मित्रों,हमारे गांवों में एक कहावत है कि जो पंडित विवाह का मंत्र जानता है उसे श्राद्ध का मंत्र भी पता होता है.मतलब कि बीसीसीआई के जो अधिकारी किसी युवक को स्टार बनने का मौका दे सकते हैं नाराज होने पर उसे बर्बाद भी कर सकते हैं.जो दर्शक चौबीसों घंटे टीवी के परदे पर किसी प्यासे चातक की तरह नजरें गड़ाए रहते हैं उन्होंने सपने में भी यह नहीं सोंचा होता है कि भारतीय क्रिकेट का असली खेल टीवी के परदे पर नहीं बल्कि परदे के पीछे चल रहा होता है भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में.ये क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड वाले पहले तो किसी कप्तान या खिलाडी की पतंग को खूब ऊंचाई तक उड़ने की ढील देते हैं और जब उनकी पतंग ऊंचाईयों की उनकी बनाई हुई हदों तक पहुँच जाती है तब चुपके से डोर को ही काट देते हैं.
मित्रों,कुछ इसी तरह की शरारत भारतीय क्रिकेट इतिहास के तब तक के सबसे सफल कप्तान सौरव गांगुली के साथ भी की गयी और अब शायद महेंद्र सिंह धोनी के खिलाफ भी कुछ उसी तरह की साजिश रची जा चुकी है.वर्ना धोनी जैसा जीवटवाला कप्तान जिसके नेतृत्व में भारतीय टीम ने न केवल २८ साल बाद विश्वकप जीता बल्कि पहली बार टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक का ताज भी पहना अब टेस्ट क्रिकेट से ही संन्यास लेने की बात नहीं करता.तर्कशास्त्र में एक सूक्ति खूब प्रचलित है कि धुंआ वहीं पर होता है जहाँ आग होती है.मतलब कि बिना धुंए की आग भले ही इस २१वीं सदी में जलाना संभव हो गया हो लेकिन बिना आग जलाए असली धुंआ उत्पन्न हो ही नहीं सकता;उसके लिए तो निर्धारित तापमान चाहिए ही.
मित्रों,कुछ ही दिनों पहले से ऑस्ट्रेलियन मीडिया में भारतीय क्रिकेट टीम से जुडी हुई कुछ इस तरह की ख़बरें छन-छन कर बाहर आ रही हैं कि इस समय भारतीय क्रिकेट टीम में कप्तान धोनी के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा है और जिस तरह गांगुली को बेआबरू करके टीम से निकालने के समय विद्रोह का नेतृत्व राहुल द्रविड़ ने किया था उसी तरह इस समय वीरेंदर सहवाग विद्रोह की कमान संभाल रहे हैं.इन आशंकाओं को तब और भी बल मिल गया जब ब्रायन लारा और सौरव गांगुली ने ऑस्ट्रेलिया में टीम की हार पर धोनी का बचाव करते हुए कहा कि धोनी बहुत अच्छे कप्तान हैं और उनकी कप्तानी में अब भी कोई कमी नहीं है उन्हें अपनी टीम का सहयोग नहीं मिल पा रहा.ऐसा टीम के अन्य खिलाडी क्यों कर रहे हैं यह उन्होंने नहीं बताया.बस एक संकेत भर देकर चुप हो गए. क्रिकेट पिच पर तो अनिश्चितताओं का खेल है ही;भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की अंदरूनी राजनीति भी कम अनिश्चिततापूर्ण नहीं है.कब किसको बाहर बिठाना है और किसको अर्श से फर्श पर चढ़ाना है और फिर किसको सफलता की बुलंदियों पर चढ़ने के मौका देकर धक्का दे देना है;इसका फैसला खिलाडियों का प्रदर्शन नहीं करता हमारी बीसीसीआई के घाघ अधिकारी करते हैं.शायद इन शानिदेवों की वक्रदृष्टि के ताजा शिकार बने हैं क्रिकेट के तीनों संस्करणों में भारत के सबसे सफल कप्तान बन चुके महेंद्र सिंह धोनी.हो सकता है कि टीम के सहवाग सरीके खिलाडियों को और टीम प्रबंधन को भी अब एक जन्मना बिहारी का नेतृत्व खटकने लगा हो.टीम इण्डिया हमेंशा से ही भारतीय एकता का प्रतीक रही है.उसमें क्षेत्रवाद का उभार होना न केवल भारतीय क्रिकेट के लिए हानिकारक होनेवाला है वरन यह इस संक्रमण काल में देश की एकता को भी कमजोर करेगा अच्छा होता अगर टीम इण्डिया और प्रबंधन धोनी पर पूरा विश्वास करते और उसके साथ पूर्ण सहयोग करके भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाईयों तक पहुँचाने का अवसर देते क्योंकि धोनी जैसे कप्तान किसी देश और टीम को बार-बार नहीं मिला करते.अगर यह सच है तो धोनी की कप्तानी में जानबूझ कर कुछ खिलाडियों का ख़राब खेलना देश के साथ-साथ खेल-भावना के साथ भी धोखा है.
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