रविवार, 1 नवंबर 2015

छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी बुद्धिजीवियों की अवसरवादी भावुकता और बिहार का विधानसभा चुनाव

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,एक चुटकुला आपने भी पढ़ा होगा कि एक महिला के पति का किसी से झगड़ा हो जाता है। जब तक उसका पति दूसरे व्यक्ति को पीटता रहता है तब तक तो महिला खुशी से उछलती रहती है लेकिन जब पतिदेव की पिटाई होने लगती है तो महिला पुलिस को फोन लगा देती है। आप भी कह रहे होंगे कि मैंने आज कितने गंभीर विषय पर लिखने के लिए कलम उठाई है और आपको चुटकुला सुना रहा हूँ। कहीं मैं ललुआ (जैसे लालू जी हर बात को हल्के में लेते हैं) तो नहीं गया हूँ। अगर आप ऐसा सोंच रहे हैं तो गलत सोंच रहे हैं। दरअसल आज भारत के छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी बुद्धूजीवी  (बुद्धिजीवी) भी वही कर रहे हैं जो इस प्रसिद्ध चुटकुले में उस महिला ने किया था।
मित्रों,जब तक हिंदू संस्कृति पर प्रहार हो रहा था,कश्मीरी पंडितों पर भीषण अत्याचार हो रहा था,सिखों को काटा जा रहा था,हिंदुओं को ट्रेनों में जीवित जलाया जा रहा था,गाजर-मूली की तरह काटकर नहर में फेंका जा रहा था,कानून द्वारा प्रतिबंधित होने बावजूद हिंदुओं के लिए सगी माँ से भी ज्यादा पूज्य गायों को खुलेआम मारकर खाया जा रहा था  तब तक तो ये धूर्त लोग चुप थे और मजा ले रहे थे लेकिन जैसे ही इनको गाय खाने से,काटने से और उसकी तस्करी करने से रोका जाने लगा तो ये बेहाल होने लगे,इनकी मरी हुई आत्मा जीवित हो गई और ये लोग देश की स्थिति खराब होने का रोना रोने लगे अपना सम्मान वापस लौटाने लगे।
मित्रों,जो व्यक्ति दयालु होगा उसका हृदय क्या जाति और धर्म को देखकर द्रवित होगा? जो लोग खुद को अतिसंवेदनशील कहते हैं क्या उनकी संवेदनशीलता सिर्फ चयनित घटना पर मुखर होगी? कदापि नहीं,बल्कि जो सचमुच में संवेदनशील होंगे वे तो एक क्रौंच की हत्या पर भी द्रवित हो उठेंगे और बहेलिये को श्राप दे डालेंगे कि मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शास्वतीसमाः। यत् क्रौंच मिथुनादेकम वधीः काममोहितम्। राजा शिवि ने जब एक कबूतर की जान बचाने के लिए अपने शरीर के एक-एक अंग को काटकर तराजू पर तौल दिया था तब तो उन्होंने यह नहीं देखा था कि कबूतर उनका सगा नहीं है। भगवान बुद्ध ने जब हंस की या महाराज दिलीप ने जब गाय की प्राण रक्षा की  तब तो उन्होंने अपने-पराये या लाभ-हानि का ख्याल नहीं किया?
मित्रों,लेकिन हमारे छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी बुद्धिजीवी तो ऐसा ही कर रहे हैं। इनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या गला रेतने पर दर्द सिर्फ उनको ही होता है या उनके परिजनों को ही होता है बांकी इंसानों और पशु-पक्षियों को नहीं होता? जरा इनके विरोध की टाईमिंग भी तो देखिए। जब बिहार में विधानसभा चुनाव चल रहा है तब इन घनघोर घड़ियालों ने अपने आँसुओं से हिंद महासागर को और भी नमकीन बनाना शुरू कर दिया है। इन लोगों को लगता है कि बिहार भी दिल्ली है और बिहार की जनता अंधी है जो नहीं देख पा रही है कि दिल्ली के लोग किस प्रकार से अपने आपको ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। खोमचेवाले सड़क किनारे जलेबी नहीं बना सकते,टेंपो और टैक्सी वालों की रोजी-रोटी का सौदा कर दिया गया है,प्याज और चीनी में जबर्दस्त घोटाला हुआ है,सीसीटीवी कैमरे व बसों में महिलारक्षक पुलिस,फ्री वाई-फाई सेवा,फ्री की बिजली-पानी का कहीं अता-पता नहीं है। सफाईकर्मियों जिन्होंने जी-जान से केजरीवाल का साथ दिया था भूखों मर रहे हैं और हड़ताल पर हैं जिससे पूरी दिल्ली साक्षात रौरव नरक बन गई है।
मित्रों,यह तो हमें भी पहले से ही पता था कि छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी बुद्धिजीवी बहुत समय तक शांत तो नहीं बैठेंगे लेकिन बगुला भगत इतनी जल्दी अपनी असलियत पर आ जाएंगे यह हमने भी नहीं सोंचा था। मुक्तिबोध को तो पाखंडियों का वास्तविक चेहरा अंधेरे में दिखा था यहाँ तो चिलचिलाती धूप में अहिंदू,देशद्रोही कथित हिंदुओं के सात घूंघटों वाले चेहरे बेनकाब होते जा रहे हैं। अरे कोई है और भी जो बचा हुआ है अपना कथित सम्मान वापस करने के लिए? आओ भाई जल्दी आओ और अपना मुखड़ा दिखाओ क्योंकि अब बिहार के चुनाव समाप्त होने वाले हैं। वैसे हम आपलोगों को बता दें कि हमें आपके सम्मान वापसी से कोई फर्क नहीं पड़ता दरबारियों हमें तो भारतमाता का खोया हुआ सम्मान वापस प्राप्त करना है। जापान का इतिहास पढ़ो सम्मान लौटानेवाले इतिहासकारों। पढ़ो कि कैसे मेजी पुनर्स्थापना (1868) के 3 दशकों के भीतर ही जापान महाशक्ति बन गया और हम आजादी के 70 साल बाद भी दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब जनसंख्या को धारण करनेवाले देश के निवासी हैं। पढ़ो कि कैसे 20वीं सदी की शुरुआत में साम्राज्यवादियों के लिए बँटवारे का तरबूज रहे चीन ने सबको गरीब बनाने की नकारात्मक साम्यवादी नीति का परित्याग कर सबको अमीर बनाने की अति सकारात्मक नीति का अनुगमन किया और आज दुनिया की दूसरी आर्थिक महाशक्ति बनकर अमेरिका के सामने सीना तानकर खड़ा है। भारत और भारतीयों को भी दुनिया में सबसे आगे निकलना है और भूख और गरीबी को बीता हुआ कल बनाना है। बिहार तो क्या अब भारत का कोई भी हिस्सा तुम्हारी नहीं सुनेगा क्योंकि उसे एक ऐसा नेतृत्व मिल गया है जिसको अपने लिए कुछ भी नहीं चाहिए,जो सिर्फ और सिर्फ देश के लिए जीता है और जाग्रत,उत्तिष्ठ,प्राप्य बरान्निबोधत के वेद वाक्य पर पूरी निष्ठा के साथ अमल करता हुआ देश के लिए दिन-रात अपने पूरे सामर्थ्य से परिश्रम कर रहा है।

1 टिप्पणी:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, रामायण और पप्पू - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !