मित्रों,अभी तक जिस तरह की घटनाएँ दिल्ली और मुम्बई में ही ज्यादा देखने को मिलती थी न जाने कैसे और क्यों अब बिहार में भी देखने को मिल रही हैं। बिहार में पिछले कुछ महीनों से महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है। अगर आपके साथ कोई स्त्री है और आप बिहार की राजधानी पटना की सड़कों पर चहलकदमी कर रहे हैं तो सचेत रहिए आपके साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है। अभी कल ही पटना के आलमगंज थाना क्षेत्र में बोलेरो पर सवार 7 लोगों ने अपने मामा और भाई के साथ मोटरसाइकिल से जा रही नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया। पटना में चलती कार में उठाई गई लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। कल ही एक अन्य घटना में किऊल जंक्शन के प्लेटफॉर्म न. 5 पर खड़ी ट्रेन में ही 3 फटेहाल मनचलों ने छत्तीसगढ़ की एक लड़की की ईज्जत को तार-तार कर दिया। इसी तरह परसों भागलपुर के मेही आश्रम में दो साध्वी बहनों के साथ आश्रम के ही साधुओं ने ही सामूहिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दे दिया।
मित्रों,ऐसी घटनाएँ बिहार में इन दिनों रोज-रोज ही घट रही हैं इसलिए इस आलेख में मैं कितने का जिक्र करूँ? क्या घर और क्या बाहर महिलाएँ कहीं भी सुरक्षित नहीं रह गई हैं। एक घटना में तो इसी 22 अगस्त को गया जिले में एक महिला जो वार्ड सदस्य भी है को पैसे के लालच में स्वयं उसके बेटे ने ही अपने चचेरे भाइयों के साथ मिलकर बाल काटकर और नंगा करके गांव में घुमा दिया। अब इससे ज्यादा जघन्य अपराध और क्या हो सकता है? क्या अमीर क्या गरीब,क्या अगड़े और क्या पिछड़े हरेक वर्ग के लोग महिला प्रताड़ना की घटनाओं में शामिल पाए जा रहे हैं। महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव लोगों के मन से ही विलुप्त होता जा रहा है। न जाने कैसा उन्माद हरेक इन्सान के दिलो-दिमाग पर तारी होता जा रहा है?
मित्रों,ऐसा क्यों हो रहा है न सरकार समझ पा रही है और न ही प्रशासन ही समझ पा रहा है। कानून का डंडा हरगिज नहीं रोक सकता ऐसी घटनाओं को। अगर ऐसा होना होता तो रोजाना के अखबार इस तरह की जघन्य घटनाओं की खबरों से भरे पड़े नहीं होते। खोट कानून में नहीं है अलबत्ता कानून लागू करनेवालों में जरूर कमी है। आखिर वे भी तो इसी समाज से आते हैं। लेकिन सबसे बड़ी गिरावट जो पिछले 20-25 सालों में आई है वह है हमारी सोंच में और सबसे बड़ा बदलाव आया है हमारी जीवन-शैली में। हमने वास्तविक भगवान को उसके आधिकारिक पद से अपदस्थ कर पैसे को ही भगवान बना दिया है और मान लिया है। पहले जब तक लोग भगवान को ही भगवान मानते थे तब तक उनके मन में हमेशा यह डर रहता था कि उनका भगवान उन्हें कभी-न-कभी किसी-न-किसी प्रकार से कुकर्मों के लिए दंडित करेगा। आज जबकि पैसे को ही भगवान बना दिया गया है तो जिनके पास पैसा है वे अपने-आपको ही भगवान समझने लगे हैं और यह मानने लगे हैं कि पैसा इन्सान की सारी कमियों को ढँक देता है। साथ ही जिनके पास नहीं है वे येन केन प्रकारेण शीघ्रातिशीघ्र ज्यादा-से-ज्यादा पैसा कमा लेना चाहते हैं। नतीजतन हमारा तेज गति से नैतिक क्षरण हो रहा है और हम जो करते हैं हमारे बच्चे वही सीखते हैं। संस्कृत में एक सूक्ति है-महाजनो येन गतः स पंथाः। अर्थात् महान या समाज के माननीय लोग जिस मार्ग पर चलते हैं अन्य लोग उसी का अनुशरण करते हैं। समाज के ऊपरी वर्ग का अगर नैतिक पतन होता है तो निचला तबका भी सर्वथा अप्रभावित नहीं रह पाता। समाज के नैतिक क्षरण को रोका जा सकता है लेकिन यह काम है बड़ा मुश्किल;इस उपभोक्तावादी और भोगवादी युग में तो और भी कठिन। इसके लिए समाज को और व्यक्ति को निरा भौतिकवाद से अध्यात्मवाद की ओर उन्मुख करना पड़ेगा। हमारी पाठ्य-पुस्तकों में तो आज भी नैतिक शिक्षा की सामग्री अटी-पटी पड़ी है लेकिन हमारे जीवन से,नित्य-कर्म से नैतिकता गायब-सी हो गई है। मैंने गायत्री परिवार से जुड़े ऐसे कई समृद्ध लोगों को देखा है जो दैनिक जीवन में परले दर्जे के धूर्त हैं। ऐसे में एक मार्ग एकला चलो रे का भी हो सकता है। अगर प्रत्येक व्यक्ति अकेले भी धर्म के मार्ग पर चलने का उद्यम करने को उद्धत होता है तो एक बार फिर से समाज का नैतिक उत्थान संभव है। फिलहाल ऐसा हो पाना संभव नहीं तो असंभव भी नहीं लगता भले ही कितना भी कठिन क्यों न हो। कोशिश करने पर हो सकता है निकट-भविष्य में बिहार का समाज नैतिक पतन के निम्नतम बिन्दु को छूने के बाद फिर से उत्थान की ओर महाप्रयाण करे। मेरे हिसाब से तो महान बिहार का महान समाज नैतिक पतन के निम्नतम बिन्दु तक पहुँच भी चुका है।
मित्रों,ऐसी घटनाएँ बिहार में इन दिनों रोज-रोज ही घट रही हैं इसलिए इस आलेख में मैं कितने का जिक्र करूँ? क्या घर और क्या बाहर महिलाएँ कहीं भी सुरक्षित नहीं रह गई हैं। एक घटना में तो इसी 22 अगस्त को गया जिले में एक महिला जो वार्ड सदस्य भी है को पैसे के लालच में स्वयं उसके बेटे ने ही अपने चचेरे भाइयों के साथ मिलकर बाल काटकर और नंगा करके गांव में घुमा दिया। अब इससे ज्यादा जघन्य अपराध और क्या हो सकता है? क्या अमीर क्या गरीब,क्या अगड़े और क्या पिछड़े हरेक वर्ग के लोग महिला प्रताड़ना की घटनाओं में शामिल पाए जा रहे हैं। महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव लोगों के मन से ही विलुप्त होता जा रहा है। न जाने कैसा उन्माद हरेक इन्सान के दिलो-दिमाग पर तारी होता जा रहा है?
मित्रों,ऐसा क्यों हो रहा है न सरकार समझ पा रही है और न ही प्रशासन ही समझ पा रहा है। कानून का डंडा हरगिज नहीं रोक सकता ऐसी घटनाओं को। अगर ऐसा होना होता तो रोजाना के अखबार इस तरह की जघन्य घटनाओं की खबरों से भरे पड़े नहीं होते। खोट कानून में नहीं है अलबत्ता कानून लागू करनेवालों में जरूर कमी है। आखिर वे भी तो इसी समाज से आते हैं। लेकिन सबसे बड़ी गिरावट जो पिछले 20-25 सालों में आई है वह है हमारी सोंच में और सबसे बड़ा बदलाव आया है हमारी जीवन-शैली में। हमने वास्तविक भगवान को उसके आधिकारिक पद से अपदस्थ कर पैसे को ही भगवान बना दिया है और मान लिया है। पहले जब तक लोग भगवान को ही भगवान मानते थे तब तक उनके मन में हमेशा यह डर रहता था कि उनका भगवान उन्हें कभी-न-कभी किसी-न-किसी प्रकार से कुकर्मों के लिए दंडित करेगा। आज जबकि पैसे को ही भगवान बना दिया गया है तो जिनके पास पैसा है वे अपने-आपको ही भगवान समझने लगे हैं और यह मानने लगे हैं कि पैसा इन्सान की सारी कमियों को ढँक देता है। साथ ही जिनके पास नहीं है वे येन केन प्रकारेण शीघ्रातिशीघ्र ज्यादा-से-ज्यादा पैसा कमा लेना चाहते हैं। नतीजतन हमारा तेज गति से नैतिक क्षरण हो रहा है और हम जो करते हैं हमारे बच्चे वही सीखते हैं। संस्कृत में एक सूक्ति है-महाजनो येन गतः स पंथाः। अर्थात् महान या समाज के माननीय लोग जिस मार्ग पर चलते हैं अन्य लोग उसी का अनुशरण करते हैं। समाज के ऊपरी वर्ग का अगर नैतिक पतन होता है तो निचला तबका भी सर्वथा अप्रभावित नहीं रह पाता। समाज के नैतिक क्षरण को रोका जा सकता है लेकिन यह काम है बड़ा मुश्किल;इस उपभोक्तावादी और भोगवादी युग में तो और भी कठिन। इसके लिए समाज को और व्यक्ति को निरा भौतिकवाद से अध्यात्मवाद की ओर उन्मुख करना पड़ेगा। हमारी पाठ्य-पुस्तकों में तो आज भी नैतिक शिक्षा की सामग्री अटी-पटी पड़ी है लेकिन हमारे जीवन से,नित्य-कर्म से नैतिकता गायब-सी हो गई है। मैंने गायत्री परिवार से जुड़े ऐसे कई समृद्ध लोगों को देखा है जो दैनिक जीवन में परले दर्जे के धूर्त हैं। ऐसे में एक मार्ग एकला चलो रे का भी हो सकता है। अगर प्रत्येक व्यक्ति अकेले भी धर्म के मार्ग पर चलने का उद्यम करने को उद्धत होता है तो एक बार फिर से समाज का नैतिक उत्थान संभव है। फिलहाल ऐसा हो पाना संभव नहीं तो असंभव भी नहीं लगता भले ही कितना भी कठिन क्यों न हो। कोशिश करने पर हो सकता है निकट-भविष्य में बिहार का समाज नैतिक पतन के निम्नतम बिन्दु को छूने के बाद फिर से उत्थान की ओर महाप्रयाण करे। मेरे हिसाब से तो महान बिहार का महान समाज नैतिक पतन के निम्नतम बिन्दु तक पहुँच भी चुका है।
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