हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,एक कहावत है छोटा मुँह बड़ी बात। लेकिन अपना तो स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि हम हमेशा अपने छोटे से मुँह से बड़ी-2 बातें करते रहते हैं। अब जो व्यक्ति इस देश को चला रहा है और दुनियाभर में जिसकी धूम है उसको हम सलाह दें तो जाहिर है ऐसा करना गुस्ताखी ही होगी। लेकिन करें तो क्या करें हमसे देश की बर्बादी नहीं देखी जाती इसलिए एक और गुनाह कर ही डालते हैं। हमारा जो कर्त्तव्य है सो कर लेते हैं बाँकी जानें मोदी जी कि वे हमारी बातों को मानते हैं या नहीं।
मित्रों,हमने मोदी सरकार के गठन के तत्काल बाद ही अपने एक आलेख द्वारा कहा था कि मंत्रिमंडल गठन में कई कमियाँ रह गई हैं। कई अयोग्य और दागी चेहरे भी मंत्री बना दिए गए हैं। यह चाहे सही भी हो कि सचिवों के माध्यम से अच्छा शासन दिया जा सकता है लेकिन जनता के बीच तो मंत्री ही जाएगा। फिर भारत के मतदाताओं का जो चरित्र है उसमें कोई एक व्यक्ति कभी भी सवा अरब लोगों को अकेला प्रभावित नहीं कर सकता।
मित्रों,बिहार के चुनावों ने यह भी साबित कर दिया है कि स्थानीय लोकप्रिय चेहरों का अपना महत्त्व होता है। लोग मोदी जी रैली में भले ही भारी संख्या में उमड़ें लेकिन वोट तो वे उसी को और उसी के कहने पर देते हैं जिनके साथ वे सहजता से अपनत्त्व स्थापित कर पाते हैं। इसलिए मोदी जी और भाजपा को चाहिए कि सामूहिक नेतृत्व की जिद छोड़कर स्थानीय क्षत्रपों के विकास पर भी ध्यान दें और उनको पनपने के लिए उचित अवसर दें। फिर चाहे पश्चिम बंगाल हो या उत्तर प्रदेश एक सर्वसम्मत तेज-तर्रार ईमानदार चेहरे को चुन लिया जाए और उसके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाए।
मित्रों,हमने बिहार और दिल्ली के चुनावों में देखा कि एक छोटी सी गलती भी कड़े परिश्रम का बंटाधार कर सकती है। क्या आवश्यकता थी लोकसभा चुनावों के बाद प्रशांत किशोर को अलग करने की। मैं यह नहीं कहता कि जो काम प्रशांत किशोर ने बिहार में किया वह केवल वही कर सकते थे। भारत में तेज-तर्रार लोगों की कोई कमी नहीं है। फिर जनसंपर्क कोई ऐसा काम नहीं है जो सिर्फ चुनावों के समय ही करणीय हो। यह तो सतत चलनेवाली प्रक्रिया है। मोदी जी को चाहिए कि 500-1000 ऐसे लोगों की टीम हर समय उनके लिए काम करती रहे जैसे लोगों की टीम प्रशांत किशोर चलाते हैं। देखा गया है कि कई बार पीएम किसी घटना या बयान पर प्रतिक्रिया देने में काफी विलंब कर देते हैं। अगर ऐसी टीम सक्रिय रहेगी तो उनकी ओर से जवाब दे दिया करेगी जिससे देरी होने से होनेवाला नुकसान नहीं हो पाएगा। उदाहरण के लिए मोदी सरकार को बार-2 जोर-शोर से बताना चाहिए था कि सरकार कालाधन विदेशों से लाने की दिशा में काम कर रही है।
मित्रों,काफी दिनों से हम देख रहे हैं कि मोदी जी जब भाषण देते हैं तो इंटरनेट पर वह अक्षरशः उपलब्ध नहीं हो पाता जबकि पहले ऐसा नहीं था। पहले ऑडियो-वीडियो और टेक्स्ट फॉरमेट में उनकी वक्तृता आसानी से उपलब्ध होती थी फिर चाहे वह भाषण विदेशों में ही क्यों न दिया गया हो। अच्छा हो कि इसकी व्यवस्था फिर से की जाए। मुझे ऐसा भी लग रहा है कि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के रूप में अकबरूद्दीन विकास स्वरूप से बेहतर थे और उनके पास संवाद-क्षमता ज्यादा थी। वे तात्कालिक रूप से विदेश दौरों की तस्वीरें और घटनाक्रम को ट्विट करते रहते हैं जो विकास जी नहीं कर पा रहे हैं।
मित्रों,पिछले कुछ महीनों में भाजपा नेताओं में बकवास करने की एक होड़-सी लगी दिखती है। हमने पीएम को भी मुजफ्फरपुर की रैली के बाद एक आलेख के माध्यम से चेताया था कि उनको डीएनए वाला बयान नहीं देना चाहिए था। गिरिराज सिंह,साक्षी महाराज,आदित्यनाथ आदि तो बराबर बेवजह के बयान दे ही रहे हैं पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी इस मामले में किसी से पीछे नहीं हैं। बिहार चुनावों के समय उनका पाकिस्तान वाला बयान जब हमने टीवी पर लाईव देखा तो हमें खुशी नहीं हुई थी बल्कि रंज हुआ था। अभी कल ही उन्होंने चित्रकूट में जो 60 साल वाला बयान दिया है उसकी कोई आवश्यकता थी क्या? मोदी जी तो खुद ही 65 साल के हैं तो क्या श्री शाह उनको भी रिटायर करना चाहते हैं? इसी तरह शाह द्वारा मोदी जी के कालाधन संबंधी बयान को सीधे-सीधे चुनावी जुमला बताना भी सही नहीं था और इसको विपक्ष ने बड़ा मुद्दा बना दिया जिससे जनता के मन में मोदी जी द्वारा किए जा रहे वायदों को लेकर संशय की स्थिति उत्पन्न हो गई। श्री शाह या स्वयं गोदी जी चाहिए था कि वे बताते कि हमने ऐसा कभी नहीं कहा कि हम हर व्यक्ति को 15-15 लाख रुपया देंगे। हाँ हमने ऐसा जरूर कहा था कि हम काला धन को वापस लाएंगे और उसका सदुपयोग देश-निर्माण में करेंगे। 30 अक्तूबर को नरेंद्र मोदी बिहार में हिंदू-मुसलमानों को बाँटनेवाली बातें करते हैं और 31 अक्तूबर तो अचानक एकता-अखंडता का राग आलापने लगते हैं जिससे जनता खुश नहीं होती बल्कि भ्रमित होती है।
मित्रों,यह अच्छा हुआ है कि केंद्र ने सुब्रहमण्यम स्वामी का कोर्ट में साथ नहीं दिया। आज फिर से श्री स्वामी दलाई लामा के बयान का खंडन कर एक बेवजह के विवाद को जन्म दे रहे हैं।
मित्रों,श्री स्वामी मानें या न मानें चुनाव परिणामों से यह बार-बार साबित होता रहा है कि हिंदू मन जन्मना उदार होता है। उसको तालिबानी नहीं बनाया जा सकता। अगर ऐसा करने की कोशिश होगी तो भाजपा को बार-बार बिहार जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा। फिर जिस चैनल पर शाह जैसे नेता मुसलमानों के खिलाफ बयान देते हैं,मोदी कहते हैं कि हम आरक्षण में धर्म के आधार पर हिस्सा नहीं लगने देंगे उसी चैनल पर जब अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के लिए ऋण में सब्सिडी का विज्ञापन आता है तो लोग जरूर सोंचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि यह सब क्या है? एक तरफ तो धर्म के आधार पर गरीबों के बीच भेदभाव किया जा रहा है और दूसरी तरफ भेदभाव के खिलाफ बयान भी दिए जा रहे हैं। अच्छा होता कि केंद्र सरकार सभी गरीब बच्चों को एक समान सुविधा देती बिना धार्मिक भेदभाव के या फिर उसके नेता इस तरह के दोहरे मापदंड वाले बयान ही नहीं देते।
मित्रों,कोई माने या न माने बिहार के चुनावों के दौरान अगर किसी एक बयान ने एनडीए का सबसे ज्यादा नुकसान किया तो वो था भागवत जी का आरक्षण-संबंधी बयान। फिर अगर दे ही दिया तो भागवत जी को इसका स्पष्टीकरण दे देना चाहिए था न कि अड़ जाना। मोदी जी संघ को समझा देना होगा कि वो चुनावों के समय बयान देने में सावधानी बरते और अच्छा हो कि अपने को सिर्फ सांस्कृतिक कार्यों तक ही सीमित रखे।
मित्रों,हम देख रहे हैं कि मोदी सरकार ने अब तक लोकपाल की कुर्सी को खाली रखा है। पता नहीं ऐसा क्यों किया जा रहा है लेकिन इसका संदेश जनता के बीच में जरूर गलत जा रहा है कि क्या सरकार कुछ छिपाने की कोशिश कर रही है? अगर पीएम मोदी ताल ठोंककर कह रहे हैं कि उनकी सरकार में एक नये पैसे का भी घोटाला नहीं हुआ है तो फिर भावी लोकपाल से वे भयभीत क्यों हैं? इसलिए जितनी जल्दी हो सके केंद्र में लोकपाल को नियुक्त किया जाना चाहिए। आगे के पश्चिम बंगाल या उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए अगर प्रशांत किशोर एनडीए के लिए काम करने को तैयार हों तो इसके लिए तुरंत प्रयास करना चाहिए अन्यथा उनके जैसे दूसरे रणनीतिकार से संपर्क किया जाना चाहिए। अमित शाह अध्यक्ष के तौर पर फेल हो चुके हैं इसलिए उनको हटाकर राजनाथ सिंह जैसे किसी समझदार व्यक्ति को पार्टी का अध्यक्ष बनाना चाहिए जो न तो बकवास करता हो और न ही बकवास करनेवालों को पसंद ही करता हो। मंत्रिमंडल में भी अविलंब बदलाव किया जाए और योग्य-ईमानदार लोगों को स्थान दिया जाए और अयोग्य लोगों को निकाल-बाहर किया जाए। साथ ही पार्टी में पलते असंतोष को साम-दाम-दंड-भेद का इस्तेमाल कर दूर किया जाना चाहिए। जो लोग पुचकारने पर भी नहीं मानें पार्टी के खिलाफ बयान देनेवाले ऐसे लोगों को पार्टी से बाहर कर दिया जाए। जब लालू चार सांसदों में से एक पप्पू यादव को बाहर कर सकते हैं तो भाजपा ऐसा क्यों नहीं कर सकती क्योंकि उनके पार्टी विरोधी बयान पार्टी और पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को कमजोर करते हैं?
मित्रों,मैं पहले भी मोदी सरकार से अर्ज कर चुका हूँ कि वो किसी भी मुद्दे पर यू टर्न नहीं ले। उदाहरण के लिए भूमि-अधिग्रहण के मुद्दे पर सरकार को जो नुकसान होना था वो हो चुका था फिर पल्टी मारने का कोई मतलब नहीं था। सरकार को चाहिए था कि वो संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर दृढ़तापूर्वक उसको पारित करवाती। साथ ही सरकार को कुछ इस तरह से काम करना चाहिए कि जनता को उसका काम धरातल पर दिखाई दे क्योंकि हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो जीडीपी वगैरह का मतलब ही नहीं जानती।
मित्रों,हमने देखा कि भाजपा ने मिस्ड कौल द्वारा करोड़ों लोगों को अपना सदस्य बनाया। तब कहा गया था कि पार्टी कार्यकर्ता मिस्ड कौल सदस्यों से संपर्क करेंगे और उनसे सदस्यता का फार्म भरवाएंगे। लेकिन ऐसा किया नहीं गया जिससे मिस्ड कौल सदस्यों के मन में पार्टी के प्रति गुस्सा उत्पन्न हुआ। पार्टी को चाहिए कि अबसे भी पूरे देश में महाभियान चलाकर मिस्ट कौल सदस्यों से संपर्क कर फार्म भरवाया जाए। इतना ही नहीं समय-2 पर फोन द्वारा उनसे संपर्क किया जाए,शुभकामनाएँ दी जाए और स्थानीय स्तर पर उनकी बैठक आयोजित की जाए जिसमें वे पार्टी के लिए परामर्श दे सकें। साथ ही उनको पार्टी की तरफ से टास्क दिया जाए।
मित्रों,गाय को लेकर इन दिनों भारी विवाद चल रहा है। कुछ लोग तो स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त गायों के चमड़े से भी चप्पलादि बनाने पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। ऐसा करना उचित नहीं होगा। सरकार को चाहिए कि पूरे भारत में गोवध पर रोक लगा दे। कोई अगर गोवध करता हुआ पकड़ा जाए तो उसको कानून के अनुसार सजा दी जाए न कि भीड़ को पीट-पीटकर उसकी हत्या कर देने की छूट दे दी जाए। गोतस्करों के खिलाफ कड़ाई से पेश आना तो आवश्यक है ही साथ ही ऐसी गाएँ जो अब दुधारू नहीं रह गई हैं के पालन-पोषण की भी व्यवस्था की जाए। महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन तुरंत बंद होना चाहिए क्योंकि भारत का जनमत इसको अच्छा घटनाक्रम नहीं मानेगा और पार्टी को इसका नुकसान ही उठाना पड़ेगा।
मित्रों,बिहार के चुनावों में टिकट बाँटने के समय हमने देखा कि पार्टी ने टिकट बाँटा नहीं बेच दिया। इस तरह के कृत्य शर्मनाक हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं को टिकट वितरण में तरजीह दी जानी चाहिए। साथ ही हर विधानसभा का अलग-अलग बारीकी से विश्लेषण करना चाहिए। कौन टिकटाकांक्षी कितना लोकप्रिय है का गुप्त सर्वेक्षण भी करवाना चाहिए। मतदाताओं से घर-घर जाकर संपर्क करना चाहिए और उनकी समस्याएँ क्या हैं,आकाक्षाएँ क्या है का विस्तृत डाटाबेस बनाना चाहिए। अंत में उनके आधार पर ही पार्टी का घोषणापत्र तैयार किया जाना चाहिए। हो सके तो हर विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र के लिए अलग-2 घोषणापत्र बनाया जाना चाहिए और चुनाव जीतने के बाद उसको लागू भी किया जाना चाहिए।
मित्रों,धारा 370 को हटाने और समान नागरिक संहिता को लागू करना जरूरी तो है लेकिन अभी सरकार के पास ऐसा करने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है इसलिए इनको ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहने देना चाहिए। जहाँ तक राम मंदिर बनाने का सवाल है तो कोर्ट के निर्णय का इंतजार किया जाना चाहिए। वैसे भी राम को कंकड़-पत्थर के भवनों में नहीं अपने हृदय में बसाने की आवश्यकता है। अगर सबके मन-आत्मा में राम के आदर्शों को बसा दिया जाए तो भौतिक मंदिर की जरुरत ही कहाँ रह जाएगी और अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो मंदिर बनाकर भी कौन-सा अलौकिक लाभ हो जाएगा? जय श्रीराम।
मित्रों,हमने मोदी सरकार के गठन के तत्काल बाद ही अपने एक आलेख द्वारा कहा था कि मंत्रिमंडल गठन में कई कमियाँ रह गई हैं। कई अयोग्य और दागी चेहरे भी मंत्री बना दिए गए हैं। यह चाहे सही भी हो कि सचिवों के माध्यम से अच्छा शासन दिया जा सकता है लेकिन जनता के बीच तो मंत्री ही जाएगा। फिर भारत के मतदाताओं का जो चरित्र है उसमें कोई एक व्यक्ति कभी भी सवा अरब लोगों को अकेला प्रभावित नहीं कर सकता।
मित्रों,बिहार के चुनावों ने यह भी साबित कर दिया है कि स्थानीय लोकप्रिय चेहरों का अपना महत्त्व होता है। लोग मोदी जी रैली में भले ही भारी संख्या में उमड़ें लेकिन वोट तो वे उसी को और उसी के कहने पर देते हैं जिनके साथ वे सहजता से अपनत्त्व स्थापित कर पाते हैं। इसलिए मोदी जी और भाजपा को चाहिए कि सामूहिक नेतृत्व की जिद छोड़कर स्थानीय क्षत्रपों के विकास पर भी ध्यान दें और उनको पनपने के लिए उचित अवसर दें। फिर चाहे पश्चिम बंगाल हो या उत्तर प्रदेश एक सर्वसम्मत तेज-तर्रार ईमानदार चेहरे को चुन लिया जाए और उसके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाए।
मित्रों,हमने बिहार और दिल्ली के चुनावों में देखा कि एक छोटी सी गलती भी कड़े परिश्रम का बंटाधार कर सकती है। क्या आवश्यकता थी लोकसभा चुनावों के बाद प्रशांत किशोर को अलग करने की। मैं यह नहीं कहता कि जो काम प्रशांत किशोर ने बिहार में किया वह केवल वही कर सकते थे। भारत में तेज-तर्रार लोगों की कोई कमी नहीं है। फिर जनसंपर्क कोई ऐसा काम नहीं है जो सिर्फ चुनावों के समय ही करणीय हो। यह तो सतत चलनेवाली प्रक्रिया है। मोदी जी को चाहिए कि 500-1000 ऐसे लोगों की टीम हर समय उनके लिए काम करती रहे जैसे लोगों की टीम प्रशांत किशोर चलाते हैं। देखा गया है कि कई बार पीएम किसी घटना या बयान पर प्रतिक्रिया देने में काफी विलंब कर देते हैं। अगर ऐसी टीम सक्रिय रहेगी तो उनकी ओर से जवाब दे दिया करेगी जिससे देरी होने से होनेवाला नुकसान नहीं हो पाएगा। उदाहरण के लिए मोदी सरकार को बार-2 जोर-शोर से बताना चाहिए था कि सरकार कालाधन विदेशों से लाने की दिशा में काम कर रही है।
मित्रों,काफी दिनों से हम देख रहे हैं कि मोदी जी जब भाषण देते हैं तो इंटरनेट पर वह अक्षरशः उपलब्ध नहीं हो पाता जबकि पहले ऐसा नहीं था। पहले ऑडियो-वीडियो और टेक्स्ट फॉरमेट में उनकी वक्तृता आसानी से उपलब्ध होती थी फिर चाहे वह भाषण विदेशों में ही क्यों न दिया गया हो। अच्छा हो कि इसकी व्यवस्था फिर से की जाए। मुझे ऐसा भी लग रहा है कि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के रूप में अकबरूद्दीन विकास स्वरूप से बेहतर थे और उनके पास संवाद-क्षमता ज्यादा थी। वे तात्कालिक रूप से विदेश दौरों की तस्वीरें और घटनाक्रम को ट्विट करते रहते हैं जो विकास जी नहीं कर पा रहे हैं।
मित्रों,पिछले कुछ महीनों में भाजपा नेताओं में बकवास करने की एक होड़-सी लगी दिखती है। हमने पीएम को भी मुजफ्फरपुर की रैली के बाद एक आलेख के माध्यम से चेताया था कि उनको डीएनए वाला बयान नहीं देना चाहिए था। गिरिराज सिंह,साक्षी महाराज,आदित्यनाथ आदि तो बराबर बेवजह के बयान दे ही रहे हैं पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी इस मामले में किसी से पीछे नहीं हैं। बिहार चुनावों के समय उनका पाकिस्तान वाला बयान जब हमने टीवी पर लाईव देखा तो हमें खुशी नहीं हुई थी बल्कि रंज हुआ था। अभी कल ही उन्होंने चित्रकूट में जो 60 साल वाला बयान दिया है उसकी कोई आवश्यकता थी क्या? मोदी जी तो खुद ही 65 साल के हैं तो क्या श्री शाह उनको भी रिटायर करना चाहते हैं? इसी तरह शाह द्वारा मोदी जी के कालाधन संबंधी बयान को सीधे-सीधे चुनावी जुमला बताना भी सही नहीं था और इसको विपक्ष ने बड़ा मुद्दा बना दिया जिससे जनता के मन में मोदी जी द्वारा किए जा रहे वायदों को लेकर संशय की स्थिति उत्पन्न हो गई। श्री शाह या स्वयं गोदी जी चाहिए था कि वे बताते कि हमने ऐसा कभी नहीं कहा कि हम हर व्यक्ति को 15-15 लाख रुपया देंगे। हाँ हमने ऐसा जरूर कहा था कि हम काला धन को वापस लाएंगे और उसका सदुपयोग देश-निर्माण में करेंगे। 30 अक्तूबर को नरेंद्र मोदी बिहार में हिंदू-मुसलमानों को बाँटनेवाली बातें करते हैं और 31 अक्तूबर तो अचानक एकता-अखंडता का राग आलापने लगते हैं जिससे जनता खुश नहीं होती बल्कि भ्रमित होती है।
मित्रों,यह अच्छा हुआ है कि केंद्र ने सुब्रहमण्यम स्वामी का कोर्ट में साथ नहीं दिया। आज फिर से श्री स्वामी दलाई लामा के बयान का खंडन कर एक बेवजह के विवाद को जन्म दे रहे हैं।
मित्रों,श्री स्वामी मानें या न मानें चुनाव परिणामों से यह बार-बार साबित होता रहा है कि हिंदू मन जन्मना उदार होता है। उसको तालिबानी नहीं बनाया जा सकता। अगर ऐसा करने की कोशिश होगी तो भाजपा को बार-बार बिहार जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा। फिर जिस चैनल पर शाह जैसे नेता मुसलमानों के खिलाफ बयान देते हैं,मोदी कहते हैं कि हम आरक्षण में धर्म के आधार पर हिस्सा नहीं लगने देंगे उसी चैनल पर जब अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के लिए ऋण में सब्सिडी का विज्ञापन आता है तो लोग जरूर सोंचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि यह सब क्या है? एक तरफ तो धर्म के आधार पर गरीबों के बीच भेदभाव किया जा रहा है और दूसरी तरफ भेदभाव के खिलाफ बयान भी दिए जा रहे हैं। अच्छा होता कि केंद्र सरकार सभी गरीब बच्चों को एक समान सुविधा देती बिना धार्मिक भेदभाव के या फिर उसके नेता इस तरह के दोहरे मापदंड वाले बयान ही नहीं देते।
मित्रों,कोई माने या न माने बिहार के चुनावों के दौरान अगर किसी एक बयान ने एनडीए का सबसे ज्यादा नुकसान किया तो वो था भागवत जी का आरक्षण-संबंधी बयान। फिर अगर दे ही दिया तो भागवत जी को इसका स्पष्टीकरण दे देना चाहिए था न कि अड़ जाना। मोदी जी संघ को समझा देना होगा कि वो चुनावों के समय बयान देने में सावधानी बरते और अच्छा हो कि अपने को सिर्फ सांस्कृतिक कार्यों तक ही सीमित रखे।
मित्रों,हम देख रहे हैं कि मोदी सरकार ने अब तक लोकपाल की कुर्सी को खाली रखा है। पता नहीं ऐसा क्यों किया जा रहा है लेकिन इसका संदेश जनता के बीच में जरूर गलत जा रहा है कि क्या सरकार कुछ छिपाने की कोशिश कर रही है? अगर पीएम मोदी ताल ठोंककर कह रहे हैं कि उनकी सरकार में एक नये पैसे का भी घोटाला नहीं हुआ है तो फिर भावी लोकपाल से वे भयभीत क्यों हैं? इसलिए जितनी जल्दी हो सके केंद्र में लोकपाल को नियुक्त किया जाना चाहिए। आगे के पश्चिम बंगाल या उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए अगर प्रशांत किशोर एनडीए के लिए काम करने को तैयार हों तो इसके लिए तुरंत प्रयास करना चाहिए अन्यथा उनके जैसे दूसरे रणनीतिकार से संपर्क किया जाना चाहिए। अमित शाह अध्यक्ष के तौर पर फेल हो चुके हैं इसलिए उनको हटाकर राजनाथ सिंह जैसे किसी समझदार व्यक्ति को पार्टी का अध्यक्ष बनाना चाहिए जो न तो बकवास करता हो और न ही बकवास करनेवालों को पसंद ही करता हो। मंत्रिमंडल में भी अविलंब बदलाव किया जाए और योग्य-ईमानदार लोगों को स्थान दिया जाए और अयोग्य लोगों को निकाल-बाहर किया जाए। साथ ही पार्टी में पलते असंतोष को साम-दाम-दंड-भेद का इस्तेमाल कर दूर किया जाना चाहिए। जो लोग पुचकारने पर भी नहीं मानें पार्टी के खिलाफ बयान देनेवाले ऐसे लोगों को पार्टी से बाहर कर दिया जाए। जब लालू चार सांसदों में से एक पप्पू यादव को बाहर कर सकते हैं तो भाजपा ऐसा क्यों नहीं कर सकती क्योंकि उनके पार्टी विरोधी बयान पार्टी और पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को कमजोर करते हैं?
मित्रों,मैं पहले भी मोदी सरकार से अर्ज कर चुका हूँ कि वो किसी भी मुद्दे पर यू टर्न नहीं ले। उदाहरण के लिए भूमि-अधिग्रहण के मुद्दे पर सरकार को जो नुकसान होना था वो हो चुका था फिर पल्टी मारने का कोई मतलब नहीं था। सरकार को चाहिए था कि वो संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर दृढ़तापूर्वक उसको पारित करवाती। साथ ही सरकार को कुछ इस तरह से काम करना चाहिए कि जनता को उसका काम धरातल पर दिखाई दे क्योंकि हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो जीडीपी वगैरह का मतलब ही नहीं जानती।
मित्रों,हमने देखा कि भाजपा ने मिस्ड कौल द्वारा करोड़ों लोगों को अपना सदस्य बनाया। तब कहा गया था कि पार्टी कार्यकर्ता मिस्ड कौल सदस्यों से संपर्क करेंगे और उनसे सदस्यता का फार्म भरवाएंगे। लेकिन ऐसा किया नहीं गया जिससे मिस्ड कौल सदस्यों के मन में पार्टी के प्रति गुस्सा उत्पन्न हुआ। पार्टी को चाहिए कि अबसे भी पूरे देश में महाभियान चलाकर मिस्ट कौल सदस्यों से संपर्क कर फार्म भरवाया जाए। इतना ही नहीं समय-2 पर फोन द्वारा उनसे संपर्क किया जाए,शुभकामनाएँ दी जाए और स्थानीय स्तर पर उनकी बैठक आयोजित की जाए जिसमें वे पार्टी के लिए परामर्श दे सकें। साथ ही उनको पार्टी की तरफ से टास्क दिया जाए।
मित्रों,गाय को लेकर इन दिनों भारी विवाद चल रहा है। कुछ लोग तो स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त गायों के चमड़े से भी चप्पलादि बनाने पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। ऐसा करना उचित नहीं होगा। सरकार को चाहिए कि पूरे भारत में गोवध पर रोक लगा दे। कोई अगर गोवध करता हुआ पकड़ा जाए तो उसको कानून के अनुसार सजा दी जाए न कि भीड़ को पीट-पीटकर उसकी हत्या कर देने की छूट दे दी जाए। गोतस्करों के खिलाफ कड़ाई से पेश आना तो आवश्यक है ही साथ ही ऐसी गाएँ जो अब दुधारू नहीं रह गई हैं के पालन-पोषण की भी व्यवस्था की जाए। महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन तुरंत बंद होना चाहिए क्योंकि भारत का जनमत इसको अच्छा घटनाक्रम नहीं मानेगा और पार्टी को इसका नुकसान ही उठाना पड़ेगा।
मित्रों,बिहार के चुनावों में टिकट बाँटने के समय हमने देखा कि पार्टी ने टिकट बाँटा नहीं बेच दिया। इस तरह के कृत्य शर्मनाक हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं को टिकट वितरण में तरजीह दी जानी चाहिए। साथ ही हर विधानसभा का अलग-अलग बारीकी से विश्लेषण करना चाहिए। कौन टिकटाकांक्षी कितना लोकप्रिय है का गुप्त सर्वेक्षण भी करवाना चाहिए। मतदाताओं से घर-घर जाकर संपर्क करना चाहिए और उनकी समस्याएँ क्या हैं,आकाक्षाएँ क्या है का विस्तृत डाटाबेस बनाना चाहिए। अंत में उनके आधार पर ही पार्टी का घोषणापत्र तैयार किया जाना चाहिए। हो सके तो हर विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र के लिए अलग-2 घोषणापत्र बनाया जाना चाहिए और चुनाव जीतने के बाद उसको लागू भी किया जाना चाहिए।
मित्रों,धारा 370 को हटाने और समान नागरिक संहिता को लागू करना जरूरी तो है लेकिन अभी सरकार के पास ऐसा करने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है इसलिए इनको ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहने देना चाहिए। जहाँ तक राम मंदिर बनाने का सवाल है तो कोर्ट के निर्णय का इंतजार किया जाना चाहिए। वैसे भी राम को कंकड़-पत्थर के भवनों में नहीं अपने हृदय में बसाने की आवश्यकता है। अगर सबके मन-आत्मा में राम के आदर्शों को बसा दिया जाए तो भौतिक मंदिर की जरुरत ही कहाँ रह जाएगी और अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो मंदिर बनाकर भी कौन-सा अलौकिक लाभ हो जाएगा? जय श्रीराम।
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