसे भी अपने देश में शुद्ध हिंदी को समझने में लोगों को कठिनाई होती है लेकिन कठिन-से-कठिन अंग्रेजी को समझनेवाले सहज ही प्राप्य हैं.मेरे कहने का मतलब यह है कि हमारे नेता जो बोलते हैं मैं उसका उल्टा अर्थ लगाता हूँ,विरोधाभासी अर्थ.जैसे कि अगर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि कानून अपना काम करेगा तो मैं इसका सीधा अर्थ यह लगाता हूँ कि कानून अपना काम नहीं करेगा.२जी स्पेक्ट्रम से लेकर कॉमनवेल्थ घोटाले तक में अब तक कई महीने बीत जाने पर भी जांच प्रगति शून्य है और आगे भी उम्मीद की जानी चाहिए कि बड़ी मछलियाँ तो कम-से-कम कानून के हाथ नहीं ही लगनेवाली.राष्ट्रपति,सी.वी.सी. प्रमुख से लेकर केंद्र सरकार के कई मंत्री पहले से ही दागी हैं फ़िर भी इन्हें इन पदों पर नियुक्त किया गया,मानो देश से ईमानदारी पूरी तरह से समाप्त ही हो गई है.अगर ऐसा नहीं है तो फ़िर इसका यह मतलब निकाला जाना चाहिए कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी होने का दंभ भरनेवाली कांग्रेस पार्टी को दागियों से कुछ ज्यादा ही प्यार है.हमारी राष्ट्रपति पर प्रतिभा महिला सहकारी बैंक के माध्यम से अरबों रूपये के घपले सहित कई आरोप थे.फ़िर भी विपक्ष के प्रबल विरोध के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार बनाया.देश में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए जिम्मेदार मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर कांग्रेसनीत सरकार ने एक ऐसे व्यक्ति की हठपूर्वक नियुक्ति कर दी जिस पर खुद ही पाम आयल से दूरसंचार घोटाले तक में शामिल होने के पुख्ता प्रमाण पहले से ही मौजूद थे.जाहिर है यह आदमी जिस-जिस मंत्रालय में रहा वहां-वहां इसने घोटाला किया.वाह!!दाद देनी पड़ेगी कांग्रेस पार्टी के चयन की जो उसने भ्रष्टाचार को रोकने के एक घोटाला विशेषज्ञ की नियुक्ति कर दी.जहाँ तक राष्ट्रपति पद का सवाल है तो यह निस्संदेह देश का सबसे गरिमामय पद है इसलिए इस पर नियुक्ति भी ऐसे व्यक्ति की होनी चाहिए थी जो हर तरह के संदेहों से परे हो.लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया और राष्ट्रपति चुनाव के समय भी उसकी तरफ से यही डायलॉग बार-बार दोहराया गया कि कानून अपना काम करेगा.यू.पी.ए. १ में रेल मंत्री के पद पर घोटाला शिरोमणि लालू प्रसाद को सुशोभित कर दिया गया तो कृषि और खाद्य आपूर्ति मंत्री के पद पर चीनी-माफिया के तौर पर मशहूर शरद पवार को दे दिया गया.अब आईये देखते हैं कि कांग्रेसी राज में कानून अपना काम कैसे करता है.सुरेश कलमाड़ी आज भी राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष हैं और घोटाले की जाँच में लगी सी.बी.आई. और अन्य एजेंसियां दस्तावेजों के लिए उनकी दया-दृष्टि पर निर्भर हैं.होना तो यह चाहिए था कि खेलों के आयोजन से पहले ही जब उनपर आरोप लगने शुरू ही हुए थे तभी उन्हें पदमुक्त कर दिया जाता.लेकिन ऐसा हुआ नहीं.बल्कि उन्हें पद पर बनाए रखा गया सिर्फ इसलिए ताकि वे जाँच में पलीता लगा सकें.हमारे यहाँ एक कहावत खूब प्रचलित है कि जैसे फक्कड़ बाबा वैसी रसूलन बाई और जैसा दंत्चियोर ग्राहक वैसा लाल चावल.कुछ ऐसी ही स्थिति चल रहे जांचों की भी है.जांच करवानेवाले थॉमस भी भ्रष्ट और जाँच करानेवाले तो भ्रष्ट हैं ही.ठीक यही स्थिति आदर्श सोसाईटी घोटाले की है.जाँच शुरू होते ही जरूरी दस्तावेजों की उसी तरह किल्लत पैदा हो गई है जिस तरह कांग्रेसी सरकार की नीयत में ईमानदारी की कमी का संकट पैदा हो जाया करता है.दूरसंचार घोटाले में अभी तक सी.बी.आई. घोटालों के राजा ए.राजा.से पूछताछ भी नहीं कर पाई है और आगे भी यही उम्मीद करनी चाहिए कि इसकी नौबत नहीं आनेवाली है.आज संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेदकर की पुण्यतिथि के दिन मुझे याद आती हैं उनकी कही अमर पंक्ति कि कोई भी संविधान अच्छा या बुरा,मजबूत या कमजोर नहीं होता वरन अच्छे या बुरे,मजबूत या कमजोर होते हैं वे लोग जो इसका संचालन करते हैं.ठीक यही बात कानून के सम्बन्ध में भी लागू होती है.हमारे देश में कानून व्यापक हैं और सभी तरह के अपराधों से निपटने में सक्षम हैं लेकिन इनकी सफलता और विफलता इन्हें लागू करनेवालों पर निर्भर करती है.स्पष्ट है कि कानून अपना काम नहीं कर सकता बल्कि यह तभी अपना काम करेगा जब इसे लागू करनेवाले ईमानदारी से अपना काम करेंगे और यह बात प्रत्येक सरकार पर लागू होती है चाहे वह सरकार कांग्रेस की हो या विपक्षी दलों की.
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