शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

मैला आँचल का दुलारचंद कापरा और राहुल-सोनिया

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आपने हिंदी फिल्मों में बहुत से ऐसे खलनायक-पुत्र देखे होंगे जो पुलिस में कार्यरत हीरो से कहते हैं कि मैं नहीं डरता तुम्हारे कायदे-कानून से क्योंकि मेरे पास बहस करने के लिए वकीलों की फौज है और जजों को खरीदने के लिए अफरात पैसा।
मित्रों,मुझे नहीं पता कि कांग्रेस उपाध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार के चश्मोचिराग राहुल गांधी के पास कितने पालतू अधिवक्ता हैं और उनके खानदानी खजाने में कितना पैसा है लेकिन उनकी भाषा और उनकी अकड़ जरूर वही है और वैसी ही है जैसी कि हिंदी फिल्मों के खलनायकों के बेटों में होती है।
मित्रों,राहुल जी की माँ अक्सर भाजपा पर यह आरोप लगाती हैं कि भारतीय जनता पार्टी के लोग देश की आजादी के लिए जेल नहीं गए। मैं सोनिया जी को उनके राजवंश के संस्थापक पं. जवाहर लाल नेहरू जी का एक प्रसंग सुनाना चाहूंगा जो मैंने प्रकाशन विभाग द्वारा कांग्रेस शासन में प्रकाशित किसी पुस्तक में पढ़ा था। हुआ यह कि नेहरू जी को किसी आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल भेजा गया। जेलर अंग्रेज था और बला का जालिम भी।  वो आटे में मिट्टी मिलाकर रोटियाँ बनवाता और स्वतंत्रता-सेनानियों को खाने को देता।
मित्रों,जवाहर लाल जी ठहरे खानदानी रईस सो उनसे मिट्टी मिली रोटी खाई नहीं गई और पहुँच गए जेलर के पास शिकायत लेकर। जेलर ने कहा कि खुद को स्वतंत्रता-सेनानी कहते हो और देश की मिट्टी नहीं खा सकते?  तब नेहरू जी ने खूबसूरती से जवाब दिया था कि हम यहाँ देश की मिट्टी को आजाद कराने के लिए आए हैं न कि देश की मिट्टी को खाने के लिए। लेकिन तब नेहरू जी को यह पता नहीं था कि उनके वंशज देश की मिट्टी तो क्या देश का कोयला और हवा में तैरते तरंगों तक को खा जाएंगे।
मित्रों,मैं सोनिया जी को एक और कथा भी सुनाना चाहूंगा। प्रसंग प्रख्यात समाजवादी विचारक और कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु के विश्वप्रसिद्ध उपन्यास मैला आँचल से है। पृ.सं. 294,राजपाल प्रकाशन,आठवीं आवृत्ति:2003। कांग्रेस का सच्चा कार्यकर्ता,वास्तविक गांधी भक्त और स्वतंत्रता सेनानी बावनदास आजादी मिलने के बाद कांग्रेस के बदले हुए चरित्र से काफी परेशान है। वो परेशान है कि "कटना के दुलारचंद कापरा,वही जुआ कंपनीवाला,जिसकी जूए की दुकान पर नेवीलाल,भोलाबाबू और बावन ने फारबिसगंज मेला में पिकटिन किया था। जूआ भी नहीं,एकदम पाकिटकाट खेला करता था और मोरंगिया लड़कियों,मोरंगिया दारू-गाँजा का कारबार करता था। ...आज कटहा थाना काँग्रेस का सिकरेटरी है! .....उसी की गाड़ियाँ हैं।" उधर गाँव-ईलाके के लोग गांधीजी की हत्या के बाद उनके श्राद्ध का भोज आयोजित करने में तल्लीन हैं और ईधर महान कांग्रेसी दुलारचंद कापरा तस्करी का माल बोर्डर पार पहुँचाने की फिराक में है। पूरा प्रशासन उसकी मदद कर रहा है और बावन अंगुल का बावनदास खड़ा है उसकी गाड़ियों के काफिले के आगे उसका रास्ता रोककर। वो उसे याद दिलाता है कि कापरा जी आप भी तो कांग्रेसी ही हैं फिर भी वो नहीं सुनता और बावनदास पर गाड़ी चढ़ा देता है। ठीक गांधी जी के श्राद्ध के दिन उनके अनन्य भक्त की हत्या कर दी जाती है और वो भी नए-नवेले कांग्रेसी के हाथों।
मित्रों,यह हत्या बावनदास की हत्या नहीं थी बल्कि कांग्रेस पार्टी की हत्या थी,कांग्रेस के आदर्शों की हत्या थी। महान साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु तो कांग्रेस के बदले हुए चरित्र को सन् 1954 ई. में ही समझ गए थे लेकिन आश्चर्य है कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी इसे आज तक नहीं समझ पाए हैं। हमारे बिहार में एक कहावत है कि जिसकी आँखों में ढेढर हो उसी को वो दिखाई नहीं देता है।
मित्रों,मैं ताल ठोंककर कहता हूँ कि कांग्रेस को मोदी तो क्या किसी से भी डरने की जरुरत नहीं है। यह विडंबना है कि सन् 1954 ई. में तो दुलारचंद कापरा कांग्रेस का छोटा-मोटा पदाधिकारी ही बना था लेकिन आज तो वो पार्टी का आलाकमान बन चुका है। कांग्रेस को डरना है कि खुद से डरे,खुद अपने चरित्र से डरे। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई डरने-डराने की वस्तु नहीं है जिनसे कोई डरे। राहुल जी को चाहिए कि वे अपनी पार्टी के चाल,चरित्र और चेहरे को बदलें और अपने मन में विचारें कि उनकी पार्टी आजादी के पहले क्या थी और आज क्या हो गई है। जिस पार्टी के नेतृत्व में कभी भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी वही पार्टी आज भारत के सबसे बड़े शत्रु पाकिस्तान के हाथों का मोहरा या खिलौना बन गई है। देश को बताएँ कि खुर्शीद और अय्यर ने अभी हाल ही में पाकिस्तान जाकर क्या-क्या किया है और क्या-क्या बोला है। डरना है तो अपने मन के आईने से डरें राहुल जिसमें उनको अपना और अपनी पार्टी का वास्तविक चेहरा दिखाई देगा,अपनी अंतरात्मा से डरें जो उनको रात-दिन धिक्कारेगी। मगर इसके लिए तो मन की आँखें भी चाहिए,अन्तरात्मा चाहिए जो कदाचित् उनके पास है ही नहीं। हो सके तो अपनी माँ को भी समझाएँ कि माँ किसी संस्था की महानता के लिए सिर्फ स्वर्णिम इतिहास ही काफी नहीं होता बल्कि उससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है निष्कलंक वर्तमान।

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