मित्रों,इस दुनिया में यूँ तो लोगों के वर्गीकरण के कई आधार हो सकते हैं। उनमें से ही एक के अनुसार इस दुनिया में इस समय दो तरह के लोग रहते हैं-एक जो बहुत ज्यादा बोलते हैं और दिन-रात बेवजह भूँकते रहते हैं और दूसरी श्रेणी में ऐसे लोग आते हैं जो इतना कम बोलते हैं कि कभी-कभी तो खुदा के फजल से बंदों को ऐसा भी गुमाँ हो जाता है कि उसके मुँह में किबला जुबान है भी कि नहीं। इनमें से पहली जमात की रहनुमाई इन दिनों कर रहे हैं मध्य प्रदेश के पूर्व वजीरे आला,जब बोले तो गड़बड़झाला,ऊपर से नीचे तक माशाअल्लाह जहर का हाला,बकवासे आजम श्री दिग्विजय सिंह और दूसरी जमात के रहनुमा हैं चुप्पा सम्राट,घोटाला-पुरूष,यंत्र-मानव,कृत्रिम बुद्धि के पारावार,सोनिया गाँधी के प्रिय (कु)पात्र,अनर्थशास्त्र के परम-विद्वान,सल्तनते भ्रष्टाचार (हिंद) के मौजूदा वजीरे आजम श्री मनमोहन सिंह।
मित्रों,इनमें से एक कहता है कि चाहे मुझे कितना भी छेड़ लो,कितनी भी गुदगुदी कर लो,कैसे भी आरोप लगा लो मैं तो बोलूंगा ही नहीं,मुँह खोलूंगा ही नहीं। जनाब फरमाते हैं कि उनकी चुप्पी के चलते ही हम जनता के सवालों की इज्जत-आबरू बची हुई है,अन्यथा ईधर उन्होंने मुँह खोला नहीं कि हमारे सवालों का बलात्कार ही हुआ समझिए। माना कि कभी-कभी चुप रहना बेहतर होता है लेकिन कोई हमेशा चुप ही रहे तो इसे गुण नहीं बल्कि अवगुण ही माना जाना चाहिए और फिर राजनीति तो वकालत की तरह बोलनेवालों का ही पेशा है। जनाब को जब चुप ही रहना था तो क्यों बने भारत के प्रधानमंत्री,किसके कहने पर बने,हमने तो नहीं कहा था? मान लीजिए आप एक अधिवक्ता हैं और कोई आलतू-फालतू-सा मुकदमा लड़ रहे हैं फिर भी आप जज से ऐसा तो नहीं कह सकते कि मैं तो चुप ही रहूंगा,मैं तो बोलूंगा ही नहीं। फिर तो आपसे जज यही कहेगा न कि मेरे बाप जब आपको चुप ही रहना था तो आप वकील बने ही क्यूँ? आपसे मैंने तो नहीं कहा था कि आप इसी पेशे में आईए। आपके बिना इस क्षेत्र में सुखाड़ की स्थिति तो नहीं थी कि आप आए और बहारें आईं। इतना सुनाने के बाद वह जज आपको बाईज्जत बाहर निकाल देगा।
मित्रों,राजनीति कोई खाला का घर नहीं है कि कोई भी आकर कोई भी पद ग्रहण कर ले। राजनीति में जज होती है जनता और वकील होते हैं सत्ता पक्ष और विपक्ष। भारत में सत्ता पक्ष का नेतृत्वकर्ता होता है प्रधानमंत्री। तो हम भी लगे हाथों पूछ ही लेते हैं कि श्री मनमोहन सिंह जी से कि जब चुप्पी ही साधे रखनी थी तो रिटायरमेंट की इस नाजुक उम्र में घर में ही रहते राजनीति में क्यों आए? अच्छा होता घर में खाट पर पड़े-पड़े चुपचाप ताईजी की डाँट-फटकार सुनते रहते। यहाँ तो ताऊ घोटाले आप करेंगे तो जवाब भी आपको ही देना पड़ेगा। यहाँ तक कि ताईजी भी जवाब नहीं दे सकतीं। फिर दिग्विजय सिंह कौन होते हैं जवाब देनेवाले? क्या वे कोयला घोटाला होने के समय कोयला मंत्री थे या किसी तरह इस कुकर्म में मुलब्बिस थे? अगर नहीं तो फिर क्यों जनाब बेगाना शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन रहे हैं। खुदा कसम दीवाने तो हमने भी कम नहीं देखे हैं लेकिन शौकिया दीवाना पहली बार देखा है। फटा देखा नहीं कि डाल दिया पाँव और एक नहीं दोनों। अभी तक तो भारत के लोगों को जब कभी-कभी डायरिया होता था तो उनको दस्त होते थे और जाहिर है कि डायरिया पेट में होता था मगर जनाब को तो बारहों मास मुँह का डायरिया हुआ रहता है।
मित्रों, काफी लंबी चुप्पी के बाद राघोगढ़ के साहिबे आलम ने अपना गंदा मुँह खोला है और जनाब जनाब ने मुँह क्या खोला है जमकर उल्टी की है। गंध मचा दिया है एकदम। जनाब ने सीधे-सीधे उस संवैधानिक संस्था के ऊपर निहायत बेहूदा और बेसिर-पैर के आरोप लगाए हैं जिसको कभी संविधान निर्माता डॉ. अंबेदकर ने भारत के सरकारी खजाने का पहरेदार कहा था। जनाब शायद यह चाहते हैं कि उनकी पार्टी की सरकार रोज-रोज घोटाले करती रहे और सीएजी इस ओर से आँखें मूँदे ले और अपना संवैधानिक जिम्मेदारी का पालन नहीं करे। हम उनसे पूछते हैं कि उनकी पार्टी की सरकार ऐसे गुनाह करती ही क्यों है जिससे सीएजी को उसकी कान पकड़ने और विपक्ष को उमेठने का मौका मिलता है? क्यों उनकी पार्टी की सरकार हमेशा साँप की तरह टेढ़े-मेढ़े रास्ते से चलती है? क्यों वह सीधी राह पर नहीं चलती? क्या जनाब दिग्विजय सिंह अन्तर्यामी हैं? क्या उनको यह पता चल जाता है कि कौन,कब,क्या सोंच रहा होता है? देश में कौन हत्या की योजना बना रहा है,कौन बलात्कार करनेवाला है या कौन बम फोड़ने की सोंच रहा है? अगर ऐसा है तो फिर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी ही क्यों पड़ी? क्यों वे मुख्यमंत्री रहते हुए मध्य प्रदेश की जनता के मन को नहीं पढ़ सके? वैसे भी यह एक भविष्यगत प्रश्न है कि भारत के वर्तमान सीएजी श्री विनोद राय रिटायर होने के बाद क्या करेंगे? वे घर में बैठकर नाती-पोतों को गुलाटी खिलाएंगे या फिर चनाचूड़ का व्यवसाय करेंगे या फिर राजनीति करेंगे। उन्होंने अभी तक तो एक बार भी नहीं कहा कि उनकी राजनीति में अभिरुचि भी है। क्या बिना किसी प्रमाण के एक अतिमहत्त्वपूर्ण संवैधानिक संस्था पर बदबूदार कीचड़ उछालने से संविधान और संसद का सम्मान बढ़ता है? जब यही काम टीम अन्ना कर रही थी तब तो बतौर दिग्विजय ऐसा नहीं हो रहा था। वैसे दिग्विजय जी तो इस समय राजनीति में ऐसी अंधी गली आ फंसे हैं कि कम-से-कम उनको तो मान या अपमान से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन देश और देश की जनता को तो संवैधानिक संस्था के अपमान से फर्क पड़ता है। क्या विडंबना है कि जिसे बोलना चाहिए वह चुप है और जिसके शब्दों से H2S गैस की तरह दुर्गन्ध आती है वह बस बोले ही जा रहा है,बस बोले ही जा रहा है। कोई है ऐसा जाबाँज,ऐसा हुनरमंद जिसके पास मनमोहन की जुबान पर लगे ताले की चाबी हो ताकि उसी ताले को खोलकर दिग्विजय की जुबान पर जड़ दिया जाए और चाबी को आमेजन दरिया में फेंक दिया जाए।
मित्रों,इनमें से एक कहता है कि चाहे मुझे कितना भी छेड़ लो,कितनी भी गुदगुदी कर लो,कैसे भी आरोप लगा लो मैं तो बोलूंगा ही नहीं,मुँह खोलूंगा ही नहीं। जनाब फरमाते हैं कि उनकी चुप्पी के चलते ही हम जनता के सवालों की इज्जत-आबरू बची हुई है,अन्यथा ईधर उन्होंने मुँह खोला नहीं कि हमारे सवालों का बलात्कार ही हुआ समझिए। माना कि कभी-कभी चुप रहना बेहतर होता है लेकिन कोई हमेशा चुप ही रहे तो इसे गुण नहीं बल्कि अवगुण ही माना जाना चाहिए और फिर राजनीति तो वकालत की तरह बोलनेवालों का ही पेशा है। जनाब को जब चुप ही रहना था तो क्यों बने भारत के प्रधानमंत्री,किसके कहने पर बने,हमने तो नहीं कहा था? मान लीजिए आप एक अधिवक्ता हैं और कोई आलतू-फालतू-सा मुकदमा लड़ रहे हैं फिर भी आप जज से ऐसा तो नहीं कह सकते कि मैं तो चुप ही रहूंगा,मैं तो बोलूंगा ही नहीं। फिर तो आपसे जज यही कहेगा न कि मेरे बाप जब आपको चुप ही रहना था तो आप वकील बने ही क्यूँ? आपसे मैंने तो नहीं कहा था कि आप इसी पेशे में आईए। आपके बिना इस क्षेत्र में सुखाड़ की स्थिति तो नहीं थी कि आप आए और बहारें आईं। इतना सुनाने के बाद वह जज आपको बाईज्जत बाहर निकाल देगा।
मित्रों,राजनीति कोई खाला का घर नहीं है कि कोई भी आकर कोई भी पद ग्रहण कर ले। राजनीति में जज होती है जनता और वकील होते हैं सत्ता पक्ष और विपक्ष। भारत में सत्ता पक्ष का नेतृत्वकर्ता होता है प्रधानमंत्री। तो हम भी लगे हाथों पूछ ही लेते हैं कि श्री मनमोहन सिंह जी से कि जब चुप्पी ही साधे रखनी थी तो रिटायरमेंट की इस नाजुक उम्र में घर में ही रहते राजनीति में क्यों आए? अच्छा होता घर में खाट पर पड़े-पड़े चुपचाप ताईजी की डाँट-फटकार सुनते रहते। यहाँ तो ताऊ घोटाले आप करेंगे तो जवाब भी आपको ही देना पड़ेगा। यहाँ तक कि ताईजी भी जवाब नहीं दे सकतीं। फिर दिग्विजय सिंह कौन होते हैं जवाब देनेवाले? क्या वे कोयला घोटाला होने के समय कोयला मंत्री थे या किसी तरह इस कुकर्म में मुलब्बिस थे? अगर नहीं तो फिर क्यों जनाब बेगाना शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन रहे हैं। खुदा कसम दीवाने तो हमने भी कम नहीं देखे हैं लेकिन शौकिया दीवाना पहली बार देखा है। फटा देखा नहीं कि डाल दिया पाँव और एक नहीं दोनों। अभी तक तो भारत के लोगों को जब कभी-कभी डायरिया होता था तो उनको दस्त होते थे और जाहिर है कि डायरिया पेट में होता था मगर जनाब को तो बारहों मास मुँह का डायरिया हुआ रहता है।
मित्रों, काफी लंबी चुप्पी के बाद राघोगढ़ के साहिबे आलम ने अपना गंदा मुँह खोला है और जनाब जनाब ने मुँह क्या खोला है जमकर उल्टी की है। गंध मचा दिया है एकदम। जनाब ने सीधे-सीधे उस संवैधानिक संस्था के ऊपर निहायत बेहूदा और बेसिर-पैर के आरोप लगाए हैं जिसको कभी संविधान निर्माता डॉ. अंबेदकर ने भारत के सरकारी खजाने का पहरेदार कहा था। जनाब शायद यह चाहते हैं कि उनकी पार्टी की सरकार रोज-रोज घोटाले करती रहे और सीएजी इस ओर से आँखें मूँदे ले और अपना संवैधानिक जिम्मेदारी का पालन नहीं करे। हम उनसे पूछते हैं कि उनकी पार्टी की सरकार ऐसे गुनाह करती ही क्यों है जिससे सीएजी को उसकी कान पकड़ने और विपक्ष को उमेठने का मौका मिलता है? क्यों उनकी पार्टी की सरकार हमेशा साँप की तरह टेढ़े-मेढ़े रास्ते से चलती है? क्यों वह सीधी राह पर नहीं चलती? क्या जनाब दिग्विजय सिंह अन्तर्यामी हैं? क्या उनको यह पता चल जाता है कि कौन,कब,क्या सोंच रहा होता है? देश में कौन हत्या की योजना बना रहा है,कौन बलात्कार करनेवाला है या कौन बम फोड़ने की सोंच रहा है? अगर ऐसा है तो फिर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी ही क्यों पड़ी? क्यों वे मुख्यमंत्री रहते हुए मध्य प्रदेश की जनता के मन को नहीं पढ़ सके? वैसे भी यह एक भविष्यगत प्रश्न है कि भारत के वर्तमान सीएजी श्री विनोद राय रिटायर होने के बाद क्या करेंगे? वे घर में बैठकर नाती-पोतों को गुलाटी खिलाएंगे या फिर चनाचूड़ का व्यवसाय करेंगे या फिर राजनीति करेंगे। उन्होंने अभी तक तो एक बार भी नहीं कहा कि उनकी राजनीति में अभिरुचि भी है। क्या बिना किसी प्रमाण के एक अतिमहत्त्वपूर्ण संवैधानिक संस्था पर बदबूदार कीचड़ उछालने से संविधान और संसद का सम्मान बढ़ता है? जब यही काम टीम अन्ना कर रही थी तब तो बतौर दिग्विजय ऐसा नहीं हो रहा था। वैसे दिग्विजय जी तो इस समय राजनीति में ऐसी अंधी गली आ फंसे हैं कि कम-से-कम उनको तो मान या अपमान से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन देश और देश की जनता को तो संवैधानिक संस्था के अपमान से फर्क पड़ता है। क्या विडंबना है कि जिसे बोलना चाहिए वह चुप है और जिसके शब्दों से H2S गैस की तरह दुर्गन्ध आती है वह बस बोले ही जा रहा है,बस बोले ही जा रहा है। कोई है ऐसा जाबाँज,ऐसा हुनरमंद जिसके पास मनमोहन की जुबान पर लगे ताले की चाबी हो ताकि उसी ताले को खोलकर दिग्विजय की जुबान पर जड़ दिया जाए और चाबी को आमेजन दरिया में फेंक दिया जाए।