नरेन्द्र मोदी और उनका मोदीत्त्व
मित्रों, इस दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति में कुछ बुराइयाँ होती हैं तो कुछ अच्छाइयाँ। जाहिर है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी में भी कुछ बुरी बाते हैं तो कुछ अच्छी भी। ऐसा भी नहीं है कि पिछले 11 सालों में मोदी ने अपनी सोंच और व्यवहार में कोई बदलाव नहीं किया हो। उन्होंने इस बीच सद्बावना यात्रा और उपवास का आयोजन कर मुसलमानों को सार्वजनिक मंच पर गले से भी लगाया है। अपने बारह साल के शासन में मोदी ने कभी धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया। शायद यही कारण है कि सच्चर आयोग ने भी गुजरात में ही मुसलमानों की स्थित सबसे अच्छी बताई। आज के नरेन्द्र मोदी 2002 के नरेन्द्र मोदी नहीं हैं। आज वे विकासपुरूष हैं,सर्वधार्मिक और सर्वजातीय विकास के प्रतीक हैं फिर भी देश की कथित धर्मनिरपेक्ष,मुस्लिमवादी और तुष्टीकरण की गंदी राजनीति करनेवाली पार्टियाँ और नेता उनको अंत्यज और अस्पृश्य बनाने पर तुले हैं।
मित्रों,मैं इन नेताओं और पार्टियों से पूछना चाहता हूँ कि श्रीमान् जी टाईटलर,सज्जन कुमार सज्जन हैं,मदनी,बुखारी और औबैसी धर्मनिरपेक्ष हैं,गोधरा में ट्रेन फूँकनेवाले सही हैं परन्तु दंगाइयों को सजा दिलानेवाले,दंगों के समय पुलिस को गोली चलाने का आदेश देनेवाले मोदी गलत और सांप्रदायिक कैसे हो गए? कांग्रेस ने कितने बाबू बजरंगियों और कितनी मायाओं को सजा दिलवाई है? नरपिशाच नक्सलियों का मसीहा विनायक सेन स्वीकार्य और मोदी घृणास्पद? शर्म को विदेशी शराब में घोलकर पी गए क्या? मोदी ने मंच पर फैजी टोपी नहीं पहनी तो साम्प्रदायिक हो गए और फैजी टोपी पहनकर जो नेता दशकों से मुसलमानों को टोपी पहना रहे हैं वे धर्मनिरपेक्ष? इन लोगों ने देश-प्रदेश में मुसलमानों के लिए क्या किया है? क्यों बाँकी राज्यों के मुसलमान गुजरात के मुसलमानों से पिछड़े हुए हैं? इक्का-दुक्का को छोड़कर क्या इनमें से सबने पार्टी को पारिवारिक सम्पत्ति या दुकान नहीं बना दिया है?
मित्रों,महात्मा ईसा और गाँधी कहा करते थे कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं। महर्षि वाल्मिकी भी पहले डाकू हुआ करते थे इसलिए हमें क्या इस बात का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए कि वाल्मिकी मोदी में कितना कथित रत्नाकर मोदी बचा हुआ है? अगर मोदी ने 2002 के मार्च के पहले सप्ताह में राजधर्म का पालन नहीं किया और दंगों को जानबूझकर बढ़ावा दिया तो क्या उन्होंने इस एक गलती को बाद में दोहराया भी? क्या इसके बाद भी गुजरात में कभी सांप्रदायिक दंगे हुए? राजधर्म को तो आज कोई भी राजनेता नहीं निभा रहा है। सबके सब पदभार ग्रहण करते समय देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने और अपने कर्त्तव्यों का सम्यक निर्वहन करने की शपथ लेते हैं फिर भूल जाते हैं। मोदी ने अगर बाद में भी राजधर्म नहीं निभाया तो फिर आज माया और बजरंगी को सजा कैसे हो गई? जो लोग और जो मीडिया कभी मोदी की बाबू बजरंगी से निकटता का बेबुनियाद आरोप लगा रहे थे वे उसको सजा मिलने पर चुप क्यों हैं जैसे कि वसंत में मेंढ़क मौन हो जाता है।
मित्रों,जाहिर है कि मोदी का पूरी तरह से कायान्तरण हो चुका है। उन्होंने कथित धर्मनिरपेक्ष मीडिया द्वारा निर्मित सांप्रदायिक छवि को वर्षों पीछे छोड़ते हुए विकासपुरूष की छवि बना ली है। जब लालू,खुर्शीद,राजा,सोरेन,कोड़ा,राजशेखर रेड्डी,मायावती,मुलायम एंड को,पवार एंड को,कलमाड़ी,जयललिता,करूणानिधि एंड को,सोनिया गाँधी एंड को जैसे महाभ्रष्ट,देशद्रोही और देशबेचवा नेता स्वीकार्य हैं,रोज-रोज राजधर्म के साथ सामूहिक दुष्कर्म करनेवाले ये नेता वंदनीय हैं और एक बार गलती से कथित रूप से राजधर्म नहीं निभा सकनेवाले नरेन्द्र मोदी निंदनीय? हमें नहीं भूलना चाहिए कि यही वे नेता हैं जो 1998 में मिनरल वाटर पी पीकर यह भविष्यवाणीपूर्ण आरोप लगा रहे थे कि अगर भाजपा एक बार केंद्र में सत्ता में आ गई तो फिर कभी चुनाव नहीं होंगे क्योंकि ये लोग तानाशाह हिटलर की तरह सत्ता पर हमेशा-हमेशा के लिए जबरन काबिज हो जाएंगे मगर ऐसा हुआ क्या? ये वही लोग हैं जो बिहार में यह बोलकर मुसलमानों को डराते रहे हैं कि अगर भाजपा सत्ता में आ गई तो उनके साथ यह होगा वह होगा मगर ऐसा हुआ क्या? और आज वही लोग यह कहकर देशभर के मुसलमानों के मन में भय का वातावरण बना रहे हैं कि मोदी प्रधानमंत्री बनेगा तो उनके साथ यह बुरा होगा वह बुरा होगा। कोई भी दल या नेता बहुसंख्यक हिन्दुओं की न तो चिंता ही कर रहा है और न तो बात ही। जैसे वे लोग तो वोटर हैं ही नहीं।
मित्रों,मैं बताता हूँ कि मोदी के आने से देश में क्या हो सकता है। मोदी के आने से सरकार में पूंजीपतियों का दखल कम होगा,देश की डूबती अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आ सकेगी,देश का सर्वांगिण विकास होगा,भ्रष्टाचार में कमी आएगी,बेरोजगारी घटेगी,घोटाले कम होंगे,देश को लूटने और बेचने का सिलसिला कम होगा,महँगाई कम होगी,सांप्रदायिक दंगे कम होंगे,सीमापार से कश्मीर सहित पूरे भारत में आतंकवाद में कमी आएगी,भुगतान संतुलन में सुधार आएगा,रूपया मजबूत होगा,हम चीन से उसकी ही भाषा में बात कर सकेंगे,पूरी दुनिया में भारत का रसूख बढ़ेगा और रक्तपिपासु नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक कदम उठाए जा सकेंगे। और अगर ये कथित धर्मनिरपेक्ष देशद्रोही लुटेरे फिर से सत्ता में आ गए तो वही सब होगा जो इन दिनों केंद्र की सरकार में हो रहा है और देश एक बार फिर से गुलाम हो जाएगा।
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